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Sunday, March 27, 2022

सार छंद- श्वनी कोसरे

 *सार छंद- श्वनी कोसरे


अमरइया मा डार झुमरगे, आमा टपकन लागे|

किसिम किसिम के चिरई चुरगुन, खायेबर जुरियागे||


फरगें लटलट ले बर पीपर,भुइँया तीपन लागे||

सोंध सोंध ममहावत डूमर, अमली बड़ गदरागे||


तीतर मैना सारस सुवना, खावत बइठें डारा|

बारोमासी पेंड़ पुरोथें, पंछी मनबर चारा||


फूलधरे हें मउहा पिंवरा, बड़े बिहिनिया झरथें|

घर बन खुश हो झउँहा झउँआ, सोना बिनबिन धरथें||


 गरमी मा दरमी हा फुलथे, कैत बेल मन फरथें|

गंगाइमली कोकी कोकी, चुक लाली हो झरथें||


तेंदू चार चिरौंजी टोरा, मन ला खींचन लागे|

जाम पेंड़ मा फरही जामुन, मुँह मा पानी आगे||


परसा के लाली फुलवा हर, मन ला सबके हरथे|

तेंदू पाना हरियर हरियर, खीसा सबके भरथे||


पेंड़ हवय जब तक भुइँया मा, पुरवइ ला हे बहना|

पानी चाही पेड़ बचावन, ए धरती के गहना|


देखन कैसे रूप सॕवारे, बन हर  मोहय मन ला|

हरियर लागत हवय कलिंदर, धरके लाली तन ला||


छंद साधक-

अश्वनी कोसरे 

 रहँगिया

कवर्धा कबीरधाम

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