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Saturday, April 2, 2022

चित्र आधारित छंदबद्ध रचना- इड़हड़

 


चित्र आधारित छंदबद्ध रचना- इड़हड़


बोधन जी: दोहा-


हरियर पाना कोचई,ले बेसन मा सान।

बरा बरोबर फेंट के,गरम तेल मा छान।।


दही मही के संग मा,देवौ बने बघार।

ईढ़र कढ़ही देख फिर,बने टपकही लार।।


बोधन राम निषादराज✍️

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*कुण्डलिया छंद--- ईढ़र*


बेसन बढ़िया फेट के, लान कोचई पान।

उसन भाप या तेल तल, बने चुरोवव जान।।

बने चुरोवव जान, काट अउ कोर कोर दव।

फोरन सुग्घर डार, मही मसलहा बना लव।।

देवव फेर बघार, खाव नित माढ़त ले मन।

कढ़ही ईढ़र संग, कइथला बनथे बेसन।।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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 दोहा


दार फेंट के पान ला,गोल गोल लपटाव |

तिपत तेल मा भूॕज के,बने झोर मा खाव ||


मछरी बिन काॕटा सही,ईढ़र सुघर बनाय |

नोनी बाबू डोकरा,गप गप सब्बो खाय ||


शिवानी कुर्रे 

जांजगीर चाॕपा

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 बने कोचई पान, मही मा अबड़ मिठाथे। 

पीसे चना पिसान, सबो के मन ला भाथे।। 

खालव जी भर पेट, उसन के इड़हर राँधे। 

मन भर के चटकार, रहव झन मुँह ला बाँधे।। 


सुमित्रा शिशिर

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 आशा देशमुख: कुण्डलिया छंद


इड़हर चलो बनाव जी, उरिद दार ला फेंट।

दही मही मा राँध लव,  खाव सबो भरपेट।।

खाव सबो भरपेट, स्वाद के गावव गाना।

 हर बारी के शान, कोचई के सब पाना।

सबके मन ला भाय , खाँय छोटे अउ बड़हर।

देखत मन ललचाय, साग अइसे हे इड़हर।।


आशा देशमुख

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कुंडलिया छंद 


इड़हर बनथे दार में ,चाहे बेसन ड़ार।

तरी उपर ला सेंक के, देवव मही बघार।

देवव मही  बघार,भात सँग गजब सुहाथे।

खालव भरत ड़कार,कढ़ी हा गजब मिठाथे।

घर घर कोचइ पान,दिखत हे हरियर हरियर। 

गर्मी के दिन भाय,बहुत मन ला ये इड़हर।।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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 कुण्डलिया छंद- इड़हर


ठंडा गरमी सब समय, मन ला इड़हर भाय।

दही मही के संग मा, ये हा गजब मिठाय।।

ये हा गजब मिठाय, राँध ले घलो मसलहा।

जीभ लमा के खींच, स्वाद मा हो बैसुरहा।।

येखर आज बताँव, पकाये के मैं फंडा।

दार उरिद के संग, मिठाथे इड़हर ठंडा।।


इड़हर गजब सुहाय हे, जब गरमी दिन आय।

बड़हर कोंन गरीब सब, बड़ा चाव से खाँय।।

बड़ा चाव से खाँय, तृप्त हो जावय चोला।

फेंट उरिद के दार, भाप मा उसनव ओला।।

मिलय कोचई पान, गाँव मा पहिली घर -घर।

जेखर संग लपेट, बनावँय सब झन इड़हर।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

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: कोचइ पत्ता काट के, बेसन दे हे सान। 

सुग्घर बरा बनाय हे, इडहर नोहय जान। 

समय जे दे नइ पावँय। 

तेन मन अइसन खावँय।1।


कोचइ पत्ता मा बने, बेसन लेप लपेट। 

काट-काट फिर भाप मा, सेंके बने समेट।  

तेन इडहर कहलाथे। 

मही मा गजब सुहाथे।2।  

दिलीप वर्मा

दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

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