श्री राम जनम -
लछमीपति ला नरतन धरके, लीला अपन रचाना हे।
पापी मन ला मार मिटा के, धरम धजा फहराना हे । 1।
मनु सतरूपा राजा रानी, करे रहिंन तप जी भारी।
देये वरदान निभाये के, आगे हावय गा पारी। 2।
नारद मुनि के श्राप घलो हे, राम जनम लिस त्रेता में।
धरती हाहा कार करिस जब, परके पाप सपेटा में ।3।
देव संत तपसी मनखे के, सब दुख दरद मिटाना हे ।
धरम करम भूले बिसरे ला, फरी फरी समझाना हे । 4।
रावन कुंभकरन दूनो के, पार उतारे के बारी।
सनक सनंदन सनकादिक के, श्राप लगे हे जी भारी । 5।
राम जनम के कतको कारन , बेद पुरान बखाने हे ।
मोर छोटकुन अड़हा मति हा, अतके कस ला जाने हे ।6 ।
सुभ मुहरत अभिजित के हावय, करक लगन सुभकारी हे ।
हवय नछत्तर सुग्घर छाहित , नव ग्रह मन सँगवारी हे ।7।
समे दोपहर दिन के हावय , बढ़िया बेरा आये हे ।
जान समय अवतार नाथ के, देव सबो सकलाये हे । 8।
फुरहुर फुरहुर हवा चलत हे, जंगल सब हरियाये हें
परबत मन चमकत हावय जी, रतन अपन बगराये हें । 9 ।
कलकल कलकल गीत सुनावत , बोहावत नदिया धारा ।
कुहुक कोयली राग धरे हे , मस्त मगन भौंरा न्यारा । 10 ।
डार डार मा फूल लदे हे, रितु मनभावन होगे हे ।
श्री हरि जी हा इही समे ला , जनम धरे बर जोंगे हे ।11।
माता कौशिलिया के आगू , चार भुजा वाला ठाढ़े ।
माता अड़बड़ गदगद होगे, देखत अचरज हे बाढ़े । 12।
कोदो साँवर तन हा सुंदर ,मुँह के सोभा भारी हे ।
फूल खोखमा कस आँखी मा, पुतरी भँवरी कारी हे । 13।
गदा शंख ला धरे हवय वो , चक्र सुदर्शन हे धारी ।
रतन जड़े गहना पहिरे हे, चमकत हावय जी भारी । 14 ।
मूड़ सोन के मुकुट बिराजे, कानन कुंडल सोहे हे ।
बैजंती माला बड़ सुग्घर , तीन लोक मन मोंहे हे ।15 ।
घुँघरालू करिया चूंदी हा , बादर सहीं उनोये हे ।
अगर चँदन के तिलक लगे हे , माथा अबड़ फबोये हे ।16 ।
धोती पिंयर हवय पहिरे जी, पीताम्बर अलफी डारे ।
अदभुत रूप हवय श्री हरि के, सुंदरता लहरा मारे ।17।
बिनती करत कहिस माता हा, लइ का बनके आना तैं ।
मोर कोंख के बेटा बनके , सिसु लीला देखाना तैं ।।18।
तुरते प्रभु हा लइका बनगे , भुलवारे मति माता के ।
एहों एहों रोवन लागिस , देखव खेल बिधाता के । 19।
अवधपुरी मा मंगल होगे , बाजत हावय जी बाजा ।
हीरा मोती दान करत हे, अब्बड़ खुस दशरथ राजा । 20।
रचनाकार - श्री चोवा राम " बादल "
हथबन्द, छत्तीसगढ़
लछमीपति ला नरतन धरके, लीला अपन रचाना हे।
पापी मन ला मार मिटा के, धरम धजा फहराना हे । 1।
मनु सतरूपा राजा रानी, करे रहिंन तप जी भारी।
देये वरदान निभाये के, आगे हावय गा पारी। 2।
नारद मुनि के श्राप घलो हे, राम जनम लिस त्रेता में।
धरती हाहा कार करिस जब, परके पाप सपेटा में ।3।
देव संत तपसी मनखे के, सब दुख दरद मिटाना हे ।
धरम करम भूले बिसरे ला, फरी फरी समझाना हे । 4।
रावन कुंभकरन दूनो के, पार उतारे के बारी।
सनक सनंदन सनकादिक के, श्राप लगे हे जी भारी । 5।
राम जनम के कतको कारन , बेद पुरान बखाने हे ।
मोर छोटकुन अड़हा मति हा, अतके कस ला जाने हे ।6 ।
सुभ मुहरत अभिजित के हावय, करक लगन सुभकारी हे ।
हवय नछत्तर सुग्घर छाहित , नव ग्रह मन सँगवारी हे ।7।
समे दोपहर दिन के हावय , बढ़िया बेरा आये हे ।
जान समय अवतार नाथ के, देव सबो सकलाये हे । 8।
फुरहुर फुरहुर हवा चलत हे, जंगल सब हरियाये हें
परबत मन चमकत हावय जी, रतन अपन बगराये हें । 9 ।
कलकल कलकल गीत सुनावत , बोहावत नदिया धारा ।
कुहुक कोयली राग धरे हे , मस्त मगन भौंरा न्यारा । 10 ।
डार डार मा फूल लदे हे, रितु मनभावन होगे हे ।
श्री हरि जी हा इही समे ला , जनम धरे बर जोंगे हे ।11।
माता कौशिलिया के आगू , चार भुजा वाला ठाढ़े ।
माता अड़बड़ गदगद होगे, देखत अचरज हे बाढ़े । 12।
कोदो साँवर तन हा सुंदर ,मुँह के सोभा भारी हे ।
फूल खोखमा कस आँखी मा, पुतरी भँवरी कारी हे । 13।
गदा शंख ला धरे हवय वो , चक्र सुदर्शन हे धारी ।
रतन जड़े गहना पहिरे हे, चमकत हावय जी भारी । 14 ।
मूड़ सोन के मुकुट बिराजे, कानन कुंडल सोहे हे ।
बैजंती माला बड़ सुग्घर , तीन लोक मन मोंहे हे ।15 ।
घुँघरालू करिया चूंदी हा , बादर सहीं उनोये हे ।
अगर चँदन के तिलक लगे हे , माथा अबड़ फबोये हे ।16 ।
धोती पिंयर हवय पहिरे जी, पीताम्बर अलफी डारे ।
अदभुत रूप हवय श्री हरि के, सुंदरता लहरा मारे ।17।
बिनती करत कहिस माता हा, लइ का बनके आना तैं ।
मोर कोंख के बेटा बनके , सिसु लीला देखाना तैं ।।18।
तुरते प्रभु हा लइका बनगे , भुलवारे मति माता के ।
एहों एहों रोवन लागिस , देखव खेल बिधाता के । 19।
अवधपुरी मा मंगल होगे , बाजत हावय जी बाजा ।
हीरा मोती दान करत हे, अब्बड़ खुस दशरथ राजा । 20।
रचनाकार - श्री चोवा राम " बादल "
हथबन्द, छत्तीसगढ़
बादल भैया जी
ReplyDeleteअइसन कालजयी रचना बिरले ही कवि मन लिख पाथे
आपमन के विलक्षण प्रतिभा ला नमन हे भैया जी
आशा बहिनी जी आपके भावना ला सादर पनामा हे।अइसन रचना मा यदि कुछु विशेषता होही त वो सिर्फ गुरुकृपा अउ आप सब छंद के छ परिवार के सुभेच्छा के परिणाम आय ।मँय तो एक माध्यम भर आँव ।
Deleteआशा बहिनी जी आपके भावना ला सादर प्रणाम हे।अइसन रचना मा यदि कुछु विशेषता होही त वो सिर्फ गुरुकृपा अउ आप सब छंद के छ परिवार के सुभेच्छा के परिणाम आय ।मँय तो एक माध्यम भर आँव ।
Deleteआशा बहिनी जी आपके भावना ला सादर प्रणाम हे। अइसन रचना मन में मान लव कुछु विशेषता होही त वो ह सिर्फ गुरुदेव के कृपा अउ आप सब छंद के छ परिवार के साधक मन के सुभेच्छा के परिणाम आय ।मैं तो एक माध्यम भर आँव ।
Deleteअद्भुत रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteअद्भुत रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteवाह वाह गुरूजी शानदार,, अनुपम अद्भुत
ReplyDeleteबादल बढिया बरसही, बाजा बने बजाव
ReplyDeleteबल्दाऊ बलराम बन, बरवै बंद - बनाव।
बहुत सुघ्घर रचना बादल भैया जी
ReplyDeleteपढ़के आनंद आगे
बहुत बहुत बधाई हो
बहुत बढ़िया रचना बर बधाई हो भईया जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना बर बधाई हो भईया जी
ReplyDeleteवाह वाह बेहतरीन रचना करे हव,गुरुदेव बादल जी।सादर बधाई। नमन।
ReplyDeleteअद्भुत लाजवाब कालजयी रचना बादल भैया।सादर बधाई
ReplyDeleteअहिलेश्वर भाई सादर आभार।छन्द के छ परिवार अउ हमर प्रणम्य गुरुदेव के यश पताका आप सब के हाँथ मा हावय।
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