देवनागरी लिपि ला दीमक, बनके ठोलत हे।
अंग्रेजी हा आज इहाँ बड़, सर चढ़ बोलत हे।।
अलंकार रस हे समास अउ, छंद अलंकृत हे।
हिंदी भाषा सबले सुग्घर, जननी संस्कृत हे।।
अपन देश अउ गाँव शहर मा, होगे आज सगा।
दूसर ला का कहि जब अपने, देवत आज दगा।।
सुरुज किरण कस चम चम चमकय, अब पहिचान मिले।
जस बगरै दुनिया मा अड़बड़, अउ सम्मान मिले।।
पढ़व लिखव हिंदी सँगवारी, आगू तब बढ़ही।
काम काज के भाषा होही, रद्दा नव गढ़ही।।
ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी- कवर्धा
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घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
1
कहिनी कविता बसे,कृष्ण राम सीता बसे,
हिंदी भाषा जिया के जी,सबले निकट हे।
साकेत के सर्ग म जी,छंद गीत तर्ज म जी,
महाकाव्य खण्डकाय,हिंदी मा बिकट हे।
प्रेम पंत अउ निराला,रश्मिरथी मधुशाला,
उपन्यास एकांकी के,कथा अविकट हे।
साहित्य समृद्ध हवै,भाषा खूब सिद्ध हवै,
भारत भ्रमण बर,हिंदी हा टिकट हे।1।।।
2
नस नस मा घुरे हे, दया मया हा बुड़े हे,
आन बान शान हरे,भाषा मोर देस के।
माटी के महक धरे,झर झर झर झरे,
सबे के जिया मा बसे,भेद नहीं भेस के।
भारतेंदु के ये भाषा,सबके बने हे आशा,
चमके सूरज कस,दुख पीरा लेस के।
सबो चीज मा आगर,गागर म ये सागर,
भारत के भाग हरे,हिंदी घोड़ा रेस के।2।
3
सबे कोती चले हिंदी,घरो घर पले हिंदी।
गीत अउ कहानी हरे, थेभा ये जुबान के।।
समुंद के पानी सहीं, बहे गंगा रानी सहीं।
पर्वत पठार सहीं, ठाढ़े सीना तान के।।
ज्ञान ध्यान मान भरे,दुख दुखिया के हरे।
निकले आशीष बन,मुख ले सियान के।।
नेकी धर्मी गुणी धीर,भक्त देव सुर वीर।
बहे मुख ले सबे के,हिंदी हिन्दुस्तान के।3।
छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)छत्तीसगढ़
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ताटंक छंद - रामकली कारे
हमर राष्ट्र के हिन्दी भाखा , अड़बड़ ज्ञान माता हा माटी मा , सुग्घर रतन धरे हे जी ।।
बावन अक्षर तेरह स्वर हा ,राग ताल बन जाथे जी ।
सुर लय साज जभे मिलथे तब ,सरगम बने कहाथे जी।।
शब्द शब्द मा भरे हवय जी , गुरतुर रस हिन्दी बोली ।
सखी सहेली लागे जइसन ,प्यारी प्यारी ले भोली ।।
छंद सोरठा कविता दोहा ,गीत गजल अउ चौपाई ।
हमर राष्ट्र के निज गौरव हे ,सुग्घर कहिनी गा भाई ।।
उगती बुड़ती बगरे हाबय ,भारत भर हिन्दी भाखा ।
सबले बढ़िया लागत हाबय , बोले बर नइ हे लाखा ।।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण ,हिन्दी जा मिल जाथे जी ।
गाँव शहर के लोगन मन , हिन्दी ला पतियाथे जी ।।
एक रूप हे एकमई हे ,सरल सहज हे बोली हा।
सबो राज के घर अँगना मा , सुघर दिखे रंगोली हा।।
मलयाली गुजराती गोड़ी , छत्तीसगढ़ी भासा हे ।
हलबी भतरी सरगुजिया ला,जोड़त हिन्दी आसा हे ।
छंदकार -
रामकली कारे बालको नगर
कोरबा छत्तीसगढ़
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आशा देशमुख: बरवै छंद
सब भाषा के रानी ,हिंदी आय।
जिंखर माथा सुघ्घर ,बिंदी भाय।1
संस्कृत कन्या हिंदी,जेखर मान।
करत हवय सब दुनिया,बड़ गुणगान।2
गद्य पद्य कहिनी अउ,कविता छंद।
पढ़के सुनके आथे ,बड़ आनन्द।3
निशदिन ज्ञानी पंडित,माथ नवाँय।
किसम किसम के रचना,सब सिरजॉय।4
जब हिंदी के बोहत,हे रसधार।
शब्द शब्द मा सागर ,भरे अपार।5
हिंदी रानी बइठे ,जब दरबार।
अलंकार यति गति के ,हे सिंगार।6
कतका तोरे महिमा ,करँव बखान।
सबो डहर हे हिंदी,तोरे शान।7।
आशा देशमुख
एनटीपीसी रामगुंडम
तेलंगाना
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चौपाई छंद - बोधन राम निषादराज
सुग्घर भाखा हावय हिंदी।
भारत माता के ये बिंदी।।
गुरतुर एखर हावय बानी।
ऋषि मुनि बोलत हे बड़ ज्ञानी।।
एखर गुन महिमा सब गावव।
अपन अपन सन्देश सुनावव।।
आवव भइया जुरमिल बोलव।
भाखा मा अमरित ला घोलव।।
मनुहारी भाखा ये आवय।
बोली मा गदगद हो जावय।।
हिंदी तो सबके महतारी।
जिनगी के हावय सँगवारी।।
जम्मों राज देश मा बोलय।
जगह-जगह मधुरस कस घोलय।।
आवव सब सम्मान करौ गा।
हिंदी माता गान करौ गा।।
छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)
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मीता अग्रवाल: कज्जल छंद
हिन्दी भाखा करो मान,
भारत माँ के आन बान।
सात समुन्दर पार जान,
भाखा हिन्दी हे महान।।
बोली बाईस हे जान,
ईखर ले हवय पहिचान,
उप बोली ले मान दान,
हिन्दी फूले फरय मान।।
भाखा माआगू ग आज,
पहिरे जी हवय सरताज ,
कार्यालय के होय काज,
विश्व पटल मा करें राज।।
डाॅ मीता अग्रवाल
रायपुर छत्तीसगढ़
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कुंडलियाँ छंद - श्लेष चन्द्राकर
हिन्दी भारत देश के, भाखा हरय महान।
गोठ-बात येमा करवँ, देवव गा सम्मान।।
देवव गा सम्मान, बढ़ावव आघू येला।
ओला बने सिखाव, जेन नइ जानय तेला।।
भारत माँ के मान, हरय माथा के बिन्दी।
येला सब अपनाव, बने भाखा हे हिन्दी।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं. 27,
महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
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दोहा छंद-संतोष कुमार साहू
हिन्दी भाषा ये हरे,हमर सबो के खास।
लिखे पढ़े बर पूर्ण ये,सबके करथे आस।।
हरे राष्ट्र भाषा हमर,सबके इही जबान।
सहज सरल सुग्घर हवय,हमर इही हे शान।।
हिन्दी भाषा मान तँय,अड़बड़ देवय ज्ञान।
सबो ग्रंथ ला पा जबे,सुग्घर वेद पुरान।।
हिन्दी हिन्दूस्तान के,जब्बर भाषा मान।
अउ भाषा पिल्ला हरे,मई इही ला जान।।
सुन्दर गा ले गीत ला,हिन्दी बने सुहाय।
कतको भाषा बीच मा,सबके मन ला भाय।।
हिन्दी बोलव अउ सुनव,एला दव सम्मान।
माता भाषा ये हरे,इही हमर पहचान।।
हिन्दी के वक्ता बनव,बोलव अपने बात।
सुग्घर लेखक कवि बनव,अपन विचार बतात।।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख अउ,ईसाई के बोल।
सबो जाति अउ धर्म बर,हिन्दी हे अनमोल।।
छंदकार-संतोष कुमार साहू
ग्राम-रसेला(छुरा)
जिला-गरियाबंद, छत्तीसगढ़
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कुंडलियां छंद -द्वारिका प्रसाद लहरे
हिंदी भाषा देश के,जानैं सकल जहान।
रग रग मा हिंदी बसै,हिंदी ले पहिचान।
हिंदी ले पहिचान,हमर भारत माता के।
देवनागरी मान,व्याकरण उद्गाता के।
भारत के ये मान,माथ मा जइसे बिंदी।
हमर देश के शान,हमर ये भाषा हिंदी।।
छंदकार-द्वारिका प्रसाद लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा
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दोहा -छंद -सुधा शर्मा
देख मनावत हे सबो,हिंदी दिवस आज।
रहिथे उछाह एक दिन ,भूले सब देश राज।।
भाव भाव के लहरिया,हिंदी हे पतवार।
भूलव झन ये गोठ ला,भाखा तारन हार।।
अंतस उमड़े भाव जब,बने इही आधार।
आखर आखर बाँधके,फूटे सब उदगार।।
जम्मो भाखा मा हवे,हिंदी ह मूड़ ताज।
सीखत बिदेस मा घलो,हिंदी के सब राज़।।
अ से सीखव अनार गा,वर्ण वर्ण समझाय।
भाखा के सब ककहरा,हिंदी हमला सिखाय।।
सिरजन करता के हवे,हिंदी भावाधार।
कलम रथी बनके चले,रचना के संसार।।
हमर देस के सान हे,लगे माथा चंदन।
वाणी के वरदान हे,करव एकर वंदन।।
हिंदी भाखा कोठरी,हवे शब्द भंडार।
छंद रस अलंकार के,नवा नवा सिंगार।।
बाठ हवे ग बियाकरण,रीत नीत ल बताय।
एकर रद्दा रेंग के,भाखा हर भोगाय।।
परदेशी भाखा पढ़ें,मनखे बड़ इतराय।
देवता हावे घर मा,तीरथ घूमें जाय।।
हमर हरय गा अस्मिता,हावे संस्कृति धार।
झन ग बिगाड़ौ रूप ला,बनव सबो रखवार।।
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
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कज्जल छंद -सुधा शर्मा
हिंदी भाखा मीठ आय
कोनो दूसर नई भाय
अंतस के गा हवे राग
सतरंगी जस हवे फाग
हिंदी भाखा बड़ अमोल
बावन आखर हवे तोल
शब्द शब्द ग वाणी बोल
हिरदे के सब भाव खोल
हिन्दी ध्वजा फहरे रोज
कोन्हा कोन्हा खोज खोज
भारत के हवे पहिचान
हमर आन बान अउ शान
आखर आखर ग विज्ञान
शब्द शब्द में भरे ज्ञान
रमायन उपनिषद बखान
सिरजे सब साहित महान
गद्य पद्य सजे रंगीन
राग हावे गुरतुर बीन
जनउला हाना अउ गीत
जोरे देश बिदेस मीत
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
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दोहा छंद - श्लेष चन्द्राकर
हिन्दी भाखा मा करवँ, गुरतुर-गुरतुर गोठ।
हमर राष्ट्रभाखा बने, जग मा सबले पोठ।।
हिन्दी मा सबके बनयँ, पकड़ इहाँ मजबूत।
चढ़गे हवय उतार दौ, अँगरेजी के भूत।।
वैज्ञानिक भाखा हरय, हिन्दी जानव एक।
आखर आखर मा इखँर, गुण हे भरे कतेक।।
हमर आन अउ बान हे, हिन्दी भाखा श्लेष।
मनखे मन हा देश के, रकथें मया विशेष।।
रोवत हे पहिचान बर, हिन्दी भाखा आज।
हरे चिन्हारी देश के, रखव इखँर गा लाज।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं. 27,
महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
बहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
महेन्द्र देवांगन माटी
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर गुरुदेव जी। सादर नमन
ReplyDeleteबहुत सुग्घर संग्रह
ReplyDeleteबहुत सुग्घर संग्रह
ReplyDeleteमोर चौपाई छंद के पहला के चौथा चरण मा -
ReplyDelete*ऋषि-मुनि बोलत हे बड़ ज्ञानी* आही गुरुदेव जी।
बहुत बहुत बधाई सबो छंदसाधक मन ला।प्रणाम गुरु देव ।
ReplyDeleteसुग्घर संग्रह
बहुत सुग्घर संकलन तैयार होय हे...जम्मो छंद साधक मन ला अब्बड़ बधाई।
ReplyDeleteअब्बड़ सुग्घर संकलन हे गुरुदेव अइसन उदिम बर आप ला सौ सौ प्रणाम।।
ReplyDeleteबेहतरीन विशेषांक।
ReplyDeleteशानदार संकलन ।हार्दिक बधाई ।
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