*गुरु वंदना - आल्हा छंद*
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मँय गुरुवर जी चरन पखारँव,गंगा जल आँसू के धार।
एक सहारा भवसागर के,जिनगी नैया करिहौ पार।।
सुत उठ दर्शन पावँव मँय हा,पइँया लागँव गुरुवर रोज।
सत् के रद्दा अँगरी धरके,बने सिखाबे चलना सोझ।।
मँय लइका भकला बइहा कस,आखर शिक्षा देहू ज्ञान।
रहै सदा आशीष मूड़ मा,पढ़ लिख पोथी बनौं सुजान।।
छंद ज्ञान अनमोल रतन के,कर दव बरसा अमरित धार।
पी के येला मँय तर जावँव,हो जावय जिनगी उद्धार।।
तुँहर दुवारी आए हँव मँय,बिन माँगे नइ जावँव आज।
भरौ ज्ञान के अमिट खजाना,गदगद रहै "विनायक राज"।।
नाम कमावौं मँय दुनिया मा,तुँहरे पाछू गुरुवर मोर।
सबो मनोरथ पूरा होवय,सिरजावौं जिनगी के डोर।।
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छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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