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Tuesday, March 1, 2022

महाशिवरात्रि विशेष छंदबद्ध कविता


 

महाशिवरात्रि विशेष छंदबद्ध कविता


शिव महिमा(शिव छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया


डमडमी डमक डमक। शूल बड़ चमक चमक।

शिव शिवाय गात हे। आस जग जगात हे।


चाँद चाकरी करे। सुरसरी जटा झरे।

अटपटा फँसे जटा। शुभ दिखे तभो छटा।


बड़ बरे बुगुर बुगुर। सिर बिराज सोम सुर।

भूत प्रेत कस दिखे। शिव जगत उमर लिखे।


कोप क्लेश हेरथे। भक्त भाग फेरथे।

स्वर्ग आय शिव चरण। नाम जाप कर वरण।


हिमशिखर निवास हे। भीम वास खास हे।

पाँव सुर असुर परे। भाव देख दुख हरे।


भूत भस्म हे बदन। मरघटी शिवा सदन।

बाघ छाल साँप फन। घुरघुराय देख तन।


नग्न नील कंठ तन। भेस भूत भय भुवन।

लोभ मोह भागथे। भक्त भाग जागथे।


शिव हरे क्लेश जर। शिव हरे अजर अमर।

बेल पान जल चढ़ा। भूत नाथ मन मढ़ा।


दूध दूब पान धर। शिव शिवा जुबान भर।

सोमवार नित सुमर। बाढ़ही खुशी उमर।


खंड खंड चर अचर। शिव बने सबेच बर।

तोर मोर ला भुला। दे अशीष मुँह उला।


नाग सुर असुर के। तीर तार दूर के।

कीट खग पतंग के। पस्त अउ मतंग के।


काल के कराल के। भूत  बैयताल के।

नभ धरा पताल के। हल सबे सवाल के।


शिव जगत पिता हरे। लेय नाम ते तरे।

शिव समय गति हरे। सोच शुभ मति हरे।


शिव उजड़ बसंत ए। आदि इति अनंत ए।

शिव लघु विशाल ए। रवि तिमिर मशाल ए।


शिव धरा अनल हवा। शिव गरल सरल दवा।

मृत सजीव शिव सबे। शिव उड़ाय शिव दबे।


शिव समाय सब डहर। शिव उमंग सुख लहर।

शिव सती गणेश के। विष्णु विधि खगेश के।


नाम जप महेश के। लोभ मोह लेश के।

शान्ति सुख सदा रही। नाव भव बुलक जही।


शिव चरित अपार हे। ओमकार सार हे।

का कहै कथा कलम। जीभ मा घलो न दम।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को, कोरबा(छग)


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शिव ल सुमर- शिव छंद


रोग डर भगा जही। काल ठग ठगा जही।

पार भव लगा जही। भाग जगमगा जही।


काम झट निपट जही। दुक्ख द्वेष कट जही।

मान शान बाढ़ही। गुण गियान बाढ़ही।।


क्रोध काल जर जही। बैर भाव मर जही।

खेत खार घर रही। सुख सुकुन डहर रही।


आस अउ उमंग बर। जिंदगी म रंग बर।

भक्ति कर महेश के। लोभ मोह लेश के।


सत मया दया जगा। चार चांद नित लगा।

जिंदगी सँवारही। भव भुवन ले तारही।।


देव मा बड़े हवै। भक्त बर खड़े हवै।

रोज शाम अउ सुबे। भक्ति भाव मा डुबे।


नीलकंठ ला सुमर। बाढ़ही सुमत उमर।

तन रही बने बने। रेंगबे तने तने।।


सोमवार नित सुमर। नाच के झुमर झुमर।

हूम धूप दे जला। देव काटही बला।।


दूध बेल पान ले। पूज शिव विधान ले।

तंत्र मंत्र बोल के। भक्ति भाव घोल के।


फूल ले मुठा मुठा। सोय भाग ला उठा।

भक्ति तीर मा रही।शक्ति तीर मा रही।।


फूल फल दुबी चढ़ा। नारियल चँउर मढ़ा।

आरती उतार ले।धूप दीप बार ले।।


शिव पुकार रोज के। भक्ति भाव खोज के।

ओम ओम जाप कर।भूल के न पाप कर।।


भूत भस्म भाल मा। दे चुपर कपाल मा।

ओमकार जागही। भाग तोर भागही।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को (कोरबा)

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सागर मंथन कस मन मथदे(कुकुभ छंद)


सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।

दुःख द्वेस जर जलन जराके,सत के बो बीजा बाबा।


मन मा भरे जहर ले जादा,नइहे कुछु अउ जहरीला।

येला पीये बर शिव भोला, देखादे  तैं कुछु लीला।

सात समुंदर घलो मथे मा, विष अतका नइ तो होही।

जतका मनखे मन मा हावय,जान तोर अन्तस रोही।

बड़े  छोट  ला घूरत  हावय, साली  ला जीजा बाबा।

सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।


बोली भाँखा करू करू हे,मार काट होगे ठट्ठा।

अहंकार के आघू बइठे,धरम करम सत के भट्ठा।

धन बल मा अटियावत घूमय,पीटे मनमर्जी बाजा।

जीव जिनावर मन ला मारे,बनके मनखे यमराजा।

दीन  दुखी  मन  घाव  धरे  हे,आके  तैं सी जा बाबा।

सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।


धरम करम हा बाढ़े निसदिन,कम होवै अत्याचारी।

डरे  राक्षसी  मनखे  मन हा,कर  तांडव हे त्रिपुरारी।

भगतन मनके भाग बनादे,फेंक असुर मन बर भाला।

दया मया के बरसा करदे,झार भरम भुतवा जाला।

रहि  उपास  मैं  सुमरँव तोला ,सम्मारी  तीजा  बाबा।

सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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किरीत सवैया-- *शिव शंकर*



शंकर रूद्र महेश्वर हे शितिकण्ठ उमापति ईश त्रिलोचन।

ऊॅं त्रिपुरान्तक त्र्यंबक जै त्रिभुनेश्वर जी हर हे भव मोचन।

शम्भु महेश हरे शिव जै विरुपाक्ष कटे दुख औ सुख हो मन।

भक्ति धरे दिन रात जपै मन श्रीकण्ठ नाम निरोग रखै तन।


होवय पूजय छाय खुशी सब लोगन नाचत गावत आवय।

द्वार सजे प्रभु देव महा शिव शंकर के किरपा जब आवय।

चंदन बंदन धूप धरे जल दूध ग चॉंउर पान चढ़ावय।

पाय महाशिवरात्रि कृपा भक्त हा तब माॅंग मनौरथ पावय।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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शिव महिमा,शिवरात्रि विशेष-


चौपाई छंद - बोधन राम निषादराज

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जय  हो  भोला  मरघट   वासी।

शिव शंकर तँय हस अविनासी।।

भूत    नाथ    कैलाश   बिराजे।

मृग  छाला  मा  चोला   साजे।।


नन्दी    बइला    तोर    सवारी।

भुतहा  मन  के तँय  सँगवारी।।

पारबती     के    प्रान    पियारे।

धरमी   छोड़   अधरमी   मारे।।


जय   हो    बाबा   औघड़दानी।

जटा    बिराजे    गंगा    रानी।।

राख   भभूती   तन  मा   धारे।।

गर मा  बिखहर   साँप  सँवारे।।


पापी    भस्मासुर    ला     मारे।

अपन  लोक  मा  ओला   तारे।।

पारबती    के    लाज    बचाए।

ऋषि मुनि  योगी  गुन ला गाए।।


भाँग    धतूरा    मन   ला   भाए।

सिया  राम   के  ध्यान   लगाए।।

बइठे     परबत  मा      कैलाशी।

अंतर्यामी        हे     अविनासी।।


महाकाल    हे    डमरू     वाला।

जय  शिव  शंकर  भोला भाला।।

मंदिर     तोर      दुवारी    आवौं।

मनवांछित  फल  ला मँय पावौं।।

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बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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भोले बाबा-मनहरण घनाक्षरी


भोले बाबा ला सुमर,बाढ़ही तोर उमर,

दूध बेल पान चढ़ा,भज शिव नाम ला।

जिनगी सँवर जही,दुख क्लेश मिट जही,

भाग जगा के बनाही,बिगड़त काम ला।।

ओम ओम के जाप ले,मुक्त होबे जी पाप ले,

बसा अपने मन मा,तैं अक्षरधाम ला।

करबे बने गा भक्ति,बाढ़ही तभे तो शक्ति, 

भव पार करके तैं,पाबे गा मुकाम ला।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

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चौपाई छन्द ।।शिव शंभू डमरू वाला।।


शिव शंभू प्रभु डमरू वाला। हावै तोरे रूप निराला।।

कहिथे सब भोला भंडारी। नंदी के तै करे सवारी।।1


कनिहा पहिरे बघवा छाला। गला साँप के पहिरे माला।।

माथ दूज के चंदा साजे। गंगा धारा जटा बिराजे।।2


जहर गला मा तहीं उतारे। नीलकंठ सब नाम पुकारे।।

भूतनाथ प्रभु हस अविनासी। पशुपति तैं कैलाश निवासी।।3

 

कहिथे तोला औघड़ दानी। वाम अंग मा बसे भवानी।।

हाथ त्रिशूल अउ डमरू धारी। भांग सुहाथे तोला भारी।।4


-गुमान प्रसाद साहू ,समोदा (महानदी)

जिला-रायपुर छत्तीसगढ़

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*दोहा छंंद*

*भोले नाथ*


चुपरे राख शरीर मा, बइठे धुनी रमाय।

महादेव डमरू धरे, एला भांग सुहाय।। 


नंदी मा बइठे चले, शंकर उमा बिहाय।

नाचय भूत-परेत हा, देव फूल बरसाय।। 


आगे हवय बरात हा, दक्ष राज के द्वार।

राजा परघावय बने, भोला पहिरे हार।। 


वरमाला पहिरावे उमा, दक्ष पाँव ला धोय।

सबो टिकावन अब टिके, पहुना मन खुश होय।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

 *पाली जिला कोरबा*

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"शिव शंकर " (चौपाई छंद)

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शिव शंकर ला भजले प्रानी। शिव शंभू हे औघड़ दानी।

शिवे दुलारय शिव संघारय। हर हर हा हर संकट टारय।


जेखर नाँव हवय त्रिपुरारी। जस कीरति महिमा हे भारी।

जय शिव शंकर बम बम भोले। हर हर महादेव जग बोले।


बिख ला अपन कण्ठ मा धारे। नीलकण्ठ कहि जगत पुकारे।

डम डम डम डम डमरू बाजे। बिखहर के गहना तन साजे।


अंग वस्त्र मिरगा के छाला। साँप बिछी माला अउ बाला।

भूतनाथ भोला मतवाला। सकल चराचर के रखवाला।


तन मा अपन राख चुपरे हस। डमरू अउ तिरछूल धरे हस।

नन्दी बइला तोर सवारी। भूतनाथ भोले भंडारी।


शिव शंभू कैलाश निवासी। सुने हवन रहिथव तुम कासी।

हम अन तुँहर चरण के दासी। तुम हमरो हिरदे के वासी।


महादेव प्रभु मातु सती के। शंकर भोला पारबती के।

करुण निवेदन सुने रती के। दण्ड सुधारे मदन मती के।


एक बार के बात हरय जी। पारबती हा अरज करय जी। 

अमर अमर सब कहिथें प्रानी। समझावव प्रभु अमर कहानी।


एक दिवस शुभ अवसर पा के। बइठिन अमर गुफा मा जा के। 

डमरू अपन बजाइस शंकर। भाग गइस जम्मो जी-जन्तर।


गूढ़ ज्ञान ला अमर कथा के। गावय कभु बोलय अलखा के।

शिव मुँह ले सत अविरल वानी। सुनय गुनय गौरी महरानी।


शिव जी अमर नाम अलखावय। अमर नाम सतनाम बतावय।

कथें मातु ला निंदिया आगे। घोल्हा अण्डा जीवन पागे।


भक्तन के कल्याण करे बर। अंतस के दुख ताप हरे बर।

मनुज मनोरथ के शुभ काजे। बारह ज्योतिर्लिंग बिराजे।


मँय छत्तीसगढ़ के रहवइया। चटनी बासी पेज खवइया।

नकमरजी झन हो जै हाँसी। कइसे भोग लगावँव बासी।


फुड़हर फूल बेल के पाना। लाये हँव कनकी के दाना।

दूध नही लोटा भर पानी। ग्रहण करव प्रभु औघड़ दानी।


माथ दूज के चंदा सोहय। अनुपम रूप हृदय ला मोहय।

जे प्रभु दर्शन के पथ जोहय। तेखर हृदय भक्ति रस पोहय।


छंदकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

गोरखपुर,कबीरधाम छत्तीसगढ़

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ऊँ नमःशिवाय।

जम्मों झन ला महाशिवरात्रि परब के हार्दिक बधाई।


बिनती

(कुकुभ छंदाधिरत)


किरपा करके जोत जला दे,हर दे मन के अँधियारी।

हे शिव भोले औघड़दानी, ठाढ़े हौं तोर दुवारी।।


मरम जोग के कुछु नइ जानौं,लोभ भोग मा सुर जाथे।

दुनियादारी के चक्कर मा,घड़ी घड़ी धोखा पाथे।

मुख ले हरि किर्तन नइ निकलय, करत रथे चुगरी चारी।

किरपा करके जोत जलादे, हर दे मन के अँधियारी।


जिनगी होगे जेल बरोबर, राह मुक्ति के नइ जानौं।

अता पता सुख के तो नइये, खोज कहाँ ले मैं लानौं।

भाव भजन चिटको नइ भावै, माया बर ममता भारी।

किरपा करके जोत जलादे, हर दे मन के अँधियारी।


फेर सुने हौं तोर चरन ला, जेन जीव हा धर लेथे।

गउरी मँइया बड़ खुश होके, दुच्छा झोली भर देथे।

शुभ शुभ के बरसा कर देथे, प्रभु गणेश संकट हारी।

किरपा करके जोत जलादे, हर दे मन के अँधियारी।


अरपन काय करे मैं सकहूँ, लोटा भर जल स्वीकारौ।

बेल पत्र धोवा चाँउर हे, ये गरीब ला भव तारौ।

तोर भगति के चिनहा दे दे, नइ माँगौं  महल अटारी।

किरपा करके जोत जलादे, हर दे मन के अँधियारी।


चोवा राम  ' बादल '

हथबंद, छत्तीसगढ़

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6 comments:

  1. अद्भुत अद्भुत अद्भुत ,,जय महाकाल,,,,,सुनीलशर्मा नील

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  2. बहुत बहुत आभार सर जी,रचना ला स्थान देहे बर। अनुपम संग्रह

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  3. अनुपम संकलन। जय शिव शंकर।

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