अहंकार
अहंकार के दानव बर तैं,तीर कमान उठा।
ले डुबही एहर तोला गा,हावस धरे मुठा।
धन दौलत अउ माल खजाना,बइरी तोर बने।
जेखर तीर म एहर होथे , रहिथे देख तने।
इही हरे जड़ अहंकार के,झगरा इही करे।
बाढ़त रहिथे तन भीतर,रहिबे कहूँ धरे।
होथे शुरू मोर अउ मैं ले ,आखिर लड़े मरे।
पनपन झन दे अहंकार ला,इही बिगाड़ करे।
मनखे के मन मति छरियाथे,बोली जहर बहे।
खाथे बिन बिन मीत मया ला,एहर जिहा रहे।
अपन सुवारथ बर दूसर ला,फाँसे फेक गरी।
कटरे दाँत फोकटे फोकट ,मसकत हवे नरी।
रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को, छत्तीसगढ़
अहंकार के दानव बर तैं,तीर कमान उठा।
ले डुबही एहर तोला गा,हावस धरे मुठा।
धन दौलत अउ माल खजाना,बइरी तोर बने।
जेखर तीर म एहर होथे , रहिथे देख तने।
इही हरे जड़ अहंकार के,झगरा इही करे।
बाढ़त रहिथे तन भीतर,रहिबे कहूँ धरे।
होथे शुरू मोर अउ मैं ले ,आखिर लड़े मरे।
पनपन झन दे अहंकार ला,इही बिगाड़ करे।
मनखे के मन मति छरियाथे,बोली जहर बहे।
खाथे बिन बिन मीत मया ला,एहर जिहा रहे।
अपन सुवारथ बर दूसर ला,फाँसे फेक गरी।
कटरे दाँत फोकटे फोकट ,मसकत हवे नरी।
रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को, छत्तीसगढ़
विष्णु छंद ला गाबो हम तो, गुरतुर लागत हे
ReplyDeleteसब झन जाबो मोद मनाबो, मन सुरतावत हे।
पायलागी दीदी
Deleteबड़ सुघर विष्णुपद छंद भैया जी
ReplyDeleteवाह वाह जितेंद्र जी। लाजवाब विष्णुपद छंद हावय।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteपायलागी गुरुजी
Deleteबहुत सुग्घर अउ लाजवाब विष्णु पद छंद हे भैया। बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी
Deleteवाह्ह वाह्ह शानदार विष्णु पद छंद हे सरजी।सादर बधाई
ReplyDeleteवाह्ह वाह्ह शानदार विष्णु पद छंद हे सरजी।सादर बधाई
ReplyDeleteवाहःहः भाई जितेंन्द्र
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सृजन
पायलागी दीदी
Deleteवाह भईया जी... बहुत बहुत बधाई हो
ReplyDeleteवाह भईया जी... बहुत बहुत बधाई हो
ReplyDeleteधन्यवाद भैया
Deleteशानदार सर जी बधाई हो
ReplyDeleteशानदार सर जी बधाई हो
ReplyDeleteसर जी,नमन
Deleteअब्बड़ सुघ्घर विष्णुपद छंद हे भाई
ReplyDeleteनमन दीदी
Deleteगजब सुघर रचना विष्णुपद छंद विधा म सर जी हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद भैया जी
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