चित्र विशेष छंदबद्ध रचनाएं
*बिजउरी (दोहा)*
पीस उरिद के दार ला, तिल ला दिए मिलाय।
बासी बोरे सन सबो, चुर्रुस चुर्रुस खाय।।
पीसव अपन घमंड ला, सद्गुन ला सब झींक।
देत बिजउरी ज्ञान हे, लागे अड़बड़ नीक।।
आगी मा जब भूंजबे, चाहे तेल तलाय।
चेम्मर गुन जब छूटथे, सबला तभे सुहाय।।
अइसन मानुस हाल हे, जभे छोड़ही ठाठ।
अमर रही संसार मा, बांध मया के गाॅंठ।।
*तुषार शर्मा "नादान"*
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कुण्डलिया छंद--- *बिजौरी*
रखिया पीठी संग मा, फेट तिली ला सान।
डारे मिरचा नून ला, बने बिजौरी जान।।
बने बिजौरी जान, भूॅंज अॅंगरा मा खावव।।
हावै गजब मिठास, पोठ के मन हरसावव।।
बॉंट बॉंट के खाॅंय, रोज के जी सब सखिया।
सबले गजब मिठास, रथे बढ़िया जी रखिया।।
मनोज कुमार वर्मा
बरदा लवन बलौदा बाजार
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आशा देशमुख: *बरवै छंद*
पाँच जिनिस मन मिलके, दें आकार।
अलग अलग गुण बनथे , जग व्यवहार।।
सुख दुख के फेंटा मा , सब लपटाँय।
घाम शीत अउ पानी , सबो जनाँय।।
करिया तन के भीतर, सार सफेद।
तिल्ली उरिद करी मा , नइहे भेद।।
अहम भाव जब जरथे ,,आगी आँच।
निर्मल मया भराये , भीतर साँच।।
गोल गोल दुनिया मा , मया भराय।
स्वाद सुवारथ मन के , बड़ ललचाय।।
आशा देशमुख
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: लावणी छंद- बिजौरी
दया मया के लेप लगाके, दाई जस रिस्ता जोड़य।
पीठी तक हर तीली जोड़े, एक्को ठन ला नइ छोड़य।
घाम दिखाके बने बिजौरी, रिस्ता ठोस बनाये हे।
कड़क रहे बँधना झन छूटय, निशदिन बहुत तपाये हे।
गरम तेल मा डार बिजौरी, गजब परीक्षा लेवत हे।
भूरा होवत बपुरा जर जय, पर खुशबू ओ देवत हे।
त्याग तपस्या के बल बूते, आज बिजौरी अटल खड़े।
जेमन जिनगी मा अस तपथें, ओ दुश्मन ले गजब लड़े।
पाँच तत्व जस पाँच बिजौरी, गुण पाँचो के पाये हे।
सजे धजे थारी मा देखव, सब के मन ललचाये हे।
चाँदी के बर्तन मा रहिके, थोरिक नइ अभिमान करे।
स्वाद लगा जे मन भी खावयँ, ओखर मनके पेट भरे।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार 24322
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आल्हा छंद - बरा-बिजौरी
रखिया बीजा अउ तिल्ली सँग,उड़द दार मा फेंट सुखाय।
चुरत-चुरत गजबे ममहावय,खाय-खाय बर मन हा भाय।।
उड़द दार के बरा बिजौरी,जेमा तिल्ली घलो मिलाय।
देखत तुरते लार बहावय,जिवरा सबके बड़ ललचाय।।
बोधन राम निषादराज
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*मनहरण घनाक्षरी*
रखिया बरी के छोटे बहिनी बिजौरी हवै,
तिल्ली के सिंगार कर, चले संगेसंग मा।
बरी खाये गूदा-गूदा बिजौरी ह पाये बीजा
तभो ले हुलास भरे हवै अंग-अंग मा।।
जब जाए मइके ले ससुरार मोठरी मा
सुख-दुख गोठियाए अपनेच ढंग मा।
आगी मा भुंजाये चाहे तेल मा तलाये तभो,
रंग डारे मनखे ला पिरित के रंग मा।।
*अरुण कुमार निगम*
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[मोद सवैया
दार उरीद फुलोय हवै भउजी बड़ पीठी सान बनाय।
गोल बनावत हे बढि़या परिवार बिजौरी खाय चबाय।
ध्यान धरै सबके सुख ला कतको कन छानै पोठ मिठाय।
डार मया मुठिया भर के तिल टूटय नाता ला सिरजाय।
*धनेश्वरी सोनी गुल*✍️✍️
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*कहिस बिजौरी-सार छंद*
सजे प्लेट मा हवै बिजौरी, रहि रहि के बिजराथे।
छुनहुन छुनहुन मन हा लागै, मुँह मा पानी आथे।।
दाऊ खाही तैं का खाबे, चल फुट मँगलू आगे।
कहिस बिजौरी हँसी उड़ावत,सुनके मति छरियागे।।
आय तिली हमरे उपजाये, लिस खरीद वो दाऊ।
नइ तो बाँचिस एको काठा , हम फाऊ के फाऊ।।
मूँग उरीद हमीं उपजाथन, पेट आन के जाथे।
कर्जा बोड़ी छूटे खातिर, मंडी जा बेंचाथे।।
करना चाही चेत हमूँ ला, हमरो लइकन खावैं।
रहना चाही हमरो घर मा, पहुना मन जब आवैं।।
चुर्रुस चुर्रुस ददा चबावै, कुर्रुस कुर्रुस दाई।
पापड़ संग बिजौरी फोरे, बने पोरसय बाई।।
चोवा राम 'बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़
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वीरेंद्र साहू9: बिजौरी (सार छंद)
बैगुण हा गुण बन जाथे जब, संगत मिलथे सुग्घर।
रखिया बीजा तिली पिठी मिल, बने बिजौरी घर-घर।
छेल्ला रहिथे ता कचरा कस, मान जुड़े मा पाथे।
रखिया बीजा बने बिजौरी, ये संदेश बताथे।
ठिहा पाय बर पिसथे तपथे, तउने शोभा पाथे।
तरे बिजौरी सजे थाल मा, महिनत के गुण गाथे।
खाथे कोनों चुर्रुस चुर्रुस, लेथे मजा बिजौरी।
कहिथे बढ़िया संगत मा सुख, बात मान ले गौरी।
परमारथ मा फूल घलो हा, रँउदाये तरपौरी।
सुख टूटे मा घलो समाये, बात बताय बिजौरी।।
विरेन्द्र कुमार साहू बोड़राबाँधा (गरियाबंद)
साधक सत्र - 9
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: *बिजौरी* (छन्न पकैया)
छन्न पकैया छन्न पकैया, आज बिजौरी खाबो।
गुरूदेव के सँग मा सबझन, अबड़ मजा हम पाबो।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, गोल-गोल सिरजाये।
अदरक अउ तिल्ली के येमा, बढ़िया स्वाद भराये।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, सुग्घर प्लेट सजाये।
देख देख के येला संगी, मुँह मा पानी आये।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, दया मया लपटाये।
देख बिजौरी साधक मन हर, सुग्घर कलम चलाये।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, जम्मो झन सकलाये।
इँहा बिजौरी के सब गुण ला, मिल के आज बताये।।
प्रिया देवांगन *प्रियू*
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: घनाक्षरी- बिजौरी
कस रे बिजौरी बता, झन अब तें ह सता,
कोन ह बनाये तोला,कइसे निर्माये हे।
पीठी म तीली मिलाके, रखिया बीजा ल पाके,
अनेकता म एकता के गुण दरसाये हे।
घाम म सुखाये तोला, आगी म जलाये तोला,
तेल म चुरोये तोला, तभे सब खाये हे।
तोर गुण गान भारी, रस के बखान जारी,
पाँच पंडवा ल देहे, थारी म सजाये हे।
रचनाकार- दिलीप वर्मा
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लीलेश्वर देवांगन,बेमेतरा: रोला,,,बिजौरी
पिठी ,तिली के संग, बिजौरी नेक बनाथे ।
साग भात के संग ,बिजौरी खूब सुहाथे।
तिली बिजौरी देख ,देख सब के मन भाथे।
तेल तेल मा सेक, सेक के सबझन खाथे।
लिलेश्वर देवांगन
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डी पी लहरे: गीतिका छंद
*सास*
चल बनाबो ओ बहुरिया चल बिजौरी साथ मा।
लान पीठी नून मिरचा धर थपटबो हाथ मा।।
पेट भर खाना खवाथे ए बिजौरी जब रथे।
मोर घर के डोकरा हा ला बिजौरी ला कथे।।
*बहुरिया*
देख मोबाइल म मँय बीजी रथौं दिन-रात ओ।
तँय बिजौरी के कभू करबे कभू झन बात ओ।
आज लिज्जत पापड़ी के हे ज़माना सास जी।
देख एक्को कन नहीं टाईम तो मोर पास जी।।
*सास*
बात ला देखौ बहुरिया मन कभू मानँय नहीं।
काय होथे ए बिजौरी तेन ला जानँय नहीं।
ए बिजौरी ला कभू मँय तो नँदावन दँव नहीं।
ए जमाना ला बिजौरी ला भुलावन दँव नहीं।।
द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
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सुघ्घर विषय मा आनी बानी छन्द रचना सुघ्घर संकलन
ReplyDeleteबहुत सुग्घर बरा बिजौरी
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