भोला बिहाव -
अँधियारी रात मा जी,दीया धर हाथ मा जी,
भूत प्रेत साथ मा जी ,निकले बरात हे।
बइला सवारी करे,डमरू त्रिशूल धरे,
जटा जूट चंदा गंगा,सबला लुभात हे।
बघवा के छाला हवे,साँप गल माला हवे,
भभूत लगाये हवे , डमरू बजात हे।
ब्रम्हा बिष्णु आघु चले,देव धामी साधु चले,
भूत प्रेत पाछु खड़े,अबड़ चिल्लात हे।
टोनही झूपत हवे,कुकुर भूँकत हवे,
भोला के बराती मा जी,सरी जग साथ हे।
मूड़े मूड़ कतको के,कतको के गोड़े गोड़,
कतको के आँखी जादा,कोनो बिन हाथ हे।
कोनो हा घोंड़ैया मारे,कोनो उड़े मनमाड़े,
जोगनी परेतिन के ,भोले बाबा नाथ हे।
देव सब सजे भारी,होवै घेरी बेरी चारी,
अस्त्र शस्त्र धर चले,मुकुट जी माथ हे।
काड़ी कस कोनो दिखे,डाँड़ी कस कोनो दिखे,
पेट कखरो हे भारी,एको ना सुहात हे।
कोनो जरे कोनो बरे,हाँसी ठट्ठा खूब करे,
नाचत कूदत सबो,भोले सँग जात हे।
घुघवा हा गावत हे, खुसरा उड़ावत हे,
रक्सा बरत हावय,दिन हे कि रात हे।
हे मरी मसान सब,भोला के मितान सब,
देव मन खड़े देख,अबड़ मुस्कात हे।
गाँव मा गोहार परे,बजनिया सुर धरे,
लइका सियान सबो,देखे बर आय जी।
बिना हाथ वाले बड़,पीटे गा दमऊ धर,
बिना गला वाले देख,गीत ला सुनाय जी।
देवता लुभाये मन,झूमे देख सबो झन,
भूत प्रेत सँग देख,जिया घबराय जी।
आहा का बराती जुरे,देख के जिया हा घुरे
रानी राजा तीर जाके,बड़ खिसियाय जी।
फूल कस नोनी बर,काँटा जोड़ी पोनी बर,
रानी कहे राजा ला जी,तोड़ दौ बिहाव ला
करेजा के चानी बेटी,मोर देख रानी बेटी,
कइसे जिही जिनगी,धर तन घाव ला।
पारबती आये तीर,माता ल धराये धीर,
सबो जग के स्वामी वो,तज मन भाव ला।
बइला सवारी करे,भोला त्रिपुरारी हरे,
माँगे हौ विधाता ले मैं,पूज इही नाव ला।
बेटी गोठ सुने रानी,मने मन गुने रानी,
तीनो लोक के स्वामी हा,मोर घर आय हे।
भाग सँहिरावै बड़,गुन गान गावै बड़,
हाँस मुस्काय सुघ्घर,बिहाव रचाय हे।
राजा घर माँदीं खाये,बराती सबो अघाये,
अचहर पचहर , गाँव भर लाय हे।
भाँवर टिकावन मा,बार तिथि पावन मा,
पारबती हा भोला के,मया मा बँधाय हे।
रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़
अँधियारी रात मा जी,दीया धर हाथ मा जी,
भूत प्रेत साथ मा जी ,निकले बरात हे।
बइला सवारी करे,डमरू त्रिशूल धरे,
जटा जूट चंदा गंगा,सबला लुभात हे।
बघवा के छाला हवे,साँप गल माला हवे,
भभूत लगाये हवे , डमरू बजात हे।
ब्रम्हा बिष्णु आघु चले,देव धामी साधु चले,
भूत प्रेत पाछु खड़े,अबड़ चिल्लात हे।
टोनही झूपत हवे,कुकुर भूँकत हवे,
भोला के बराती मा जी,सरी जग साथ हे।
मूड़े मूड़ कतको के,कतको के गोड़े गोड़,
कतको के आँखी जादा,कोनो बिन हाथ हे।
कोनो हा घोंड़ैया मारे,कोनो उड़े मनमाड़े,
जोगनी परेतिन के ,भोले बाबा नाथ हे।
देव सब सजे भारी,होवै घेरी बेरी चारी,
अस्त्र शस्त्र धर चले,मुकुट जी माथ हे।
काड़ी कस कोनो दिखे,डाँड़ी कस कोनो दिखे,
पेट कखरो हे भारी,एको ना सुहात हे।
कोनो जरे कोनो बरे,हाँसी ठट्ठा खूब करे,
नाचत कूदत सबो,भोले सँग जात हे।
घुघवा हा गावत हे, खुसरा उड़ावत हे,
रक्सा बरत हावय,दिन हे कि रात हे।
हे मरी मसान सब,भोला के मितान सब,
देव मन खड़े देख,अबड़ मुस्कात हे।
गाँव मा गोहार परे,बजनिया सुर धरे,
लइका सियान सबो,देखे बर आय जी।
बिना हाथ वाले बड़,पीटे गा दमऊ धर,
बिना गला वाले देख,गीत ला सुनाय जी।
देवता लुभाये मन,झूमे देख सबो झन,
भूत प्रेत सँग देख,जिया घबराय जी।
आहा का बराती जुरे,देख के जिया हा घुरे
रानी राजा तीर जाके,बड़ खिसियाय जी।
फूल कस नोनी बर,काँटा जोड़ी पोनी बर,
रानी कहे राजा ला जी,तोड़ दौ बिहाव ला
करेजा के चानी बेटी,मोर देख रानी बेटी,
कइसे जिही जिनगी,धर तन घाव ला।
पारबती आये तीर,माता ल धराये धीर,
सबो जग के स्वामी वो,तज मन भाव ला।
बइला सवारी करे,भोला त्रिपुरारी हरे,
माँगे हौ विधाता ले मैं,पूज इही नाव ला।
बेटी गोठ सुने रानी,मने मन गुने रानी,
तीनो लोक के स्वामी हा,मोर घर आय हे।
भाग सँहिरावै बड़,गुन गान गावै बड़,
हाँस मुस्काय सुघ्घर,बिहाव रचाय हे।
राजा घर माँदीं खाये,बराती सबो अघाये,
अचहर पचहर , गाँव भर लाय हे।
भाँवर टिकावन मा,बार तिथि पावन मा,
पारबती हा भोला के,मया मा बँधाय हे।
रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़
वाह्ह्ह्ह् जितेन्द्र भाई, शंकर के बराती अउ बिहाव के सुग्घर वर्णन
ReplyDeleteबड़ सुघ्घर मनहरण घनाक्षरी छंद जितेंद्र जी।।बधाई
ReplyDeleteबड़ सुघ्घर मनहरण घनाक्षरी छंद जितेंद्र जी।।बधाई
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर मनहरण घनाक्षरी लिखे हव जितेन्द्र भाई आप ला बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteवाहःहः भाई जितेंन्द्र मनभावन मनहरण घनाक्षरी
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन
बधाई हो
भोले के बरात ल बड़ सुग्घर ढंग ले घनाक्षरी म पिरोय हव वर्मा जी।बधाई
ReplyDeleteवाह भैया। शानदार मनहरण घनाक्षरी लिखे हव। सादर बधाई।
ReplyDeleteवाहह्ह्ह बड़ सुग्घर भोला के बिहाव के वर्णन मनहरण घनाक्षरी छंद मा, भइया जी
ReplyDeleteवाहह्ह्ह बड़ सुग्घर भोला के बिहाव के वर्णन मनहरण घनाक्षरी छंद मा, भइया जी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर मनहरण घनाक्षरी। शिव भोला के बिहाव बखान जीतेन्द्र भाई बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteअदभुत रचना सर
ReplyDeleteअदभुत रचना सर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बधाई हो भईया जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बधाई हो भईया जी
ReplyDeleteएक ले बढ़ के एक लाजवाब घनाक्षरी वाहहहह वाहहह खैरझिटिया जी।
ReplyDeleteबेहतरीन घनाक्षरी बर आपला बधाई
ReplyDeleteवाह वाह अनुपम सृजन।
ReplyDeleteआप सबको सादर नमन
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