दादुर रोवत रात भर, बने नहीं पर बात।
विधना निष्ठुर होय हे, करे नहीं बरसात।1।
खेत खार सब फाट गे, धान होय सब लाल।
मुड़ धर रोय किसान मन, खेती बारा हाल।2।
भूखन मर गे केकरा, घोंघी तक पछताय।
रोवत हावय कोकड़ा, मुसवा उधम मचाय।3।
दगा बाज बादर हवय, लेत परीक्षा रोज।
हमला टूहूँ दिखाय के, चल देवत हे सोज।4।
पहली जस बरसात अब, निच्चट सपना होय।
झड़ी नदागे आज कल, ढेरा ऑटय कोय।5।
दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाजार
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