मोर गुरतुर भाखा छत्तीसगढ़ी
बोली भाखा के अपन, करौ सबो सन्मान।
दूसर भाखा के मगर, झन करिहौ अपमान।।
झन करिहौ अपमान, मान देवव अउ पावव।
जिनगी जउन चलाय, गीत ओकर तुम गावव।।
हिम्मत राखौ संग, छोड़ दौ हँसी ठिठोली।
मोला बिक्कट भाय, मोर ए गुरतुर बोली।।
कोंदा जनता
कोंदा जनता ल रथे, एके के दरकार।
फोकट मा मिल जाय अउ, बइठे खावैं यार।।
बइठे खाँवैं यार, मेहनत करना काबर।
मध्यमवर्गी जाय, पिसावय ओही मर मर।।
बाबा चाँउर बाँट, रहन दे उनला भोंदा।
खुरसी मा तँय बइठ, बनावत सबला कोंदा।।
मोबाइल लीला
मोबाइल लीला गजब, सब झन हन अइलाय।
लिखत पढ़त रहिथन इहें, पीठ घेंच लचकाय।।
पीठ घेंच लचकाय, चलावत गाड़ी घोड़ा।
डारे हेल्थ गँवाय, बनावत एला रोड़ा।।
सकल करम ला देख, इही मा बन उतियाइल।
सब झन हन अइलाय, गजब लीला मोबाइल।।
खउलत पानी
खउलत पानी मा कभू, दिखय न अपने चित्र।
गुस्सा मा जी ओइसने, सुध बुध खोथन मित्र।।
सुध बुध खोथन मित्र, अल्हन बड़ हम कर जाथन।
खऊलावत तन मन, ब्यर्थ काछन चढ़वाथन।।
काम क्रोध मद लोभ, बाँध झन मन घानी मा।
दिखय न अपने चित्र, कभू खउलत पानी मा।।
रचनाकार..
सूर्यकांत गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग
बोली भाखा के अपन, करौ सबो सन्मान।
दूसर भाखा के मगर, झन करिहौ अपमान।।
झन करिहौ अपमान, मान देवव अउ पावव।
जिनगी जउन चलाय, गीत ओकर तुम गावव।।
हिम्मत राखौ संग, छोड़ दौ हँसी ठिठोली।
मोला बिक्कट भाय, मोर ए गुरतुर बोली।।
कोंदा जनता
कोंदा जनता ल रथे, एके के दरकार।
फोकट मा मिल जाय अउ, बइठे खावैं यार।।
बइठे खाँवैं यार, मेहनत करना काबर।
मध्यमवर्गी जाय, पिसावय ओही मर मर।।
बाबा चाँउर बाँट, रहन दे उनला भोंदा।
खुरसी मा तँय बइठ, बनावत सबला कोंदा।।
मोबाइल लीला
मोबाइल लीला गजब, सब झन हन अइलाय।
लिखत पढ़त रहिथन इहें, पीठ घेंच लचकाय।।
पीठ घेंच लचकाय, चलावत गाड़ी घोड़ा।
डारे हेल्थ गँवाय, बनावत एला रोड़ा।।
सकल करम ला देख, इही मा बन उतियाइल।
सब झन हन अइलाय, गजब लीला मोबाइल।।
खउलत पानी
खउलत पानी मा कभू, दिखय न अपने चित्र।
गुस्सा मा जी ओइसने, सुध बुध खोथन मित्र।।
सुध बुध खोथन मित्र, अल्हन बड़ हम कर जाथन।
खऊलावत तन मन, ब्यर्थ काछन चढ़वाथन।।
काम क्रोध मद लोभ, बाँध झन मन घानी मा।
दिखय न अपने चित्र, कभू खउलत पानी मा।।
रचनाकार..
सूर्यकांत गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग
वाह वाह। गुरुदेव गुप्ता जी। गजब के कुण्डलिया छंद सिरजाय हव।अनुपम।बधाई।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद मोहन भाई...
ReplyDeleteअब आशुकवि भाई ला का कहंव
ReplyDeleteइन्खर बर तो बस एक शब्द चाही तहन तुरते सृजन।
सादर नमन भाई जी
बहुत बढ़िया कुण्डलिया
बहिनीईईई
Deleteसादर पैलगी अउ असीस घलो
छँद आज बढिया लिखे, पाबे पावन प्रीत
ReplyDeleteकर्म बनाथे भाग ला, ए दुनिया के रीत।
एकर ले अउ का बने, दीदी के आसीस।
Deleteतोर चरण मा मोर तो, नवे रहय ए शीष।।
हिरदे ले शुक्रिया दीदी...
बहुत सुन्दर भैया जी साधुवाद
ReplyDeleteहिरदे ले शुक्रिया भाईईईई..
Deleteबहुत बढ़िया कुंडली मारे हस भैया जी । पढ के मजा आगे ।
ReplyDeleteबधाई हो गुप्ता जी ।
सहृदय धन्यवाद भाईईईई
Deleteउत्कृष्ठ कुण्डलियाँ छंद के सृजन भैयाजी।सादर बधाई
ReplyDeleteसादर धन्यवाद भाईईईई
Deleteउत्कृष्ठ कुण्डलियाँ छंद के सृजन भैयाजी।सादर बधाई
ReplyDeleteशानदार कुण्डलिया।
ReplyDeleteगुरुदेव के कृपा अउ दीदी भैया मन के असीस...
Deleteसादर प्रणाम भैया
शानदार कुण्डलिया।
ReplyDeleteगजब कुंडली सिरजाये हौ गुरुजी , आप के कविता जतके सुनबे , पढबे अउ पढ़े के मन होथे, आप तो कवि कुल वंश के सुरहुत्ति के दिया हरव
ReplyDeleteसब माँ शारदे के कृपा, गुरुदेव अउ भैया अरुण निगम जी के मार्गदर्शन अउ आप जम्मो भाई बहिनी मन के दुआ के परिणाम ए भाईईईई... हृदयतल से शुक्रिया....
Deleteशानदार भैया जी
ReplyDeleteहृदयतल से शुक्रिया भाईईईई गो....
Deleteअब्बड़ सुग्घर सन्देश देवत कुंडलिया छंद भईया लाजावाब
ReplyDeleteभाईईईई.... हिरदे ले बहुत बहुत धन्यवाद जीईईई....
Deleteशानदार कुण्डलिया वाह्ह् वाह्ह भैया जी।
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