आल्हा छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
जय गजानन महाराज(गीत)
मुस्कावै गजराज गजानन,मुचुर मुचुर मुसवा के संग।
गली गली घर खोर म बइठे,घोरय दया मया के रंग।
तोरन ताव तने सब तीरन,चारो कोती होवै शोर।
हूम धूप के धुँवा उड़ावै,बगरै सब्बो खूँट अँजोर।
लइका लोग सियान जमे के,मन मा छाये हवै उमंग।
मुस्कावै गजराज गजानन, मचुर मुचुर मुसवा के संग।
संझा बिहना होय आरती,चढ़े रोज लड्डू के भोग।
करै कृपा देवाधी देवा,भागे दुख विपदा जर रोग।
चार हाथ मा शोभा पावै,बड़े पेट मुख हाथी अंग।
मुस्कावै गजराज गजानन,मुचुर मुचुर मुसवा के संग।
होवै जग मा पहिली पूजा,सबले बड़े कहावै देव।
ज्ञान बुद्धि बल धन के दाता,सिरजावै जिनगी के नेव।
भगतन मन ला पार लगावै,दुष्टन मन करे ग तंग।
मुस्कावै गजराज गजानन,मुचुर मुचुर मुसवा के संग।
छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)
वाह वाह आल्हा छंद मा शानदार वर्णन।हार्दिक बधाई जितेंद्र जी।
ReplyDeleteवाह वाह आल्हा छंद मा शानदार वर्णन।हार्दिक बधाई जितेंद्र जी।
ReplyDeleteवाहःह भाई बेहतरीन आल्हा सृजन करे हव
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना गुरुजी
ReplyDeleteबधाई हो
महेन्द्र देवांगन माटी
बढ़िया रचे हव जितेंद्र भाई।मुसुर मुसुर खाथे अउ मुचुर मुचुर मुस्काथे।
ReplyDeleteहव सर
Deleteशानदार रचना सर
ReplyDeleteबहुत ही सुघ्घर रचना भईया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गुरुदेव जी।सादर नमन
ReplyDeleteवाह बहुतेच सुग्घर
ReplyDeleteबहुत सुग्घर ।हार्दिक बधाई ।
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