छप्पय छन्द-
डी.पी.लहरे"मौज"
मँहगाई के मार, देख जनता मन झेलँय।
नेता मालामाल, खेल सत्ता के खेलँय।
कइसन आगे राज, इहाँ अब मरना होगे।
सबो जिनिस के भाव, बढ़े मा जनता भोगे।।
अच्छा दिन के आस मा, पानी फिरगे आज गा।
सपना नवा बिहान ला, मारत हावय गाज गा।।
डी.पी.लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
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