गीतिका मा गीत -
गीत गाले मीत मोरे,प्रीत के तँय राग मा।
झन जला अंतस अपन तँय,बैर रख मन आग मा।
खुश रहे ले सुख ह मिलथे,दुख़ म बाढ़य ताप जी।
जेन मन सब ला भुलाइन,ते मगन हे आप जी।
जेन रखथे बैर मन मा,खुद जले ओ आग मा।
गीत गाले मीत मोरे,प्रीत के तँय राग मा।
प्यार बाँटे प्यार पाबे,प्यार हर संसार हे।
प्यार बिन जीवन अधूरा,प्यार ही घर द्वार हे।
प्यार तो अहसास होथे,जान अंतस भाग मा।
झन जला अंतस अपन तँय,बैर रख मन आग मा।
देख दुनिया नइ रुकय गा,एक मनखे वासते।
चल चलाचल संग साथी,गम भुला चल हाँसते।
ओ सफल हे जेन चलथे,रुख हवा के साँथ मा।
जेन उल्टा राह चलथे, कुछ न आवय हाँथ मा।
मान कहना मोर संगी,तोर तब उद्धार हे।
साँथ चल सब संग लेके,देख तब संसार हे।
सुख इहाँ हे दुख़ इहाँ हे,भोग जे हे भाग मा।
सोच के अब तन अपन गा,झन जला अब आग मा।
रचनाकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
गीत गाले मीत मोरे,प्रीत के तँय राग मा।
झन जला अंतस अपन तँय,बैर रख मन आग मा।
खुश रहे ले सुख ह मिलथे,दुख़ म बाढ़य ताप जी।
जेन मन सब ला भुलाइन,ते मगन हे आप जी।
जेन रखथे बैर मन मा,खुद जले ओ आग मा।
गीत गाले मीत मोरे,प्रीत के तँय राग मा।
प्यार बाँटे प्यार पाबे,प्यार हर संसार हे।
प्यार बिन जीवन अधूरा,प्यार ही घर द्वार हे।
प्यार तो अहसास होथे,जान अंतस भाग मा।
झन जला अंतस अपन तँय,बैर रख मन आग मा।
देख दुनिया नइ रुकय गा,एक मनखे वासते।
चल चलाचल संग साथी,गम भुला चल हाँसते।
ओ सफल हे जेन चलथे,रुख हवा के साँथ मा।
जेन उल्टा राह चलथे, कुछ न आवय हाँथ मा।
मान कहना मोर संगी,तोर तब उद्धार हे।
साँथ चल सब संग लेके,देख तब संसार हे।
सुख इहाँ हे दुख़ इहाँ हे,भोग जे हे भाग मा।
सोच के अब तन अपन गा,झन जला अब आग मा।
रचनाकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
बहुत सुघ्घर गीतिका छंद भईया जी
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर गीतिका छंद भईया जी
ReplyDeleteआभार जोगी जी।
Deleteलाजवाब
ReplyDeleteलाजवाब
ReplyDeleteधन्यवाद अजय जी।
Deleteवाहःहः दिलीप भाई जी
ReplyDeleteशानदार गीत
आभार दीदी।
Deleteबहुत खूब भैया
ReplyDeleteआभार वर्मा जी।
Deleteवाह्ह वाह्ह सर जी बहुते सुन्दर गीतिका गीत।
ReplyDeleteआभार सुखदेव भाई।
Deleteगीतिका के तूलिका ले, आज रच दे छंद रे
ReplyDeleteमान मंदिर मा मढा दे, मोहिनी मन - बंद रे।
भाव के भुइयाँ बडे हे, ला चढाबो - फूल रे
देख तो नटवर खडे हे, मान मीठा बोल रै।
धन्यवाद दीदी।
Deleteबड़ सुग्घर गीतिका रचे हव।
मान मन्दिर मा मढ़ादे,मोहिनी मन बंद रे।
वाह्ह्ह्ह्
गीतिका छंद मा बेहतरीन रचना करे हव भैया जी,बधाई हो आदरणीय ।
ReplyDeleteभन्यवाद वर्माजी।
Deleteगीतिका छंद म भाव भरे शानदार जीत बर दिलीप वर्मा जी ला हार्दिक शुभकामना।
ReplyDeleteधन्यवाद भइया जी।
Deleteवाह्ह्ह् वाह्ह्ह् अनुपम रचना सरजी।सादर बधाई
ReplyDeleteवाह्ह्ह् वाह्ह्ह् अनुपम रचना सरजी।सादर बधाई
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