*हरिगीतिका छन्द*
तँय रुख लगा (हरिगीतिका)
झन हाँस जी, झन नाच जी , कुछु बाँचही, बन काट के ?
कल के जरा तयँ सोच ले , इतरा नहीं नद पाट के
बदरा नहीं बिजुरी नहीं , पहिली सहीं बरखा नहीं
रितु बाँझ होवत जात हे , अब खेत मन बंजर सहीं
झन पाप पुन अउ धरम ला, बिसरा कभू बेपार मा
भगवान के सिरजाय जल, झन बेंच हाट-बजार मा
तँय रुख लगा कुछु पुन कमा, रद्दा बना भवपार के
अपने - अपन उद्धार होही ये जगत - संसार के
*हरिगीतिका के विधान*
डाँड़ (पद) - ४, ,चरन - ८
तुकांत के नियम - दू-दू डाँड़ मा. आख़िरी मा रगन माने बड़कू,नान्हें,बड़कू (२,१,२)
हर डाँड़ मा कुल मातरा – २८ , बिसम चरन मा मातरा – १६ , सम चरन मा मातरा- १२ मातरा मा
यति / बाधा – १६, १२ मातरा मा (या १४,१४ मातरा मा)
खास- ५,१२ १९, अउ २६ वाँ मातरा नान्हें होय ले गाये मा जियादा गुरतुर लागथे.
बिसम अउ सम चरन मा १४, १४ मातरा घलो हो सकथे
मात्राबाँट -
हरिगीतिका हरिगीतिका, हरिगीतिका
112 1 2 112 12 112 12
हरिगीतिका
112 12
या
श्रीगीतिका श्रीगीतिका, श्रीगीतिका
2212 2212 2212
श्रीगीतिका
2212
*अरुण कुमार निगम*
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Tuesday, January 9, 2018
विधान - हरिगीतिका छन्द
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बहुत सुग्घर गुरुदेव
ReplyDeleteविधान ल घलो समझा दे हव त हमर जइसे नवा साधक के उपकार हो जात है
अनमोल गुरुददा
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