नवरात्रि विशेष-माता रानी ल छंदबद्ध भाव पुष्प
इंद्राणी साहू: *माँ दुर्गा के स्तुति*
विधा - *विष्णुपद छंद*
26- मात्रा, यति- (16,10), समचरणान्त- 12
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दुर्गा दाई हवय बिराजे, शुभ सिंगार करे ।
बघवा ऊपर करे सवारी, तिरसुल हाथ धरे ।।
माथा चमके चंदा कस अउ, आँखी हवय बड़े ।
खप्परवाली अपन भक्त के, रक्षा करत खड़े ।
निरमल भाव पुकार करे ले, संकट सबो टरे ।
दुर्गा दाई हवय बिराजे, शुभ सिंगार करे ।।
भक्तन के दुख दूर करैया, मइया करय दया ।
शरन म ओकर आवय ओला, माँ के मिलय मया ।
सुख के मिलय बिछौना सुग्घर, आवत दुख ह डरे ।
दुर्गा दाई हवय बिराजे, शुभ सिंगार करे ।।
भक्ति भाव हिरदय म जगावत, सुग्घर रूप सजे ।
संत समाज हवय जुरियाये, माँ के नाँव भजे ।
खाली झोली भरके दाई, सबके दुख ल हरे ।
दुर्गा दाई हवय बिराजे, शुभ सिंगार करे ।।
*इन्द्राणी साहू"साँची"*
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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अमृतदास साहू (विष्णु पद छंद)
आबे मइयाँ नवराती मा,दया मया धरके।
करबो सेवा जुरमिल तोरे,पइयाँ ला परके।।
नव दिन मा तँय सबके माता,दुख पीरा हर दे।
पापी अत्याचारी मन ला,कुट कुट ले छर दे।।
नइहे कोनो हमर पुछइया,तोर सिवा मइयाँ।
सदा मया बरसावत रहिबे,परत हवन पइयाँ ।।
सबके बधना पूरा करथस,हमरो ला करदे।
सबके झोली भरथस माता,हमरो ला भरदे।।
तोर दरस बर आये हावन ,कतको अनगइहाँ।
पाये बर ओ दया मया के, दाई कस छइहाँ।
रेंगत हपटत तोर दुवारी,आये हन मइयाँ।
पार लगा दे हमरो माता,अटके हे नइयाँ।।
अमृत दास साहू
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नंदकुमार साहू
विष्णु पद छंद
नवराती मा माता मन के, नाँव ला सुमरबो।
सुघर अंगना चौक पुराबो, सेवा ला करबो।
खीर मिठाई पान फूल अउ, नरियर ला धरके।
तोर दुवारी गीत आरती, गाबो मन भरके।
नान नान हम लइका दाई, सुरता तँय करबे।
देबे अचरा छाँव अपन तँय, सब दुख ला हरबे।
नन्द कुमार साहू नादान
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मतगयंद सवैया
हाथ धरे तलवार गदा जग के जननी भुँइया अब आवै।
शेर चढ़े जग के जननी अब पाँव धरा म मढा़वत हावै।।
देख अलौकिक रूप सबो अँगना फुलवा ल सजावत हावै।
रंग गुलाल धरे अब स्वागत मंगल गीत सबो झन गावै।।
बृजलाल दावना
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*जयकारी छंद-3* दुर्गा दाई
अरजी हे दाई कर जोर। हर लेबे दुख पीरा मोर।।
कर देबे अॅंछरा के छाॅंव। सेवा मा दिन अपन पहाॅंव।।
महिमा हावय अगम अपार। जग मा होवत जय जयकार ।।
दे दे दया मया के दान। दाई तोर करॅंव गुनगान।।
दाई तोर हवय बड़ रूप। तोला भावय बंदन धूप।।
बैरी मन के कर दे नास। दाई भक्तन के तॅंय आस।।
रीझे यादव
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त्रिभंगी छंद
हे माता रानी,जग कल्याणी,दुखियन के अब,कष्ट हरौ।
सब के पीरा हर,माता तेहर,मनखे मन के,ध्यान धरौ।।
बड़ मान मनौती,होय बढ़ौती,सब मनखे के,आज इहाँ।
माँ अइसन वर दव,सुमता भर दव,होय नेक अब,काज इहाँ।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
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🌸🌸नवरात्रि पर्व🌸🌸
( हरिगीतिका छंद)
रचना-कमलेश वर्मा,भिम्भौरी,बेमेतरा
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नवरात्रि के पावन परब,उत्साह चारों कोत हें।
पण्डाल-मंदिर मा जलत, मन-कामना के जोत हें।
नित आरती सेवा भजन, जयकार भारी होत हे।
सुख-शान्ति पावत आदमी, आवत इहाँ जो रोत हे।
हे माँ भवानी रात-दिन, हम तोर महिमा गात हन।
नवरात्र मा माँ अम्बिका, आशीष तोरे पात हन।
पाके क्षमा सब भूल के, आँखी तुँहर हम भात हन।
विश्वास मन मा भर बिकट, चौखट सदा हम आत हन।
लाली करे श्रृंगार सब, सुग्घर सजे दरबार हे।
सिंह हे सवारी आपके, अउ हाथ मा तलवार हे।
दानव बड़े महिषा सँही, संहार बर अवतार हे।
हे पार्वती-गौरी नमन, कर जोड़ बारम्बार हे।
🌸🌸जय माता दी🌸🌸
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चौपाई छंद
जय हो जय अंबे महरानी।
जग मा नइये तोरो सानी।।
शैल सुता माँ ब्रह्मचारिणी।
तोला कहिथें जग कल्याणी।।
माता चंद्रघंट बन आये
चौथे कुष्मांड़ा कहलाये।।
पंचम दिवस हे स्कंदमाता
मैंया सबके भाग विधाता ।।
दिन छठ कात्यायनी माता।
होवत घर घर में जगराता।।
कालरात्रि साते बन आये।
दुष्टन ला तँय मार भगाये।।
आठे के बने महागौरी ।
मैंया तोरे लागौं पँवरी।।
नवम सिद्धिदात्री तँय माता।
मैंया मोरे हे सुख दाता।।
मात शारदा मैंहर वाली।
तहीं हरस संतन प्रतिपाली।।
मंगल करणी तँय दुख हरनी।
दुनिया कहिथे तोला जननी।।
शिव शंकर के उमा भवानी।
हावे तोरे अकथ कहानी।।
शुंभ निशुंभ दानव ला मारे।।
महिषासुर ला तँय संघारे।।
रक्तबीज के मुड़ ला काटे।
भक्त जनन ला सुख तँय बाँटे।।
दुख दारिद के नाशन हारी।
पँवरी मा जावौं बलिहारी।।
अँधरा तोर दुवारी आथे।
हाँसत आँखी पा घर जाथे।।
बाँझन ला तँय बेटा देथस।
दुख माता तँयहा हर लेथस।।
कोढ़ी तोरे द्वार पुकारे।
काया दे माँ तहीं उबारे।।
निर्धन के भर देथस झोली।
छलकल रहिथे कोठी ड़ोली।।
दुखिया के तँय बने सहाई।
जय हो अंबा जय महमाई ।।
फूल पान धर मातु मनावौं।
तोर जियत भर ले गुण गावौं।।
ध्वजा नारियल भेट चढ़ावँव।
सुमरि सुमरि तोरे गुण गावँव।।
हिंगलाज में मातु भवानी।
माने दुनिया तँय वरदानी।।
धरके श्रद्धा भक्ति सुमरथे।
भवसागर ले पार उतरथे।।
आओ चरण म शीश झुकाबो।
मन के हमूँ मनौती पाबो।।
नवदिन अउ नव रात मनावौं।
झुमर झुमर के जस ला गावौं।।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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दाई तोर बघवा (जस गीत,बरवै छंद)
दाई तोरे बघवा,करे उजार।
बैरी दल मा मचगे,हाहाकार।
तन मा कारी पिंवरी,हावय डाड़।
बादर गरजे तइसे ,लगे दहाड़।
रीस भरे आँखी मा,हे बड़ लाल।
तेज हवा ले भागे,मार उछाल।
कोई नइ तो पाये,ओखर पार--।
दाई तोरे बघवा,करे उजार----।
आरी ले जादा हे, धरहा दाँत।
बइरी मन ला मारे,धरके पाँत।
कतको मन बिन मारे,जान गँवाय।
कोनो हा बघवा ले,सक नइ पाय।
डरके रन ले भागे,माने हार.......।
दाई तोरे बघवा,करे उजार........।
बिछगे भारी रन मा,लासे लास।
कँउवा कुकुर अघाये,खाये मास।
चारों मुड़ा बहावय,खूने खून।
देख सबो के नाड़ी,होगे शून।
रहिथे वो सेवा बर, सदा तियार.।
दाई तोरे बघवा,करे उजार.......।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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: *चौपाई छंद - बोधन राम निषादराज*
(मइया शेरावाली)
महिना सुग्घर लागत हावै ।
मन मा आसा जागत हावै ।।
जाहूँ नवराती के मेला ।
डोंगरगढ़ मा रेलम पेला ।।
जगमग-जगमग अँगना चमके ।
लकलक-लकलक सुग्घर दमके ।।
चारो मूड़ा ढोल-नँगारा ।
बाजय जम्मो पारा-पारा ।।
हे दुर्गा माता सुन मइया ।
मँय हाँ तोरे परथौं पइँया ।।
मोरो बिनय अरज सुन लेबे ।
मन चाही मोला वर देबे ।।
सफल मनोरथ करबे मइया ।
मोरो नइया पार लगइया ।।
दीन-हीन के रक्षा करबे ।
खाली झोली मोरो भरबे ।।
हे माता तँय शेरावाली ।
कतका सुग्घर भोली-भाली ।।
मोरो सोये भाग जगादे ।
काट गरीबी मार भगादे ।।
जोत जँवारा के उजियारा ।
बगरत हावै आरापारा ।।
मन के अँधियारी ला मारौ ।
लोभ मोह के फन्दा टारौ ।।
आदि शक्ति माता महरानी ।
दुख हरनी अउ सुख के खानी ।।
दानव मारे छिन मा भारी ।
पापी लोभी अतियाचारी ।।
जगमग मंदिर तोर दुवारी ।
सजे हवै माँ मंडप भारी ।।
रानी मइया के जयकारा ।
गूँजत हावै सब संसारा ।।
काली रूप धरे महरानी ।
मारय दानव आनी-बानी ।।
थर-थर काँपै अतियाचारी ।
भागय जम्मोझन सँगवारी ।।
मोरो दुःख हरो कंकाली ।
दउड़त आवौ शेरा वाली ।।
बइठे हँव मँय तोर दुवारी ।
काटौ मोरो बिपदा भारी ।।
हे जगदम्बा आदि भवानी ।
कृपा करौ मइया कल्यानी ।।
मोरो अँगना पाँव पसारौ ।
लइका तोरे मातु उबारौ ।।
बीच भँवर नइया हा डोले ।
सुआ पिंजरा के माँ बोले ।।
जय हो माता परबतवासी ।
छाये हे घन-घोर उदासी ।।
मइया ला चुनरी ओढ़ाबो।
आशीष हमन ओखर पाबो।।
माता रानी दया दिखाथे।
जे नर नारी गुन ला गाथे।।
पापी मन ला मार गिराए।
जग ले अतियाचार मिटाए।।
भक्ति शक्ति के जोत जलाए।
सेवा करके फल ला पाए।।
माता दुर्गा तँय कल्यानी।
आदि शक्ति हे मातु भवानी।।
हिंगलाज जगदम्बे माता।
दुखिया के तँय भाग्य बिधाता।।
तोर चरन के रज मँय पावँव।
राख भभूती माथ लगावँव।।
हे काली कंकालिन मइया।
डुबती नइया पार लगइया।।
जोत जँवारा सुघ्घर साजे।
ढोल नँगारा मांदर बाजे।।
नव दिन नव राती के मेला।
मंदिर जगमग रेलम पेला।।
रूप सजे हे सुन्दर मुखड़ा।
हरबे दाई मोरो दुखड़ा।।
मँय निर्बल हँव माता रानी।
पाप हरो जगदम्ब भवानी।।
लाली चुनरी फीता लाली।
शेर सवारी जोता वाली।।
जय जय जय जगदम्बे रानी।
माई शारद आदि भवानी।।
रूप दिखै जस चंदा तोरे ।
मोहय माता मन ला मोरे ।।
बिनय करौं माँ मँय दिन-राती ।
वर देबे मोला वरदाती ।।
हाँसत हावै जोत जँवारा ।
सोर उड़त हे पारा-पारा ।।
जगजननी माँ आदि भवानी ।
गूँजे जयकारा महरानी ।।
धजा नारियल पान चढ़ावौं ।
तोर दरस के किरपा पावौं ।।
सेवा ला मँय निसदिन गावौं ।
धजा नारियर फूल चढ़ावों ।।
लाल लँगुरुवा हे रखवारे ।
पापी मन ला वो संघारे ।।
परबत मा डेरा ला डारे ।
जगमग मंदिर तोर दुवारे ।।
पंडा बइठे आसन मारे ।
लिम्बू काटे मंतर भारे ।।
जय हो माँ लोहारा वाली ।
करबे मोरो तँय रखवाली ।।
सुरता मोला आही दाई ।
होवत हावय तोर बिदाई ।।
जिवरा मोरो कलपत हावै ।
तोर चरन छोड़न नइ भावै ।।
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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*सार छंद - बोधन राम निषादराज*
(जोत जँवारा)
जगमग जगमग जोत जँवारा,सजे तोर फुलवारी।
पंडा बाबा बइठे सुघ्घर, अँगना तोर दुवारी।।
भीड़ लगत हे मेला भारी, चैत महिना आवय।
तोर मनौती कर नर नारी,सुघ्घर फल ला पावय।।
दाई मोरो बिनती सुनके, मोरो बिपदा हरबे।
मँय दुखियारा दुख के मारा,इच्छा पूरन करबे।।
नव दिन के नवरात आय हे,जगमग जोत जलाहूँ।
नव दिन ले मँय सेवा करहूँ,तोरे गुन ला गाहूँ।।
हे जगदम्बा शारद माई, मंदिर सुघ्घर पावन।
तोर चरन मा माथ नवावँव,रूप तोर मनभावन।।
सुघ्घर डोंगरगढ़ बमलाई, माता अँगना तोरे।
आए हे सब दर मा दाई,खड़े हवे कर जोरे।।
चइत-कुँवारे मेला भरथे, होथे रेलम पेला।
मन मा जम्मो आसा लेके,फोरय नरियर भेला।।
परबत ऊपर बइठे मइया,देखय दुनिया सारी।
तोर चरन मा माथ नवाए,लइका नर अउ नारी।।
जगमग जोत जँवारा साजे,माता तोर भुवन मा।
कर उजियारा मोरो मन मा,अउ मोरो जीवन मा।।
नान्हें-नान्हें लइका तोरे, ए जग जननी दाई।
आए हावन तोर शरन मा,हमरो करव सहाई।।
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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नवरात्रि(कज्जल छंद)
लागे महिना,हे कुँवार।
बोहावत हे,भक्ति धार।
बना मातु बर,फूल हार।
सुमिरन करके,बार बार।
महकै अँगना,गली खोल।
अन्तस् मा तैं,भक्ति घोल।
जय माता दी,रोज बोल।
मनभर माँदर,बजा ढोल।
सबे खूँट हे,खुशी छाय।
शेर सवारी,चढ़े आय।
आस भवानी,हा पुराय।
जस सेवा बड़,मन लुभाय।
पबरित महिना,हरे सीप।
मोती पा ले,मोह तीप।
घर अँगना तैं,बने लीप।
जगमग जगमग,जला दीप।
माता के तैं,रह उपास।
तोर पुराही,सबे आस।
आही जिनगी,मा उजास।
होही दुख अउ,द्वेष नास।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
नवरात्रि विशेष सुग्घर छंदबद्ध रचना
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