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Saturday, March 5, 2022

छत्तीसगढ़ के गिरधरकविराय जनकवि कोदूराम दलित जी ला उंखर 113 जन्म जयंती के बेरा मा सादर शत शत नमन




 छत्तीसगढ़ के गिरधरकविराय जनकवि कोदूराम दलित जी ला उंखर 113 जन्म जयंती के बेरा मा सादर शत शत नमन

*आज कोदूराम दलित के जन्म दिन के शुभ अवसर मा श्रद्धा के फूल चघावत कुछ पंक्ति*


आल्हा 


कोदूराम दलित के कविता, छत्तिसगढ़ मा अलख जगाय ।

शोषित पिड़ित गरिबहा मन मा, जिनगी सुघरे राह बताय।।


दुरुग शहर मा गुरुजी होगे, धर के ध्यान पढ़ावय खूब।

कवि सम्मेलन मंच रेडियो,कुंडलिया गीत गावय खूब।।


 जनम धरिस अर्जुंदा टिकरी, साल सैकड़ा पहिली ताय।

गांधीवादी मनुस सुराजी, आजादी बर सुर लमियाय।।


पढ़ई-लिखई मा चर्चित होगे, बगरिस आजादी के भोर।

नवभारत मा नवा डगर बर, कागज कलम उठाइस जोर।।


सुग्घर परिभाषा हर ओकर, जग मा सुन लौ अमर कहाय।

जस मुसुआ हर निकले बिल ले ,तस कविता दिल निकले जाय।


परमारथ बर पढ़ै पढ़ावय, कवि गोष्ठी धूम मचाय।

चारों कोती चर्चा गुरु के, छत्तिसगढ़ के शान बढ़ाय।।


 पाँच मार्च ये जन्मदिवस मा, नमन् करत हन सब झन आज ।

अमर नाँव हे जग मा उनकर, नवे सीस छत्तिसगढ़ राज।।


आल्हा:बलराम चंद्राकर भिलाई

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जनकवि कोदूराम-मनहरण घनाक्षरी


साहित्य मा हवै नाम,जनकवि कोदूराम,

जन पीरा देख के वो,रचना रचिन हे।

लिखे छंद आनी-बानी,रहिन वोहा सुजानी,

गाँधीवादी विचार ला,मन मा भरिन हे।।

साहित्य मा दिस बल,गाँधी के मारग चल,

निडर हो के उँकर,कलम चलिन हे।

अमर रहै गा नाम, जनकवि कोदूराम,

साहित्य ला पोठ कर,उज्जर करिन हे।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव (धरसीवां)

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*रोला छंद* 


एकांकी के ज्ञान, समझ के बाँटे सबला।

गीत पहेली जान, सुधरगे साहित तब ला।।


हमर देश के तान, रचे हें टारत अलहन।

सुग्घर बपरित भाव, धान के भाई दलहन।।


देश प्रेम के मान,  राज के बनिस बनउँका।

कनवा समधी शान, लिखे हें सुग्घर ठउँका।।

 

बड़का साहित कार, रहिन उन छत्तीसगढ़िया।

बनिन छंद आधार, लिखँय उन कविता बढ़िया।।


कविता कहिनी गीत, लिखे हें गोठ सियानी।

राज करत गुण गान, लिखँय उन आनी बानी।।


बीड़ा लेवत हाथ, करिन उन कारज भारी।

आनी बानी गोठ,पोठ भाखा महतारी।।


दोहा रोला छंद, लिखे हें अउ कुण्डलिया।

बाल गीत भरमार, खास हे सिरजन पलिया।।


हास व्यंग्य के सोर, उड़े हे दलित बबा के।

आजादी के नाद, रचे हें कलम दबा के ।।


मानवता के गान, करे बर धरके बाना।

शोषित के उधियार, लिखे अउ पारे हाना।।


मार्च महीना आय, पाँच तारिक हे अवसर।

जनम जयंती आज, जान हरषित हें घर घर ।


छंदकार-अश्वनी कोसरे 

रहँगी पोंड़ी

कवर्धा

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आज जन्म दिवस हे छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय श्रद्धेय कोदूराम दलित जी के उँखर जन्म जयंती के पावन अवसर म उनला शत शत नमन प्रणाम जोहार हे 💐🙏


जनकवि कोदूराम (दोहा छंद)


अलख जगाइन साँच के, जनकवि कोदू राम।

जन्म जयंती हे उँकर, शत शत नमन प्रणाम।


सन उन्नीस् सौ दस बछर, जड़काला के बाद।

पाँच मार्च के जन्म तिथि, हवय मुअखरा याद।


राम भरोसा ए ददा, जाई माँ के नाँव।

जन्मभूमि टिकरी हरै, दुरुग जिला के गाँव।


पेशा से शिक्षक रहिन, ज्ञान बँटई काम।

जन्म जयंती हे उँकर, शत शत नमन प्रणाम।


राज रहिस ॲंगरेज के, देश रहिस परतंत्र।

का बड़का का आम जन, सब चाहिन गणतंत्र।


आजादी तो पा घलिन, दे के जीव परान।

शोषित दलित गरीब मन, नइ पाइन सम्मान।


जन-मन के आवाज बन, हाथ कलम लिन थाम।

जन्म जयंती हे उँकर, शत शत नमन प्रणाम।


जन भाखा मा भाव ला, पहुँचावँय जन तीर।

समझय मनखे आखरी, बहय नयन ले नीर।


दोहा रोला कुंडली, कुकुभ सवैया सार।

किसिम किसिम के छंद मा, गीत लिखिन भरमार।


बड़ ज्ञानी उन छंद के, दया मया के धाम।

जन्म जयंती हे उँकर, शत शत नमन प्रणाम।


-सुखदेव सिंह "अहिलेश्वर "

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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आल्हा छंद-#सुरता_पुरखा_मन_के


करके सुरता पुरखा मन के, चरन नवावँव मँय हा माथ।

समझ धरोहर मान रखव जी, मिलय कृपा के हर पल साथ।।


इही कड़ी मा जिला दुर्ग के, अर्जुन्दा टिकरी हे गाँव।

जनम लिये साहित्य पुरोधा, कोदूराम दलित हे नाँव।।


पाँच मार्च उन्निस सौ दस के, दिन पावन राहय शनिवार।

माता जाई के गोदी मा, कोदूराम लिये अवतार।।


रामभरोसा पिता कृषक के, जग मा बढ़हाये बर नाँव।

कलम सिपाही जनम लिये जी, बगराये साहित के छाँव।।


बचपन राहय सरल सादगी, धरे गाँव  सुख-दुख परिवेश।

खेत बाग बलखावत नदिया, भरिस काव्य मन रंग विशेष।।


होनहार बिरवान सहीं ये, बनके जग मा चिकना पात।

अलख जगाये ज्ञान दीप बन, नीति धरम के बोलय बात।।


छंद विधा के पहला कवि जे, कुण्डलिया रचना रस खास।

रखे बानगी छत्तीसगढ़ी, चल के राह कबीरा दास।।


गाँधीवादी विचार धारा, देश प्रेम प्रति मन मा भाव।

देश समाज सुधारक कवि जे, खादी वस्त्र रखे पहिनाव।।


ढ़ोंग रूढ़िवादी के ऊपर, काव्य डंड के करे प्रहार।

तर्कशील विज्ञानिकवादी, शोधपरक निज नेक विचार।।


गोठ सियानी ऊँखर रचना, जग-जन ला रस्ता दिखलाय।

मातृ बोल छत्तीसगढ़ी के, भावी पीढ़ी लाज बचाय।।


आज जन्मतिथि गिरधर कवि के, गजानंद जी करे बखान।

जतका लिखहूँ कम पड़ जाही, कोदूराम दलित गुनगान।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़ी)

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(उनकर प्रिय छंद कुण्डलिया मा शब्दांजलि)


पुरखा जनकवि के हवय, पुण्य जयंती आज।

श्रीमन कोदू राम जी,करिन नेक जे काज।

करिन नेक जे काज,छंद मा रचना रचके।

सुग्घर के सुरताल, भाव मनभावन लचके।

गाँधी सहीं विचार, रहिंन उन उज्जर छवि के।

अमर रही गा नाम, सदा पुरखा जनकवि के।


आइस बालक ले जनम,पावन टिकरी गाँव।

मातु पिता जेकर धरिन,  कोदू राम जी नाँव।

कोदू राम जी नाँव, पिता श्री राम भरोसा।

घोर गरीबी झेल, करिन उन पालन पोसा।

अर्जुन्दा के स्कूल, ज्ञान के गठरी पाइस।

गुरुजी बनके दुर्ग, शहर मा वो हा आइस।


बड़का रचनाकार वो,गद्य-पद्य सिरजाय।

हास्य व्यंग्य के धार मा, श्रोता ला नँहवाय।

श्रोता ला नँहवाय, गोठ वो लिखिन सियानी।

माटी महक समाय, गठिन बड़ कथा कहानी। 

अलहन के जी बात,व्यंग्य के डारे तड़का।

दू मितान के गोठ, करिन वो कविवर बड़का।


श्रद्धावनत

चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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आल्हा छंद

(05/03/1910 से 28/09/1968)

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आज सुनावौं एक कहानी,सुग्घर जनकवि कोदूराम।

जन-जन के वो हितवा राहय,उड़ै अगासा जेखर नाम।।


छत्तीसगढ़ी संस्कृति ज्ञाता,कोदूराम "दलित" हे नाम।

अमर काव्य रचना कर डारिन,जन मानस बर करके काम।।


गोरे अउ छरहरे रंग के,सुग्घर कद सुग्घर व्यवहार।

जन-जन के हिरदय मा बसगे,सादा जिनगी उच्च विचार।।


छत्तीसगढ़ी जिला-दुर्ग मा,अर्जुन्दा टिकरी के गाँव।

जिहाँ जनम होइस हे भइया,दाई ददा मया के छाँव।।


पाँच मार्च उन्नीस शतक दस, "रामभरोसा" के परिवार।

अँगना मा किलकारी गूँजिस, कोदूराम "दलित"अवतार।।


दाई "जायी" के कोरा मा,खेलिस लइका "कोदूराम"।

"रामभरोसा" ददा भुलागे,अपने तन के दुःख तमाम।।


ददा एक किसनहा राहय,खेती बारी बदे मितान।

कोदूराम"दलित" हा देखिन,सबो गरीबी साँझ बिहान।।


अर्जुन्दा के ग्राम आशु कवि,चिनौरिया श्री पीलालाल।

इँखर प्रेरणा पा के सुग्घर,गीत कहानी लिखिन कमाल।।


शुरू करिन हे कविता लिखना,बछर रहिस हे सन् छब्बीस।

जिनगी भर साहित्य साधना,करत रहिन नइ कभ्भू रीस।।


मनखे मन हा सबो उमर के,हिलमिल के राहय जी संग।

जाति-पाँति के नइ चिनहारी,हँसमुख सुग्घर ओखर अंग।।


जन-जन के पीरा देखइया,मानवता के वो चिनहार।

गुरुजी एक रहिन अइसन वो,कलम बनिस जेखर हथियार।।


गाँधी जी के राह चलइया,मनखे मन ले करिस गुहार।

गाना कविता लिख-लिख के वो,बगराइन हे अपन विचार।।


गाँधी टोपी पहिन पजामा,छाता धरै हाथ मा एक।

मिलनसार सब ला वो चाहय,काम करय वो जन बर नेक।।


कोदूराम समाज सुधारक,मानवता के बनिस मिशाल।

संस्कृत निष्ठ व्यक्ति अवतारी,भारत भुइयाँ के ये लाल।।


कोदूराम"दलित" बड़ मनखे,रहिन जुझारू नेता एक।

सन् सैंतालिस मा शिक्षक के,करिन संघ बर काम अनेक।।


पन्द्रह दिन पतिराम साव सँग,कोदूराम "दलित" फिर जेल।

गइस प्रधानापाठक पद हा,अब साहित्य साधना खेल।।


लइका मन मा देश-प्रेम बर,स्वतन्त्रता के अलख जगाय।

देश-भक्ति के पबरित गंगा,कोदूराम "दलित" बोहाय।।


"गोठ सियानी" लिख कुण्डलिया,आडम्बर ला दूर भगाय।

छत्तीसगढ़ी "दलित" कहाये,ये गुरुजी गिरधर कविराय।।


गोठ कबीरा जइसन फक्कड़,बिना झिझक के बात बताय।

ढोंगी मन के ढोंग हटइया,हरिजन मन के दुख बिसराय।।


लेखन कौशल हा बड़ सुग्घर,देशी बोली हिंदी भाय।

कोदूराम मंच मा चढ़ के,कविता संगे गीत सुनाय।।


कविता के बारे मा काहय,गुरुजी कोदूराम सुजान।

जइसे मुसुवा बिला निकलथे,वइसे कविता दिल से जान।।


"दलित" पचास दशक के लगभग,मंच व्यवस्था करिन प्रचार।

संग द्वारिका "विप्र" रहिन हे,दुन्नों के जोड़ी दमदार।।


रचना रचिस आठ सौ जादा,पद्य-गद्य गंगा बोहाय।

हवै धरोहर ये किताब मन,जन मन मा अमरित बरसाय।।


"हमर देश","कनवा समधी" अउ,"दू मितान" के सुग्घर गीत।

"बालक कविता" बड़ मनभावन,रचिन "प्रकृति वर्णन" सुन मीत।।


"अलहन","कथा-कहानी",प्रहसन,सुग्घर-सुग्घर रचिन सुजान।

ये समाज ला राह दिखाथे,कतका मँय हा करौं बखान।।


प्रबल पक्षधर साक्षरता के,गिरे परे के कर उत्थान।

मास सितम्बर अट्ठाइस के,सन् सड़सठ मा देहवसान।।


फेर अपन रचना माध्यम ले,आज घलो जिन्दा कस जान।

अइसन कोदूराम"दलित"जी,जन-जन ले पावत सम्मान।।


जेखर बेटा "अरुण निगम" के,होवत हावय अड़बड़ सोर।

छत्तीसगढ़ी छंद ज्ञान के, बगरावत हे छंद अँजोर।।


अपन ददा के पद चिनहा मा,चल के अरुण निगम जी आज।

साहित लिखना धरम बना के,करत पूण्य के हावै काज।।


छंद ऑनलाइन कक्षा मा,अरुण निगम गुरु छंद सुजान।

छत्तीसगढ़ी छंद सिखावत,पोठ व्याकरण के जी ज्ञान।।

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बोधन राम निषादराज"विनायक"

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रोला-छन्द 

!!!!!!!!!!!!!!!


बाबूजी कोदू राम दलित जी ला 

समर्पित श्रद्धा सुमन 

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🌹🌹

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1-

छन्द लिखे के ग्यान, सहज मा वोखर अइसे |

चढ़के घोड़ सवार, धरे हे अंकुश जइसे ||

बाबू कोदू राम, छन्द ला बांधे राखयँ |

सुघ्घर होय विधान, जेन ला पढ़ सब भाखयँ ||


2-

कृपा शारदा मात, कंठ मा धारे जेखर |

बाबू कोदू राम, नाम हे पावन तेखर ||

भाषा के बड़ ग्यान, छन्द हा अँगरी नाँचे |

कठिन साधना पास, जेन सब पाठक बाँचे ||


कमलेश प्रसाद शरमाबाबू 👏

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छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय , छंद शास्त्री,जनकवि कोदू राम दलित जी के 113 वीं जयंती के अवसर म, उन ल कोटिशः नमन,,,


करिस छंद के जौन हा,हमर इँहा शुरवात।

श्रद्धा सुमन चढाँव मैं, माथा अपन नँवात।


साहित के वो देंवता,जनकवि वो कहिलाय।

बगरे  बाँढ़य  छंद  बड़,आस  ओखरे आय।


नाँव मिटाये नइ मिटै,करनी जेखर पोठ।

साहित के आगास मा,बरे सियानी गोठ।


पैरी जब जब बाजही,मुख मा आही गीत।

बैरी पढ़ पढ़ काँपही,फुलही फलही मीत।


रचना रिगबिग हे बरत,भले बछर के बीत।

डहर नवा गढ़ते रही,जनकवि जी के गीत।


नाँव अमर जुगजुग रही,जइसे  गंगा धार।

जनकवि कोदू राम जी,छंद मरम आधार।


सपना उही सँजोय हे,अरुण निगम जी आज।

पालत  पोंसत  छंद ला,करत हवे निक काज।


साधक बन सीखत हवै,कतको कवि मन छंद।

महूँ  करत  हँव साधना,लइका  अँव  मतिमंद।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को (कोरबा)


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