नानपन ले काम करव -
आज करबे काल पाबे, जानथे सब कोय ।
डोलथे जब हाथ गोड़े, जिंदगी तब होय ।।
काम सुग्घर दाम सुग्घर, मांग लौ दमदार ।
काम घिनहा दाम घिनहा, हाथ धर मन मार ।।
डोकरापन पोठ होथे, ढोय पहिली काम ।
नानपन ले काम करके, पोठ राखे चाम ।।
नानपन मा जेन मनखे, लात राखे तान ।
भोगही ओ काल जूहर, बात पक्का मान ।।
नानपन ले काम कर लौ, देह होही पोठ ।
आज के ये तोर सुख मा, काल दिखही खोट ।।
कान अपने खोल सुन लौ, आज दाई बाप ।
खेल खेलय तोर लइका, मेहनत ला नाप ।।
देह बर तो काम जरुरी, बात पक्का मान ।
खेल हा तो काम ओखर, गोठ सिरतुन जान ।।
तोर पढ़ई काम भर ले, बुद्धि होही पोठ ।
काम बिन ये देह तोरे, होहि कइसे रोठ ।।
खेल मन भर नानपन मा, खोर अँगना झाक ।
रात दिन तैं फोर आँखी, स्क्रीन ला मत ताक ।।
नानपन ले जेन जानय, होय कइसे काम ।
झेल पीरा आज ओ तो, काल करथे नाम ।।
रचनाकार - श्री रमेश कुमार सिंह चौहान
नवागढ़ (बेमेतरा) छत्तीसगढ़)
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ReplyDeleteबहुत बढ़िया संदेशप्रद छंद हे भाई
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर सर जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया भईया जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना सर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना सर
ReplyDeleteवाह सुन्दर रूपमाला छन्द
ReplyDeleteबढिया रूपमाला छंद लिखे हावस रमेश, तोला बहुत - बधाई हे ।
ReplyDeleteबढ़िया संदेश देवत छंद भइया वाह्
ReplyDeleteवाह वाह बेहतरीन रूपमाला छंद हे,चौहान जी।सादर प्रणाम अउ बधाई।
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