*सार छंद- श्वनी कोसरे
अमरइया मा डार झुमरगे, आमा टपकन लागे|
किसिम किसिम के चिरई चुरगुन, खायेबर जुरियागे||
फरगें लटलट ले बर पीपर,भुइँया तीपन लागे||
सोंध सोंध ममहावत डूमर, अमली बड़ गदरागे||
तीतर मैना सारस सुवना, खावत बइठें डारा|
बारोमासी पेंड़ पुरोथें, पंछी मनबर चारा||
फूलधरे हें मउहा पिंवरा, बड़े बिहिनिया झरथें|
घर बन खुश हो झउँहा झउँआ, सोना बिनबिन धरथें||
गरमी मा दरमी हा फुलथे, कैत बेल मन फरथें|
गंगाइमली कोकी कोकी, चुक लाली हो झरथें||
तेंदू चार चिरौंजी टोरा, मन ला खींचन लागे|
जाम पेंड़ मा फरही जामुन, मुँह मा पानी आगे||
परसा के लाली फुलवा हर, मन ला सबके हरथे|
तेंदू पाना हरियर हरियर, खीसा सबके भरथे||
पेंड़ हवय जब तक भुइँया मा, पुरवइ ला हे बहना|
पानी चाही पेड़ बचावन, ए धरती के गहना|
देखन कैसे रूप सॕवारे, बन हर मोहय मन ला|
हरियर लागत हवय कलिंदर, धरके लाली तन ला||
छंद साधक-
अश्वनी कोसरे
रहँगिया
कवर्धा कबीरधाम
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