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Friday, March 18, 2022

रंगपरब विशेष छंदबद्ध कविता


 रंगपरब विशेष छंदबद्ध कविता

 मनहरण घनाक्षरी छंद :- जगदीश "हीरा" साहू


होली हे....


हाथ मा गुलाल धरे, कोनो पिचकारी भरे,

कोनो हा लुका के खड़े, आगू पाछू जात हे।

लईका सियान संग, बुढ़वा जवान घलो,

रंगगे होली मा गली गली इतरात हे।।

गली मा नगाड़ा बाजे, मूड़ पर टोपी साजे,

बड़े बड़े मेंछा मुँह ऊपर नचात हे।

गावत हावय फ़ाग, लमावत हावै राग,

सबो संगवारी मिल, मजा बड़ पात हे।।


बाहिर के छोड़ हाल, भीतर बड़ा बेहाल,

भौजी धर के गुलाल काकी ला लगात हे।

हरियर लाली नीला, बैगनी नारंगी पीला,

आनी बानी रंग डारे, सब रंग जात हे।।

माते हावै हुड़दंग, भीगे सब अंग अंग,

अँगना परछी सबो रंग मा नहात हे।

बइठे बाबू के दाई, सब के होली मनाई,

अपन समय के आज सुर ला लमात हे।।


जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)

कड़ार (भाटापारा) छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 घनाक्षरी होली-शृंगार रस


रूप तोरे मन मोहे,अंग अंग रंग सोहे।

भारी मारे पिचकारी,रंग बरसाय रे।

संग तोर छुटे नहीं,मया डोर टूटे नहीं।

ऐती ओती चारो कोती,रंग ला लगाय रे।

दया मया रंग घोरे,पोत डारे मन मोरे।

मन मोहना तैं मोरे,मन भरमाय रे।

मोर संग खेले होली,गुरतुर बोले बोली।

मन मिला के मोहन,मन मा समाय रे।।(१)


गोरी तोर अंग अंग,डार दँव मया रंग।

छोड़े कभू छुटे नहीं,कतको छोड़ाय ओ।

दया मया राग ले ले,चल जोही फाग खेले।

मोर तीर आना जोही,काहे शरमाय ओ।।

रंग ला लगाले  गोरी,झन कर जोरा जोरी,

आज हे तिहार होरी,कहाँ तैं लुकाय ओ।

मया मधुरस घोर,मात गेहे मन मोर।

बाँधे हँव मया डोर,कोन छोर पाय ओ।।(२)


गाबो चल फाग जोही,धरे सातो राग जोही।

दुख पीरा भाग जाही,खेलबो आ रंग ओ।

देख लेना हाथ मोरे,धरे रंग लाल घोरे।

मलौं गोरी गाल तोरे,फिंजे अंग अंग ओ।

संगी-साथी जोर लेना,गोरी मोरो सोर लेना।

तहूँ रंग घोर लेना,पीबो मया भंग ओ।

मात जाबो संगे संग,खेलबो मया के रंग।

चढ़ जाही नशा अंग,लग जाबो संग ओ।।(३)


गोरी तोरे अंग अंग,चढ़े मया रंग रंग,

रख मोला संग संग,जिनगी पहाँव ओ।

थोरको हियाव कर,अब तो नियाव कर,

मोर ले बिहाव कर,महूँ मया पाँव ओ।।

बाँध लेना मया डोरी,बन रानी मोर गोरी,

झन कर जोरा जोरी,दे दे मया छाँव ओ।

मन दुनों साँट लेबो,मया डोरी आँट लेबो,

दुख पीरा बाँट लेबो,पाबो मया ठाँव ओ।।(४)


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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 माते हावय फाग देख लव, गाँव सहर मा भइया l

बजे नंगारा गली खोर मा , नाचे थाथा थइया ll

काड़ी खूँटी कचरा लाके, बारव होरी मिलके l

बचे रहे झन अवगुन भइया,बैर भाव जी दिल के ll

मया पिरित के रंग लगावव , जीवन भर झन छूटय l

दया मया के डोरी बंँधना , ठोकर ले झन टूटय ll

पीयव झन जी भांग मऊहाँ , हावय बड़का अवगुन l

मया पिरित के होरी भइया , खेलव होके बीधुन ll


होली के अनंत शुभकामनाएँ 🌹🌹🌹

दूजराम साहू *अनन्य*

खैरागढ़ (राजनांदगाँव) 

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-मनहरण घनाक्षरी

करलौ हँसी ठिठोली,मनालौ सुग्घर होली,

मया रंग डारौ बने,सब बनै मीत गा।

हरियर लाली नीला,जामुनी नारंगी पीला,

रंग मा बूड़े राहय,बने दव छींत गा।।

फाग गावव मिलके,नाँचव सब झूमके,

कोन बड़े कोन छोटे,गाव सब गीत गा।

इरखा सबो मिटाके,रंग गुलाल लगाके,

जात पात भेद मिटा,बढ़ावव प्रीत गा।।

✍️

विजेंद्र वर्मा

नगरगाँव धरसीवाँ

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 उल्लाला


जगर बगर उल्लास हे, महिना ये मधुमास हे।

पिचका रंग गुलाल हे, बजे नगाड़ा ताल हे।।


अंतस उमड़े प्यार हे, जिनगी के ये सार हे।

उत्सव रंग हजार हे, होली आज तिहार हे।।


रंग रंग के रंग हे, मन मा आज उमंग हे।

होली के हुड़दंग हे, राधा किसना संग हे।।

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

सार छंद - बोधन राम निषादराज*


(जिनगी के होरी)


देखव संगी फागुन आए,ढोल नँगारा बाजय।

लइका बुढ़वा दाई माई,घर कुरिया ला साजय।।


जिनगी मा जी काय धरे हे,बैर भाव ला झारव।

बइरी हितवा जम्मो मिलके,रंग मया के डारव।।


लाली हरियर नीला पिँउरा,सुघ्घर रंग समाए।

छींचव संगी जोर लगाके,फागुन बड़ मन भाए।।


रंग लगावय आनी-बानी, मउहा  पीके  झूले।

धर पिचकारी मारय फेंकय,कोनों रेंगत भूले।।


फाग होत हे चारो कोती,नर-नारी  बइहाए।

नाच-नाच के मजा करत हे,सुग्घर होरी आए।।


ए जिनगी मा काय धरे हे,चलो मनालव खुशियाँ।

ए जिनगी नइ मिलय दुबारा,झन बइठव जी दुखिया।।


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 रोला छंद


पहिली ले तइयार, रहय जी होरी थुनिया।

परसा फुलवा खोंच, खुशी मा नाचय गुनिया।।

नेंग धरे के बाद, रचावय झिटिया डारा।

गावँय रतिहा फाग, बइठ के आरा पारा।।


ढोवँय चना मसूर, फाँद गाड़ी अउ गाड़ा।

फुरसुदहा मा रोज, बजावँय ढोल नगाड़ा।।

बाजत हवय निशान, मधुर हे सुर  शहनाई।

गमकत सुग्घर फाग, झोंकिहव मोर बधाई।।


होरी हे.....


छंद साधक

अश्वनी कोसरे 

रहँगी पोंड़ी कवर्धा

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: कुंडलिया छंद 


परसा फूले खार मा,धर जोगी के भेष।

कहिथे बन जा संत कस,त्याग कपट छल द्वेष।

त्याग कपट छल द्वेष,बोल ले मीठा बोली।

आथे यहू तिहार, बरस भर में गा होली।

सबके बन जा मीत,गुलाबी रंग ल बरसा।

मन भावन हे रंग, खार मा देखव परसा।।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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रंग परब(सरसी छंद)


फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय   बुराई  नास।

सत के जोती जग मा बगरे,मन भाये मधुमास।


चढ़े दूसर दिन रंग मया के,सबझन खेलैं फाग।

होरी   होरी  चारो   कोती, गूँजय  एक्के  राग।

ढोल नँगाड़ा बजे ढमाढम,बजे  मँजीरा  झाँझ।

रंग गुलाल उड़ावय भारी,का बिहना का साँझ।

करिया पिवँरा लाली हरियर,चढ़े रंग बड़ खास।

फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास...।


डूमर गूलय परसा फूलय,सेम्हर लागय लाल।

सरसो चना गहूँ बड़ नाचय,नाचे मउहा डाल।

गस्ती तेंदू  चार  चिरौंजी,गावय  पीपर  पान।

बइठे  आमा  डार  कोयली ,सुघ्घर छेड़े तान।

घाम हवे ना जाड़ हवे जी,हवे मया के वास।

फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास--


होली मा हुड़दंग  मचावय,पीयय गाँजा  भांग।

इती उती चिल्लावत घूमय,खूब  रचावै  स्वांग।

तास जुआ अउ  दारू पानी,झगरा झंझट ताय।

अइसन मनखे गारी खावय,कोनो हा नइ भाय।

रंग मया के अंग लगाके,जगा जिया मा आस।

फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास..।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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झन बिगाड़ होली मा बोली- गीत(चौपाई छंद)


चिल्लाथस बड़ होली होली, लोक लाज के फाटक खोली।

झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।


मया पिरित के ये तिहार मा, द्वेष रहे झन तीर तार मा।

बार बुराई होली रचके, चल गिनहा रद्दा ले बचके।।

उठे कभू झन सत के डोली, पथ चतवार असत ला छोली।

झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।


बजा नँगाड़ा झाँझ मँजीरा, नाच नाच दुरिहा दुख पीरा।

समा जिया मा सब मनखे के, दया मया नित ले अउ दे के।

छीच मया के रँग ला घोली, बना बने मनखे के टोली।

झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।


एखर ओखर खाथस गारी, अबड़ मताथस मारा मारी।

भाय नही कोनो हर तोला, लानत हे अइसन रे चोला।।

दारू पानी गाँजा गोली, गटक कभू झन मिल हमजोली।।

झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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रोला छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

आगे रंग तिहार, चलत हे बड़ पिचकारी।
बाजे मांदर झाँझ, नँगाड़ा तासक भारी।
लइका संग सियान, मगन सब मिलजुल नाँचे।
चिक्कन कखरो गाल, आज के दिन नइ बाँचे।

भजिया बरा बनाय, खाय सब झन मिलजुल के।
होके मस्त मतंग, फाग मा नाँचे खुलके।।
काय बड़े का छोट, पटत हे सबके तारी।
कोई लागय लाल, गाल कखरो हे कारी।

धरती संग अगास, रंग गय हे होली मा।
परसा सेम्हर साल, प्लास नाँचे होली मा।
नवा नवा हे पात, फूल हे आनी बानी।
सज धज हे तइयार, गजब के धरती रानी।

छोड़ तोर अउ मोर, तभे होली हे होली।
मिल अन्तस् ला खोल, बोल मधुरस कस बोली।
चुपर मया के रंग, धोय मा नइ धोवाये।
नीला पीला लाल, रंग दू दिन के ताये।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

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ढोल नगाड़ा बिसरगे, गाय कोन हर फाग।

डी जे के हुड़दंग मा, बिगड़त हे अब राग।।


स रा र रा के अब इहॉं, सररइया ह नॅंदाय।

जोगीरा होरी हवै, बबा घलो नइ गाय।।


झॉंझ मॅंजीरा ठेलहा, बेबी मॉंगे बेस।

होरी हे मान न बुरा, कहय धरे सब द्वेष।।


फीका आज अबीर हे, रंगै नही गुलाल।

पिचकारी हे रंग बिन, हाथ मले बस गाल।।


दारू गॉंजा संग मा, भॉंग घले हे मात।

मउहा परसा फूलगे, झार सबो जी पात।।


दॉंड़ होलिका नइ जले, घर घर जरगे आग।

ढोल नगाड़ा बिसरगे, गाय कोन हर भाग।।

डी जे के हुड़दंग मा, बिगड़त हे अब राग.....


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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: *शंकर छंद*

*विषय-होली*


आगे होली हा अब संगी , मातगे हे फाग।

ढोल नँगाड़ा बाजत हावय, छेड़ दे हें राग।।

नाचत कूदत झूमत हें सब, अउ मिलावत ताल।

हरियर लाली ले रंगे हें, देख सबके गाल।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

 *पाली जिला कोरबा*

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*दोहा छन्द*

पिचकारी हे हाथ मा, सब ला रंग लगाय।

रंग बुकाये हें सबो,कोनो नइ चिनहाय।।


दारू पीये हें कहूँ, कोनो खाये भंग।

एती ओती हें गिरत, सम्हलत हे ना अंग।।


बजत नगारा खोर मा,माते हे हुड़दंग।

सरा ररा गावत हवँय, फगुवा गीत मतंग।।


संगी सहेली ला पकड़, डारत रंग गुलाल।

चुनरी साड़ी भींग गे, गोरी हे बेहाल।।


मस्त मगन हावँय सबो, सबके एके हाल।

एक बराबर हें दिखत, कारी गोरी गाल।।


मानव होली हो मगन, जुरमिल के सब कोय।

ध्यान रखव अतका घलो, दुखी कहूँ झन होय।।


*भागवत प्रसाद चन्द्राकर

साधक सत्र-15*

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: त्रिभंगी छंद

****होरी***


हा फागुन आगे ,मन ला भागे , झूमो नाचो ,संग  चलो ।

सब मया‌ पिरित के ,रंग सजाके , जिनगी मा जी, खूब फलो ।

सब खेलव होरी,  छोरा छोरी ,दया मया के, रंग भरो ।

सब रंग लगाके,ढोल बजाके , भेदभाव ला ,दूर करो ।


छंद के छ सत्र 10

लिलेश्वर देवांगन

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*शुभ* *होली* 

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विष्णुपद छंद 

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सूरत होगे भकमुड़वा कस,सतरंगी मुख हे। 

मूँड़ पिराय गुलाल लगे ले, तबहो ले सुख हे। 

सिर ले गोड़ शरीर भींजगे, पिचका के मारे। 

तबहो मन कहिथे अउ कोनो, बचे रंग डारे। ।

रंग गुलाल भले बाहिर ले, शकल बिगाड़य जी। 

पर मनखे मनखे मा सुमता, मया जुगाड़य जी। ।

रचे रँगे सब एक दिखत हें, का गरीब बड़हर। 

भेद मिटावय प्रेम बढ़ावय, ए होली सुघ्घर। ।🙏


दीपक निषाद 

छंद साधक-सत्र-10

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: सार छन्द 


जेकर अँगना सुख के बरसा, ओकर होथे होली। 

चारो कोती अँजोर बगरे,  हाँसय  बोलयँ  बोली।। 


होय करेजा चानी चानी, ओ आँसू  बोहाथे। 

कतको बरसय रंग सुहावन, मन ला कहाँ सुहाथे।। 


हिरदे के रस सब सूखागे, आँखी होगे झिरिया। 

कतको मनला सँवास राखवँ, उमड़त रहिथे पिरिया।। 


कोन समझ थे मनके दुख ला, उठै शूल कस पीरा।

सबो रंग हर कचरा  लगथे,  गँवा  जथे  जब हीरा।। 


सुमित्रा शिशिर

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 मनोज वर्मा: *त्रिभंगी छंद*


हे आनी बानी, सज मनमानी, सबो घुमे जी, रूप धरे।

संगी सॅंगवारी, दे दे गारी, पूज होलिका, बिहा करे।

रॅंगके जी तन मन, छेड़ें अनबन, बुरा न मानो, राग जपे।

वुढ़वा अउ लइका, पाके मउका, करत बहाना, पोठ तपे।।



हे रंग बिरंगी, रुख सतरंगी, सजे पान फर, डार बड़े,

परसा हर फूले, अमुआ झूले, सुघर सेम्हरा, हॉंस खड़े।

ऋतु बसंत राजा, ले के बाजा, ढोल नगाड़ा, संग चले।

बुढ़वा अउ लइका, पाके मउका, रंग गाल भर, डार मले।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा

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छंद के आनंद लेत, इहाँ हे हेराये चेत

होली के तिहार मा जी घुरे प्रेम रंग हे।

टिमकी नँगारा संग राग अनुराग फाग

गावत हें  झूम झूम बाजत मृदंग हे।।

आये हवँय कान्हा राधा खेले बर होली  'कांत'

मन मा तो उमड़त कतका उमंग हे।

आपदा ले चिटिकुन उबरे जुरे हें जम्मो,

नाचत नचावत इहाँ सबो ल अनंग हे।।


सूर्यकान्त गुप्ता

सिंधिया नगर दुर्गा

.......

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: *त्रिभंगी छंद - बोधन राम निषादराज*

विषय - होली


(1) 

चल खेलौ होली,मिल हमजोली,रंग गुलाली,धरे रहौ।

धर भर पिचकारी,ए सँगवारी,मन मा खुशियाँ,भरे रहौ।।

सब बइरी हितवा,बन के मितवा,गला मिलौ जी,आज सबो।

सब भेद छोर के,मया जोर के,करलौ सुग्घर,काज सबो।।


(2)

होली मा सुग्घर,मन हो उज्जर,भेद भाव ला,छोर चलौ।

अउ बजै नँगारा,आरा-पारा,रंग मया के,घोर चलौ।।

सब बनौ सहाई,भाई-भाई,दया मया सुख,छाँव रहै।

झन मन मुटाव हो,नेक भाव हो, होली के शुभ,नाँव रहै।।


(3)

होली के आवन,बड़ मन भावन,चारों कोती,शोर उड़ै।

मन मा खुशहाली,रंग गुलाली,गली मुहल्ला,खोर उड़ै।।

फागुन के मस्ती,छाए बस्ती,लइका बुढ़वा,खेल करै।

होली हुड़दंगा,मन रख चंगा,मनखे-मनखे,मेल करै।।


बोधन राम निषादराज✍️

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8 comments:

  1. बड़ सुग्घर संकलन

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  2. होली रंग छंद के संग

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  3. होली के रंग छंद के संग

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  4. बहुत बढ़िया गुरुदेव

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  5. बहुत बढ़िया एक ले बढके एक रचना पढ़े बर मिलिस

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  6. बहुत सुंदर संकलन, भैया जी

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