अमृतध्वनि छंद -- श्री दिलीप कुमार वर्मा
1
जग के पालन हार प्रभु,बिनती सुनलव आज।
बिगड़ी सबो बनाय के,पूरा करदव काज।
पूरा करदव,काज हमर ला, शरण परे हन।
फँसे हवन सब,मोह मया मा,पाप करे हन।
झूठ बोल के,लूटत हावन,सब ला ठग के।
राह बता के,सुग्घर करलव,पालन जग के।
2
ऊपर वाला जानथे, कोन करे का काम।
सब ला फल ओ देत हे,नइ देखय ओ नाम।
नइ देखय ओ,नाम काखरो, पद का हावय।
जइसे करथे,करम इहाँ ओ,फल ला पावय।
राजा हो या,रहे भिखारी,गोरा काला।
करम मुताबिक,फल देवत हे, ऊपर वाला।
3
रसता बने बनाय लव,दे भविष्य के ध्यान।
काली उँगली झन उठय,तभ्भे पाहू मान।
तभ्भे पाहू,मान जान लव,कहना मानव।
रसता बिगड़े,गारी खाहू, सच ला जानव।
पुरखा मनके, गलती खातिर,होगे खसता।
भाई भाई, झगरा माते, बिगड़े रसता।
4
मर जाही ओ एक दिन,जे हर जग मा आय।
राजा चाहे रंक हो,माटी मा मिलजाय।
माटी मा मिल,जाय सबोझन,कतको करलय।
हीरा मोती,सोना चाँदी, कतको भरलय।
ये धन दौलत,महल अटारी,काय बचाही।
काल आय ले,बाँच सके ना,सब मर जाही।
5
मन के पीरा का कहँव,नइ हे कछू उपाय।
अंतस हा रोवत रथे,काम धाम नइ भाय।
काम धाम नइ,भाय जगत के,अलकर लागे।
मन हे चंचल,रुके नही घर,अन्ते भागे।
जब ले बाई,दूर बसे हे, सुध नइ तन के।
काय बतावँव,समझ सकत हव,पीरा मन के।
6
बचपन के संगी बता,कब तक रहिबे संग।
ऊँच नीच जब हो जही, का तँय करबे तंग।
का तँय करबे,तंग बता दे,या सँग रहिबे।
रूखा सूखा,घाम छाँव के,दुख ला सहिबे।
खेलत खावत,उमर बढ़त हे, होगे पचपन।
समे जाय ले,सुरता आवय,दिन ओ बचपन।
7
जागत सुतबे जान ले,अड़बड़ हाबय चोर।
रतिहा चुपके आ जथे,करय नहीं ओ शोर।
करय नहीं ओ, शोर सराबा, सुनले संगी।
गली गली मा, पासत रहिथे,बड़ उतलंगी।
सुन्ना घर ला, देख खुसरथे,बनथे भागत।
चोर उच्चक्का,घूमत हाबय,रहिबे जागत।
8
करिया बादर देख के,सबके मन हरसाय।
गरज चमक पानी गिरे,झूमन नाचन भाय।
झूमन नाचन,भाय सबो ला, करके हल्ला।
येती ओती,गरुवा तक हर,भागय पल्ला।
खेत खार अउ,नदिया नरवा,भरगे तरिया।
उमड़ घुमड़ के,जब बरसावय, बादर करिया।
9
पढ़ना लिखना छोंड़ के,करत हवव का काम।
बचपन बीते हे नहीं,का पाहू तुम दाम।
का पाहू तुम,दाम बता दव,मिहनत करके।
टूट जही तन,रूठ जही मन,पीरा धरके।
अभी बहुत हे, लम्बा रसता,हाबय चढ़ना।
आके इसकुल,सीखव संगी,लिखना पढ़ना।
10
सावन मा शिवनाथ के,दर्शन बर सब जाय।
फूल पान पानी चढ़ा,मन चाहा वर पाय।
मन चाहा वर,पाय सबोझन,झोली भरथे।
भोले बाबा,अवघट दानी,पीरा हरथे।
चले कँवरिया, बोले बमबम,बड़ मनभावन।
ठनठन घण्टा,बजे शिवाला,पूरा सावन।
11
बिन पानी मछरी मरे,तइसे होवय हाल।
दूषित होवत हे धरा,सब के आगे काल।
सबके आगे,काल हलक मा,कुछ नइ बाँचय।
पेंड़ काट के,नदी पाट के,पाँव ल खाँचय।
खाना पानी,हवा बिना अब,का जिनगानी।
घोर प्रदूषण,सुख्खा धरती,हे बिन पानी।
12
रोटी बर तरसत रथे,कतको इहँचे लोग।
कतको मन फेकत रथे,नइ कर पावय भोग।
नइ कर पावय,भोग अन्न के,अतका रहिथे।
कोठी कोठी,भरे खजाना,दुनिया कहिथे।
सब जनता के,हक ला लूटे,बोटी बोटी।
हीरा मोती,का ओ खाही,खावय रोटी।
13
भागय नइ ओ काम ले,तन से जे लाचार।
मिहनत करथे रात दिन,नइ मानत हे हार।
नइ मानत हे, हार कभू ओ,सदा डटे हे।
कतको आवय, आंधी संगी, कहाँ हटे हे।
ओ प्रहरी कस,सजग रहत हे, हरपल जागय।
जाँगर पेरय, रोटी खातिर,ओ नइ भागय।
14
लकड़ी ले कुर्सी बने,गाड़ा तखत कपाट।
टेबल चौखट पीढ़वा,चौंकी बेलन खाट।
चौंकी बेलन,खाट बना ले,झट बन जाथे।
पुतरी पुतरा,खेल खिलौना,सब ला भाथे।
मुड़का ढेंकी,बैट बना ले, खावत ककड़ी।
पेटी तबला,कैरम खूंटी,बनथे लकड़ी।
15
राधा रोवत हे सखी,बइठे जमुना तीर।
कान्हा आवत नइ दिखे, कतका धरही धीर।
कतका धरही,धीर धरे बर,जिगरा चाही।
कोन जानथे,नटखट बिलवा,कब तक आही।
देखत रसता,चमके लेगिस,चंदा आधा।
जमुना के तट,बइठे बइठे,रोवय राधा।
16
दारू अब तो छोंड़ दे,लावत हवय विनास।
कतको पी के मर जथे,कतको रहिथे लास।
कतको रहिथे,लास बरोबर,निच्चट मरहा।
कतको झगरा,रहे मताये,जस बलकरहा।
घर कुरिया के,सोर कहाँ अब,करे बुधारू।
बन के भकला,घूमत हावय,पी के दारू।
17
हरियर चारा देख के,गरुवा भागय खार।
कतको ठेला बांध लय, नइ पावत हे पार।।
नइ पावत हे, पार नदी के,चारा माढ़े।
गरुवा छेंके,लाठी धर के,राउत ठाढ़े।
गरुवा घूमे , खोर गली अउ,पारा पारा।
बीच सड़क मा,खाके बइठे,हरियर चारा।
18
चंदा मामा दूर हे,रहे चँदैनी संग।
रतिहा बेरा आय के,बने जमाथे रंग।
बने जमाथे,रंग रंग के,खेल दिखाथे।
आधा पूरा,चंदा मामा,सब ला भाथे।
लाख चँदैनी,चटके रहिथे,कामा कामा।
कभू कभू तो,तनिक दिखे ना,चंदा मामा।
19
धरती के रक्षा करे,सैनिक हे तैयार।
सीमा मा ठाढ़े हवय,कभू न मानय हार।
कभू न मानय,हार जही ओ,बैरी मन ले।
साहस भरके,सदा खड़े हे, तन मन धन ले।
अपन देश बर, जान लुटाए,होथे भरती।
बने बने तब,रहिथे भइया, सबके धरती।
रचना कार--दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
वाहहहहह!हार्दिक बधाईयाँ
ReplyDeleteवाह ह ह ह ह ह ह ह ह ,अनमोल खजाना।।।एक ले बढ़के एक,
ReplyDeleteअनंत बधाई गुरुदेव👍👌💐💐💐
ReplyDeleteजबरदस्त सिरजन। अमृत ध्वनि छंद मा। संकलन बर गुरुदेव अऊ छंदकार दून्नो झन ला बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन भइया जी
ReplyDeleteअनुपम रचना सर
ReplyDeleteअनुपम रचना सर
ReplyDeleteगुरुदेव सादर प्रणां।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार, गुरुदेव ।सादर प्रणाम ।
ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत बधाई हो भाई जी
ReplyDeleteइंहा एक अमृतध्वनि लिखत ले पसीना छूट जाथे
अउ आप तो रिकार्ड कायम करे हव।
बहुत बहुत बधाई
अनमोल खजाना बर बधाई भैया जी🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteअति सुन्दर गुरुदेव जी सादर नमन
ReplyDeleteअनुपम खजाना
ReplyDeleteवाह दिलीप बहुत बढ़िया छंद रचना करे हस बाबू...��
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteसुग्घर सिरजन बर बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर गुरुदेव ।हार्दिक बधाई ।
ReplyDelete