मकर सक्रांति
सूरज जब धनु राशि छोड़ के,मकर राशि मा जाथे।
भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।
दिशा उत्तरायण सूरज के,ये दिन ले हो जाथे।
कथा कई ठन हे ये दिन के,वेद पुराण सुनाथे।
सुरुज देवता सुत शनि ले,मिले इही दिन जाये।
मकर राशि के स्वामी शनि हा,अब्बड़ खुशी मनाये।
कइथे ये दिन भीष्म पितामह,तन ला अपन तियागे।
इही बेर मा असुरन मनके, जम्मो दाँत खियागे।
जीत देवता मनके होइस,असुरन नाँव बुझागे।
बार बेर सब बढ़िया होगे,दुख के घड़ी भगागे।
सागर मा जा मिले रिहिस हे,ये दिन गंगा मैया।
तार अपन पुरखा भागीरथ,परे रिहिस हे पैया।
गंगा सागर मा तेखर बर ,मेला घलो भराथे।
भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।
उत्तर मा उतरायण खिचड़ी,दक्षिण पोंगल माने।
कहे लोहड़ी पश्चिम वाले,पूरब बीहू जाने।
बने घरो घर तिल के लाड़ू,खिचड़ी खीर कलेवा।
तिल अउ गुड़ के दान करे ले,पाये सुघ्घर मेवा।
मड़ई मेला घलो भराये,नाचा कूदा होवै।
मन मा जागे मया प्रीत हा,दुरगुन मन के सोवै।
बिहना बिहना नहा खोर के,सुरुज देव ला ध्यावै।
बंदन चंदन अर्पण करके,भाग अपन सँहिरावै।
रंग रंग के धर पतंग ला,मन भर सबो उड़ाये।
पूजा पाठ भजन कीर्तन हा,मन ला सबके भाये।
जोरा करथे जाड़ जाय के,मंद पवन मुस्काथे।
भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
सूरज जब धनु राशि छोड़ के,मकर राशि मा जाथे।
भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।
दिशा उत्तरायण सूरज के,ये दिन ले हो जाथे।
कथा कई ठन हे ये दिन के,वेद पुराण सुनाथे।
सुरुज देवता सुत शनि ले,मिले इही दिन जाये।
मकर राशि के स्वामी शनि हा,अब्बड़ खुशी मनाये।
कइथे ये दिन भीष्म पितामह,तन ला अपन तियागे।
इही बेर मा असुरन मनके, जम्मो दाँत खियागे।
जीत देवता मनके होइस,असुरन नाँव बुझागे।
बार बेर सब बढ़िया होगे,दुख के घड़ी भगागे।
सागर मा जा मिले रिहिस हे,ये दिन गंगा मैया।
तार अपन पुरखा भागीरथ,परे रिहिस हे पैया।
गंगा सागर मा तेखर बर ,मेला घलो भराथे।
भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।
उत्तर मा उतरायण खिचड़ी,दक्षिण पोंगल माने।
कहे लोहड़ी पश्चिम वाले,पूरब बीहू जाने।
बने घरो घर तिल के लाड़ू,खिचड़ी खीर कलेवा।
तिल अउ गुड़ के दान करे ले,पाये सुघ्घर मेवा।
मड़ई मेला घलो भराये,नाचा कूदा होवै।
मन मा जागे मया प्रीत हा,दुरगुन मन के सोवै।
बिहना बिहना नहा खोर के,सुरुज देव ला ध्यावै।
बंदन चंदन अर्पण करके,भाग अपन सँहिरावै।
रंग रंग के धर पतंग ला,मन भर सबो उड़ाये।
पूजा पाठ भजन कीर्तन हा,मन ला सबके भाये।
जोरा करथे जाड़ जाय के,मंद पवन मुस्काथे।
भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
छत्तीसगढिया सबले बढिया, छन्द - राग हम गाबो
ReplyDeleteमोर अनुज हर सुग्हर लिखथे,सब ला आज बताबो।
बढ़िया जितेंद्र जी आनन्द आगे
ReplyDeleteबढ़िया जितेंद्र जी आनन्द आगे
ReplyDeleteवाह वाह जीतेन्द्र भैया मकर संक्रांति पर्व विशेष मा अद्भुत सार छंद।बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteवाह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह् बहुत सुग्घर रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteवाह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह् बहुत सुग्घर रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर सार छंद तिहार के भाईईईई...
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर मकर संक्रांति सार छंद भाई जितेन्द्र लिखे हव बधाई हो बहुत बहुत
ReplyDelete