दहेज- छंदबद्ध कविता
दहेज-हरिगीतिका छंद
छत्तीसगढ़ मा नइ रिहिस दाइज असन कुछु कुप्रथा।
बेटी रहे सोला अना नइ आय ताहन दुख व्यथा।।
धन अन्न कुछु बेटी मया मा बाप माई जोरथे।
दाइज हरे अभिशाप भारी जे मया मत टोड़थे।।
कतको गिराथे मान गुण शादी ला सौदा बोलके।
देबे फलाना चीज बस कहि माँगथें मुँह खोलके।।
ढाए जुलुम वर पक्ष हा बन लालची कतको डहर।
शादी असन शुभ काम मा ताहन हबर जाथे जहर।।
सब घर रथे बेटी तभो काबर मनुष सोचे नही।
जोरे मया ला लालची बनके मता देथे दही।।
विश्वास मा रहिथे टिके तौने नता हा नइ घुरे।
पुरथे मया माँगे नँगाये धन रतन हा नइ पुरे।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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मुकेश : कुंडलिया छंद-- दाहिज/दहेज
बइरी दाहिज आज गा, बनगे हे अभिशाप।
मनखे सबो समाज के, देखत हें चुपचाप।।
देखत हें चुपचाप, घरो-घर के करलाई।
बेचत खेती खार, हवय गा बड़ दुखदाई।।
धन दौलत के लोभ, मतावत घर मा गइरी।
होवत हे जंजाल, बहू बर दाहिज बइरी।।
माँगत मनमाने सबो, धन दौलत भरमार।
दाहिज ले के नाँव मा, होवत हे बैपार।।
होवत हे बैपार, चलावत गर मा आरी।
झेलत हावँय रोज, बहू मन विपदा भारी।।
शिक्षित होत समाज, तभो फाँसी मा टाँगत।
दाहिज डोली आज, लोग मनमाने माँगत।।
मुकेश उइके "मयारू"
ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)
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Dropdi साहू Sahu: अमृतध्वनि छंद -"दहेज"
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लेथे चलन दहेज के, बनगे हे जंजाल।
बाप हवय कर्जा बुड़े, खस्ता होगे हाल।।
खस्ता होगे, हाल बाप धन, कतक सकेले।
पाई पाई, जोड़ जोड़ के, दुख खुद झेले।।
खोजे नोख्ता, ताना अड़बड़, तब ले देथे।
बहू बने हे, सहे तभो बड़, दुख ला देथे।।
खोले मुँह रक्सा सहीं, कर दव येकर नास।
अइसन कुरीत रोक लव, भटकय झन ये पास।।
भटकय झन ये, पास तभे ये, सरबस जाही।
बेटी सब के, बिन दहेज के, तब जीं पाही।।
जब मर जाही, लालच मन के, कुछु नइ बोले।
मिटही दहेज, लेवइ देवइ, नइ मुँह खोले।।
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द्रोपती साहू "सरसिज"
महासमुंद छत्तीसगढ़
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नारायण वर्मा बेमेतरा: *सरसी छंद-दाइज डोल के बीमारी*
सुसकत हाबय आज दुलौरिन, कुलकत हें बइमान।
दाइज डोल बने नोनी बर,जइसे मरी मसान।।
चान करेजा के चानी ला, करथें कन्यादान।
पाल पोष ससुरार पठोथे, दाई ददा महान।।
तभो देख बेटी दहेज बर, होवत हे बलिदान।
सुसकत हाबय आज दुलौरिन, कुलकत हे बइमान।।
सोना चांदी मोटर गाड़ी, रुपिया धन सामान।
लालच लोहा अउ कठवा के, लेवत हाबय प्रान।।
लेन देन हर बनगे अब तो, बड़हर मन बर शान।
फेर पिसागे घुना बरोबर, मोर गरीब किसान।।
शिक्षित होत समाज तभो ले, होगें सब नादान।
सुसकत हाबय आज दुलौरिन, कुलकत हें बइमान।।
नवाँ गृहस्थी चलय खुशी मा, देत रिहिन उपहार।
फेर काल बनगे एहर तो, लोग करत बैपार।।
लालच बाढ़त जात दिनोंदिन, माँगत हे मुँहफार।
प्रेम कहाँ पनहावय दुख मा, टूटत घर परिवार।।
दर्शन आज प्रदर्शन बनगे, मरना हे भगवान।
सुसकत हाबय आज दुलौरिन, कुलकत हें बइमान।।
बंद दहेज करव कहिथें अउ, लेवत हें दिल खोल।
नारी के सम्मान करव कहि, पीटत भर हे ढोल।।
अपने घर मा बँधुआ कस हे, सुन सुन कड़वा बोल।
कखरो आँखी के तारा अब,सींचत तन पिटरोल।।
घर के लक्ष्मी ढ़ारत आँसू, कुरिया मा सुनसान।
सुसकत हाबय आज दुलौरिन, कुलकत हें बइमान।।
मोल तोल बेटा के करथें, आवत नइहे लाज।
बहिष्कार कर अइसन मन के, देवय दंड समाज।।
दुरुपयोग कानून घलो के, होवत जमके आज।
कतको बपरा मन बर एहा, गिरथे बनके गाज।।
दू दिल के पावन संगम हा, बनगे रेगिस्तान।
सुसकत हाबय आज दुलौरिन, कुलकत हें बइमान।।
दाइज डोल बने नोनी बर, जइसे मरी मसान।।
नारायण प्रसाद वर्मा *चंदन*
ढ़ाबा-भिंभौरी, बेमेतरा छ.ग.
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ओम प्रकाश अंकुर: कुंडलिया छंद
दाहिज दानव
दानव कस दाहिज हरे, जस समाज बर श्राप।
मारपीट झेलय बहू, कलपत हे मां-बाप।
कलपत हे मां-बाप, मुॅहू सुरसा कस तानय।
हावय ये अभिशाप, बने सब झन हा जानय।
धन -दौलत के स्वार्थ, पड़े अज्ञानी मानव।
'अंकुर' बात बताय, हरे दाहिज हा दानव।।
ओमप्रकाश साहू अंकुर
सुरगी, राजनांदगांव
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कमलेश प्रसाद शरमाबाबू: विषय - दहेज
रोला -छंद
देख खड़े हे आज, दहेज ह दानव बनके ।
जतके पढ़लिन लोग, लोभ अउ चढ़गे धन के।।
पढ़े-लिखे के खर्च, बहू के घर ले माँगत।
बेटा लगगे मोल, वसूली करथें लागत।।।।
बहिनी बेटी आज, झूल गे फाँसी चढ़ के।
कतको मन हा देख, मूक बन गें लिख-पढ़ के।।
पति दहेज बर रोज, सतावत पीटत मारत।
सहत बहू चुपचाप, खून के आँसू ढारत।।।।
कमलेश प्रसाद शर्माबाबू
कटंगी-गंडई जिला केसीजी छत्तीसगढ़
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नंदकिशोर साव साव: चौपाई छंद - दहेज - दाहिज
बहू घलो ला बेटी मानौ।
अपन कोख के लइका जानौ।।
झन मारव दाहिज के खातिर।
पापी मत कहलावव शातिर।।
कतको बेटी भुंजावत हे।
कतको फाँसी लटकावत हे।।
जहर खवा के कोन्हो मारय।
नरी चपक कोन्हो हा डारय।।
अब दहेज हा बनगे दानव।
लालच मा पड़गे हे मानव।।
सोना चाँदी रुपिया गाड़ी।
माँगत हे खेती अउ बाड़ी।।
हाँड़ी के सीथा कस कैना।
पर घर जाय बिहा के मैना।।
दे दहेज बाबा हर कतको।
कम पड़थे लोभी बर वतको।।
झन दहेज ला कोन्हो माँगव।
सुग्घर बहू बिहा के लानव।।
हँसी खुशी में समय पहावव।
अउ समाज मा नाँव कमावव।।
नंदकिशोर साव, राजनांदगाँव
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दहेज। आल्हा छंद
ऊपर ले सब सिधवा सिधवा, भरें भीतरी मा सब राज ।
लीलत हाॅंवय जग ला देखव, दहेज दानव बनके आज।।
कतको बहिनी बेटी मरगे, मरगे जिनगी के सत्कार ।
पढ़ें लिखे सब हाॅंवय मनखे, फिर भी करथे अत्याचार ।।
सब ला जिनगी दिये विधाता, जिनगी मा सबके अधिकार ।
थोकिन पइसा खातिर काबर, काबर करथव घर मा रार।।
सोच समझ ला राखव बढ़िया, बनही सुग्घर नवा समाज।
लीलत हाॅंवय जग ला देखव, दहेज दानव बनके आज।।
फोकट नोहय कखरो जिनगी, जला भूंज के मारे जान ।
लेख करम के इहे भुगतबे, जाही तोरो असने प्राण ।।
पाई पाई हिसाब करही, ऊपर बइठे हे भगवान ।
देख करम अउ बने सुधर जा, बन जा तय बढ़िया इंसान ।।
दुनिया मा तय नाॅंव कमाबे, सुन ले मन के तय आवाज।
लीलत हाॅ़ंवय जग ला देखव, दहेज दानव बनके आज ।।
ऊपर ले सब सिधवा सिधवा, भितरी भरे हवय सब राज।
लीलत हावय जग ला देखव, दहेज दानव बनके आज।।
दान लेत कन्या के देखव, शेर सही कइसे गुर्राय ।
देने वाला होथे बड़का, काबर बात समझ नइ आय ।।
महादान कन्या के होथे, फिर भी दानी माथ नवाय ।
स्वारथ खातिर देखव मनखे, , कइसे कइसे नियम बनाय ।।
चर्चा करलव जीव जगत में, होही बढ़िया सुग्घर काज।
लीलत हाॅंवय जग ला देखव, दहेज दानव बनके आज।।
सार जान ले पोथी पढ़के, पोथी मा जग सार समाय ।
लक्ष्मी होथे घर के नारी, नारी ही जग ला सिरजाय।।
नाशवान हे दहेज दानव, दहेज बर तय बहू जलाय ।
सार समझ ले लोभी मनखे , लोभ सही मनखे ला खाय ।।
गाॅंठ बाॅंध जिनगी मा अब तो , छोड़व कल के गलत रिवाज।
लीलत हाॅंवय जग ला देखव, दहेज दानव बनके आज।।
संजय देवांगन सिमगा
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रमेश मंडावी,राजनांदगांव: कुंडलिया छंद (दहेज)
डारिस माटी तेल ला,आज अपन वो अंग।
सास ससुर ससुरार ले,बहू रिहिस हे तंग।
बहू रिहिस हे तंग,सुने सब झन के ताना।
गोसइयाँ के रोज,मार अउ गारी खाना।
लगा देह मा आग,बहू जिनगी ले हारिस।
नइ दे सकिस दहेज,मार अब वोला डारिस।।
रमेश कुमार मंडावी (राजनांदगांव )
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Om Prakash Patre: लावणी छन्द गीत - दहेज
कतको झन मन बिलख-बिलख के, देखव ऑंसू ढारत हें ।
ये दहेज हा दानव बनके, बेटी मन ला मारत हे ।।
मातु-पिता के राज दुलौरिन, सपना देखिस सुग्घर के ।
राज कुॅंवर सॅंग जीहूॅं मरहूॅं, मोर सजन जिनगी भर के ।।
चूर-चूर करके सपना ला, बइरी हा पुचकारत हे ।
ये दहेज हा दानव बनके, बेटी मन ला मारत हे ।।
सौदा बाजी होगे शादी, धन दौलत के चक्कर मा ।
जिनगी अउ घर के बर्बादी, आपस के ये टक्कर मा ।।
सास बहू बेटी के झगरा, आगी तन मा बारत हे ।
ये दहेज हा दानव बनके, बेटी मन ला मारत हे ।।
लालच मा पड़के लोभी मन, रिश्ता नाता तोड़त हें ।
खुद बोजावत हें गड्ढा मा, गड्ढा काबर कोड़त हें ।।
दया-मया नइ जानॅंय पापी, जुआ बरोबर हारत हें ।
ये दहेज हा दानव बनके, बेटी मन ला मारत हे ।।
छन्दकार व गीतकार
ओम प्रकाश पात्रे 'ओम'
ग्राम - बोरिया, जिला - बेमेतरा (छ.ग.)
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Jugesh: दहेज
सरसी छंद-
अबड़ मया मा पलथे बेटी,होथे जीव अधार।
रहिथे वो आँखी के तारा,देथे खुशी अपार॥
करजा करके खूब ददा हा,अबड़ जिनिस ला लेय।
अपन मयारू बेटी संगे,गहना गुरिया देय॥
हँसी-खुशी ले जोरन जोरै,मन मा बाँधे आस।
मन मा कुलकत सोचै देवँव,बेटी ला कुछ खास॥
करे ददा हा रोवत मन ले, बेटी के जी दान ।
चूहत आँसू पथरा होके, सौपे अपन परान ॥
पर दहेज के लाची मन के,लालच बाढ़त जाय।
मार पीट के करैं प्रताड़ित,आगी बार ' जलाय॥
जहर महूरा तको पियावै, टोटा देवैं सार ।
उदिम बारहों करके लोभी,दैं बहूरिया मार॥
हे दहेज हा दानव जइसे,लेवय कतको जान।
ये कलंक जस हवै हमर बर,लेववअतका मान॥
घातक हे जेहा सब जन बर ,मानौ झइन रिवाज।
समय कहत हे,छोड़ चलौ अब,ये दहेज ला आज॥
जुगेश कुमार बंजारे "धीरज "
नवागाँव कला छिरहा दाढ़ी बेमेतरा
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तातुराम धीवर : ।। दहेज।।
।। छन्न पकैया छ्न्द ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, घर परिवार उजरगे।
हे दहेज के आगी बम्बर, बेटी जरके मरगे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया , भारी अत्याचारी।
ये सुरसा ला मार भगावव, हे समाज बर भारी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, पूत जनम जब लेथे।
मार खुशी के उन्ना दून्ना, दान पुण्य कर देथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बेटी जनम होय जब।
होगय जस घर मा हे मरनी, रोवय बिलख बिलख सब।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, शिक्षित समाज होगे।
देख तभो ले लोभी मनखे, दहेज प्रथा मा खोगे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बीज पाप के बोंथे।
हे समाज के ठेकेदारन, कुम्भकरन जस सोथें।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बेटी गोरी-नारी।
मातु पिता कर धन अभाव मा, बइठे हवय कुँवारी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, रोवय बड़ दुखियारी।
सास ससुर पति हा नइ भावय, दुख सहिथे बड़ भारी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, छोड़व जी मनमानी।
हे दहेज लेना अउ देना, मूरख जान निशानी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, सद्बुद्धि सबो हरगे।
लोभी अउ लालची मनुज ले, ये दुनिया हा भरगे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, छोड़व बहू सताना।
परही नइते मार पुलिस के, जाना परही थाना।।
तातु राम धीवर
भैसबोड़ जिला धमतरी
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प्रिया: *दहेज* *सुमुखी सवैया*
दहेज समाज बिगाड़त हे जिनगी सुरसा कस लील डरै।
बिदा नइ होय दहेज बिना वर हा रुपिया बर माँग करै।।
अमीर रथे तब ले मनखे बिन लालच के नइ धीर धरै।
विरोध करे बिटिया मन ता कतको ससुरार परान हरै।।
प्रिया देवांगन *प्रियू*
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जगन्नाथ सिंह ध्रुव : कुंडलिया छन्द - दहेज
जतके शिक्षित होत हे, मनखे मन हा आज।
माँगे नँगत दहेज ला, नइ आवय जी लाज।।
नइ आवय जी लाज, बाप कर्जा मा बुड़थे।
धन दौलत कतकोन, राख के जइसे उड़थे।।
देथे बाप दहेज, शक्ति ओखर हे वतके।
अउ बाढ़त हे रोग, होत हे शिक्षित जतके।।
जगन्नाथ ध्रुव घुँचापाली
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अश्वनी कोसरे : दहेज
छंद-मनहरण घनाक्षरी
जब न लगिन माढ़ै, बेटी के उमर बाढै, कतकों मइके मा जी, दिने ला पहात हें|
जोरे जोरा दाई बाबू, महँगाई हे बेकाबू, लेहे देके घरभर, पँचहर बिसात हें|
होवत हे करलाई, रोवत हे छोटे भाई, बहिनी के हाँथ मा, पिँयरी रचात हे|
टीका बर अँड़ गे हे, दुलहा मकड़ गे हे, हरियर मड़वा हा, नोनी ल रोवात हे||
अश्वनी कोसरे 'रहँगिया' कवर्धा कबीरधाम
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विजेन्द्र: दहेज- दोहा छंद
बेटी मन ला खात हें, रकसा आय दहेजI
मात-पिता मन हा कहँय, जलगे कइसे सेजII
बइठे माथा ला धरे, का होगे भगवानI
कोन जनम के पाप ये, कइसे गढ़े विधानII
होगे सब बीमार का, फइले कइसे रोगI
सुख सुविधा के आड़ मा, ललचा गेहे लोगII
दानव आय दहेज हा, करके रखदिन राखI
दुरगुण ला चतवार लव, तभे बाचहीं साखII
बेटी मन रइहीं तभे, हरियर दिखही बागI
गढ़ही सुघर समाज ला, झोंकव झन गा आगII
कैंसर येला जान लव, अजब दिखावत रंगI
नींद चैन सब छीन के, घाव करत हे अंगII
बड़का गा अपराध ये, माँगय जेन दहेजI
अइसन ला धुत्कार के, करव सदा परहेजII
मात-पिता मन सोचथें, जिनगी सुघर बितायI
बेटी लक्ष्मी रूप ये, घर ला सरग बनायII
अँधरागे मनखे इहाँ, होगे का बुध नाशI
बेटी मन ला मार के, दफनावत हें लाशII
रकसा आय दहेज हा, लेन-देन हर पापI
अइसन मनखे ला कहव, दुरिहा रसता नापII
दहेज-कुंडलिया
पाई-पाई जोड़ के, देथे ददा दहेजI
अलवा-जलवा खुद रहय, पीके पसिया पेजI
पीके पसिया पेज, पिता दिन रात कमाथेI
दाई गहना जोर, भाग सुग्घर सिरजाथेI
धन के लोभी देख, करत हावय छिछड़ाईI
बेटी सन मा राख, पिता के पाई-पाईII
दुर्मिल सवैया
बिटिया मन ले घर हा महके,हर मौसम देख सुहावन गा।
लछमी रमणी सुचिता शुभता,इकरे पँवरी बड़ पावन गा।
रजनी रस गंध बहे सरसी, सब आवव मान बढ़ावन गा।
सुन आय दहेज विषाद बड़े,बनथौ अब काबर रावन गा।
विजेन्द्र कुमार वर्मा
नगरगाँव धरसीवांँ
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श्लेष चन्द्राकर : कुण्डलिया छंद
विषय - दहेज
दानव हरय दहेज हा, लेवत कतको जान।
छोड़व येकर मोह ला, देखत हे भगवान।।
देखत हे भगवान, सजा के बनहू भागी।
दुलहिन बेटी आय, लगाहू झन गा आगी।।
लालच ला दव छोड़, बने बनजावव मानव।
हवय जिहाँ संतोष, उहाँ नइ पनपय दानव।।
लेवत लोग दहेज अउ, बेटा बेचत आज।
देखत ये सब खेल ला, चुप हें तभो समाज।।
चुप हें तभो समाज, दिनों-दिन बढ़त बुराई।
अलकरहा ये दौर, बहू मन बर करलाई।।
बेचत हवय जमीन, ददा तब दहेज देवत।
मेछरात बड़ आज, जेन हा येला लेवत।।
ले बर मरत दहेज बड़, लोभी मनखे जात।
बेटी के परिवार ला, पहुँचावत आघात।।
पहुँचावत आघात, माँग के गाड़ी-मोटर।
धरके पइसा लाख, भरत नइ हे मन ओकर।।
का-का करे उदिम, ददा हा दहेज दे बर।
तभो हवय धमकात, सोन के गहना ले बर।।
श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद
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पात्रे जी: कुण्डलिया छन्द- *दहेज*
लीलत हवय समाज ला, दानव बने दहेज।
बेटी हे अनमोल धन, राखव सदा सहेज।।
राखव सदा सहेज, बना घर के फुलवारी।
तभे डेहरी रोज, मारही सुख किलकारी।।
धन के लोभी ताँय, हवँय अंतस ला छीलत।
दानव बने दहेज, शांति सुख ला हे लीलत।।
शादी बनगे आजकल, धंधा लूट खसोट।
ले के दहेज रूप ये, दुख के मारत चोट।।
दुख के मारत चोट, भरत हे लालच मन मा।
नइ राखय संतोष, मनुज ला खुद के धन मा।।
धरे दिखावा लोग, करँय धन सुख बरबादी।
धंधा लूट खसोट, आजकल बनगे शादी।।
आँखी मूँद समाज हा, बइठे हे चुपचाप।
बाढ़े तभे दहेज के, जग मा बड़ संताप।।
जग मा बड़ संताप, लालची लोग बढ़ाये।
करजा धरे गरीब, रात दिन माथ ठठाये।।
आगी बने दहेज, जलावत हे सुख पाँखी।
जावव जाग समाज, खोल के देखव आँखी।।
दुख के काँटा ले भरे, हवय बिछाये सेज
बेटी के लीलत खुशी, दानव बने दहेज।।
दानव बने दहेज, अपन मुँह ला हे फारे।
रोवत हे माँ बाप, आँख ले आँसू ढारे।।
माथा धरे गरीब, फिकर मा बेटी सुख के।
शादी बनगे काल, आज जी सुन लौ दुख के।।
पाई-पाई जोर के, करय गरीब विवाह।
पर दहेज के लोभ हा, जिनगी करे तबाह।।
जिनगी करे तबाह, जलावत हें बेटी ला।
निर्लज लोभी लोग, रपोटे धन पेटी ला।।
सोचव गुनव समाज, सबो बर हे करलाई।
देवय बाप दहेज, सकेले पाई-पाई।।
✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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ज्ञानू कवि: विषय - दहेज /दाहिज
छंद - विष्णुपद
सुरसा असन अपन मुँह खोलत, बड़ विकराल हवै|
आज बहू- बेटी बर बनगे, दाहिज कॉल हवै||
देखे रिहिस ददा- दाई हा, का- का गा सपना|
डोला उठगे बेटी के तब, सुन्ना घर - अँगना||
का- का जोरा- जोरी करथे, बड़ दिनरात ददा|
ले दे मुश्किल मा बिहाव के, करथे बात ददा||
सोच ददा बेटी वाले अव, रहिथे मूड़ नँवा|
पुतरी बेटी दाहिज सेती, देथे प्राण गँवा||
पढ़े- लिखे जतके मनखे मन, लोभ भरे मन मा|
चरदिनिया जिनगी मा मूरख, का राखे धन मा||
अँधरा- भैरा बनगे मनखे, रोवय रोज बहू|
मारपीट मा हाड़ा होगे, देख सुखात लहू||
ललचाहा, लम्पट लालच मा, फोकट तंग करें|
पीके दारू दाहिज बर बड़, अब्बड़ जंग करें||
कोंदी- बउली बन बपुरी हा, बस चुपचाप सहै|
मुँह मा फरिया अउ आँखी मा, पट्टी बाँध रहै||
बचन ददा के सुरता राखे, दुख- पीरा सहिबे|
कोनो काही कहै कभू ता, कुछु तँय झन कहिबे||
दानव दाहिज के सेती वो, फाँसी का जलगे|
यक्ष प्रश्न हे ये समाज बर, का रिवाज चलगे||
ज्ञानु
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डी पी लहरे: मुक्तामणि छन्द गीत
दहेज
दानव जइसे जान लौ, ए दहेज हे भाई।
बेटी-बहु के होत हे ,दौलत मा तौलाई।।
मरना होथे बाप के, ए दहेज के सेती।
कर्जा-बोड़ी बाढथे, बिक जाथे जी खेती।
कमर टूटथे बाप के, ऊपर ले मँहगाई।
दानव जइसे जान लौ, ए दहेज हे भाई।।
लालच करे दहेज के, बेटा वाले भारी।
बेटी वाले के सदा, गर मा चलथे आरी।
ए कइसन के रीत हे, देथे बस करलाई।।
दानव जइसे जान लौ, ए दहेज हे भाई।।
दुल्हन असल दहेज हे, मानय कहाँ जमाना।
जलथे बेटी आग मा, मिलथे निशदिन ताना।
इही कलंक समाज के, मेटे हे सुघराई।
दानव जइसे जान लौ, ए दहेज हे भाई।।
बाढ़े अत्याचार हा, ये दहेज के कारन।
आवव अइसन रीत के, मिलके भुर्री बारन।
बिन दहेज के हम सबो, कन्या करिन बिदाई।
दानव जइसे जान लौ, ए दहेज हे भाई।।
डी.पी.लहरे'मौज'
कवर्धा छत्तीसगढ़
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संगीता वर्मा, भिलाई: दहेज- कुंडलिया
दानव बने दहेज हा, बइठे मुँह ला फारI बेटी मन के बलि चढे, पड़े अकारन मारI पड़े अकारन मार, बेचावय गूठा गहनाI बेटी मन ला रोज, पड़त हे दुख ला सहनाI सहीं गलत पहचान, कोन हे सिधवा मानवI खुश रइही परिवार, भगावव अइसन दानवII
संगीता वर्मा, भिलाई
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कौशल साहू: कुंडलिया छंद
विषय - दहेज
मसकत हे कोनो नरी, फाँसी मा लटकाय।
बिन दहेज आये बहू, कहिके रोज सताय।।
कहिके रोज सताय, जहर जिनगी मा घोरय।
सास ननद नइ भाय, पटा पट अँगरी फोरय।।
कोंदा बने समाज, देख मुखिया खसकत हे।
बनके मरी मसान, नरी धर के मसकत हे।।
माँगत हे मुँह खोल के, लोभी मनुज दहेज।
लेन देन सत्कार कस, करत नहीं परहेज।।
करत नहीं परहेज, दिनों दिन बाढ़त आगर।
बूझय नहीं पियास, देख ले देके सागर।।
लेन देन अपराध, सबों मनखे जाँनत हे।
बर बिहाव मा फेर,नोट बंडल माँगत हे।।
कौशल कुमार साहू
जिला - बलौदाबाजार ( छ.ग.)
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गुमान साहू: रूप घनाक्षरी
।।दाहिज के साध।।
दाहिज के साध करै, लोग अपराध करै, फोकट के पूरै नही, तभो काहे ललचाय।
दाहिज के आगी जरै, बहिनी बेटी हा मरै, घर खेत जायदाद, सबो हर बिक जाय।
दाहिज हा होथे काय, कइसे ये सकलाय, अपन ऊपर आथे, तभे लोग जान पाय।
जमाना बदल गे हे, चाँद मा भी चल दे हे, तभो ये कुरीति लोग, बदल नही हे पाय(काबर हे अपनाय)।।
सरसी छन्द
।।दहेज दानव।।
अब दहेज ला लेना देना, हावय बड़ अपराध।
तभो लोग मन प्रथा आड़ मा, करथे काबर साध।।
पढ़ लिख होगे आज जागरुक, लालच तभो समाय।
फोकट के धन नइ पूरय जी, लोग समझ नइ पाय।।
बर बिहाव मा पहिली देवय, खुश होके उपहार।
मात पिता हर पचहर रूपी, टीकँय मया दुलार।।
आज लालची होगे कतको, समझत हे अधिकार।
बेटी संग दहेज माँग के, करथे अत्याचार।।
बात-बात मा मारय ताना, बहू पराई जान।
बहू कलेचुप सहे यातना, रखै बाप के मान।।
करै कमाई जिनगी भर जी, दे बर बाप दहेज।
थोर कमी ससुराल बहू ला, देवय मइके भेज।।
दानव आज दहेज बने हे, तोड़य घर परिवार।
कतको के ये छीनै जिनगी, लूटै घर संसार।।
कतको बेटी जबरन उल्टा, देवत हे लड़वाय।
ले दहेज कानून सहारा, झूठा केस फँसाय।।
हे दहेज वो कैंसर जेकर, नइहे कुछ उपचार।
सब समाज ला करना पड़ही, येकर अब संहार।।
- गुमान प्रसाद साहू
- समोदा (महानदी)
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+ : *दहेज*
*विधा- कुकुभ छंद*
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हे समाज बर ये दहेज हा, कोढ़ बरोबर दुखदाई।
येकर पीरा ला तइहा ले, भोगत हें बहिनी माई।।
बूड़ जथे जी ददा फिकर मा, देखत बाढ़त बेटी ला।
छिन-छिन मा देखय जा-जा के, पइसा वाला पेटी ला।
जोड़य ओ दिनरात-कमा के, धिरलगहा पाई-पाई।
येकर पीरा ला तइहा ले, भोगत हें बहिनी माई।।
हे दहेज ठाढ़े आगू मा, सुरसा जइसे मुँह फारे।
लालच के राक्षस निर्मोही, स्वाभिमान ला नित मारे।
येकर सेती होगे हावय, बेटी मन के करलाई।
येकर पीरा ला तइहा ले, भोगत हें बहिनी माई।।
हो जाथे कंगाल ददा हा, जस हीरा बेटी देके।
पीर बढ़ावव अउ मत ओकर, धन दहेज रुपया लेके।
सबले बड़े खजाना बेटी, करव ओकरे पहुनाई।
येकर पीरा ला तइहा ले, भोगत हें बहिनी माई।।
*डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"*
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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अमृतदास साहू : विषय - *दहेज*
सार छंद
बाढ़य दानव कस दहेज नित, संग लोभ धर लाथे।
ये दहेज के मारे कतको,बेटी जर मर जाथे।
जनम धरे बेटी हा तब ले,चिंता लगे सतावै।
जिनगी भर गा ये दहेज बर,दाई ददा कमावै ।
सरी कमाई लगा देत हें,तभो कमी पड़ जाथे।
ये दहेज के मारे,कतको बेटी जर मर जाथे।
मनुज रूप मा आज घलो हें,कतको अत्याचारी।
बेबस होके झेलत हावयँ,दुख पीरा बड़ नारी।
नइ चिन्ह्ँय ये बेटी माई,सब ला ग्रास बनाथे।
ये दहेज के मारे कतको ,बेटी जर मर जाथे।
बर बिहाव नइ होवय संगी,अब बिन करजा बोड़ी।
लड़की वाले के पइसा मा, चढ़थे दूल्हा घोड़ी।
बिन दहेज अब समधी मन हा,भाँवर कहाँ पराथे।
ये दहेज के मारे कतको, बेटी जर मर जाथे।
दू ठन कुल के मान रखे बर,सहिथें चुप दुख पीरा।
मर-मर जीथें हमर दुलौरिन,सोना बेटी हीरा।
दू पाटन के बीच भँवर मा,एमन जबर पिसाथे।
ये दहेज के मारे कतको, बेटी जर मर जाथे।
खतम करव अब जड़ ले नइते,होही बड़ करलाई।
होही अइसन क्षति के संगी,हो नि सकय भरपाई।
समे रहत अब जागव नइते,मलत रहि जबो हाँथे।
ये दहेज के मारे कतको, बेटी जर मर जाथे।
अमृत दास साहू
राजनांदगांव
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पद्मा साहू, खैरागढ़ : मुक्तामणि छंद
*दहेज प्रथा के कानून*
लेथें-देथें जेन मन, रुपया पइसा भाई।
दंडनीय अपराध हे, ये दहेज के खाई।।
सात बछर के भीतरी, पति सास लड़े दोनों।
अउ दहेज बर मारथें, पत्नी ला पति कोनों।।
तभे तीन सौ चार बी, लगथे हत्या धारा।
अपराधी मन भोगथें, तब सजा बिकट सारा।।
हे दहेज हा कुप्रथा, सबले बड़े बुराई।
दंडनीय अपराध हे, ये दहेज के खाई।।
जेकर पति परिवार हा, पत्नी ला तड़पाथे।
तीन बछर के कैद वो, रुपया दंड चुकाथे।।
अउ चतु सौ अन्ठानबे, ए धारा लग जाथे।
महिला मन के न्याय बर, तब जज सजा सुनाथे।।
झन दहेज के माँग हो, झन हो पाप कमाई।
दंडनीय अपराध हे, ये दहेज के खाई।।
बेटी करे बिहाव बर, बाप जोड़थे धन ला।
झनी जलाव दहेज मा, बेटी मन के तन ला।।
हरे कलंक समाज बर, ये फाँसी के फंदा।
करके पाप दहेज बर, झन करौ काम गंदा।।
येकर ले नइ होय हे, कखरो कभू भलाई।
दंडनीय अपराध हे, ये दहेज के खाई।।
रचनाकार
डॉ पद्मा साहू *पर्वणी* खैरागढ़
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रविबाला ठाकुर
दोहा
विषय-दहेज
दानव बन दाहेज हा, लिल लिस बेटी देख।
मुड़ धर रोवत बाप हे, कोसत किसमत लेख।।
दान रूप दाहेज हा, होगे अब बैपार।
बलि चढ़त बिटिया ल देख, उजरत घर संसार।।
खतम करव ये रीत सब, रोकव अइसन खेल।
नइ मानय जे बात ला, ओखर कसव नकेल।।
रविबाला ठाकुर
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