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Wednesday, October 20, 2021

शरद पूर्णिमा, कोजागरी परब विशेष-छंदबद्ध कविता


 



शरद पूर्णिमा, कोजागरी परब विशेष-छंदबद्ध कविता




कुंडलियाँ छंद

कतका  कुहरत हे इहाँ,  जाड़ा हवय रिसाय ।

पुन्नी    के   चंदा   तको,   बादर पिछू लुकाय।।

बादर  पिछू  लुकाय, फिरत  ए दारी झाँकत।

नइ अमरित बरसाय, रहव बइठे तुम ताकत।।

कुदरत   तिर  अन्याय, करे हौ मनखे जतका।

'कांत'  तेकरे  पाय, इहाँ  कुहरत  हे  कतका।।

बधाई कइसे देवँव..


सूर्यकांत गुप्ता, 'कांत'

सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)


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छप्पय छंद-सूर्यकांत गुप्ता कांत

चंदा   तोर   अँजोर,  आज  के अलगे  हावय।

पुन्नी  महिना क्वाँर, चाँद  अमरित  बरसावय।। 

सोला कला समेट, गगन मा तँय दमकत हस।

जग  के पालनहार कन्हैया कस चमकत हस।।

सोला   कला  बताय हे  जइसे वेद पुरान  मा।

धर्म  ग्रंथ समझाय हे,  रहिथे ए  भगवान  मा।।


आव  राँध  के  खीर  मढ़ावन  छत मा भाई।

होही   आधा   रात  शुरू  अमरित  बरसाई।।

चलो   रचाबो   रास,  बलाबो अवतारी  ला।

कर लन ओकर ध्यान, छोड़ दुनियादारी ला।।

हबके  बर ए  देश  ला, बइठे  पापी माँद मा।

ऊपर ले बसबो कथें, जाके सब झन चाँद मा।।


कुदरत सँग खिलवाड़, होय झन अब अउ जादा।

बाहिर   भीतर   साफ,   राखबो  कर  लन  वादा।।

हे   नटवर   नँदलाल,   अगोरत  हन  अब  तोला।

आ  जाते  घनश्याम,  हमर  तर  जातिस  चोला।।

ईश्वर  तँय  सब  जानके, सोवत हस जी तान के।

जनता  हे  हलकान गा,  अच्छा दिन ला लान के।।

सूर्यकान्त गुप्ता

सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

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चौपाई छंद- बोधन राम निषादराज

(शरद पुन्नी)


आज शरद पुन्नी मन भावै । लइका बच्चा खुशी मनावै ।।

आधा रतिया खीर बनावै । चंदा उजियारा मा लावै ।।1।।


कहिथे अमरित बरसे मोती । खीर बनावै जम्मो कोती ।।

बड़ भागी होथे नर नारी । खाथे अमरित सब सँगवारी ।।2।।


जघा-जघा त्योहार मनावै । चंदा मामा के गुन गावै ।।

हरु हरु पुरवइया हा भावै । जाड़ा के महिना हा आवै ।।3।।


जाड़ा-गरमी सब सम लागे । घुमे फिरे बर मन हा भागे ।।

अब कुँवार हा भागन लागे । सुग्घर महिना कातिक आगे ।।4।।

 

वाल्मीकि बने जी सन्यासी । ओखर आज घलो पैदासी ।।

रामायण के इही लिखइया । पावन पुन्नी देखव भइया ।।5।।


शुभ दिन होथे ये बेला हा । कहूँ कहूँ लगथे  मेला हा ।।

पुन्नी के जी रात सुहावन । चंदा देखव बड़ मनभावन ।।6।।


राधा किसना रास रचावै । गोपी मन के मन ला भावै ।।

लीला सुग्घर रास बिहारी । मथुरा वृन्दाबन के नारी ।।7।।


दूध बरोबर चंदा राती । जगमग जइसे दीया बाती ।।

निरमल देख अगासा चमकय । फिटिक अँजोरी भुइयाँ दमकय ।।8।।


कारी अँधियारी हा भागे । सोये भाग सबो के जागे ।।

पुन्नी के चंदा उजियारी । चमकत हावै गली दुवारी ।।9।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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पुन्नी के चंदा(सार चंदा)


पुन्नी रात म चमचम चमकत,नाँचत हावै चंदा।

अँधियारी रतिहा ला छपछप,काँचत हावै चंदा।


बरै चँदैनी सँग में रिगबिग, सबके मन ला भाये।

घटे बढ़े नित पाख पाख मा,एक्कम दूज कहाये।

कभू चौथ के कभू ईद के, बनके जिया लुभाये।

शरद पाख सज सोला कला म,अमृत बूंद बरसाये।

सबके मन में दया मया ला,बाँचत हावै चंदा--।

पुन्नी रात म चमचम चमकत,नाँचत हावै चंदा।


बिन चंदा के हवै अधूरा,लइका मन के लोरी।

चकवा रटन लगावत हावै,चंदा जान चकोरी।

कोनो मया म करे ठिठोली,चाँद म महल बनाहूँ।

कहे पिया ला कतको झन मन,चाँद तोड़ के लाहूँ।

बिरह म रोवत बिरही ला अउ,टाँचत हावै  चंदा--।

पुन्नी रात म चमचम चमकत,नाँचत हावै चंदा।


सबे तीर उजियारा हावै,नइहे दुःख उदासी।

चिक्कन चिक्कन घर दुवार हे,शुभ हे सबके रासी।

गीता रामायण गूँजत हे, कविता गीत सुनाये।

खीर चुरत हे चौक चौक मा,मिलजुल भोग लगाये।

धरम करम ला मनखे मनके,जाँचत हावै चंदा----।

पुन्नी रात म चमचम चमकत,नाँचत हावै चंदा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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शरद पूर्णिमा

-----(मुक्तामणि छंद)--------


शरद पूर्णिमा रात के, बगरे फिटिक अँजोरी।

हे चकोर मनमोहना, अउ राधिका चकोरी।

नंदलाल नचवात हे,बंशी मधुर बजाके।

महारास ला देख के, कुलकै जल जमुना के।


हरहुना हा पाक गे, माई माथ नवाये।

लक्ष्मी हा अवतार ले, हमर खेत हे आये।

फुरहुर जुड़ लागै हवा, घाम तको मन भावै।

भुँइया मा चारों डहर, हरा बिझौना हावै।


ओस-बूँद नथली  पहिर, दूबी हा मुस्कावै।

तरिया देवै ताल निक, नरवा गीत सुनावै।

झुरझुर बोलै झोरकी,पतरावत हे धारी।

बादर अब छावै नहीं, हे लहुटे के पारी।


चंदा मामा खीर मा ,अमरित ला टपकाबे।

खाबो हम परसाद ला, जम्मों रोग भगाबे।

 दुनिया मा सुख शांति हो, घर-घर मा खुशहाली।

कातिक आवै झूमके, मानन बने दिवाली।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

1 comment:

  1. शरद पूर्णिमा के गाड़ा-गाड़ा बधाई हो

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