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Thursday, January 25, 2018

शक्ति छन्द - श्री जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

अपन देस

पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।
अहं जात भाँखा सबे लेस के।
करौं बंदना नित करौं आरती।
बसे मोर मन मा सदा भारती।

पसर मा धरे फूल अउ हार मा।
दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा।
बँधाये  मया मीत डोरी  रहे।
सबो खूँट बगरे अँजोरी रहे।

बसे बस मया हा जिया भीतरी।
रहौं  तेल  बनके  दिया भीतरी।
इहाँ हे सबे झन अलग भेस के।
तभो  हे  घरो घर बिना बेंस के।
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चुनर ला करौं रंग धानी सहीं।
सजाके बनावौं ग रानी सहीं।
किसानी करौं अउ सियानी करौं।
अपन  देस  ला  मैं गियानी करौं।

वतन बर मरौं अउ वतन ला गढ़ौ।
करत  मात  सेवा  सदा  मैं  बढ़ौ।
फिकर नइ करौं अपन क्लेस के।
वतन बर बनौं घोड़वा रेस के---।

रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

14 comments:

  1. देश प्रेम के भाव ले सराबोर लाजवाब शक्ति छंद लिखे हव,खैरझिटिया भैया। बधाई अउ शुभकामना।वन्दे मातरम्।

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  2. वाह क्या बात है जीतेंद्र भाई

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  3. बहुत सुघ्घर सृजन हे शक्ति छंद मा अपन देश अपन भाखा के।
    वाहःहः

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  4. बहुत बढिया छंद लिखे हस, जितेंद्र । बहुत बहुत बधाई।

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  5. बहुत बढ़िया भईया जी

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  6. बहुत बढ़िया भईया जी

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  7. सादर पायलागी,सादर नमन

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  8. वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् सरजी।लाजवाब रचना।सादर बधाई

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  9. वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् सरजी।लाजवाब रचना।सादर बधाई

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  10. वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् सरजी।लाजवाब रचना।सादर बधाई

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  11. लाजवाब सृजन खैरझिटिया जी।

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  12. वाह्ह्ह् वाह्ह्ह् जितेंद्र जी।लाजवाब शक्ति छंद।

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  13. बढ़िया छंद, एक नंबर...सुंदर भाव देश प्रेम के,
    बधाई भाईईईई....

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  14. बहुत बढ़िया छंद जीतेंद्र गुरु

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