चल तरिया जाबो, खूब नहाबो, तउड-तउड़ के संगी ।
खूब मजा पाबो, दम देखाबो, नो हय काम लफंगी ।।
तउड़े ले होथे, काया पोठे, तबियत सुग्घर रहिथे ।
पाछू सुख पाथे, तउड़ नहाथे, आज झेल जे सहिथे ।।
जब तरिया जाबे, संगी पाबे, चार गोठ बतियाबे ।
गोठ गोठियाबे, मया बढ़ाबे, पीरा अपन सुनाबे ।।
दूसर के पीरा, सुनबे हीरा, मनखे बने कहाबे ।
घर छोड़ नहानी, करत सियानी, तरिया जभे नहाबे ।।
हे लाख फायदा, देख कायदा, धरती बर तरिया के ।
धरती के पानी, धरे जवानी, बड़ झूमे छरिया के ।।
पानी के केबल, वाटर लेबल, तरिया बने बनाथे ।
बाते ला मानव, ये गुण जानव, कहिदव तरिया भाथे ।।
रचनाकार - श्री रमेश कुमार सिंह चौहान
नवागढ़ (बेमेतरा) छत्तीसगढ़
चौपइया छंद मा बेहतरीन वर्णन चौहान जी।सादर प्रणाम अउ बधाई।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना बधाई हो चौहान जी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सर
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बधाई भईया जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बधाई भईया जी
ReplyDeleteअनन्त बधाई हो गुरुदेव
ReplyDeleteवाह वाह बहुत बढ़िया सर जी
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