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Friday, July 11, 2025

गुरु विशेष छंदबद्ध सृजनल

 गुरु विशेष छंदबद्ध सृजन



गुरु दोहा

गुरु किरपा होथे तभे,मिलते ज्ञान अपार।

जीवन सबके हो जथे, जगजग ले उजियार।।

टघलत रहिथे मोम कस, तन ला करत खुवार।

जिनगी हमर बनाय बर, गुरु करथे उपकार।।

रविबाला  ठाकुर 

स.लोहारा, कबीरधाम

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कौशल साहू दोहा -गुरु महिमा

अरुण निगम गुरुदेव हे, भाग अपन सहराँव।

चरनन चारोधाम हे, दरसन सुख नित पाँव।।

अंतस मा काई रचे, कइसे मन उजराँव। 

दुरगुन ला दुरिहा करौ,  पँवरी माथ नवाँव।।

गुरुवर हा तरुवर सहीं, निसदिन  करथे छाँव।

सरग बरोबर ठाँव मा, जिनगी भर हरसाँव।।

ज्ञान बूँद बरसा करौ, तरिया कस भर जाँव। 

गीत छंद सिरजन करँव, गुरु के महिमा गाँव।

कौशल कुमार साहू

जिला-बलौदाबाजार-भाटापारा

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रीझे यादव, छुरा गुरु-दोहा

भाग हमर बढ़िया हवै, मिलिस छंद परिवार।

करथौं माथ नॅंवाय के, बंदन बारंबार।।

हमर निगम गुरुदेव के, किरपा के फल आय।

जेमन मया दुलार दे, जम्मो छंद सिखाय।।

कक्षा के गुरु देव श्री, परम पूज्य बलराम।

शोभा दीदी के चरण, पहुॅंचै मोर प्रणाम।।

सुघर छंद परिवार हे, इहाॅं अबड़ गुणवान।

जुड़ के ए परिवार मा, हमरो बढ़गे मान।।

धीरज गुरु के देख के, अचरित भारी होय।

जतर खतर रचना तभो, बिन रिस करे सिखोय।।

 रुपया पैसा के बिना, ज्ञान मिलै अनमोल।

हिरदे हा गदगद हवै, कहिथे जय जय बोल।।

रीझे यादव छुरा

सत्र-

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 दोहा छंद 

" गुरुवर आभार "

देखिन सपना छंद के, गुरुवर अरुण कुमार।

बना पाठ्यक्रम योजना, पहुॅंचिन साधक द्वार।

ताकत मिडिया के समझ, जबर करिन शुरुवात।

बनत बनत बनगे बने, छंद के छ के बात।।

अनुशासन गुरु शिष्य के, सरल रहिस हे ढंग।

साधक मन के मेहनत, लानिस बढ़िया रंग।।

सत्र साधना मा मिलिन, हम ला गुरु बलराम।

शोभा मोहन संग मा, ज्ञानू चोवाराम।।

जेकर धीरज ले हमर, बाढ़िस बड़ विश्वास।

समय बचा के काम ले, सीखे आइस रास।।

छंद साधना ले मिलिस, भासा मात्रा ज्ञान।

धार लेखनी तेज हो, मिलत घलो सम्मान।।

जय हो गुरुवर आपके, देवव आशिर्वाद।

चलत रहै ये साधना, सत्र समापन बाद।

गुरु के वाणी आचरण, सरल सहज व्यवहार।

रहिबो जीवन भर ऋणी, करते सदा आभार।।

                 गजराज दास महंत 

                     साधक, सत्र -

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नारायण वर्मा बेमेतरा दोहा-गुरू वंदना

करँव वंदना आरती, मन के दियना बार।

हरव मोर अज्ञानता, देवव ज्ञान फुहार।।

शरण परे हँव तोर मँय, हाबँव निचट गँवार।

हाथ मूड़ मा राख दे, भव ले पार उतार।।

बानी ले अमरित झरै, करथे बहुत दुलार।

दिल के सरल उदार बड़, हाबय गुरू हमार।।

दूधारी तलवार कस, लगथे ये संसार।

ज्ञान रतन हा सार हे, बाकी माया झार।।

बुद्धि नानकुन धीर मति, महिमा तोर अपार।

टूटी फूटी गात हँव, दुरगुन मोर बिसार।।

हाड़ माँस के देह मा, अइसन दिव्य विचार।

गुरू तोर पइँया परँव, कर मोरो उद्धार।।

नारायण प्रसाद वर्मा 

सत्र-

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मनहरण घनाक्षरी।   ""गुरु ""

गुरु हे जगत सार, खूब करथे उद्धार, गुरु ज्ञान बिना कहाॅं, रथे इहाॅं मान हे 

दुनिया ला देथे ज्ञान, करें नहीं अभिमान, तभे गुरु ज्ञान बर, आए भगवान हे 

मीठ मीठ जी बोलथे, ज्ञान चक्षु ला खोलथे, देख सारे संसार मा, इही तो विद्वान हे 

गुरु वशिष्ठ राम के, सांदीपनि हा श्याम के, अरुण छंद के छः के, गुरु तो महान हे 

  संजय देवांगन सिमगा 

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दोहा छन्द - गुरु

मात पिता पहिली गुरू, दे जग में पहचान ।

दूसर गुरु शिक्षक बने, देथे अक्षर ज्ञान ।।

आत्म ज्ञान के बोध ला, मानुस जौन  कराय ।

सहीं झूठ के भेद ला, परखे ते गुरु आय ।।

मानुस तन के जतन बर, गुरु पद माथ नवाँव ।

नीर क्षीर के फर्क ला, सद्गुरु ले ही पांव ।।

चेला हे सुक्खा कुँआ, गुरुवर गंगा नीर ।

सींच सींच गुरु ज्ञान दे, मन के हरथे पीर ।।

श्वाँस श्वाँस में गुरु बसे, देवय गुदड़ी ज्ञान ।

सत मारग वोहा बता, जनवाए भगवान ।।

झूठा मायाजाल ले, छुटकारा देवाय ।

गुरुवर किरपा आपके, भव बंधन छोड़ाय ।।

मैं धुर्रा गुरु चरण के, टीकौं अपने माॅंथ।

सदा हमर राखे रहय, गुरुवर सिर में हाँथ ।।

नंदकिशोर साव नीरव

राजनांदगाव


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 सूर्यकांत गुप्ता  अपन बर आय..

घर  बइठे  गुरु  पाय  तॅंय, बन  पाए का शिष्य।

खुदे बिगाड़े हस अपन, फोकट 'कांत' भविष्य।।

फोकट 'कांत' भविष्य, बिगाड़े  हस जी अइसे।

बनत  डेढ़  हुसियार,  महा  ज्ञानी अस  जइसे।।

चिटिकुन जा अब चेत, छोड़  रहना  मुॅंह अंइठे।

धर ले गुरु के गोड़, सीख फिर से घर बइठे।।

गुरु के महिमा के इहॉं, कइसे करॅंव बखान।

परखे  समझे‌  हॅंव  कहॉं, मैं  मूरख  नादान।।

मैं  मूरख  नादान,  टोर  के  तो अनुशासन।

खोए हॅंवॅंव सियान, आपमन के अपनापन।।

कर देहव जी माफ, होय गलती बर शुरु के।

चरण नवॉंवॅंव माथ, निगम भैया जस गुरु के।।

सूर्यकांत गुप्ता, जुनवानी, भिलाई छत्तीसगढ़

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 गीतिका छंद गीत

गुरु बिना संसार में तो मिल सकय नइ ज्ञान हे।

रूप श्रद्धा भक्ति के ये गुरु हमर भगवान हे।।

कष्ट के पीरा न पावय जे रहै गुरु छाँव मा।

दुख भरे काँटा गड़े नइ वो मनुज के पाँव मा।

गुरु शरण अनमोल सबले गुरु कृपा वरदान हे।

रूप श्रद्धा भक्ति के ये गुरु हमर भगवान हे।।

मान चेला के बढ़ाथे सार जिनगी के बता।

दूरिहा रखथे बिपत ला गुरु खुशी के दे पता।

जेन रद्दा गुरु बताथे वो हमर पहिचान हे।

रूप श्रद्धा भक्ति के ये गुरु हमर भगवान हे।।

भागमानी हे अबड़ वो जे शरण गुरु के गहे।

मोह के जंजाल काटे भाव मा स्थिरता रहे।

सच सुमारग के बतइया सत्यगुरु गुनखान हे।

रूप श्रद्धा भक्ति के ये गुरु हमर भगवान हे।।

हे जिहाँ गुरुदेव पूजा रूप मा भगवान के।

जस सरग बनथे ठउर वो शक्ति पाके ज्ञान के।

धन्य हे वो घर जिहाँ नित गूँजथे गुरु गान हे।

रूप श्रद्धा भक्ति के ये गुरु हमर भगवान हे।।

     डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"

        भाटापारा छत्तीसगढ़

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पुरुषोत्तम ठेठवार 

मिल जाथे भगवान, गुरू जब बाट बताथे ।

गुरुवर देथे ज्ञान, सियानी गोठ सुनाथे ।।

चेला बन बुधमान , ज्ञान के दीप जलाथे ।

गुरुवर के आशीष , जगत मा नाम कमाथे

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मुक्तामणि छन्द गीत..

जपौं गुरू के नाँव ला,जे सबले हे प्यारा।

देवय नित आशीष जी,गुरुवर एक सहारा।।

चरण कमल बंदौं सदा,करौं गुरू के पूजा।

कहाँ इहाँ भगवान हे,गुरू सहीं जी दूजा।।

गुरू बहाथे ज्ञान के,अमरित जइसे धारा।

जपौं गुरू के नाँव ला,जे सबले हे प्यारा।।

जाने सकल जहान हा,गुरू ज्ञान के ज्ञाता।

देथे बड़ वरदान जी,सबके भाग्य विधाता।।

गुरू जाप ले हो जथे,दुख के सबो किनारा।

जपौं गुरू के नाँव ला,जे सबले हे प्यारा।।

डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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गुरु वंदना

"मत्तगयन्द सवैया"

श्री गुरु वंदन पाँव पखारत साँझ-बिहान सदा गुण गावौं।

हे गुरुदेव कृपा बरसादव ये जग मा मँय नाम कमावौं।।

ज्ञान बिना अँधियार सबो तुँहरे बिन थाह कहाँ मँय पावौं।

राह दिखा सद् मारग के मँय ज्ञान अँजोर हिया बगरावौं।।

मातु-पिता गुरुदेव तहीं अँगरी धरके लिखना सिखवाए।

आखर-आखर जोरत-जोरत छंद सुजान तहींच बनाए।।

सोझ चलौं सद् मारग मा अइसे बढ़िया  गुरु ज्ञान बताए।

आज उतार सकौं करजा नइ, हे गुरुदेव कृपा बरसाए।।

पार करौं भवसागर ले पतवार धरौ गुरुदेव उबारौ।

ये जग भार सहौं कतका अब जीव बियाकुल आवव तारौ।।

कोन इहाँ रखवार हवै गुरुदेव सम्हालौ काज सँवारौ।

हे विनती गुरुजी सुनले गलती कछु होय हमार बिसारौ।।

छंदकार -

बोधन राम निषादराज "विनायक"

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।। आल्हा छ्न्द ।।

छ्न्द विधा के हे गुरुदेवा, दिये छ्न्द के अमरित ज्ञान।

सुग्घर ये अभियान चला के, बना दिये सब ला गुणवान।।

छ्न्द सोरठा दोहा रोला, अमिट ज्ञान के हव भंडार।

जुग जुग चलहीं नाँव जगत मा, सुरता करहीं ये संसार।।

बूड़त नइया हे साधक के, राह दिखा के करथव पार।

नीरस थोथा बइठे मन बर,नवाँ नवाँ करथव उपचार।।

महूँ असिखहा ये डोंगा मा, बइठे हावँव आश लगाय।

तर जावँव ये भवसागर ले,जिनगी सुफल मोर हो जाय।।

दूर दूर के साधक जुड़थें, पाथें निष्छल निर्मल छाँव।

जिला शहर ला कोन कहे जी, हावय साधक कस्बा गाँव ।

सब साधक ला अपने मानय, रखथे दया मया के ठाँव।

अइसन हे गुरुदेव निगम जी, घोलन घोलन लागँव पाँव।

तातूराम धीवर

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गुरु वंदना

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शब्द शब्द मा जेकर होथे,

सबो शास्त्र के सार।

तीन देव कस सँउहे गुरु के,

महिमा अगम अपार।।

जेहा चेला के हिरदे के,हर लेथे अज्ञान।

बरत रथे मन के मंदिर मा, जोत अखंड समान।

मातु-पिता कस दया-मया के,जे छलकत भंडार।

तीन देव कस सँउहे गुरु के,महिमा अगम अपार।।

कइसे जीना हे दुनिया मा, जेन बताथे मर्म।

फोर-फोर समझाथे जे हा, का हे मानव धर्म।

अँगरी धर सद राह चलाथे, करथे बड़ उपकार।

तीन देव कस सँउहे गुरु के,महिमा अगम अपार।।

मिलै नहीं सिरतो कोनो ला, कभू बिना गुरु ज्ञान।

गुरु के चरण वंदना करथें, संत सिद्ध भगवान।

गुरु के किरपा बिन साधक के, नइ होवय बढ़वार।

तीन देव कस सँउहे गुरु के,महिमा अगम अपार।।

टूटी-फूटी गुन गावत हँव, अड़हा चोवा राम।

पूज्यनीय गुरुदेव निगम के, सुमर-सुमर के नाम।

पाये हाववँ मैं जेकर ले,  छंद- सुधा रसधार।

तीन देव कस सँउहे गुरु के,महिमा अगम अपार।।

चोवा राम वर्मा 'बादल '

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 अमृत के दोहे

अरझे माया मोह मा,जिनगी के सब तार।

गुरू तोर आशीष बिन,फँसे नाव मझधार।१।

जनम मरण के पार ला,कोनो हा नइ पाय।

जिनगी के उद्धार बर, रद्दा गुरू बताय।२।

प्रथम गुरु माँ-बाप हे,दूसर शिक्षक होय।

शिक्षा अउ संस्कार के,सदा बीज ये बोय।३।

मनखे जनम अमोल हे,बिरथा ये झन जाय।

गुरू तोर उपकार ले, मनुज मुक्ति ला पाय।४।

गुरू समर्पण भाव ले ,देवय हमला ज्ञान।

ऊँखर जम्मो सीख हा,लागय जस वरदान।५।

गुरू ज्ञान परताप ले,अइसे होय अँजोर ।

अँधियारी ला चीर के,जइसे निकलय भोर।६।

अहंकार ला त्याग के,कर सबके उपकार।

बात गुरु के मान ले,हो जाही उद्धार।७।

अमृत दास साहू

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राजेश निषाद ।।चौपई छंद।।

गुरु के कहना तैंहर मान, गुरु हा देथे सबला ज्ञान।

हवय दया के सागर जान,जग के हावय वो भगवान।।

अँधरा मन के आँखी आय,भटके ला वो राह बताय।

जउन शरण मा गुरु के जाय,वोहर कभू न धोखा खाय।।

गुरु सेवा मा लगा धियान, तब तो पाबे चोखा ज्ञान।

गुरु के महिमा भारी जान,देही तोला वो वरदान।।

गुरु के सेवा मा सब जाय, नइ तो छोटे बड़े कहाय।

सबला चोखा रहे बनाय,खोटा सिक्का तक चल जाय।।

मिले सहारा गुरु के तीर,रखले मनवा तैंहर धीर।

बदल जही तोरो तकदीर,हरथे गुरु हा सबके पीर।।

रचनाकार- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद रायपुर

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 दोहा छन्द- गुरु

गुरु हे पावन पूर्णिमा, गुरु अंजोरी रात।

गुरु सावन के मेघ बन, करय ज्ञान बरसात।।

मन मन्दिर के देव गुरु, वंदन कर कर जोर।

जिनगी के बन नेंव गुरु, दै खुशियाली भोर।।

देवय सुख उजियार गुरु, मेटय दुख अँधियार।

संस्कृति अउ संस्कार के, गुरु हावय भण्डार।।

शब्द ज्ञान के खान गुरु, आशा अउ विश्वास।

वोखर बड़ा नसीब हे, गुरु हे जेखर पास।।

गुरु के कोनों जाति नइ, नइहे कोनों धर्म।

देना सब ला ज्ञान सम, मानय पावन कर्म।।

गुरु कबीर रविदास बन, गुरु बन घासीदास।

ज्योति पुंज गुरु बुद्ध बन, देथे ज्ञान उजास।।

गजानंद गुरु के बिना, जिनगी भटका खाय।

बूंद अमिय गुरु ज्ञान के, जो पीये तर जाय।।

इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

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आओ सब वंदन करे, लेकर गुरु का नाम ।‌

गुरु जागृत ईश्वर यही, कर ले सभी प्रणाम ।।

कर ले सभी प्रणाम, शीश चरणों में रखकर ।।

हैं पवित्र यह धाम, याद सब करना जपकर ।।

गुरु है गुण की खान, प्रेम से महिमा गाओ ।

करें सभी सम्मान, जगत में मिलकर आओ।।

  संजय देवांगन सिमगा 

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 ज्ञानू 

 गुरु चरणन मा जेहर रहिथे, वो खुशहाल हवै |

ओखर जिनगी ले दुरिहा गा, सब जंजाल हवै ||

कतको घपटे अँधियारी हा, ज्ञान अँजोर करै ||

दिव्य ज्ञान ले पुंज प्रकाशित, सुग्घर भोर करै ||

सही गलत पहिचान करावय, शिक्षा दान करै |

तीनों लोक भुवन चौदा मा, थाथी ज्ञान भरै ||

गुरु के महिमा के दुनिया मा, अगम अनन्त हवै |

गुरु चरणन मा तन - मन अर्पित, मूड़ी रोज नवै ||

भाई कोनो कभू कपट छल, गुरु ले झन करहू |

ज्ञान बताये अमरित बानी, हिरदै मा धरहू ||

काम अबड़ आथे जिनगी मा, गुरु के ज्ञान दिए |

नाम तोर होवत दुनिया मा, वो पहिचान दिए ||

ज्ञानु

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गुरु वंदन दोहा छंद

प्रथम नमन गुरु देव ला, गुरुवर अबड़ महान।

अतुल ज्ञान भंडार ले, देथॅव हमला ज्ञान।।

शीश नँवा के मैं करँव, गुरु जी ल प्रणाम। 

गुरुवर के आशीष ले, बने सबौ जी काम।।

ज्ञानी सुरुज प्रकाश जस, हरथें घुप अँधियार।

जीवन मा सुख सुमन खिला, करथें जग उजियार।।

गुन अवगुन पहिचान के, देवँय सीख हजार। 

कृपा करै गुरु अनगिनत, खोलय प्रगति दुवार।।

देवतुल्य गुरु ला नमन, करुणा नेह समाय।

भूले भटके राह मा, धरके हाथ दिखाय।। 

रामकली कारे

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विजेन्द्र अरुणालय- दुर्मिल सवैया 

नव ज्ञान सुगंध भरे मन मा,नित सीख रहे सब छंद बने।     

गुरु के किरपा बरसे अतका,तब लेखन हा मकरंद बने। 

मन आलस जाय भगाय जभे,तब किस्मत होय बुलंद बने।

जब ज्ञान मिले तब मान बढ़े,अरुणालय हे गुलकंद बने।

विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव धरसीवाँ

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गुरु वंदन दोहा छंद

प्रथम नमन गुरु देव ला, गुरुवर अबड़ महान।

अतुल ज्ञान भंडार ले, देथॅव हमला ज्ञान।।

शीश नँवा के मैं करँव, गुरु ला रोज प्रणाम। 

गुरुवर के आशीष ले, बने सबौ जी काम।।

ज्ञानी सुरुज प्रकाश जस, हरथें घुप अँधियार।

ज्ञान जोत ला बार के, करथें जग उजियार।।

गुन अवगुन पहिचान के, देवँय सीख हजार। 

कृपा करै गुरु अनगिनत, खोलय प्रगति दुवार।।

देवतुल्य गुरु ला नमन, करुणा नेह समाय।

भूले भटके राह मा, धरके हाथ दिखाय।। 

रामकली कारे


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मॉं  होथे पहिली गुरू, अउ गुरु तेकर बाद।

संस्कार सॅंग ज्ञान दे, जिनगी करॅंय अबाद।।

जिनगी करॅंय अबाद, अबिरथा नइ होवन दॅंय।

बिन गुरु हे बरबाद, जान जीवन पक्का तॅंय।।

कर्जा कभू उतार, कोन सकहीं  इंखर गा।

करौ मोर स्वीकार, नमन गुरुवर सॅंग हे माॅं।।

सूर्यकांत गुप्ता, जुनवानी, भिलाई छत्तीसगढ़

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केंवरायदु गाँव 

मोर गाँव  के तीर मा,महानदी के धार।

हावय बुड़ती ड़हर मा,हमरो खेती खार।।

गाँव हवय गा पोखरा,राजिम ले कुछ दूर।

हावय खेती खार गा,नइ कोनो मजबूर।।

तरिया तिर मंदिर बने,होथे पूजा रोज।

रामायण सावन चले,फूल चढ़ावें खोज।।

भोले जी बइठे हवे,गौरी माँ के साथ।

फूल पान नरियर चढ़ा,महूँ झुकाववँ माथ।।

जगन्नाथ बलराम हे,बहिन सुभद्रा संग।

रथ निकले रथदूज मा,मेला भरथे रंग।।

दुर्गा माँ बइठे हवय,करके  शेर सवार।

देवत हे आशीष ला,करथे भव ले पार।।

 खिचड़ी कान्हा खात हे, कर्मा माता भोग। 

रक्षक हावे किसन हा,नहीं सतावे रोग।।

पढ़े लिखे बेटी बहू,निकले धरके हाथ।

बोली गुरतुर बोल के,हँसी ठिठोली साथ।।

मंदिर हे बजरंग के,हनुमत पारा नाँव।

बोली भाखा मीठ हे,नइये कीलिर काँव।।

मंदिर हे माँ शीतला,शीतला तरिया नाँव।

बर पीपर अउ लीम के,सुग्घर हाबे छाँव।।

चालिस हबे दुकान हा,लगथे इहाँ बजार।

सेमी गोभी मिल जथे,पारत रथें गुहार।।

गुलगुल भजिया मुँग बड़ा,मिले समोसा खूब।

आलू गुन्डा खा बने,रसगुल्ला में डूब।।

होली दीवाली मने,धरे मया के रंग।

नाचे गावेँ गा बजा,ढ़ोलक अउ मिरदंग।।

गजबे सुग्घर लागथे,कतका करँव बखान।

लइका मन बर हे मया,बड़का बर सम्मान।। 

केवरा यदु"मीरा"राजिम


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अनुज छत्तीसगढ़ी  रोला छंद 

गुरुजी देके ज्ञान, बनाथें सब ला ज्ञानी।

दया-मया के पाठ, सिखाथें गोठ सियानी।।

रखके अब्बड़ ध्यान, बाप कस जिनगी गढ़थें।

धरके बढ़िया बात, सबो झन आघू बढ़थें।।

अनुज छत्तीसगढ़िया 

पाली जिला-कोरबा

केंवरायदु मनहरण घनाक्षरी

अंधकार नाश करे, ज्ञान के प्रकाश भरे,

गुरुवर चरणों में,हमरो प्रणाम हे।

दोहा रोला छंद ज्ञान,गुरु ले मिले ग जान,

गुरु ल महान कहौ, पाँव चारो धाम हे।

जिये के कला सिखाये,अनगढ़ ला पढाये,

ज्ञान दान गुरु करे,तभे मिले नाम हे।

गुरु के चरण गहे,संतन महंत कहे,

बने वो महान तभे,कन्हैया श्रीराम हे।

केवरा यदु"मीरा"राजिम


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कमलेश प्रसाद  शरमाबाबू गुरु वंदना 

गुरु होथे सबले बड़े,हर युग पाँव पुजाय।

जेखर ऊपर हो कृपा,जिनगी सरग बनाय।।

जहाँ-जहाँ गुरुवर कृपा,सुखी सदा परिवार।

पूरा हे सब कामना,सबो राह उजियार।।

गुरु के महिमा जान लव,जे पावय हुसियार।

बिन गुरुवर के आदमी,होथें निचट गँवार।।

आशा दीदी हे नमन,तोला बारम्बार।

छंद सिखाये ज्ञान दे,भाई जइसे प्यार।।

अरुण निगम हमरो गुरु,देइन हमला ज्ञान।

मैं साधक हँव बीस के,पाये हँव कुछ दान।।

नमन मोर गुरु के चरण,वंदन बारम्बार।

सदा कृपा बरसत रहै,बनके नीर फुहार।।


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

 कटंगी-गंडई 

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Sumitra कामड़िया 

 गुरुवर के वंदन करव, हे गुरु गुन के खान। 

अग्यानी ला ज्ञान दे, गुरुवर हवे  महान।। 

मिलथे गुरुवर भाग ले, खोजत फिरथे लोग। 

सँउहत मिलगे गुरु दरस, बने रहिस सँजोग।। 

भीतर मधुरस मीठ हे, ऊपर हवय कठोर। 

कोवँर मन भीतर रखय, अउ देवय बड़ जोर।। 

देवय दीक्षा ज्ञान के, गरब गुमान ल छोड़। 

रद्दा सहीं दिखाय के,  टूटे मन दे जोड़।। 

ज्ञान उजाला बाँट के, हृदय रखय पट खोल। 

भीतर उपजे आस ला, लेवत रहय टटोल।। 

कण-कण गुरु के बास हे, गुरुवर हे भगवान। 

पीरा हर हीरा करय, गुरुवर हे धनवान।। 

मात पिता हे गुरु हमर, येला नवाँव शीश। 

इँकर चरण मा हे सदा, अबड़ अकन आशीष।। 

सुमित्रा कामड़िया शिशिर "


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Jaleshwar Das Manikpuri  गुरु वंदना -कुंडलिया

अपन जले के बाद मा, देवय अनुपम ज्ञान।

जपव गुरु के नाव ला,सिरतोन गुरु महान।।

सिरतोन गुरु महान,भजौ जी ऊंखर चरनन।

वंदना गाके  रोज ,करौं गा कतका बरनन।

विनती करै जलेश, गुरु संग गजब बड़प्पन।

करय जबर उपकार,  सुवारत छोड़ के अपन।।

   जलेश्वर दास मानिकपुरी ✍️ मोतिमपुर बेमेतरा

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jeetendra verma खैरझिटिया गुरु-कुंडलियाँ

होवै गुरुवर के कृपा, बाढ़ै तब गुण ज्ञान।

चेला के चरचा चले, पावै यस जस मान।।

पावै यस जस मान,गुणी अउ ज्ञानी बनके।

पा गुरु के आशीष,चलै नित चेला तनके।।

देख जगत इतिहास, बिना गुरु ज्ञानी रोवै।

गुरु हे जेखर तीर, ओखरे यस जस होवै।।

दुरगुन ला दुरिहा करे, मार ज्ञान के तीर।

बड़े कहाए देव ले, गुरु ए गंगा नीर।।

गुरु ए गंगा नीर, शरण आये ला तारे।

अँधियारी दुरिहाय, ज्ञान के जोती बारे।।

बने ठिहा के नेंव, सबर दिन छेड़े सत धुन।

जे घट गुरु के वास, तिहाँ ले भागे दुरगुन।।

गुरु के गुण अउ ज्ञान ले, खुलै शिष्य के भाग।

जगा शिष्य ला नींद ले, धोय चरित के दाग।।

धोय चरित के दाग, हाथ चेला के धरके।

चेला होय सजोर, सहारा पा गुरुवर के।।

हाँकिस जीवन डोर, कृष्ण अर्जुन अउ पुरु के।

महिमा अपरंपार, जगत मा हावै गुरु के।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबाछग

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अनिल सलाम, कांकेर गुरु दुर्मिल सवैया

सरहा घुनहा गिनहा मन हा, बिन ज्ञान इहाँ भटके बन मा।

बरसे किरपा गुरु के जब जी, तब ज्ञान सदा उपजे मन मा।

बनके बहिथे बड़ पावन गा, रस ज्ञान सहीं गुरु हा तन मा।। 

अरजी विनती करथौं गुरु के, भगवान बरोबर सावन मा।।

परिया परगे रिहिसे मन हा, गुरु ज्ञान बिना बिरथा भटके।

जब होइस जी गुरु ले मिलना, तब ज्ञान मिले सबले हटके।

अब छंद लिखे बर सीखत हौं, किरपा गुरु के मिलथे डटके।

परते रइहौं गुरु के पँवरी,  जिनगी भर मैं तिर मा सट के।।

अनिल सलाम

उरैया नरहरपुर कांकेर छत्तीसगढ़

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जगन्नाथ सिंह ध्रुव  गुरु - त्रिभंगी छन्द

मँय रोज बिहनिया, ये दुनिया मा,

एके ठन बस, काज करँव।

गुरु अरुण निगम के, छन्द शास्त्र मा,

घेरी बेरी,  नाज करँव।

सब छन्द सिखइया, गुरु निगम के,

चरण कमल मा, माथ धरँव।

अज्ञान टार के, मन भीतर मा,

नेक रोज दिन, ज्ञान भरँव।।

        सत्र  -

     जगन्नाथ ध्रुव 

चण्डी मंदिर घुँचापाली 

   बागबबाहरा

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जगन्नाथ सिंह ध्रुव  गुरु - त्रिभंगी छन्द

मँय रोज बिहनिया, ये दुनिया मा,

एके ठन बस, काज करौं।

गुरु अरुण निगम के, छन्द शास्त्र के,

घेरी बेरी,  पाँव परौं।

सब छन्द सिखइया, गुरु निगम के,

चरण कमल मा, माथ धरौं।

अज्ञान टार के, मन भीतर मा,

नेक रोज दिन, ज्ञान भरौं।।

        सत्र  -

     जगन्नाथ ध्रुव 

चण्डी मंदिर घुँचापाली 

   बागबबाहरा

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पात्रे जी दोहा छन्द- गुरु

जप ले गुरु के नाम मन, होही बेड़ापार।

गुरु जिनगी के नाव के, हावय खेवनहार।।

साँसा मा ले गुरु बसा, अंतस मा धर ध्यान।

बिन पाये गुरु ज्ञान ला, मिलय नहीं सम्मान।।

नइ होवय गुरु हा गरू, धर ज्ञानी के गोठ।

भाव भजन गुरु के करे, होथे जिनगी पोठ।।

हरथे गुरु अज्ञानता, ज्ञान जोत ला बार।

दूर बुराई ले रखे, दिसा दसा चतवार।।

गुरुवर फूल गुलाब के, महकावय मन बाग।

गुरु के पा सानिध्य ला, खिल जाथे सुख भाग।।

गावय गुरु गुणगान ला, सात खण्ड नौ दीप।

चमकय गुरु आशीष ले, सागर के भी सीप।।

पेड़ बने गुरु ज्ञान के, देथे जुड़हा छाँव।

गजानंद अंतस जुड़ा, पावन पा गुरु पाँव।।

✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर छत्तीसगढ़ 


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कौशल साहू दोहा -गुरु महिमा

अरुण निगम गुरुदेव हे, भाग अपन सहराँव।

चरनन चारोधाम हे, दरसन सुख नित पाँव।।

अंतस मा काई रचे, कइसे मन उजराँव। 

दुरगुन ला दुरिहा करौ,  पँवरी माथ नवाँव।।

गुरुवर हा तरुवर सहीं, निसदिन  करथे छाँव।

सरग बरोबर ठाँव मा, जिनगी भर हरसाँव।।

ज्ञान बूँद बरसा करौ, तरिया कस भर जाँव। 

गीत छंद सिरजन करँव, गुरु के महिमा गाँव।।

🙏🙏🌹🌹🙏🙏

कौशल कुमार साहू

जिला-बलौदाबाजार-भाटापारा


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नंदकिशोर साव  साव दोहा छन्द - गुरु

मात पिता पहिली गुरू, दे जग में पहचान ।

दूसर गुरु शिक्षक बने, देथे अक्षर ज्ञान ।।

आत्म ज्ञान के बोध ला, मानुस जौन  कराय ।

सहीं झूठ के भेद ला, परखे ते गुरु आय ।।

मानुस तन के जतन बर, गुरु पद माथ नवाँव ।

नीर क्षीर के फर्क ला, सद्गुरु ले ही पांव ।।

चेला हे सुक्खा कुँआ, गुरुवर गंगा नीर ।

सींच सींच गुरु ज्ञान दे, मन के हरथे पीर ।।

श्वाँस श्वाँस में गुरु बसे, देवय गुदड़ी ज्ञान ।

सत मारग वोहा बता, जनवाए भगवान ।।

झूठा मायाजाल ले, छुटकारा देवाय ।

गुरुवर किरपा आपके, भव बंधन छोड़ाय ।।

मैं धुर्रा गुरु चरण के, टीकौं अपने माॅंथ।

सदा हमर राखे रहय, गुरुवर सिर में हाँथ ।।

नंदकिशोर साव नीरव

राजनांदगाव

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कमलेश प्रसाद  शरमाबाबू गुरु वंदना 


गुरु होथे सबले बड़े,हर युग पाँव पुजाय।

जेखर ऊपर हो कृपा,जिनगी सरग बनाय।।

जहाँ-जहाँ गुरुवर कृपा,सुखी सदा परिवार।

पूरा हे सब कामना,सबो राह उजियार।।

गुरु के महिमा जान लव,जे पावय हुसियार।

बिन गुरुवर के आदमी,होथें निचट गँवार।।

अरुण निगम हमरो गुरु,देइन हमला ज्ञान।

मैं साधक हँव बीस के,पाये हँव कुछ दान।।

नमन मोर गुरु के चरण,वंदन बारम्बार।

सदा कृपा बरसत रहै,बनके नीर फुहार।।

🙏🙏🙏🌹🌹🌹

कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

 कटंगी-गंडई 

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पात्रे जी दोहा छन्द- गुरु

गुरु हे पावन पूर्णिमा, गुरु अंजोरी रात।

गुरु सावन के मेघ बन, करय ज्ञान बरसात।।

मन मन्दिर के देव गुरु, वंदन कर कर जोर।

जिनगी के बन नेंव गुरु, दै खुशियाली भोर।।

देवय सुख उजियार गुरु, मेटय दुख अँधियार।

संस्कृति अउ संस्कार के, गुरु हावय भण्डार।।

शब्द ज्ञान के खान गुरु, आशा अउ विश्वास।

वोखर बड़ा नसीब हे, गुरु हे जेखर पास।।

गुरु के कोनों जाति नइ, नइहे कोनों धर्म।

देना सब ला ज्ञान सम, मानय पावन कर्म।।

गुरु कबीर रविदास बन, गुरु बन घासीदास।

ज्योति पुंज गुरु बुद्ध बन, देथे ज्ञान उजास।।

गजानंद गुरु के बिना, जिनगी भटका खाय।

बूंद अमिय गुरु ज्ञान के, जो पीये तर जाय।।

शुभ बिहान, सादर प्रणाम🙏🏻💐

✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


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विजेन्द्र गुरु- दुर्मिल सवैया 

गुरु के बिन ज्ञान कहाँ मिलथे,भव पार कहाँ कउनो करथे I 

धरके पथ ला चलथे गुरु के,दुख पीर घलो प्रभु हा हरथे I

बिरथा नइ जाय कभू भकती,गुरु के बिन कोन इहाँ तरथे I 

भगवान समान हवै गुरु हा,अपमान करे उन हा जरथे I 

कथनी करनी सब एक रखै,मन मा सम भाव अपार हवै I

सब शिष्य करें सममान सदा,जिभिया सुरभोगन धार हवै I

भगवान समान कहे जग हा,कतका उकरे उपकार हवै I

रसता गढ़के अउ भाग जगा,जिनगी करथे उजियार हवै I

गुरु के बिन कोन कहाँ भइयाँ,करथे भवसागर पार इहाँ I

गुरु के जब हाथ रहे मुड़ मा,लगथे सिरतोन अधार इहाँ I 

हिरदे गठरी बड़ ज्ञान धरे,दुख पीर घलो चतवार इहाँ I

सत के रसता दिखला करके,जिनगी अउ देवय तार इहाँ I 

विजेंद्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव धरसीवां

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अनिल सलाम, कांकेर गुरु दुर्मिल सवैया

सरहा घुनहा गिनहा मन हा, बिन ज्ञान इहाँ भटके बन मा।

बरसे किरपा गुरु के जब जी, तब ज्ञान सदा उपजे मन मा।

बनके बहिथे बड़ पावन गा, रस ज्ञान सहीं गुरु हा तन मा।। 

अरजी विनती करथौं गुरु के, भगवान बरोबर सावन मा।।

परिया परगे रिहिसे मन हा, गुरु ज्ञान बिना बिरथा भटके।

जब होइस जी गुरु ले मिलना, तब ज्ञान मिले सबले हटके।

अब छंद लिखे बर सीखत हौं, किरपा गुरु के मिलथे डटके।

परते रइहौं गुरु के पँवरी,  जिनगी भर मैं तिर मा सट के।।

अनिल सलाम

उरैया नरहरपुर कांकेर छत्तीसगढ़

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दोहा

मॉं  होथे पहिली गुरू, अउ गुरु तेकर बाद।

संस्कार सॅंग ज्ञान दे, जिनगी करॅंय अबाद।।

जिनगी करॅंय अबाद, अबिरथा नइ होवन दॅंय।

बिन गुरु हे बरबाद, जान जीवन पक्का तॅंय।।

कर्जा कभू उतार, कोन सकहीं  इंखर गा।

करौ मोर स्वीकार, नमन गुरुवर सॅंग हे माॅं।।

सूर्यकांत गुप्ता, जुनवानी, भिलाई छत्तीसगढ़

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पुरुषोत्तम ठेठवार गुरु, गुरुदेव

मिल जाथे भगवान,  बाट गुरुवर बतलाये ।

गुरुवर देथे ज्ञान, सियानी गोठ सुनाये ।।

चेला बन बुधमान , ज्ञान के दीप जलाथे ।

गुरुवर के आशीष , जगत मा नाम कमाथे

गुरुवर बने‌ कुम्हार , सुघर चेला सिरजाथे ।

न्याय धरम के बात , बता रद्दा दिखलाथे ।।

 नइ पावॅंय भवपार‌, बिना गुरुवर के चेला ।

गुरु बिन जग ॲंधियार , ज्ञान पथ बढ़े झमेला ।।

बसथे चारों धाम , चरन गुरुवर के जानौ ।

सफल बनाथे काज , देव गुरुवर ला मानौ ।।

सदा झुकावव माथ , करौ गुरुवर के सेवा ।

करलो नेकी काज, करम के मिलही मेवा ।

दर्शन होथे ईश , बाट गुरुदेव बताथे ।

सही गलत पहिचान, बने गुरुवर फरियाथे ।

जय जय जय गुरुदेव , ज्ञान के हावव दाता ।

लगे रहे मोर माथ,आप हव भाग विधाता ।।

डी पी लहरे सरसी छन्द गीत

गुरू चरण के वंदन कर लव,ए ही तीरथ धाम।

हाथ जोर के कर लव संगी,पूजा आठो याम।।

गुरू ज्ञान हा तारय जग ले,करय सदा कल्यान।

ज्ञान सीख हे पावन गंगा,कर लव जी असनान।।

 जपत रहौ जी ध्यान लगाके,सदा गुरू के नाम।

गुरू चरण के वंदन कर लव,ए ही चारो धाम।।

अपन पूत के जइसे सब ला,गुरू धरावय ज्ञान।

गुरू शरन मा जे हर जावय,बन जावय गुणवान।

परगट देवा पूजौ संगी,पखरा के का काम।

गुरू चरण के वंदन कर लव,ए ही तीरथ धाम।।

गुरू करावय जानौ भैया,असल-नकल पहिचान।

बाधा-बिपदा छिन मा टारय,मेटय मन अभिमान।।

गुरू कृपा बरसावय निशदिन,टारय दुख के घाम।

गुरू चरण के वंदन कर लव,ए ही तीरथ धाम।।

डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़


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गुरु

गुरु के करथव वंदना,गुरु ज्ञान के खान। 

बिन गुरु ज्ञान मिलय नही, मिलय नही सम्मान।। 

गुरु बानी अनमाेल हे,अंतस ले दे ध्यान। 

आस अउ विश्वास भरय,पंथ बनय आसान।। 

गुरु अइसन दीपक हवय,जर-जर करय प्रकाश। 

ज्ञान ध्यान कौसल भरय, जिनगी बर आकास।। 

जिहांँ-जिहांँ ले सीखथस,तँउने ला गुरु मान। 

जीव सबों मा गुरु छिपे, अंतस ले पहिचान।। 

ज्ञान दीप बाती बरय, गुरु करथें उपकार। 

जगमग-जगमग जोत हे,महिमा अगम अपार।। 

गुरु दीपक अइसन बरय, जोत जरय निज ज्ञान। 

माटी ला आकार दे,आँच दिही पहचान।।

डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़

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ओम प्रकाश अंकुर सरसी छंद -

        गुरु के महिमा 

  करै दूर  गुरु जिनगी ले तम ,लावै सुघर अँजोर।

मिलै जउन मन ला ज्ञानी गुरु, होवै अबड़ सजोर।

होथें गुरु ईश्वर ले बढ़के,देवौ इन ला मान।

निकालथें विपदा ले सब ला,होथें अबड़ महान ।

सॅंवारथे कच्चा माटी ला  ,देथें सुग्घर ज्ञान।

जानकार वो नीति नियम के,देथें येमा ध्यान।

करथैं गुरु के जे नित सेवा, होथैं वो गुणवान।

जग मा वोकर सोर बगरथे,पाथै वो सम्मान।

              ओमप्रकाश साहू अंकुर 

                सुरगी, राजनांदगांव

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कमलेश प्रसाद शरमाबाबू आभार सवैया 


तगण -  बार 

×

आभार मैं का जतावौं गुरू जी नहीं बोल पावौं मुँहू ले इहाँ गोठ।

काला बताहूँ काला सुनाहूँ रहे फोसवा ला बनाये बने पोठ।

जेने ह मोला कहै भोकवा आज वोहा लजावै कहै छंद हे मोठ।

काली रहे केंवची एक आदा उही ला बनाये गुरू जी तहीं सोंठ।

कमलेश प्रसाद शर्माबाबू ✍️

कटंगी-गंडई जिला केसीजी 

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ओम प्रकाश अंकुर सरसी छंद -

        गुरु के महिमा 

  करै दूर  गुरु जिनगी ले तम ,लावै सुघर अँजोर।

मिलै जउन मन ला ज्ञानी गुरु, होवै अबड़ सजोर।

होथें गुरु ईश्वर ले बढ़के,देवौ इन ला मान।

निकालथें विपदा ले सब ला,होथें अबड़ महान ।

सॅंवारथे कच्चा माटी ला  ,देथें सुग्घर ज्ञान।

जानकार वो नीति नियम के,देथें येमा ध्यान।

करथैं गुरु के जे नित सेवा, होथैं वो गुणवान।

जग मा वोकर सोर बगरथे,पाथै वो सम्मान।

              ओमप्रकाश साहू अंकुर 

                सुरगी, राजनांदगांव

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मुकेश  मदिरा सवैया-- गुरु

पाँव पखारँव तोर सदा मन के तँय मोर विकार हरे।

जोत जलावँव ध्यान लगा गुरुजी तुरते भव पार करे।।

माथ नवा गुरु के पद मा सत अंतस भीतर ज्ञान भरे।

देव बरोबर हे गुरु हा भजले मनवा अँधियार टरे।।

मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबाछ.ग.

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आभार सवैया


तगण -  बार 

× 

आभार गुरू जी 

आभार मैं का जतावौं गुरू जी नहीं बोल पावौं मुँहू ले इहाँ गोठ।

काला बताहूँ कते ला सुनाहूँ रहे फोसवा ला बनाये बने पोठ।

जेने ह मोला कहै भोकवा आज वोहा लजावै कहै छंद हे मोठ।

काली लगै केंवची एक आदा उही ला बनाये गुरू जी तहीं सोठ।

कमलेश प्रसाद शर्माबाबू ✍️

कटंगी-गंडई जिला केसीजी 

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दोहे

        _तुषार शर्मा "नादान" सत्र  

गुरु के चरण पखार लौ, कर लौ अमरित पान।

गुरु के पद रज मा सदा, बसथे सकल जहान।।।।

अनपढ़ हा ज्ञानी बनै, गुरु जब पाठ पढ़ाय।

होय सफल हर काम मा, गुरु के संगत पाय।।।।

मातु-पिता गुरु तीन के, करहू झन अपमान।

इन कस जग मा नइ हवै, हितवा दूसर आन।।।।

करत हवै नादान‌ हा, विनती बारम्बार।

करै कृपा गुरु मोर बर, मिलै  मुक्ति के द्वार।।।।

🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

ज्ञानू  सोरठा छंद 

चरन नवावँव माथ, कृपा बनाये राखहू।

अपन हाथ मा हाथ, चलहू धरके हाथ गुरु।।

महिमा अगम अपार, कोनो पावय पार नइ। 

लेहू मोला तार, अतके बिनती मोर हे।।

गावय बेद पुरान, ऋषि मुनि ज्ञानी संत जन।

भरे ज्ञान के खान, महिमा गुरु के हे अबड़।।

पूजय अउ भगवान, जग मा सबले गुरु बड़े।।

हे गुरु नाम महान, अँधियारा मन के मिटय।।

जिनगी के आधार, पाए जें भागी बड़े। 

करथे भव ले पार, तारनहारी नाम गुरु।।

ज्ञानु

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मीता अग्रवाल गुरु

गुरु होथें कृपालु, होथें दयालु, ज्ञान दान के, खान हरै। 

पूछय जग सारा, ज्ञान अधारा, अंधकार ला, दूर करै। 

करथें उजियारा, अमरित धारा, बूँद बूँद झर, धार बनै। 

मूरख मति हर ले, गुन ले भर दे, बड़भागी हा, गुरू गुनै ।। 

 डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़

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कौशल साहू कुंडलिया छंद- छंद गुरु

दुनिया कहिथें छंद गुरु, गुरुवर अरुण कुमार।

मिलैं नहीं खोजे कहूँ, छंद ज्ञान भंडार।।

छंद ज्ञान भंडार, भरे हे साधक मन बर।

मुँह माँगा दै दान, खड़े हे याचक मन बर।।

करे समीक्षा पाठ, मापनी धरके गुनिया।

छंद खजाना पोठ,  पढ़त हे मनखे दुनिया।।

कौशल कुमार साहू -

जिला-बलौदाबाजार-भाटापारा

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नंदकिशोर साव  साव दोहा छन्द - गुरु

पहिली गुरु माता पिता, दे जग में पहचान ।

दूसर गुरु शिक्षक बने, देथे अक्षर ज्ञान ।।

आत्म ज्ञान के बोध ला, मानुस जौन  कराय ।

सहीं झूठ के भेद ला, परखे ते गुरु आय ।।

मानुस तन बर कर जतन, गुरु पद माथ नवाँव ।

नीर क्षीर के फर्क ला, सद्गुरु ले ही पांव ।।

चेला हे सुक्खा कुँआ, गुरुवर गंगा नीर ।

सींच सींच गुरु ज्ञान दे, मन के हरथे पीर ।।

श्वाँस श्वाँस में गुरु बसे, देवय गुदड़ी ज्ञान ।

सत मारग वोहा बता, जनवाए भगवान ।।

झूठा मायाजाल ले, छुटकारा देवाय ।

गुरुवर किरपा आपके, भव बंधन छोड़ाय ।।

मैं धुर्रा गुरु पाँव के, टीकौं अपने माॅंथ।

सदा हमर राखे रहय, गुरुवर सिर में हाँथ ।।

नंदकिशोर साव नीरव

राजनांदगाव


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ओम प्रकाश अंकुर सादर समीक्षार्थ 

सरसी छंद -

        गुरु के महिमा 

  करै दूर  गुरु जिनगी ले तम ,लावै सुघर अँजोर।

मिलै जउन मन ला ज्ञानी गुरु, होवै अबड़ सजोर।

होथें गुरु ईश्वर ले बढ़के,देवौ इन ला मान।

निकालथें विपदा ले सब ला,होथें अबड़ महान ।

सॅंवारथे कच्चा माटी ला  ,देथें सुग्घर ज्ञान।

जानकार वो नीति नियम के,देथें येमा ध्यान।

करथैं गुरु के जे नित सेवा, होथैं वो गुणवान।

जग मा वोकर सोर बगरथे,पाथै वो सम्मान।

              ओमप्रकाश साहू अंकुर 

                सुरगी, राजनांदगांव

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कमलेश प्रसाद  शरमाबाबू आभार सवैया 


तगण -  बार 

× 

आभार गुरू जी 

आभार मैं का जतावौं गुरू जी नहीं बोल पावौं मुँहू ले इहाँ गोठ।

काला बताहूँ कते ला सुनाहूँ रहे फोसवा ला बनाये बने पोठ।

जेने ह मोला कहै भोकवा आज वोहा लजावै कहै छंद हे मोठ।

काली लगै केंवची एक आदा उही ला बनाये गुरू जी तहीं सोठ।

कमलेश प्रसाद शर्माबाबू ✍️

कटंगी-गंडई जिला केसीजी 

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मीता अग्रवाल गुरु

गुरु होथें कृपालु, होथें दयालु, ज्ञान दान के, खान हरै। 

पूछय जग सारा, ज्ञान अधारा, अंधकार ला, दूर करै। 

करथें उजियारा, अमरित धारा, बूँद बूँद झर, धार बनै। 

मूरख मति हर ले, गुन ले भर दे, बड़भागी हा, गुरू गुनै ।। 

 डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़

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कमलेश प्रसाद  शरमाबाबू आभार सवैया 

तगण-  बार

आभार गुरू जी 

आभार भारी गुरू आज तोरे रहे दूध ला आज घीवे बनायेव। 

पैसा न कौड़ी लिये दाम एको तभो आज मोला ग छंदे सिखायेव।

कोनो इहाँ आज साथी कहाँ हे बिना भेद के आप साथे निभायेव।

मोला हवै नाज भारी गुरू जी अनाड़ी बटोही ल रद्दा दिखायेव।

कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

कटंगी-गंडई जिला केसीजी

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   गुरु गोविंद - समान

       विधा -कुंडलिया छंद

गुरुवर  ग्यान अपार हे,गुरु- गोविंद समान।

गुरुवर बंदन साधना, देथे विद्या दान।।

देथे विद्या दान, निभाथे जिम्मेदारी।

श्रम करथे दिन- रात, परम् होथे  उपकारी।।

गुरु बिन जग अँधियार, संत बानी हे हितकर।

पंथ सदा उजियार पूज्य हे जग मा गुरुवर।।

अमितारवि दुबे©®

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ओम प्रकाश अंकुर सरसी छंद -

        गुरु के महिमा 

  दूर करै गुरु तम जिनगी ले, लावै सुघर अँजोर।

मिलै जउन मन ला ज्ञानी गुरु,  होवै अबड़ सजोर।

होथें गुरु ईश्वर ले बढ़के, देवौ इन ला मान।

निकालथें विपदा ले सब ला, होथें अबड़ महान ।

सॅंवारथे कच्चा माटी ला, देथें सुग्घर ज्ञान।

जानकार वो नीति नियम के, देथें येमा ध्यान।

करथैं गुरु के जे नित सेवा,  होथैं वो गुणवान।

जग मा वोकर सोर बगरथे, पाथै वो सम्मान।

              ओमप्रकाश साहू अंकुर 

                सुरगी, राजनांदगांव

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Dropdi साहू  Sahu ‌जयकारी छंद -"गुरू"

           

गुरू ज्ञान जस अमरित धार। महिमा जेकर अपरम्पार।।

सत के मारग ला देखाय। ज्ञान पाय चेला तर जाय।।

ऋषि वशिष्ठ ये कुल गुरु धाम। वेद शास्त्र सीखे प्रभु राम।।

विश्वामित्र हा गुरू महान। सीखे राम जी धनुष बान।।

अइसन गुरू चरण सुख धाम। तर के राम बने तब राम।।

दुख मा धीरज धर लव सार। गुरू लगाथे जिनगी पार।।

गुरू द्रोण अर्जुन के भाग। जीत युद्ध के जानिस पाग।।

बिना गुरू के मिलय न सीख। गुरू आय भगवान सरीख।।

संदीपनी के आश्रम जाय। गुरू मंत्र ले कृष्ण नहाय।।

गुरू कृपा के परथे छाप। पाप पुण्य ला देथे नाप।।

गुरू सिखाथे मंत्र उचार। पाप नास कर हर भुइँ भार।।

सतसंगत धर सुजन उबार। बइरी मार संत ला तार।।

                 

द्रोपती साहू "सरसिज"

छंद साधक सत्र-

महासमुंद छत्तीसगढ़

   कुण्डलिया-गुरु

देथे हमला ज्ञान गुरु,करथे जी उपकार।

अँगरी धर के लेजथे,अँधियारी ला टार।।

अँधियारी ला टार,अँजोरी ला तो लाथे।

गुनकारी उपदेश,सबो साधक मन भाथे।।

जिनगी मा सुख शांति,ध्यान धर मनखे लेथे।।

जग मा हवै महान,सिखोना गुरु हा देथे।।

राजकिशोर धिरही

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नंदकिशोर साव  साव दोहा छन्द - गुरु

पहिली गुरु माता पिता, दे जग में पहचान ।

दूसर गुरु शिक्षक बने, देथे अक्षर ज्ञान ।।

आत्म ज्ञान के बोध ला, मानुस जौन  कराय ।

सहीं झूठ के भेद ला, परखे ते गुरु आय ।।

मानुस तन बर कर जतन, गुरु पद माथ नवाँव ।

नीर क्षीर के फर्क ला, सद्गुरु ले ही पांव ।।

चेला हे सुक्खा कुँआ, गुरुवर गंगा नीर ।

सींच सींच गुरु ज्ञान दे, मन के हरथे पीर ।।

श्वाँस श्वाँस में गुरु बसे, देवय गुदड़ी ज्ञान ।

सत मारग वोहा बता, जनवाए भगवान ।।

झूठा मायाजाल ले, छुटकारा देवाय ।

गुरुवर किरपा आपके, भव बंधन छोड़ाय ।।

मैं धुर्रा गुरु पाँव के, टीकौं अपने माॅंथ।

सदा हमर राखे रहय, गुरुवर सिर में हाँथ ।।

नंदकिशोर साव नीरव

राजनांदगाव

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ताटंक छन्द गीत -  गुरु (10/07/2025)


गुरु के बिन ये जिनगी बिरथा, गुरु सत ज्ञान बताथे जी ।

मन के मंदिर मा बइठा लव, गुरु भव पार लगाथे जी ।।


गुरु हे ज्ञानी अन्तर्यामी, गुरु हे पालन कर्ता जी ।

ॲंधियारी के नाश करइया, गुरु हे दुख के हर्ता जी ।।


पाॅंव तरी ले निरमल धारा, गंगा के बोहाथे जी ।

मन के मंदिर मा बइठा लव, गुरु भव पार लगाथे जी ।।


ज्ञान बात गुरु के धर लेवव, ले लव शिक्षा दीक्षा जी ।

कट जाही तन मन के बाधा, करहू पास परीक्षा जी ।।


साथ कभू झन छोड़व गुरु के, मंजिल मा पहुॅंचाथे जी ।

मन के मंदिर मा बइठा लव, गुरु भव पार लगाथे जी ।।


मातु-पिता हा ये दुनिया मा , लइका ला अवतारे हे ।

सही गलत के भेद बतइया, गुरु नित भाग सॅंवारे हे ।।


गुरु के पूजा सुमिरन कर लव, किरपा ला बरसाथे जी ।

मन के मंदिर मा बइठा लव, गुरु भव पार लगाथे जी ।।


छन्दकार, गीतकार

ओम प्रकाश पात्रे 'ओम '

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 *गुरु वंदना*

गुरुवर के आशीष हे, मनखे बर वरदान।

जेला मिलथे गुरुकृपा, वो बनथे गुनवान।

वो बनथे गुनवान, नाँव यश जग मा करथे।

सद्गुरु के सद्ज्ञान, सबो पीरा ला हरथे।

शिक्षा अउ संस्कार, जगाथे मन के भीतर।

सउहें देव सरूप, धरा मा होथे गुरुवर।।


अग्यानी मन के घलो, कर देथे उद्धार।

गुरु गंगा ये ज्ञान के, जग के तारनहार।

जग के तारनहार, पार भवसागर करथे।

नीत-अनीत विवेक, जगा के पीरा हरथे।

हर लेथे अग्यान, सुनाके गोठ सियानी।

जे करथे गुरु ध्यान, रहय नइ वो अग्यानी।।


वंदन गुरु चरनन करव, धर हिरदय मा ध्यान।

गुरु बिन नइ सद्गति मिले, कहे स्वयं भगवान।

कहे स्वयं भगवान, हवय गुरु महिमा भारी।

ओकर ज्ञान अँजोर, मिटाथे सब अँधियारी।

गुरु के पबरित ज्ञान, बनाये मन ला चंदन।

निश्चित हे कल्यान, करे ले गुरु पद वंदन।।

    

     *डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"*

        भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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 गुरु ज्ञान*

*विधा- सरसी छंद*

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भाव बिना भगवान मिलय नइ, त्याग बिना गुरु ज्ञान।

ज्ञान बिना सतमार्ग मिलय नइ, करम बिना पहिचान।।


महल अटारी छोड़ सोन के, धरके जोगी भेष।

राम कृष्ण भगवान घलो मन, पाइँन ज्ञान विशेष।

गुरुकुल जाके गुरु चरनन मा, सदा लगाइँन ध्यान।।

ज्ञान बिना सतमार्ग मिलय नइ, करम बिना पहिचान।।


चेला माटी के लोंदा ये, गुरुवर रूप कुम्हार।

ओला सुग्घर कलश बनाथे, छलका अपन दुलार।

शिष्य समर्पन भाव रखे ता, बन जाथे गुन खान।

ज्ञान बिना सतमार्ग मिलय नइ, करम बिना पहिचान।।


गुरु चरनन के सेवा करके, मिलथे सुख के छाँव।

नीति अनीति समझ मा आथे, गड़े न काँटा पाँव।

अनुशासित जिनगी बन जाथे, पाके ज्ञान महान।

ज्ञान बिना सतमार्ग मिलय नइ, करम बिना पहिचान।।


गावँव कइसे महिमा गुरुवर, मैं हँव मनखे छोट।

हँव पापी अन्याय करइया, भरे हवय मन खोट।

अपन शरण मा राखव सद्गुरु, "साँची" हे नादान।

ज्ञान बिना सतमार्ग मिलय नइ, करम बिना पहिचान।।


    *डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"*

        भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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गुरु महिमा*

*विधा- प्रदीप छंद*

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गुरु बिन नइ गोविंद मिलय ये, जानत सकल जहान हे।

पाप करम ले मुक्त करइया, गुरु के अमरित ज्ञान हे।।


धरम-करम के शिक्षा देथे, पबरित बानी बोलथे।

हिरदय मा संस्कार जगाके, बुध के आँखी खोलथे।

वेद-शास्त्र के ज्ञान बतइया, गुरुवर गुन के खान हे।

पाप करम ले मुक्त करइया, गुरु के अमरित ज्ञान हे।।


गुरु बानी ला सुनके आथे, मानवता ब्यवहार मा।

मिलय नहीं सद्गति मनखे ला, गुरुवर बिन संसार मा।

मातु-पिता भगवान घलो ले, बढ़के गुरु के स्थान हे।

पाप करम ले मुक्त करइया, गुरु के अमरित ज्ञान हे।।


नइ ये उपमा तीन लोक मा, गुरु किरपा वरदान के।

समझाके सद्ज्ञान बनाथे, अधिकारी सम्मान के।

अँगरी धर रद्दा देखइया, गुरु सउहें भगवान हे।

पाप करम ले मुक्त करइया, गुरु के अमरित ज्ञान हे।।


शिक्षा-दीक्षा गुरु ले पाके, बनथे सभ्य समाज जी।

अनुशासित संस्कारी मनखे, पहिरे यश के ताज जी।

बन जाथे गुरु ज्ञान छाँव मा, भुइयाँ सरग समान हे।

पाप करम ले मुक्त करइया, गुरु के अमरित ज्ञान हे।।


     *डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"*

        भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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3 comments:

  1. अद्भुत अद्भुत संकलन

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  2. सुग्घर संकलन। जम्मों छंदकार मन ला बहुत बहुत बधाई

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