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घनाक्षरी छंद
अशिक्षा
अपढ़ गंवार मन,सोचे न कोनो जतन,
पिछवाय सबों काज, घुन कस कीरा हे।
भीतर-भीतर खाय, बुधि ल घलो घुमाय,
अशिक्षा विकास बर
जिनगी के पीरा हे।
शिक्षा लाथें ज्ञान जोत,मान देत नता गोत,
परिवार के अधार,मुंह पान बीरा हे।
परिवार आघु बढ़े, समाज बिकास गढ़े,
पढ़ें लिखे मनखे ह,चमकत हीरा हे।।
अशिक्षा हे अंधियार,रोके सब बढ़वार,
रोग बढ़ महामारी, बड़का अभिशाप।
दुनियादारी ब्यौहार,हवे अशिक्षा विकार,
आघु बढ़ो बंद द्वार, चिंता भूख के ताप।
बाढही समझदारी, शिक्षा बर अधिकारी,
तोल मोल बोल बोले,
नीयत लेथें भांप।
बड़े बड़े काम करें, कखरों ले नहीं डरें,
भेदभाव दूर करें, कठिन रद्दा नाप।।
अशिक्षा ले मति मरे,बैल कस काम करें,
आघु,पाछु सदा घूमें,सोच न विचार हे।
सबों दुख के हे जड़, अशिक्षा ला दूर कर,
होही सब खुशहाल, विकास के द्वार हे।
नर नारी पढ़ गढ़, गुरु के चरण धर,
अंतस हो उजियार, ज्ञान के आधार हे।
अशिक्षा के अंत करौ,जुरमिल काम करों,
शिक्षा मंदिर गढ़व,जिनगी के सार हे।।
डॉ मीता अग्रवाल मधुर
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अमृतदास साहू विषय - अशिक्षा
सार छंद
गुनौ अशिक्षा वश लोगन मा,का का रहिथे खामी।
शिक्षा ले संस्कार झलकथे,होय सोंच दुरगामी।
छाय अशिक्षा के सेती बड़,देखव घोर गरीबी।
नइ चिन्हँय जी पइसा वाले, रिश्तेदार क़रीबी।
उबरन नइ दे येहर संगी,देथे बस नाकामी।
गुणौ अशिक्षा वश लोगन मा,का का रहिथे खामी।
अनपढ़ता मा सही गलत के,निर्णय नइ हो पावै।
पर बुध मा आ जाके कतको,घर बेघर हो जावै।
हँसी उड़ाथे लोगन कतरो, होथे बड़ बदनामी।
गुनौ अशिक्षा वश लोगन मा,का का रहिथे खामी।
रहिथें अनपढ़ मन भी अड़बड़, बड़े बड़े व्यापारी।
तभो राखथें कमिया काबर, उच्च योग्यता धारी।
शिक्षा के दम मा ही बनथें,बड़े बड़े आसामी।
गुनौ अशिक्षा वश लोगन मा,का का रहिथे खामी।
पढ़े लिखे नइ राहय तेला,भोंदू लोग बनाथें।
कतको मन नानुक कारज बर,घेरी घाँव घुमाथे।
बिन शिक्षा जिनगी मा लगथे,आगे कहूँ सुनामी।
गुनौ अशिक्षा वश लोगन मा,का का रहिथे खामी।
बढ़े अशिक्षा ले जग मा जी,घोर अंधविश्वासी।
फँसा डारथें ढोंगी बाबा,बनके ठग सन्यासी।
शिक्षा ही हे जग आधारा,शिक्षा अंतर यामी।
गुनौ अशिक्षा वश लोगन मा,का का रहिथे खामी।
शिक्षा ले संस्कार झलकथे, होय सोंच दुरगामी।
अमृत दास साहू
राजनांदगांव
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अशिक्षा-सार छंद
अनपढ़ रहिबे ता दुख भारी, झेले पड़थे भैया।
इती उती भागे बर लगथे, जैसे कुकुर बिलैया।।
काम करे नइ मति बेरा मा, फुटे घलो नइ बानी।
अपढ़ जान के दुनिया वाले, करथें नित मनमानी।।
देय सहारा कोनों हा नइ, मिलथें टाँग खिंचैया।
अनपढ़ रहिबे ता दुख भारी, झेले पड़थे भैया।।
कोई हा नइ करे पुछारी, मारे रहिरहि ताना।
आज जुटा पाना नोहर हे, दुनों टेम के खाना।।
हाव भाव नइ देखे कोई, सब हें घाव करैया।
अनपढ़ रहिबे ता दुख भारी, झेले पड़थे भैया।।
अलगा देथें अड़हा कहिके,अउ सब जाथें जुरिया।
आये अभिशाप अशिक्षा हा, हले नेव घर कुरिया।।
हक माँगे हकलासी लगथे, डूबे लगथे नैया।
अनपढ़ रहिबे ता दुख भारी, झेले पड़थे भैया।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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प्रदीप छंद- अशिक्षा
जोत जलालव शिक्षा के जी, मन मंदिर के द्वार मा।
धरे अशिक्षा के दुख ला तुम, झन रोवव अँधियार मा।।
शिक्षा शिक्षित करथे सब ला, कहिथे ग्रंथ कुरान हा।
शिक्षा ले ही मिलथे जग मा, आदर अउ सम्मान हा।।
पढ़े-लिखे शिक्षित होये ले, आथे सुख परिवार मा।
जोत जलालव शिक्षा के जी, मन मंदिर के द्वार मा।।
बेटी-बेटा मा शिक्षा बर, झन तो होवय भेद हा।
सार्थक तभे हवय शिक्षा हा, कहिथे गीता वेद हा।
नर- नारी ला शिक्षा पाना, हे मौलिक अधिकार मा।
जोत जलालव शिक्षा के जी, मन मंदिर के द्वार मा।।
शिक्षा के बलबूते गढ़ही, भारत देश विकास ला।
रोजगार के अवसर देही, हरही जग-जन त्रास ला।।
नाम देश के ऊँचा होही, सुन लौ तब संसार मा।
जोत जलालव शिक्षा के जी, मन मंदिर के द्वार मा।।
✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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अशिक्षा के कीरा
( कुकुभ छन्द )
जिनगी के पाती ला खाथे, घुना अशिक्षा के कीरा।
मनखे ला अज्ञान बना के, देथे अब्बड़ ये पीरा।।
श्राप अशिक्षा ला जानव सब, जिनगी के फुलवारी मा।
ये धकेलथे मनखे मन ला, बेगारी अँधियारी मा।।
इही बढ़ाथे झूठ गरीबी, अर्थ विषमता के चीरा।
जिनगी के पाती ला खाथे, घुना अशिक्षा के कीरा।।
बनै अशिक्षा हा समाज बर, ऊँचा-नीचा के खाई।
करिया अक्षर भैंस बरोबर, अनपढ़ बर जी दुखदाई।।
पढ़ौ-लिखौ अउ टोरव संगी, अनपढ़ता के जंजीरा।।
जिनगी के पाती ला खाथे, घुना अशिक्षा के कीरा।।
शिक्षा बिना कहाँ मिटथे जी, जीवन के घुप अँधियारी।
धरव कलम अउ कॉपी पुस्तक, अब करव ज्ञान उजियारी।।
आवव शिक्षा अलख जगावन, मिलही ज्ञान रतन हीरा।
जिनगी के पाती ला तब नइ, खाय अशिक्षा के कीरा।।
रचनाकार
डॉ. पद्मा साहू पर्वणी खैरागढ़
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, ओम प्रकाश अंकुर अशिक्षा
(सरसी छंद)
जिनगी शिक्षा बिना अधूरा, जग लागय अँधियार।
होवत हे अवरुध विकास हा, दिया ज्ञान के बार।।
होय अशिक्षा के सेती जी, तन मन सब बरबाद।
बइगा -गुनिया के बाढ़े के, इही हरे जी खाद।।
पढ़व -बढ़व सुघ्घर जिनगी मा, झन मानव तुम हार।
जिनगी शिक्षा बिना अधूरा, जग लागय अँधियार।
शिक्षित अउ रहव संगठित सब, लिखव बने इतिहास।
लड़व जोंम देके हक खातिर, जिनगी रहय उजास।।
बेटा -बेटी एक बरोबर, मानव येला सार।
जिनगी शिक्षा बिना अधूरा, जग लागय अंँधियार ।।
जिनगी मा झन करव दिखावा, हावस तॅंय जब साँच।
खोल ज्ञान के सब कपाट ला, नइ आवय जी आँच।
सबो समस्या होय अशिक्षा, जुरमिल करव सुधार।
जिनगी शिक्षा बिना अधूरा, जग लागय अंँधियार।
ओमप्रकाश साहू "अंकुर "'
सुरगी, राजनांदगांव।
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, नारायण वर्मा बेमेतरा कुंडलियाँ-शिक्षा
बाढ़य विनय विवेक अउ, विद्या ले संस्कार।
घटय झूठ पाखंड हा, तब शिक्षा हे सार।।
तब शिक्षा हे सार, बाढ़गे पर अभिमानी।
लम्पट लोभी चोर, घूमथें बनके ज्ञानी।।
उड़थें देख अगास, पाँव भुइँया नइ माढ़य।
काय काम के ज्ञान, घोर घमंड जब बाढ़य।।
डिगरी बाढ़त खूब हे,घटत फेर संस्कार।
खुले स्कूल कालेज बड़, तब ले हन लाचार।।
तब ले हन लाचार, नीति मैकाले पढ़के।
अहंकार घनघोर, बोलथे मुड़ मा चढ़के।।
चलथे झूठ फरेब, यार बनगे ये जिगरी।
खिरत आत्म विश्वास, काम कब आही डिगरी।।
शिक्षा ले बाढ़े बने, सुख सुविधा भरमार।
फेर बनादिस आलसी, लागत जग अँधियार।।
लागत जग अँधियार, कोढ़िहा मनखे होगे।
साधन बनगे श्राप, पाप ला दुनिया भोगे।।
होथे करम महान, जिंदगी बने परीक्षा।
करमवीर गढ़ देत, उही हर असली शिक्षा।।
नारायण प्रसाद वर्मा चंदन
ढाबा-भिंभौरी, बेमेतरा
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शिक्षा के अलख रोला छंद
बीनय कूड़ा ढेर, वहू ला देवव शिक्षा।
उज्ज्वल होय भविष्य, कभू झन माॅंगय भिक्षा।।
बइठे रहिथे राह, कटोरा धरे निहारै।
कभू भूख कलपाय, नयन हा ऑंसू ढारै।।
हावय उन मजबूर, अशिक्षा मा दुख पाथें ।
हाय गरीबी झेल, रात दिन ठोकर खाथें।।
खुलगे हावय स्कूल, मुफ्त बढ़िया सरकारी।
पुस्तक कॉपी पेन, रोज जाही धर थारी।।
देवव थोरिक ध्यान, मदद बर हाथ लमावव ।
बनौ प्रेरणा दूत, जनम भर पुण्य कमावव।।
कर दौ दाखिल आज, ज्ञान ले नाम कमाहीं।।
मिलही बढ़िया काम, खुशी जिनगी भर पाहीं।।
सुनव प्रियू के बात, सबो शिक्षित जब होहीं।
लाहीं नवा बिहान, सुमत के बीजा बोहीं।।
मानवता के पाठ, समझहीं जब नर नारी।
अइसन दीन गरीब, तभे बनहीं संस्कारी।।
प्रिया देवांगन प्रियू
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अशिक्षा "" आल्हा छंद
नोनी बाबू बने पढ़व जी, शिक्षा हावय बहुत महान ।
दूर अशिक्षा करके बढ़िया, बन जव ज्ञानी संत सुजान ।।
ॲंधियारी ला दूर भगावव, करलव जिनगी मा उजियार ।
शिक्षा पाना ऐ जिनगी मा, हावय हम सबके अधिकार ।।
शिक्षा ले संस्कार मिलय जी, अउ मिलथे जग ला आधार ।
शिक्षा ले सत् बुद्धि बढ़य जी, उन्नत होवय सब बैपार ।।
रद्दा सुघर बना जिनगी के, होही जग मा अड़बड़ मान ।
दूर अशिक्षा करके बढ़िया, बन जव ज्ञानी संत सुजान ।।
हरे अशिक्षा बड़ बीमारी, झटकन करलव ऐला दूर ।
किस्मत के तारा चमकावव, खिल जाहि चेहरा के नूर ।।
बेरा रहिते चेत लगा ले, ,नइते हो जाबे मजबूर ।
बिन शिक्षा के जिनगी के सब, हो जाथे सपना हर चूर ।।
गाॅंठ बाॅंध के रख लव संगी, दुनो खोल के अपनें कान ।
दूर अशिक्षा करके बढ़िया, बन जव ज्ञानी संत सुजान।।
संजय देवांगन सिमगा
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कुण्डलिया छंद - अशिक्षा
शिक्षा ले संस्कार सजे, हवय अशिक्षा रोग ।
रहव आज शिक्षित सबो, तज के सारे भोग ।।
तज के सारे भोग, बने तय रहिले भाई।
सुग्घर संत समाज, कहे तोला अउ दाई ।।
बात बाप के मान, समय हा लेय परीक्षा।
आही जग मा काम, जरूरी हे बड़ शिक्षा।।
संजय देवांगन सिमगा
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मुकेश आल्हा छंद-- अशिक्षा
हवै अशिक्षा हा जिनगी बर, देखव बड़का ये अभिशाप।
बिपत आय मा लोगन मन ला, करना पड़थे पश्चाताप।।
सहीं गलत मा अंतर काहे, शिक्षा बिना समझ नइ पाँय।
रोजगार बर भटकँय मनखे, दर दर के गा ठोकर खाँय।।
अनपढ़ मन के ऊपर होवत, अब्बड़ शोषण अत्याचार।
जोत जलाके सत शिक्षा के, जिनगी सबके करव सुधार।।
हवय जरूरी शिक्षा सब बर, समय रहत ले लेलव ज्ञान।
शिक्षित होके बन जावव गा, ज्ञानी ध्यानी संत सुजान।।
मिटे अशिक्षा अँधियारी हा, लइका मन ला बने पढ़ाव।
नेता डॉक्टर फौजी बनहीं, घर-घर शिक्षा अलख जगाव।।
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कुंडलिया छंद-- अशिक्षा
बाढ़े हे अपराध हा, दुनियाभर मा आज।
शिक्षा बिन देखव कहाँ, बनही सभ्य समाज।।
बनही सभ्य समाज, लोग लइका जब पढ़हीं।
मिटा अशिक्षा रोग, अपन जिनगी ला गढ़हीं।।
बुद्धि करै नइ काम, बिपत हा आघू ठाढ़े।
रोवत बड़ पछताँय, समस्या जब-जब बाढ़े।।
मुकेश उइके "मयारू"
ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)
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,विष्णुपद छन्द गीत- अशिक्षा
रूढ़िवादिता लाय अशिक्षा, दूर भगावव जी ।
पढ़े-लिखे बर जग के मनखे, आगू आवव जी ।।
पढ़-लिख के कतको झन डॉक्टर, अउ मास्टर बनथें ।
जज साहब अधिकारी कतको, सीना हा तनथे ।।
मातु-पिता के सुग्घर सपना, मंजिल पावव जी ।
पढ़े-लिखे बर जग के मनखे, आगू आवव जी ।।
बिन शिक्षा के ये जिनगी हा, नरक बरोबर हे ।
सोंच समझ मन मा नइ राहय, कोन डहर घर हे ।।
ॲंधियारी भटकाथे निसदिन, जोत जलावव जी ।
पढ़े-लिखे बर जग के मनखे, आगू आवव जी ।।
वैज्ञानिक जुग आगे हावय, देखव ये जग मा ।
घर ऑंगन मा सुख अउ सुविधा, हे उमंग रग मा ।।
जुरमिल के भावी पीढ़ी बर, राह बनावव जी ।
पढ़े-लिखे बर जग के मनखे, आगू आवव जी ।।
छन्दकार व गीतकार
ओम प्रकाश पात्रे 'ओम'
ग्राम- बोरिया, जिला- बेमेतरा (छत्तीसगढ़)
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चौपई (जयकारी) छन्द - अशिक्षा (१८०८२०२५)
बिन शिक्षा जिनगी बेकार ।
नइया कइसे होही पार ।।
बात बतावत हावॅंव सार ।
मन मा लेवव सोंच विचार ।।
कतको राहॅंय गा धनवान ।
नइ मिल पावॅंय इज्जत मान ।।
खो जाथे खुद के पहिचान ।
जानव समझव चतुर सुजान ।।
आमदनी घर के घट जाय ।
खाना बर लइका लुलवाय ।।
दुख भारी हो जाथे हाय ।
कोन इहाॅं जग ला समझाय ।।
ये जग हा लागय ॲंधियार ।
सिर मा भारी भरकम भार ।।
जीत कहाॅं हो जाथे हार ।
ऑंखी ले ऑंसू के धार ।।
पढ़े-लिखे मा मिलथे काम ।
काम तहाॅं मनचाहा दाम ।।
छइहाॅं मा नइ लागय घाम ।
खूब मिलय तन ला आराम ।।
शिक्षा बर सब देवव जोर ।
जादा नइ तो कमती थोर ।।
ये जिनगी मा लाही भोर ।
गाॅंव-गाॅंव मा उड़ही शोर ।।
छन्दकार
ओम प्रकाश पात्रे 'ओम '
ग्राम - बोरिया, जिला - बेमेतरा (छत्तीसगढ़)
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, विजेन्द्र अशिक्षा- कुण्डलिया
शिक्षा के बढ़वार ले, जग मा होय उजासI
मनखे मन संबल बनैं, होय गरीबी नासI
होय गरीबी नास, जभे मनखे मन पढ़थेंI
हरे प्रगति के मूल, सदा शिक्षित मन बढ़थेंI
हवय अशिक्षित जेन, माँगथें उन हर भिक्षाI
बचना हे ते आज, सुघर सब लेवव शिक्षाII
विजेन्द्र कुमार वर्मा
नगरगाँव धरसीवांँ
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कमलेश प्रसाद शरमाबाबू कुंडलियाँ-छंद
अशिक्षा
शिक्षा बिना समाज हा, हो जाथे जी सून।
जइसे मनखे देह मा, चार ग्राम हो खून।।
चार ग्राम हो खून, कहाँ ले वो फुन्नाही।
बनके जिंदा लाश, एक दिन वो मर जाही।।
अनपढ़ रहे गुलाम, कोन गुरु देवय दीक्षा।
पढ़हीं बढ़ही देश, बगरही घर-घर शिक्षा।।।।
अप्पड़ बर फेंके रथें, चतुरा मन हा जाल।
आँख मूँद वो फँस जथे, नइ जानय कुछु चाल।।
नइ जानय कुछु चाल, पढ़े मन सब कुछ लूटँय।
उल्टा अउर फँसाय, दास रख कसके कूटँय।।
अनपढ़ जान गुलाम, सबो बरसावँय थप्पड़।
चतुरा चोखा माल, रसा मा खुश हे अप्पड़।।।।
लूटथे जी अनपढ़ इहाँ, चतुरा मन भोगाँय।
बाबू भइया ताकथें, जल्दी अनपढ़ आँय।
जल्दी अनपढ़ आँय, तहाँ लें सौदा करहीं।
चाय-वाय बर माँग, नँगत के दोंदर भरहीं।।
पा मजदूर किसान, देख लड्डू मन फूटथे।
सौ के जघा हजार, माँग के साहब लूटथे।।।।
कमलेश प्रसाद शर्माबाबू
कटंगी-गंडई
जिला केसीजी छत्तीसगढ़
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, कमलेश प्रसाद शरमाबाबू विषय - अशिक्षा
हरिगीतिका -छंद
(तर्ज- श्रीराम चंद्र कृपालु)
शिक्षा बिना अँधियार हे,तब सभ्यता मिलही कहाँ ।
जइसे बिना पानी कमल, तालाब मा खिलही कहाँ।
भाषा कराथे ज्ञान सब,अउ ये बताथे राह ला।
ज्ञानी कहाथें मान पाथें,पा जथें हर थाह ला।।
हावै अशिक्षा जब तलक, पशु जान जिनगी तोर जी।
खाये पिये के ढंग ना,बनथें उचक्का चोर जी।।
वो सोंच ले खाली रिथे, खाली रिथे दीमाग हा।
जइसे हवै सुघ्घर सजे, बिन फूल कोनो बाग हा।।
शिक्षा बिना मनखे इहाँ, पिछड़े हवै हर दौर मा।
करिया हवै जिनगी सबो, घुट-घुट मरै हर ठौर मा।
लुटलिन महाजन कोचिया, हर काम मा ठग जाँय जी।
"बाबू" कहाँ रस्ता मिलै, मंजिल कहूँ नइ पाँय जी।।
कमलेश प्रसाद शर्मा"बाबू"
कटंगी-गंडई
जिला केसीजी
छत्तीसगढ़
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पंचचामर छन्द
पढ़े चलौ बढ़े चलौ सुधार दौ समाज ला।
गली गली उतार दौ इहाँ नवा सुराज ला।।
सबो डहर बिखेर तेन ज्ञान के उजास ला।
उठौ चलौ गढ़े चलौ समाज के विकास ला।।
अपढ़ बहुत पड़े हवैं दशा इही समाज के।
न चेत हे न ध्यान हे न ज्ञान राज काज के।
धरौ कलम किताब आज राज ला सँवार दौ।।
चलौ उठौ पढौ लिखौ ग देश ला सुधार दौ।।
डी.पी.लहरे'मौज'
कवर्धा छत्तीसगढ़
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, डी पी लहरे सार छन्द गीत
पढ़ा-लिखा नोनी बाबू ला, भेज स्कूल सँगवारी।
हवय अशिक्षा के सेती गा, जिनगी मा अँधियारी।
नरक बरोबर होथे संगी, बिन शिक्षा जिनगानी।
अनपढ़ कहलाथे मनखे हा, रहि जाथे अज्ञानी।।
लइका मन पढ़हीं तब बनहीं, नेता अउ अधिकारी।
पढ़ा-लिखा नोनी बाबू ला, भेज स्कूल सँगवारी।
ढ़ोंग रूढ़ि पाखंड बढ़ाथे, इही अशिक्षा भाई।
जान अशिक्षा के सेती गा, होथे बड़ करलाई।।
शिक्षा से आ पाही भैया, जिनगी मा उजियारी।
पढ़ा-लिखा नोनी बाबू ला, भेज स्कूल सँगवारी।।
सोचे समझे के क्षमता हा, शिक्षा ले ही बढ़थे।
ज्ञानवान बनके मनखे हा, सरग निशैनी चढ़थे।।
शिक्षा जिनगी पार लगाथे, शिक्षा तारनहारी।
पढ़ा-लिखा नोनी बाबू ला, भेज स्कूल सँगवारी।।
डी.पी.लहरे'मौज'
कवर्धा छत्तीसगढ़
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, डी पी लहरे सरसी गीत
वर्तमान मा शिक्षा हावय, जिनगी के आधार।
बिन शिक्षा के मनखे भैया, रोवय आँसू ढ़ार।।
देश खोखला करे अशिक्षा, ये बड़का अभिशाप।
शासन सत्ता बइठे-बइठे, देखय बस चुपचाप।।
अनपढ़ ऊपर जादा होवय, शोषण-अत्याचार।
वर्तमान मा शिक्षा हावय, जिनगी के आधार।।
पढ़ना-लिखना बहुत जरूरी, सोंचव अपने आप।
नइ ते पाछू चलके होही, अब्बड़ पश्चाताप।
शिक्षा ही डोंगा जिनगी के, शिक्षा ही पतवार।
वर्तमान मा शिक्षा हावय, जिनगी के आधार।।
डी.पी.लहरे'मौज'
कवर्धा छत्तीसगढ़
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विषय - अशिक्षा
छंद - हरिगीतिका
शिक्षा अशिक्षा दू बहिन, हें पंख अउ बिन पंख के।
का ठौर घोंघी ला मिले,सम्मान का हे शंख के।।
बस तन दिखे मनखे सहीं, जिनगी जनावर भैंस कस।
मन बुद्धि खूँटा मा बँधे ,कोंदी अशिक्षा खाय बस।।
सुनलव अशिक्षा मेर ना तो तर्क हे ना शक्ति हे।
भेड़ी सरीखे चाल हे, अज्ञानता के भक्ति हे।
रद्दा दिखे हे बस गुलामी गोड़ काँटा मा धँसे।
फेंकत मछंदर जाल तब , ये मूढ़ मछरी कस फँसे।।
आशा देशमुख
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, Dropdi साहू Sahu शक्ति छंद -"अशिक्षा"
अशिक्षा भरे गा जिहाँ हे रथे।
उहाँ बिन सुवादी रहे मन मथे।।
अशिक्षा अनाड़ी बढ़ावा करे।
बिना बात जाने हवाई डरे।।
ठगा जाय अप्पढ़ गुलामी करे।
पढ़े तेन ला जी सलामी भरे।।
पढ़े आदमी नाम रोशन करे।
कमाई करे नीति रद्दा धरे।।
अशिक्षा समाए जिहाँ गा हवै।
उहाँ माथ ज्ञानी कहाँ ले नवै।।
जगावव जगत ज्ञान के जोत ले।
भगावव अशिक्षा बिदा होत ले।
समाही सबो के हृदय ज्ञान हा।
नहाही नवा सोच ले ध्यान हा।।
तरक्की तभे देश मा हो जही।
अशिक्षा मिटाए चलौ जी सही।।
द्रोपती साहू "सरसिज"
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, नंदकिशोर साव साव सरसी छंद - अशिक्षा
पढ़ लिख साक्षर बनव सबो जी, अनपढ़ झनी कहाव ।
शिक्षा के महत्व ला समझव, जग में नाँव कमाव ।।
जौन पढ़े नइ वोला कहिथे, अनपढ़ बोदा जान।
घर समाज मा अपजस मिलथे, घटथे ओखर मान।।
पढ़ना लिखना हर मानुस के, राहय नेक सुभाव।
शिक्षा के महत्व ला समझव, जग में नाँव कमाव।।
ननपन ले बेटी बेटा ला, शिक्षा के दे ज्ञान।
करिया अक्षर भैंस बराबर, दे वोला पहिचान।।
स्कूल जाय बर उदिम करव जी, लइका जागे भाव।
शिक्षा के महत्व ला समझव, जग में नाँव कमाव।।
होथे अंगूठा छाप जौन, जन उपहास उड़ाय।
पइसा कौड़ी हिसाब जोखा, पक्का धोखा खाय।।
पढ़ई के बिन बिरथा मनखे, कइसे होय हियाव।
शिक्षा के महत्व ला समझव, जग में नाँव कमाव।।
पढ़े लिखे मनखे समाज में, अलगे पाथें मान।
डॉक्टर मास्टर इंजिनियर अउ, बाबू बनथे जान।।
टारव अभिशाप अशिक्षा के , विद्या अलख जगाव।
शिक्षा के महत्व ला समझव, जग में नाँव कमाव।।
नंदकिशोर साव "नीरव"
राजनांदगाँव (छ. ग.)
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अश्वनी कोसरे चौपाई छंद - अशिक्षा
शिक्षा ले बैपार खनकथे|जिनगी बर व्यवहार पनपथे|
शिक्षा रोजी रोटी देथे|भूँख गरीबी ला हर लेथे||
डहर बने शिक्षा ले मिलथे|कोंवर पाना सुख के खिलथे|
काबर रोकत हें शिक्षा ला|पढ़े लिखे के मन इच्छा ला||
शिक्षा लेलन सद ज्ञानी ले|दीक्षा लेवन गुरुवाणी ले|
मोल कहाँ बिन शिक्षा पाबे|हीरा जोनी ला बिसराबे||
शिक्षा हर तकनीक बढ़ाथे|कठिन डहर ला सरल बनाथे|
पढ़ लिख के विद्वान कहाथें|अइसन मान अपढ़ का पाथें||
इही अशिक्षा बड़ लड़वाथे|मंदिर मठ दीवार ढहाथे|
शिक्षित होतिन काबर लड़तिन|मस्जिद गिरजाघर का अड़तिन||
अश्वनी कोसरे 'रहँगिया' कवर्धा कबीरधाम (छ. ग.)
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, नारायण वर्मा बेमेतरा सरसी छंद-हरै अशिक्षा रोग
ज्ञान आय मनखे के गहना, कहिथें पोठ सियान।
शिक्षा अउ संस्कार बनाथे, एक अलग पहिचान।।
सबो जीव मा चेतन हम ला, गढ़े प्रकृति भगवान।
हाड़-माँस के पुतरा बनथे, पा के चतुर सुजान।।
कहे ज्ञान बिन होथे मानव, भटके देव समान।
ज्ञान आय मनखे के गहना, कहिथें पोठ सियान।।
काय उचित का अनुचित कतका, कर पाथन निरवार।
कदम-कदम मा बिपत सताथे, देथे पल मा टार।।
राह दिखय ना कोनो लगथे, चारो खुँट अँधियार।
हर मुश्किल आसान बनाथे, तब बनके हथियार।।
सरी समस्या के जड़ जानव, शिक्षा एक निदान।।
सदाचार संयम मर्यादा,सब शिक्षा के अंग।
बइला बोदा बनव कभू झन, पढ़व करव सत्संग।।
अंगूठा छाप कहे जग हा, मन ले होय अपंग।
पढ़े लिखे ले बदले जिनगी, अउ जीये के ढंग।।
लोहा हर सोना बन जाथे, पारस पथरा जान।
ज्ञान आय मनखे के गहना, कहिथें पोठ सियान।।
यज्ञ दान बिन सगा मान बिन, हरियाली बिन बाग।
तइसे शिक्षा बिन जिनगानी, जस चंदा मा दाग।।
घोर निराशा मा जलथे मन, बनके आस चिराग।
कारी अक्षर हा कर देथे, उज्जर सबके भाग।।
अपन लोक परलोक सुधारव, करव आत्म कल्यान।
ज्ञान आय मनखे के गहना, कहिथें पोठ सियान।।
मनुज योनि उत्तम हे सबले, लख चौरासी पाय।
विद्या विनय विवेक जगाथे, जिनगी सुखद बनाय।।
फेर आजकल देख इहू हर, बनगे बस व्यवसाय।
केवल पेट भरे के होगे, शिक्षा हर पर्याय।।
अधजल गगरी छलके जादा, होवत मरे बिहान।
ज्ञान आय मनखे के गहना, कहिथें पोठ सियान।।
शिक्षा अउ संस्कार बनाथे, एक अलग पहिचान।।
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नारायण प्रसाद वर्मा चंदन
ढ़ाबा-भिंभौरी, बेमेतरा छ.ग.
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कुंडलियाँ-शिक्षा
बाढ़य विनय विवेक अउ, विद्या ले संस्कार।
घटय झूठ पाखंड हा, तब शिक्षा हे सार।।
तब शिक्षा हे सार, बाढ़गे पर अभिमानी।
लम्पट लोभी चोर, घूमथें बनके ज्ञानी।।
उड़थें देख अगास, पाँव भुइँया नइ माढ़य।
काय काम के ज्ञान, घोर घमंड जब बाढ़य।।
डिगरी बाढ़त खूब हे,घटत फेर संस्कार।
खुले स्कूल कालेज बड़, तब ले हन लाचार।।
तब ले हन लाचार, नीति मैकाले पढ़के।
अहंकार घनघोर, बोलथे मुड़ मा चढ़के।।
चलथे झूठ फरेब, यार बनगे ये जिगरी।
खिरत आत्म विश्वास, काम कब आही डिगरी।।
शिक्षा ले बाढ़े बने, सुख सुविधा भरमार।
फेर बनादिस आलसी, लागत जग अँधियार।।
लागत जग अँधियार, कोढ़िहा मनखे होगे।
साधन बनगे श्राप, पाप ला दुनिया भोगे।।
होथे करम महान, जिंदगी बने परीक्षा।
करमवीर गढ़ देत, उही हर असली शिक्षा।।
नारायण प्रसाद वर्मा चंदन
ढाबा-भिंभौरी, बेमेतरा
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अशिक्षा
चौपईजयकारीजयकरी - पदांत
हवै अशिक्षा हा अभिशाप।
एकर जइसे नइ हे पाप॥
होथे अँड़हा बड़ परशान
सपना शिक्षा बिन शमशान॥
शिक्षित अँड़हा मा हे भेद।
नइ पढ़ पावय करथे खेद॥
पढ़े लिखे सुख के फल पाय ।
अँड़हा तो दुख रौरव पाय॥
लाय अशिक्षा हा हिनमान।
शिक्षा बिन सब बैल समान ॥
जानव कुछ तो होथे खास।
शिक्षा ले जगथे जी आस॥
खावव रोटी कम मन मार।
दव लइका ला शिक्षा सार॥
अब तो लेवव अतका जान।
होथे शिक्षा ले पहिचान॥
दीया शिक्षा के दव बार ।
आही सुख हा तब तो द्वार॥
पढ़े लिखे हा पूजे जाय।
नइ तो जुगेश भटका खाय।
जय गंगान
जुगेश कुमार बंजारे
नवागाँव कला छिरहा बेमेतरा
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, संगीता वर्मा, भिलाई अशिक्षा-कुंडलिया
ज्ञानी ध्यानी मन कहँय, शिक्षा बिन अँधियारI
अनपढ़ रहई आज तो, जिनगी बर बेकारI
जिनगी बर बेकार, दुःख पाथें बड़ भारीI
शिक्षा ले सम्मान, होय किस्मत उजियारीI
शिक्षा ला हथियार, बना के गढ़व कहानीI
पढ़के बनव सुजान, इहाँ सब मनखे ज्ञानीII
संगीता वर्मा
भिलाई
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गुमान साहू सरसी छन्द
।।अशिक्षा के मार।।
हवै अशिक्षा आज बुराई, जानव सकल समाज।
लइका मन ला अपन पढ़ावव, हरय जरूरी काज।।
अँधियारी घर लाय अशिक्षा, बदहाली बड़ छाय।
पशु जस मनखे के जिनगी हा, येकर ले हो जाय।।
तोड़ अशिक्षा के बेड़ी ला, लेवव जिनगी साज।
लइका मन ला अपन पढ़ावव, हरय जरूरी काज।।
मान घटै अउ बढ़य गरीबी, बढ़ जावय परिवार।
भला बुरा नइ जानय मनखे, सहै अशिक्षा मार।।
जिनगी करथे नरक अशिक्षा, सबो विचारव आज।
लइका मन ला अपन पढ़ावव, हरय जरूरी काज।।
- गुमान प्रसाद साहू
- समोदा (महानदी)
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अशिक्षा (आल्हा छंद-
पढ़व लिखव नोनी बाबू मन,शिक्षा मा ही देवव ध्यान।
दूर गरीबी हा टर जाही,बने सहीं जब मिलही ज्ञान।।
सुग्घर बंगला गाडी रइही,सब्जी भाजी खाहव भात।
नइ पावव एको दाना दुख, दिन हो चाहे कोनो रात।।
गोठ गोठियाहव अंग्रेजी,जाके सात समुंदर पार।
बड़े नौकरी के पद पाहू, नइ लागय जिनगी हा भार।।
डॉक्टर इंजीनियर पढ़ाई,अफसर बनके करिहव काम।
बड़े शहर मा सेवा करके,खूब कमाहू जग मा नाम।।
टार अशिक्षा जल्दी भाई, झन पाना जी तैंहर दण्ड।
शिक्षा ले उजियारी आही, नइ ठहरय घर मा पाखण्ड।।
पढ़व लिखव नोनी बाबू मन,शिक्षा मा ही देवव ध्यान।
दूर गरीबी हा टर जाही,बने सहीं जब मिलही ज्ञान।।
राजकिशोर धिरही
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अशिक्षा के अँधियार
विधा- गीतिका छंद
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ज्ञान के उजियार करके तारबो संसार ला।
दूरिहा करबो अशिक्षा के सबो अँधियार ला।।
आदमी बर ये अशिक्षा हा हवय बड़ श्राप जी।
नाश करथे बुध इही हा अउ कराथे पाप जी।
आज येकर ले बचाबो हम अपन परिवार ला।
दूरिहा करबो अशिक्षा के सबो अँधियार ला।।
ज्ञान बिन हे सून जिनगी सच इही हे मान लव।
पार नइया नइ लगय शिक्षा बिना ये जान लव।
नइ भुला मनखे सकय शुभ ज्ञान के उपकार ला।
दूरिहा करबो अशिक्षा के सबो अँधियार ला।।
काम हे बड़ पुन्य के ये बाँटना सद्ज्ञान जी।
पाय के शिक्षा अमोलक खूब मिलथे मान जी।
टोरबो अज्ञानता के जंग लगहा तार ला।।
दूरिहा करबो अशिक्षा के सबो अँधियार ला।।
हो जही उजियार अंतस जोत बरही ज्ञान के।
बुद्धि के खुलही दुवारी झूठ सच पहिचान के।
गुरु शरण मा जाय सुनबो ज्ञान के उद्गार ला।
दूरिहा करबो अशिक्षा के सबो अँधियार ला।।
डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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, + अशिक्षा होथे दुखदाई
विधा- मुक्तामणि छंद गीत
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बीमारी अज्ञानता, होथे बड़ दुखदाई।।
अंत अशिक्षा के करव, जुरमिल के अब भाई।।
संग अशिक्षा हा अपन, लाथे अलहन भारी।
येकर चंगुल मा फँसे, पाथें दुख नर-नारी।
पढ़े-लिखे बिन हो जथे, जिनगी मा हलकानी।
जाग जवव बेरा रहत, पढ़के बनव सुजानी।
पढ़ सियान लइका जवव, बहिनी दाई-माई।
अंत अशिक्षा के करव, जुरमिल के अब भाई।।
शिक्षा के हथियार ले, सब बिपदा कट जाथे।
बुध के आँखी खोल ये, सही गलत समझाथे।
पढ़-लिख के मूरख घलो, बनथे ज्ञानी-ध्यानी।
भरे हवय इतिहास मा, येकर अमर कहानी।
उत्तम शिक्षा लानथे, जिनगी मा सुघराई।
अंत अशिक्षा के करव, जुरमिल के अब भाई।।
मनखे सज्जन बन जथे, उत्तम शिक्षा पाके।
सुधर जथे जिनगी घलो, गुरू शरन मा आके।
चारो मुड़ा बिकास के, होथे शुभ उजियारी।
सुख के ऊ जाथे सुरुज, भागे रतिहा कारी।
शिक्षा के मंदिर गढ़व, पाट अशिक्षा खाई।
अंत अशिक्षा के करव, जुरमिल के अब भाई।।
डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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दोहा
विषय,,,,,अशिक्षा
ज्ञान बिना सब सून हे, होय तिहाँ बरबाद।
जागव मनखे आज ही, आलस मन झन लाद।।
शिक्षा हर हथियार हे, बनै सबों के काम।
मेंटय सब अँधियार ला, चमक जथे तव नाम।।
अनपढ़ रहिबे झन तहीं,शिक्षा बिन बेकार।
ठग बैठे सब्बो ठउर, करत हवय व्यापार।।
अबड़ अशिक्षा हे भरे,मन भीतर भंडार।
शरणागत गुरु के रहौं,पावव ज्ञान अपार।।
धनेश्वरी सोनी 'गुल'
बिलासपुर
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ज्ञानू कवि विषय - अशिक्षा
छंद - विष्णुपद
शिक्षा बिन जिनगी मा सिरतों, भारी ताप हवै|
आज अशिक्षा हा मनखे बर, बड़ अभिशाप हवै||
शिक्षा बिन दुनिया मा कइसे, बगरै ज्ञान बता|
अउ शिक्षा बिन तोर मनुज रे, का पहिचान बता||
काबर कइसे हे शिक्षा ले, कतको वंचित जी|
कोन चाहथे रहना संगी, इहाँ अशिक्षित जी||
फइलत नार अशिक्षा के हे, पुदकव टोरव गा|
बँधे अशिक्षा के बँधना ला, मिलके छोड़व गा||
आज अशिक्षा के सेती हक, दूसर छीनत हे|
हमर खेत के घलो फ़सल ला, कतको बीनत हे||
मोला लगथे फेर गरीबी, बड़का कारण हे|
मौनी बाबा बने प्रशासन, दुच्छा भाषण हे||
बड़े- बड़े वादा जुमला के, बस भरमार हवै|
पद पइसा वाले बर शिक्षा, आज व्यपार हवै||
घेरे वोला रोग अशिक्षा, जेन गरीब हवै|
काखर कइसन कोन जानथे, फेर नसीब हवै||
ज्ञानु
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रोला छंद
हवै अशिक्षा रात, अमावश अस बड़ करिया।
जस पानी बिन ताल, नदी अउ सुक्खा तरिया।।
शिक्षा बिन ॲंधियार, दिखे सम खचवा खाई।
बिन शिक्षा का मोल, हवै जिनगी बिन पाई।।
हवै अशिक्षा साॅंप, जहर बिक्खर जे बोथे।
बिन शिक्षा के लोग, अपन जिनगी ला खोथे।।
शिक्षा हे तलवार, अशिक्षा काटे हर बर।
पढ़ लिख बन बुधमान,जोर धन अपने घर बर।।
हवै अशिक्षा तोप, उगलथे धधकत गोला।
लगथे मन मा दाग, अशिक्षा मारे चोला।।
शिक्षा मोती खोज, ज्ञान सागर मा जाके।
बन जाबे धनवान,ज्ञान मोती ला पाके।।
कहे ठेठ कविराय, अशिक्षा जग ॲंधियारी।
शिक्षा दीप जलाव, अपन अंतस मन बारी।।
पावव शिक्षा नेक, नाम मिलही सुन संगी।
पाके शिक्षा राज, करव नइ होवय तंगी।।
पुरुषोत्तम ठेठवार
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, डी पी लहरे दोहा गीत..अशिक्षा
समझ अशिक्षा ले सखा, जिनगी हे बेकार।
पढ़े नहीं जे आदमी, तेखर जग अँधियार।।
होय अशिक्षा ले कहाँ, असल-नकल पहिचान।
बिन शिक्षा के आदमी, होथे बड़ परशान।
संविधान ले हे मिले, शिक्षा के अधिकार।
समझ अशिक्षा ले सखा, जिनगी हे बेकार।।
सोच अशिक्षा ले कभू, मिले नहीं सम्मान।
शिक्षा ले तँय हो जबे, ज्ञानवान गुणवान।।
शिक्षा मा संस्कार हे, शिक्षा मा उद्धार।
समझ अशिक्षा ले सखा, जिनगी हे बेकार।।
हवय अशिक्षित जेन हा, अब्बड़ के पछताय।
एक्को अक्षर ला कभू, वो तो नइ पढ़ पाय।
बिन शिक्षा के आदमी, अनपढ़ बंठाधार।
समझ अशिक्षा ले सखा, जिनगी हे बेकार।।
डी.पी.लहरे'मौज'
कवर्धा छत्तीसगढ़
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रोला छंद---अशिक्षा
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जब तक हे अज्ञान,अशिक्षा जिनगानी मा।
पेरावय इंसान,मुसीबत के घानी मा।।
बने मिलय नइ बाट,कभू आघू जाये बर।
बिन शिक्षा बेकार,अकारथ होय उदिम हर।।
अंतस ला उजियार ,करय शिक्षा हा सरलग।
दियना असन अँजोर, करय जिनगी मा पग-पग।।
बाढ़य ज्ञान-विवेक, करे मा बने पढ़ाई।
सुलझयँ सबो सवाल, कटयँ दुख अउ करलाई।।
शिक्षा ले संस्कार,घलो मनखे मा आवय।
समझ होय मजबूत ,बने-गिनहा ल जनावय।।
शिक्षा हा हथियार, सहीं काटय हर मुश्किल।
शिक्षा के जलधार ,परे मन-सुमन जाय खिल।।
दीपक निषाद--लाटा (बेमेतरा)
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, नीलम जायसवाल छन्न पकैया छंद
- अशिक्षा -
छन्न पकैया-छन्न पकैया, जहर हवै ग अशिक्षा।
जिनगी कूड़ेदान बरोबर, माँगे मिलै न भिक्षा।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, अशिक्षित ह घबराए।
कई किसिम के डर ल दिखा के, चतुरा मन ठग जाए।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, बुद्धि घलौ नइ बाढ़ै।
हर क्षण हा मुश्किल मा पाहै, विकट समस्या ठाढ़ै।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, संकट रोटी रोजी।
कइसे घर खर्चा ल चलावौं, कामा पेट व बोजी।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, रोग अशिक्षा होथे।
अनपढ़ मनखे अपन राह मा, अपने कांँटा बोथे।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, कालीदास कहाए।
जेन डार मा बइठे राहय, उही ल काटे जाए।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, नाग अशिक्षा मारौ।
विषधर ये अज्ञान हरै जी, ज्ञान दीप ला बारौ।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, शिक्षा बहुत जरूरी।
शिक्षा ले सब गुण हा आथे, करै जरूरत पूरी।।
-- नीलम जायसवाल --
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