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Friday, October 15, 2021

छंद के छ की प्रस्तुति-दशहरा परब विशेष

छंद के छ की प्रस्तुति-दशहरा परब विशेष
 
विजय दशमी पर्व की सादर बधाई 

*मन के रावण मार दे* उल्लाला छंद


पुतला ला तै झन जला , मन के रावन मारदे ।

काम क्रोध मन मा बसे , सब ला बंबर बारदे।।

दानव घुमे हजार झन ,बहुरुपिया के भेष मा ।

बल ओखर निसदिन बढ़े ,राम कृष्ण के देश मा।।

धरले बाना हाथ मा , पापी मन ल संहार दे ।

पुतला ला तै झन जला मन के रावण मारदे।।


बेटी मन के लाज ला , लूटय दानव रोज के।

खनके गड्ढा पाट दे ,बइरी मन ला खोज के ।।

ओखर मुड़ ला काट दे , जे मनखे रुप दाग हे ।

मनखे बन मनखे डसे , ओ जहरीला नाग हे ।।

बइरी मन के वंश ला, खउलत तेल म डारदे।

पुतला ला तै झन जला मन के रावण मारदे।।


स्वारथ बर चोरी करै, उदिम करेओ लाख जी।

सोना के लंका घलो , जरके होगे राख जी।।

सत् के रद्दा छोड़के , जे अवघट मा जाय जी।

जघा जघा कांटा गडे़ , जिनगी नरक बनाय जी।।

कांटा बने समाज के , ओला जग ले टारदे ।

पुतला ला तै झन जला मन के रावण मारदे।।


                    छंद साधक

       परमानंद बृजलाल दावना

                    भैंसबोड़ 

             6260473556

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बरवै छंद

दया मया के सुग्घर, दियना बार।

परब विजयदशमी मा, कर उजियार।।


विजय पताका सत के, चारों ओर।

देख बुराई भागय, सुनके शोर।।


गाँव गली मा गूँजय, सुख के शोर।

मुरहा मनखे मन हा, बनय सजोर।।


अहंकार अउ लालच, ला अब छोड़।

काम,क्रोध,अउ इरखा, ले मुँह मोड़।।


मन के रावण पहिली, तैं हर मार।

भगा जही संगी हो, सबो विकार।।


देश सँवरही रेंगव, सुनता बाँध।

हाथ जोर के मनखे, धरके खाँध।।


खुशी समावय मन मा, सबके आज।

मते गिरय जी कखरो, उप्पर गाज।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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आल्हा छंद 


रावण मरगे कोन कथे गा,गली गली मा जय जयकार ।

हाबे जिंदा दुशासन हा,लुगरा होवत तारे तार।।


कइसे मनही आज दशहरा,रोवय बेटी पार गुहार।

नव दिन पूजा करे दिखावा,धोवे पैंया दूधे धार।।


दसवें दिन ले रौंदत हावें,बढ़गे जग मा अत्याचार।

तीन साल के बेटी मारे,जाबे रे तँय यम के द्वार।।


तोरो घर तो बेटी होही,सोच समझ के करबे पाप।

फाँसी मा चढ़वातिस तोला,रोतिस तोरो दाई बाप।।


रावण तो बड़ ज्ञानी रीहिस,मरगे वो करके अभिमान।।

शंकर के वो भक्त कहाथे,नित दिन ओकर धरथे ध्यान।।


चोरी करके लेगे सीता, बन बन खोजे लक्ष्मण राम।

ड़ारा पाना फूल ल पूछे,देखे हवौ जानकी नाम।


कोनो चोरी करके लेगे,रसता कोनो देव बताय।।

कुटिया में ओ रहिस अकेली,छलिया कोनो छली दिखाय।।


जनक नंदनी मोर सुवारी,लक्ष्मण के भौजाई आय।

धर धर धर धर रोवत हावय,कोनो देहू पता बताय।।


आगे हनुमत बाम्हन बनके,पूछे कौन कहाँ ले आय।

रामा कहिथे अवध पुरी  के,दशरथ हमरो  पिता कहाय।।


चौदह बरस हवै बनवासा,चोरी होगे सीता मोर।

कौने हरव बताहू हम ला,बिनती करथौं हाथ ल जोर।।


मैं हनुमत अँजनी के बेटा, सुग्रीव  सँग मा बदौ  मितान।

रिसमुक परबत मा रहिथे वो,गोठ बात मा हवै सियान।।


केवरा यदु "मीरा "

राजिम

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हाॅंसत रावन पूछत हे करनी हर काकर राम सही हे।

राह धरे सत के चलथे अइसे शुभ काकर काम सही हे।।

पूजय जे नित मात पिता घर मंदिर काकर धाम सही हे।

मार सके रहिके हद रावन राम ग काकर नाम सही हे।।


खोट हवै करनी हर मोर त काट डरौ तुम लान ग आरी।

बाढ़त रूप हवै जरके हर साल उपाय करौ अब भारी।।  

चोर बने मॅंय पाप करे हॅंव लाय हरें अउ दूसर नारी।।

शर्त हवै सुन मोर इहॉं करही वध जेन हरे सद्चारी।।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


रावन रावन हे तिंहा, राम कहाँ ले आय।

रावन ला रावन हने, रावन खुशी मनाय।

रावन खुशी मनाय, भुलाके अपने गत ला।

अंहकार के दास, बने हे तज तप सत ला।

धनबल गुण ना ज्ञान, तभो लागे देखावन।

नइहे कहुँती राम, दिखे बस रावन रावन।।


रावन के पुतला कहे, काम रतन नइ आय।

अहंकार ला छोड़ दव, झन लेवव कुछु हाय।

झन लेवव कुछु हाय, बाय हो जाही जिनगी।

छुटही जोरे चीज, धार बोहाही जिनगी।

मद माया अउ मोह, खोज के खुदे जलावन।

नइ ते जलहू रोज, मोर कस बनके रावन।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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2 comments:

  1. बहुते सुघ्घर संकलन

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  2. सुग्घर रचना के संग्रह

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