काया काली बर- सार छन्द
जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।
सेहत सबले बड़का धन ए, धन दौलत धन जाली।।
काली बर धन जोड़त रहिथस, आज पेट कर उन्ना।
संसो फिकर करत रहिबे ता, काल झुलाही झुन्ना।।
तन अउ मन हा हावय चंगा, ता होली दीवाली।
जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।।
खाय पिये अउ सुते उठे के, होय बने दिनचरिया।
काया काली बर रखना हे, ता रख तन मन हरिया।
फरी फरी पी पुरवा पानी, देख सुरुज के लाली।
जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।।
हफर हफर के हाड़ा टोड़े, जोड़े कौड़ी काँसा।
जब खाये के पारी आइस, अटके लागिस स्वाँसा।।
उपरे उपर उड़ा झन फोकट, जड़ हे ता हे डाली।
जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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