अमृत ध्वनि छंद - मथुरा प्रसाद वर्मा
नारी ममता रूप ये, मया पिरित के खान ।
घर के सुख बर रात दिन,देथे तन मन प्रान।
देखे तन मन , प्रान लगा के, सेवा करथे।
खुद दुख सहिथे, अउ घर भर के, पीरा हरथे।
दाई-बेटी, बहिन सुवारी, अउ सँगवारी ।
अलग अलग हे, नॉव फेर हे , देवी नारी।1।
काँटा बोलय गोड़ ला, बन जा मोर मितान।
जनसेवक ला आज के, जोंक बरोबर जान।
जोंक बरोबर, जान मान ये, चुहकय सब ला।
बन के दाता, भाग्य विधाता, लूटय हम ला।
अपन स्वार्थ मा , धरम जात मा, बाँटय बाँटा।
हमर राह मा, बोंवत हे जी, सब दिन काँटा ।2।
फुलवारी मा मोंगरा , महर महर ममहाय।
परमारथ के काम हा, कभू न बिरथा जाय।
कभू न बिरथा, जाय हाय रे, बन उपकारी।
प्यास बुझाथे, सब ला भाथे, बादर कारी।
सैनिक मरथे , तबले करथे , पहरेदारी।
तभे देश हा, ममहावत हे, बन फुलवारी।3।
बोली बतरस घोर के, मुचुर-मुचुर मुस्काय।
मुखड़ा हे मनमोहिनी, हाँसत आवय जाय।
हाँसत आवय, जाय हाय रे, पास बलाथे।
तीर म आके,खनखन खनखन,चुरी बजाथे।
नैन मटक्का , मतवाली के, हँसी ठिठोली।
जी ललचाथे, अब गोरी के, गुरतुर बोली।4।
फागुन आगे ले सगा, गा ले तहुँ हा फाग।
बजा नँगाड़ा खोर मा, गा ले सातो राग।
गा ले सातो , राग मचा दे, हल्ला गुल्ला ।
आज बिरज मा,राधा सँग मा,नाचय लल्ला।
अब गोरी के, कारी नैना, आरी लागे।
मया बढ़ा ले , नैन मिला ले, फागुन आगे।5।
रचनाकार - मथुरा प्रसाद वर्मा
ग्राम कोलिहा, बलौदाबाजार (छत्तीसगढ़)
8889710210
बड सुग्घर भाव भैया जी
ReplyDeleteअति सुन्दर गुरुदेव जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आदरणीय।
ReplyDeleteबधाई हो भाई,सुग् रचना,👏👏💐💐
ReplyDeleteवाह्ह वाह वाह्ह भइया बहुते सुग्घर अमृतध्वनि छंद मा गजब रचना बहुत बहुत बधाई भइया
ReplyDeleteसुग्घर रचना
ReplyDeleteबहुत शानदार सर
ReplyDeleteबहुत ही शानदार रचना हे,वर्मा जी ।हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई वर्मा सर।सुग्घर सुग्घर अमृतध्वनि सिरजाय हव
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