सरगुजा मा हे बिसाहिन
सरगुजा - मा हे बिसाहिन, देख हे बिन - हाथ
फेर दायी संग गजहिन, भाग - बाचय - माथ।
रोज मजदूरी - बजावय, मोगरा - सुख धाम
देख नोनी ला सिखोवय, पंथ के सत - नाम।
देवदासा - गुरु - सिखोवय, पंथ के अन्दाज
रोज - दायी हर पठोवय, सफल होवय काज।
गोड मा सब काम करथे, हे - बहुत हुसियार
हासथे - गाथे मटकथे, मीठ - सुर - कुसियार।
सुरुज - ऊथे रोज बुडथे, दिन खियावत रोज
देखते - देखत गुजरथे, देख ले अब - खोज ।
अब बिसाहिन नाचथे जब, नाचथे - सन्सार
बिधुन हावय नाच मा सब, छोड़ के घर बार।
सुन - बजाथे देख माण्दर, नाव हे बन - खार
मन - मधुर मुरली मनोहर, बाजथे - सुकुमार।
बिकट - पैसा आत हावय, मोगरा - घर आज
बर बिहा के बात बाँधय, बाज - माण्दर बाज।
मोगरा हर बात कर लिस, माढ गइस - बिहाव
देख मडवा आज गडगिस,सब सुआसिन गाव।
आज खुश हावय बिसाहिन, नाचथे बन - खार
सरगुजा जस - पुर नहाइन, आज बारम् - बार।
शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छत्तीसगढ़
सरगुजा - मा हे बिसाहिन, देख हे बिन - हाथ
फेर दायी संग गजहिन, भाग - बाचय - माथ।
रोज मजदूरी - बजावय, मोगरा - सुख धाम
देख नोनी ला सिखोवय, पंथ के सत - नाम।
देवदासा - गुरु - सिखोवय, पंथ के अन्दाज
रोज - दायी हर पठोवय, सफल होवय काज।
गोड मा सब काम करथे, हे - बहुत हुसियार
हासथे - गाथे मटकथे, मीठ - सुर - कुसियार।
सुरुज - ऊथे रोज बुडथे, दिन खियावत रोज
देखते - देखत गुजरथे, देख ले अब - खोज ।
अब बिसाहिन नाचथे जब, नाचथे - सन्सार
बिधुन हावय नाच मा सब, छोड़ के घर बार।
सुन - बजाथे देख माण्दर, नाव हे बन - खार
मन - मधुर मुरली मनोहर, बाजथे - सुकुमार।
बिकट - पैसा आत हावय, मोगरा - घर आज
बर बिहा के बात बाँधय, बाज - माण्दर बाज।
मोगरा हर बात कर लिस, माढ गइस - बिहाव
देख मडवा आज गडगिस,सब सुआसिन गाव।
आज खुश हावय बिसाहिन, नाचथे बन - खार
सरगुजा जस - पुर नहाइन, आज बारम् - बार।
शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छत्तीसगढ़
अद्भुत दीदी।सत्य घटना आँखी म झूले लगत हे
ReplyDeleteसही बात ल जान डारे जितेन्द्र! मोर आँखी म पहिली दृश्य दिखथे, तेकर बाद मैं हर कलम उठाथवँ । धन्यवाद भाई ।
Deleteबहुत सुग्घर शोभन छंद हे ,दीदी ।बधाई प्रणाम
ReplyDeleteसाहित्य जगत म कहिनी - गीत के बड़े औकात है, मोहन ! ए दोनों विधा के जुगलबंदी हे। बहुत बहुत धन्यवाद, मोहन !
Deleteसुग्घर दीदी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद, अजय भाई ।
Deleteबड़ सुग्घर सृजन दीदी।
ReplyDeleteसुर के साधना कर भाई ! अभ्यास हर गुरु ए ।
Deleteबहुत सुंदर संदेश दीदी
ReplyDeleteसाँगर मोँगर मन काँही करे ल
नई धरँय....दिव्यांग मन अपन मन ले हीन भावना ल हेर के फेंक देथें...जऊन दे हे भगवान हर ओकरे कतका बढ़िया उपयोग.....
बहुत सुंदर रचना दीदी...
सादर प्रणाम....
सही कहत हस सूर । समय के सदुपयोग जरूरी हे ग ।
Deleteवाह्ह्ह् वाह्ह्ह् दीदी अनुपम रचना शोभन छंद मा।सादर बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद, ज्ञानू भाई ।
Deleteवाह्ह्ह् वाह्ह्ह् दीदी अनुपम रचना शोभन छंद मा।सादर बधाई
ReplyDeleteवाहःहः दीदी बहुते सुघ्घर सृजन
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