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Sunday, October 3, 2021

गांधी शास्त्री जयंती विशेष छंदबद्ध भाव पुष्प


गांधी शास्त्री जयंती विशेष

 जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: कुकुभ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


            ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बापू,,,,,,,,,,,,,,,,


नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरखा चश्मा खादी।

सत्य अंहिसा प्रेम सिरागे, बढ़गे बैरी बरबादी।


गली गली मा लहू बहत हे, लड़त हवै भाई भाई।

तोर मोर के फेर म पड़के, खनत हवै सबझन खाई।

हरौं तोर चेला जे कहिथे, नशा पान के ते आदी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।


कतको के कोठी छलकत हे, कतको के गिल्ला आँटा।

धन बल खुर्शी अउ स्वारथ मा, सुख होगे चौदह बाँटा।

देश प्रेम के भाव भुलागे, बनगे सब अवसरवादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।


दया मया बर दाई तरसे, बरसे बाबू के आँखी।

बेटी बहिनी बाई काँपे, नइ फैला पाये पाँखी।

लउठी वाले भैंस हाँकथे, हवै नाम के आजादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।


राम राज के दउहा नइहे, बाजे रावण के डंका।

भाव भजन अब करै कोन हा, खुद मा हे खुद ला शंका।

दया मया सत खँगत जात हे,  बढ़गे बड़ बिपत फसादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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कुण्डलिया छंद


गाँधी जी हा देश मा, लानिस नवा बिहान।

परहित सेवा बर इहाँ, करिस जान कुर्बान।

करिस जान कुर्बान, बाँध के मुड़ मा फेटा।

बनके शांति दूत,देश के हीरा बेटा।

बाँटिस जग मा प्रीत,साँच के वोहर आँधी।

राह दिखाइस नेक, पिताजी बनके गाँधी।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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: *हरिगीतिका छंद - बोधन राम निषादराज*

(महात्मा गाँधी)


गाँधी बबा के सत्य मा,भारत बने आजाद जी।

आवव इहाँ जुरमिल सबो,करबोन थोकन याद जी।।

देखौ बुरा मत अउ सुनौ,कहना बुरा मत मान लौ।

इँखरे रिहिस उपदेश हा,ये बात ला सब जान लौ।।


साधक अहिंसा सत्य के,जिनगी पहादिस देश बर।

खादी करे निर्माण वो,चरखा चलाए भेष बर।।

बनगे महात्मा नाम हा,मनखे सबो गाँधी कहै।

अंग्रेज मन के काल अउ,स्वाधीनता आँधी कहै।।


जादू दिखाए देश मा,आजाद भारत आज जी।

जिन्दा हवै सब नीति हा,अइसे करिस वो काज जी।।

कस्तूरबा गाँधी घलो,सहयोग मा सँग साथ जी।

कतको हमर नेता लड़िन,धर हाथ मा सब हाथ जी।।


छंदकार -

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 डी पी लहरे: छप्पय छन्द


सत्य अहिंसा प्रेम,गँवागे भाई चारा।

बढगे अत्याचार,बैर हे पारा-पारा।

कोन सँभालै देश, इहाँ सब अवसरवादी।

लूट-लूट के देश, करँय अब्बड़ बरबादी।।

दिखय नहीं अब एकता, बापू जी ए देश मा।

बगरे हे नफ़रत इहाँ, पापी जइसे भेष मा।।


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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कुण्डलिया- अजय अमृतांशु


खादी पहिरे शान से, टोपी घलो लगाय।

चश्मा मा धुर्रा जमे, जनहित कहाँ सुहाय।

जनहित कहाँ सुहाय, देख के गाँधी रोवत। 

चोरी हत्या लूट, नशा के खेती होवत।

जाति धर्म व्यापार, हवँय इन अवसरवादी। 

सत्ता मद में चूर, पहिर के घूमत खादी। 


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़ )

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 मीता अग्रवाल: कुण्डलियां छंद -


गाँधी बबा


लाठी धर रेगिंस बबा,कर्म  जगाइस ज्ञान।

सत्य अहिंसा ला पढ़ा,गाँधी बनिस महान।

गाँधी बनिस महान,मौनगुण शस्त्र  बनाइन।

बिना खड़्ग अउ ढ़ाल,देस आजाद कराइन।

सूती धोती आन,अटल ऊखर कद काठी।

खादी बनिस विचार, अमर हे चरखा लाठी।।


(2)


चिंतन गाँधी के गुनव,बापू गाँधी  मान।

राम राज साकार हो,सबलव मन मा ठान।

सबलव मन मा ठान,स्वच्छता लक्ष्य हमर हो।

मोहन के व्यवहार,सुदेशी चरखा घर हो।

तकली काते सूत,करव सब धारन तन-मन।

भारत के पहिचान,बनय जी गाँधी चिंतन ।।

रचनाकार-डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ

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 *छप्पय छंद*



सत्य अंहिसा प्रेम, सबो झन आज भुलागे।

हवय चोरहा राज, देश मा हिंसा छागे।।

करके भ्रष्टाचार, करत हें सब बरबादी।

बनगें नेता आज, पहिर के कपड़ा खादी।।

आजा बापू देश मा, ला दे फेर सुराज ला।

हवय अगोरा तोर अब, राख देश के लाज ला।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

  पाली जिला कोरबा

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: दोहा छंद 


गाँधी बाबा आ जते,दुनिया म एक बार।

चारो खुट माते हवय,जग में हाहाकार ।।


चरखा रोवत आज हे,बिगड़े हवे समाज।

बापू तोरे देश मा,अलकर होवत काज।।


सत अहिंसा ला भूल के,बिगड़त हावय चाल।

झूठ लबारी में फँसे,करथें जीव हलाल।।


दया मया के गोठ ले,करदो फेर सुधार।

देखव थोकिन गा बबा,पारत हवंव गोहार।।


आजादी के पाठ दे,अमर करे हव नाम।

कोनो नइये अब इहाँ,करही अइसन काम ।।


रघुपति राजा राम कहि,दे सुग्घर संदेश।

बापू अपने देश के,हरते सबो कलेश।।


केवरा यदु "मीरा "

राजिम

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गाँधी जी

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(सार छंद मा)


घोर गुलामी बेड़ी जकड़े, जनता हा जब रोथे।

ये धरती के भाग जगे मा, गाँधी पैदा होथे।।


सत्य अहिंसा के रसता मा, बिछे रथे बड़ काँटा।

बैरी मन दुर्वचन सुनाथें, सहे ल परथे चाँटा।

आन ल देके सेज-सुपेती, खोर्रा मा खुद सोथे।

ये धरती के भाग जगे मा, गाँधी पैदा होथे।।


मारै नहीं मार सहि जाथे, शांति धजा फहराथे।

प्रेम-घड़ा भर मूँड़ी बोहे,भभके क्रोध बुझाथे।

बापू जी के अनुयायी हा, भाईचारा बोथे।

ये धरती के भाग जगे मा, गाँधी पैदा होथे।।


गाँधी जइसे बनना दुश्कर, फेर असंभव का हे?

वोकर दे मानवता मंतर, दुनिया हा तो पा हे।

हरिया जाथे हिरदे बिरवा, बादर त्याग उनोथे।

ये धरती के भाग जगे मा, गाँधी पैदा होथे।।


गाँधी जी के अगुवाई मा, मिलगे हे आजादी।

दुख हे अब तो नेताजी मन, लावत हें बरबादी।

करे ओड़हर गाँधी जी के, कोन जहर बड़ मोथे।

ये धरती के भाग जगे मा, गाँधी पैदा होथे।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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विष्णुपद छंद


ऊँचनीच के भेदभाव ला, छोडव अब करना।

बड़े होय अउ चाहे छोटे, सब ला हे मरना।।


भेद छोड़ मनखे मनखे मा, एक समान सबो।

जाँत-पाँत मा भले अलग हन, हम इंसान सबो।।


लाभ उठाये बर कतको मन, राग अलापत हे।

देख ठगावत मनखे मन ला, जीं हा कलपत हे।।


अपन अपन सब करम धरम मा, खुश सब ला रहना।

आँव बड़े मैं अउ तँय छोटे, नइये कुछ कहना।।


कखरो आस्था अउ पूजा सँग, झन खिलवाड़ करी।

अंधभक्त बन फेर इहाँ झन, तिल के ताड़ करी।।


सत्य अहिंसा के मारग मा, रोज हमन चलबो।

 स्वस्थ समाज बनाये खातिर, काम सदा करबो।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

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3 comments:

  1. राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के जन्मोत्सव के अवसर मा सुग्घर छंदबद्ध रचना संकलन

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  2. बहुते सुघ्घर सबो रचना सुघ्घर संकलन

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