अमृत ध्वनि छंद-दुर्गा शंकर इजारदार
(1) सत काम
करले तँय सत काम गा,जग मा होही नाम ,
संग करम हा जात हे ,करनी के जी काम ,
करनी के जी ,काम अमर हे ,जग मा सुनले ,
काम करे के ,पहली तँय हर ,थोकन गुनले ,
सत माटी में ,अपन करम के ,झोली भरले ,
नाम रखे बर ,अपन जगत मा,अतके करले ।।
(2)मनखे मनखे एक हे
मनखे मनखे एक हे ,एक खून के रंग ,
जात पाँत के भेद मा ,काबर करथव जंग ,
काबर करथव ,जंग सबो झन, मिलके सोंचव ,
सबो बरोबर ,सार बात हे ,कनिहा खोंचव ,
सब मनखे मा, एक जीव हे ,समझव झन खे ,
हाड़ माँस हा,घलो एक हे ,मनखे मनखे ।।
(3)मन के मैला
तन के मैला धोय तँय ,साबुन मल के जोर ,
मन के मैला देख ले ,रबड़ी माड़े तोर ,
रबड़ी माड़े ,तोर मोर के ,कपट भरे हे ,
जलन भाव मा ,करिया होके ,जरे परे हे ,
गरब भरे हे ,मन मा भारी ,करिया धन के ,
मैला धोले ,आगू मन के ,फिर धो तन के ।
छंदकार -दुर्गा शंकर इजारदार
सारंगढ़ (मौहापाली)
बढ़िया संदेश प्रधान अमृतध्वनि रचे हव इजारदार सर।बधाई हे
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना भैया
ReplyDeleteसुंदर अमृत ध्वनि छंद, बधाई हो
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई हो गुरुजी
माटी
अति सुन्दर गुरुदेव जी सादर नमन
ReplyDeleteबहुत सुग्घर छंद रचे हव आपमन आदरेय
ReplyDeleteसुघ्घर
ReplyDeleteबड़ सुग्घर रचना भैय्या जी
ReplyDeleteगाड़ा गाड़ा बधाई हे
सुघ्घर रचना भैया जी
ReplyDeleteअब्बड़ सुघ्घर गुरु बबा
ReplyDeleteबहुत सुग्घर भैया
ReplyDeleteबहुत शानदार सर
ReplyDeleteबहुत सुग्घर छन्द के सिरजन गुरूवर
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