बिहाव -
*मड़वा*
बेटा के मड़वा सजे, छाये डूमर डार।
बाजय बाजा झूम के, नाचय सब परिवार।।
नाचय सब परिवार, कका काकी अउ मामी।
दीदी भाँटो पोठ, नचनिया हावय नामी।।
बूढ़ी दाई आय, मार लूगरा लपेटा।
नाचय नइ शरमाय, बिहाव रचे हे बेटा।।1।।
*चुलमाटी*
घर मा सब सकलाय हे, करथे बड़ उतलंग।
नाचत जावत हे गली, लेके बाजा संग।।
लेके बाजा संग, सबो जावय चुलमाटी।
हरदी तेल चढ़ाय, चले जइसन परिपाटी।।
बबा पहिरके सूट, डारके पटकू गर मा।
होगे हे तइयार, देख सब हाँसे घर मा।।2।।
*भड़ौनी*
जाके बर के छाँव मा, खड़े बरतिया जाय।
परघाये बर देख के, सबो घरतिया आय।।
सबो घरतिया आय, पाय जब मौका सुग्घर।
गीत भड़ौनी गाय, बरतिया अउ दूल्हा बर।।
आनी-बानी गीत, सुने जब सब इतराके।
कतको हावय ढीठ, खड़े आगू मा जाके।।3।।
*टीकावन*
मड़वा मा दाई-ददा, बेटी पाँव पखार।
टीकावन लेके खड़े, आँखी आँसू ढार।।
आँखी आँसू ढार, सबो टीके टीकावन।
अचहर-पचहर लाय, गाय बछरू अउ पड़वा।
सबके पा आशीष, खड़े हे बेटी मड़वा।।4।।
*बिदाई*
करथे बेटी के बिदा, रुकय न आँसू धार।
सुसक-सुसक रोवय ददा, दाई कर गोहार।।
दाई कर गोहार, सहेली रोवय धरके।
पहुना बनगे आज, छूटगे अँगना घर के।।
भाई पानी लाय, पियाके पँवरी परथे।
होके सब बेहाल, बिदा बेटी के करथे।।5।।
रचनाकार - श्री जगदीश "हीरा" साहू
छत्तीसगढ़
*मड़वा*
बेटा के मड़वा सजे, छाये डूमर डार।
बाजय बाजा झूम के, नाचय सब परिवार।।
नाचय सब परिवार, कका काकी अउ मामी।
दीदी भाँटो पोठ, नचनिया हावय नामी।।
बूढ़ी दाई आय, मार लूगरा लपेटा।
नाचय नइ शरमाय, बिहाव रचे हे बेटा।।1।।
*चुलमाटी*
घर मा सब सकलाय हे, करथे बड़ उतलंग।
नाचत जावत हे गली, लेके बाजा संग।।
लेके बाजा संग, सबो जावय चुलमाटी।
हरदी तेल चढ़ाय, चले जइसन परिपाटी।।
बबा पहिरके सूट, डारके पटकू गर मा।
होगे हे तइयार, देख सब हाँसे घर मा।।2।।
*भड़ौनी*
जाके बर के छाँव मा, खड़े बरतिया जाय।
परघाये बर देख के, सबो घरतिया आय।।
सबो घरतिया आय, पाय जब मौका सुग्घर।
गीत भड़ौनी गाय, बरतिया अउ दूल्हा बर।।
आनी-बानी गीत, सुने जब सब इतराके।
कतको हावय ढीठ, खड़े आगू मा जाके।।3।।
*टीकावन*
मड़वा मा दाई-ददा, बेटी पाँव पखार।
टीकावन लेके खड़े, आँखी आँसू ढार।।
आँखी आँसू ढार, सबो टीके टीकावन।
अचहर-पचहर लाय, गाय बछरू अउ पड़वा।
सबके पा आशीष, खड़े हे बेटी मड़वा।।4।।
*बिदाई*
करथे बेटी के बिदा, रुकय न आँसू धार।
सुसक-सुसक रोवय ददा, दाई कर गोहार।।
दाई कर गोहार, सहेली रोवय धरके।
पहुना बनगे आज, छूटगे अँगना घर के।।
भाई पानी लाय, पियाके पँवरी परथे।
होके सब बेहाल, बिदा बेटी के करथे।।5।।
रचनाकार - श्री जगदीश "हीरा" साहू
छत्तीसगढ़
वाहहहहहहह!वाहहहहहहह!सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद अहिलेश्वर जी
Deleteवाहःहः भाई
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर कुण्डलिया छंद सिरजाय हव।
बिहाव के हर रस्म ला अति सुघ्घर तरीका से लिखे हव।
धन्यवाद दीदी
Deleteधन्यवाद दीदी
Deleteवाह्ह् भाई, सुग्घर छंद रचना
ReplyDeleteबहुत बढिया छंद लिखे हस भाई, तोला बहुत बहत बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी, अइसने उत्साह बढ़ावत रइहु
Deleteधन्यवाद दीदी, अइसने उत्साह बढ़ावत रइहु
Deleteबहुत बढ़िया बधाई हो
ReplyDeleteधन्यवाद भाई जी
Deleteबहुत बढ़िया बधाई हो
ReplyDeleteआभार जोगी जी
Deleteबेहतरीन सर
ReplyDeleteबेहतरीन सर
ReplyDeleteधन्यवाद ज्ञानु भइया
Deleteधन्यवाद ज्ञानु भइया
Deleteवाह वाह प्रसंशनीय कुण्डलिया।
ReplyDeleteजबरदस्त कुंडलियाँ छंद सर जी।बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद वर्मा सर जी
Deleteजबरदस्त कुंडलियाँ छंद सर जी।बधाई।
ReplyDeleteवाह वाह वाह ,जबरजस्त
ReplyDeleteधन्यवाद भइया जी
Deleteवाह्ह हीरा भइया बिहाव के सुग्घर बरनन लाजावाब भइया
ReplyDeleteधन्यवाद मोहन भाई
Deleteधन्यवाद मोहन भाई
Deleteत
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सिरजन भाई जी बधाई
ReplyDeleteआभार कौशल भइया
Deleteआभार कौशल भइया
Delete