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Saturday, August 2, 2025

गोस्वामी तुलसीदास जी

गोस्वामी तुलसीदास जी 


: *राम रामायण*

रामायण कर गान, बनें शुभ मंगल बेला।

कटे पाप संताप, रहे ना एक झमेला।।

रामायण हा सार,जिये के कला सिखाये।

भेद भाव अउ जात, पात ला एक दिखाये‌।।


धन हे तुलसी दास, बबा के अवधी बानी।

रचे रमायण सार, लिखे जी राम कहानी।।

राम राम मन बोल, जगत ले तरही चोला।

एक सहारा राम, फेर संसो का तोला।।


राम रमेति राम, राम राघव रघुनंदन।

रघुपति राजा राम, करौ नित राघव वंदन।।

रमे राम के नाम, दास तुलसी बन जाये।

घर घर जानें राम, काज तुलसी मन भाये।।


जन जन के हे आस, राम हे भाग विधाता।

भाई भरत भरोस, जगत जननी सिय माता।।

सोमित नंदन तोर, वंदना लोगन करथें।

शत्रुघनन के नाम, जुबानी लोगन धरथें।।


अवधनाथ अविराम, अंजनी नंदन जपथे।

तपसी तापस वेश, तपस्या तप में तपथे।।

मरा मरा के नाम, वालमीकी हा धरथे।

राम राम हो जाय, चोरहा घलो सुधरथे।।


रत्नाकर रट राम, जगत मा नामी होथे।

राम नाम सुखधाम, बीज सुम्मत के बोंथे।।

राम नाम हे ठेठ, सहज सुन्दर सुखदाई।

जपो राम के नाम, लगे ना एको पाई।।


         *पुरुषोत्तम ठेठवार*

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: दोहा - 


जिनगी घलो किताब हे , सुख-दुख पढ़ले पाठ।।

इही रीत संसार के , आखिर जलबे काठ। ।


गरब गुमानी छोड़ के, भर मन मा उत्साह। 

उमर बीत गे रेंग के, पाये हन तब राह।।


जिनगी ऊंच पहाड़ ये , दिखै नहीं ठहराव। 

कतको बाँधव पार मैं, बहगे  मन के भाव ।।


सुमित्रा शिशिर


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विजेन्द्र: दुर्मिल सवैया 


महिमा सिरतोन अपार हवै,तुलसी सुन तोर रमायन केI   

सुख सम्मत आय उहाँ बढ़िया,भकती उतरेच नरायन केI

जन संकट मोचन ग्रन्थ हरे,सबके तकलीफ उपायन केI   

सँवरे जिनगी कतको झन के,पढ़थे जउँने कर गायन के I


जग मा बड़ पावन रामकथा,सब लोग बनेच बखान करैI

अउ धन्य धरा प्रभु हा जनमे,तुलसी रच ग्रन्थ गुमान करैI

सिरतोन सुगंध बहे हिय मा,पढ़के मनखे जब गान करैI       

सुखचैन हरे भवपार लगे,दुविधा दुख रोग निदान करैI


विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव (धरसीवांँ)

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गोस्वामी तुलसीदास जी

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(वीर छंद)


तीरथ राज प्रयाग तीर मा,  राजापुर नामक हे गाँव। 

 तुलसीदास जनम धर आइच, हुलसी माँ के अँचरा छाँव।।


 धर्मव्रती अउ बड़ सद्ज्ञानी,  पिता ह ब्राह्मण आत्माराम।

 संवत पन्द्रा सौ चउवन मा, बालक जनमिच ले प्रभु नाम।।


  मूल नछत्तर अद्भुत बालक, रहिस दाँत पूरा बत्तीस।

 दासी ला सौंपिच माता हा, अलहन कस ओला लागीस।।


 सरग सिधारिच हुलसी दाई, चुनिया दासी करिच सम्हाल।

 छै बरस के भीतर भीतर, उहू ल लेगे बैरी काल।।


 फेर अनाथ के रक्षा होइच, माँ जगदंबा सुनिच पुकार।

 गुरु नरहरि हा लेगे ओला, अवधपुरी आश्रम के द्वार।।


 शिक्षा-दीक्षा देवन लागिच, धरिच रामबोला के नाम।

 वेद शास्त्र के ज्ञान बताइच,नाम जपावत सीताराम।।


 गुरु आज्ञा ले होगे ओकर, रत्नावली संग गठजोड़।

 लगिच ठेसरा जब तुलसी ला, देइच तब घर बार ल छोड़।।


 तीरथ राज प्रयाग म रहिके,  काशी आगे तुलसीदास।

 प्रेत रूप धरके बजरंगी, आइच तुरते ओकर पास।।


 चित्रकूट जाये ला कहिके, होगे ओहा  अंतर्ध्यान ।

रामघाट मा गोस्वामी ला, बालक रूप मिलिच भगवान।।


 फेर उहाँ ले काशी आगे, तहाँ अवधपुर करिच निवास।

 रामचरित ला सिरजन लागिच, भाषा चुन के अवधी खास ।।


दुई बरस अउ  सात महीना, सँघरा लागिच दिन छब्बीस।

 सात कांड के सिरजन होगे, सामवेद कस जे लागीस।।


 काशी पावन असी घाट मा, कृष्ण तृतीया सावन माह।

संवत सोला सौ अस्सी मा, स्वर्ग लोक के धर के राह।।


 देह त्याग गोस्वामी जी हा, चलदिच प्रभु के पावन धाम।

 नाम अमर होगे जुग जुग ले, जिभिया मा धर सीताराम।।


 धन्य धन्य जे रचिच रमायन, परम पूज्य वो तुलसीदास।

 कलयुग मा मनखे तारे बर, राम नाम के करिच उजास।।


 रामचरित गुन गान करिच वो,जन भाषा मा ग्रंथ बनाय।

 जे हा श्रीरामचरितमानस, वेद शास्त्र के सार कहाय।।


 सरी जगत मा नइये कोनो,एकर जइसे सद साहित्य ।

एमा नवधा भक्ति ज्ञान के, शब्द शब्द मा हे लालित्य।।


 धरम करम के मरम भरे हे, भरे गृहस्थी के व्यवहार।

 साधु संत के रक्षा हावय, निसचर मन के हे संघार।।


शब्द रूप मा जगत पिता के, सरग लोक कस पावन धाम।

 रचना संग रचइता के मैं, हाथ जोड़ के करौं प्रणाम ।।


(छत्तीसगढ़ी भाखा मा रचित छंदबद्ध महाकाव्य श्री सीताराम चरित के अंश)


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबन्द, छत्तीसगढ़

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सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


तुलसी तोर रमायण(भजन)


जग बर अमरित पानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


शब्द शब्द मा राम रमे हे, शब्द शब्द मा सीता।

गूढ़ ग्यान गुण गोठ गँजाये, चिटिको नइहे रीता।

सत सुख शांति कहानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


सब दिन बरसे कृपा राम के, दरद दुःख डर भागे।

राम नाम के महिमा भारी, भाग भगत के जागे।।

धर्म ध्वजा धन धानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


सहज तारथे भवसागर ले, ये डोंगा कलजुग के।

दूर भगाथे अँधियारी ला, सुरुज सहीं नित उगके।

बेघर के छत छानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।


प्रश्न घलो कमती पड़ जाही, उत्तर अतिक भरे हे।

अधम अनाड़ी गुणी गियानी, सबके दुःख हरे हे।

मीठ कलिंदर चानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


तुलसी दास जयंती की बहुत बहुत बधाई


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