*हमर राज के दर्शनीय स्थान- मनहरण घनाक्षरी छंद मा*
देखे के लाइक हवै, जघा कतको जी इहॉं,
जाय बर उॅंहा कोनो, झन सकुचाव जी।
कोनो ए धरम धाम, झरना गुफा हे बड़े,
ध्यान प्रभु मा लगाव, मन बहलाव जी।।
भरे हे खजाना इहॉं, खूबसूरती के बने,
देख देख घेरी बेरी, उही मा मोहाव जी।
धान के कटोरा वाले, राज ए छत्तीसगढ़,
महिमा एकर चारों, मुड़ा बगराव जी।।
डोंगरी म हवै माता, बमलाई कथें जेला,
टेशन डोंगरगढ़, उतर के जाव जी।
बगुलामुखी कहाथे, देवी बमलाई घलो,
दरसन पा के मूड़, अपन नवाव जी।।
श्रद्धा बिसवास धरे, दूनों हाथ जोड़ खड़े,
दुख फरिया के बने, माई ला बताव जी।
दम धरौ कुछ दिन,करहीं जी माता कृपा ,
छुटकारा दुख ले तो, पक्का तुम पाव जी।।
झरना ए चित्रकोट, संग मा तीरथगढ़,
इहॉं के नियाग्रा कथें, देखौ बरसात मा।
जघा जगदलपुर, रोड हे सनान तभो,
लग जथे सात घंटा, दुरुग ले आत मा।।
जतमई घटारानी, झरना ए भले छोटे,
सावन मा आथे जिहॉं, मजा तो नहात मा।
देखे के लाइक जघा, अऊ हे बहुत भाई,
अतके लिखाइस हे, अभी आधा रात मा।।
सूर्यकांत गुप्ता, जुनवानी, भिलाई (छत्तीसगढ़)
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मनभावन कोरबा-रूपमाला छंद
कोइला हा कोरबा के आय करिया सोन।
नीर हा हसदेव के जिनगी हरे सिरतोन।।
हे कटाकट बन बगीचा जानवर अउ जीव।
अर्थबेवस्था हमर छत्तीसगढ़ के नीव।।
माँ भवानी सर्वमँगला के हरे वरदान।
कोसगाई मातु मड़वा देय धन अउ धान।।
टारथे चैतुरगढ़िन दुख आपदा डर रोग।
एल्युमिनियम संग बिजली के बड़े उद्योग।।
बाँध बांगो हा बँधाये हे गजब के ऊँच।
बेंदरा भलवा कहे पथ छोड़ दुरिहा घूँच।।
साँप हाथी संग मा औषधि हवे भरमार।
मन लुभाये ऊँच झरना अउ नदी के धार।।
वास वनवासी करें संस्कृति अपन पोटार।
हाथ मा धरके धनुष खोजे बहेड़ा चार।।
मीठ बोली कोरवा गूँजय गली बन खोर।
आय बेपारी घलो सुन कोरबा के शोर।।
आय मनखे कोरबा मा सुन इहाँ के नाम।
देख के बन बाग झरना पाय सुख आराम।।
कारखाना झाड़ झरना कोइला के खान।
देश दुनिया मा चले बड़ कोरबा के नाम।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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ज्ञानू
छंद - विष्णुप्रद
छत्तीसगढ़ के पावन माटी, अबड़ महान हवै |
जिहाँ देवधामी के सँग मा, संत सुजान हवै ||
सिंहवासिनी देवी मंदिर, अउ पहाड़ गढ़िया |
हे अउ मलाजकुण्डम झरना, काकेंर म बढ़िया ||
क्षेत्र अबूझमाड़ हे सुन के, मन धुकुर- पुकुर जी |
नोगो- बागा जलप्रपात हे, नारायणपुर जी ||
नड्डापल्ली गुफा हवै अउ, सतधारा झरना |
बीजापुर के लंकापल्ली, देख लगे डर ना ||
जलप्रपात शबरी नदिया मा, हे रानीदरहा |
निकले हे चिटमिहिन दाइ ले, सुकमा के जर हा ||
चित्रकूट जलप्रपात तीरथगढ़, कतका सुग्घर हे |
गुफा कुटुमसर, कांगेर नदी, जम्मों बस्तर हे ||
केशकाल घाटी बड़ सुग्घर, मंदिर ठाँव हवै |
शिल्पग्राम ले अउ प्रसिद्ध हे, कोंडागांव हवै ||
बारसूर मा मामा- भाँचा, के तो मंदिर हे |
दंतेश्वरी शंखनी डंकनी, बसे नदी तिर हे ||
भोरमदेव सरोदा दादर, मोती महल किला |
रानीदहरा अउ पचराही, कबीरधाम जिला ||
हे प्रसिद्ध संगीत कला बर, खैरागढ़ नगरी |
धाम चोड़रा, कुंड नर्मदा, भँवरदाह भँवरी ||
नाँदगाँव पातालभैरवी, बड़ परताप कथे |
जावव डोंगरगढ़ बमलाई, मिट संताप जथे ||
बाँध मोंगरा, करिया डोंगर, जलप्रपात अइठे |
अम्बागढ़, अम्बादेवी के, कोरा मा बइठे ||
ज्ञानु
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विजेन्द्र चौपई छंद- छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल
हमर राज के हे पहचानI भिलई के लोहा ला जानII
हावय सुग्घर मैत्री बागI सबो धरम के देव प्रयागII
हरियर धनहा डोली खारI जगा-जगा हे नहर अपारII
गंगरेल के बाँध बँधायI गाँव शहर के प्यास बुझायII
कालाहांडी ऊँच पठारI गिरथे गा अमरित के धारII
चित्रकोट के हवय प्रपातI कतका जग मा हे विख्यातII
हवय रामगढ़ ऊँच पहाड़I करथे बांगों बाँध दहाड़II
पानी ले बिजली बन जाय I अँधियारी ला दूर भगायII
तीन नदी के संगम जान I तीरथ काशी काबा मानII
राजिम मा हावय राजीवI मोक्ष पाय के बनगे नींवII
हे झलमला इहाँ के आनI गंगा मइया के बड़ शानII
हवय तांदुला के गा बाँधI हे ताकतवर एकर खाँधII
मैंनपाट के ऊँच पठारI इहाँ प्रकृति देहे उपहार II
उल्टा पानी धार बहायI धार देख जिज्ञासा आयII
चिल्फी घाटी भोरमदेवI रानीदहरा आय जनेवII
मड़वा महल छेरकी जावI दर्शनीय हे घुमके आवII
इहाँ देखनी तालागाँवI हावय मनियारी के पाँवII
रूद्र मूर्ति मा मन मोहायI राम जानकी मंदिर भायII
शिवरीनारायण के धामI जिहाँ महाप्रभु के हे नामII
देख लखेश्वर के परतापI जलथे लख्खर करथे जापII
बस्तर मा हे जंगल झारI नदिया नरवा निर्मल धारII
लोहा पथरा के भंडारI कुदरत बाँटें मया अपारII
डोंगरगढ़ के ऊँच पहाड़I माँ के बघवा करे दहाड़II
बमलेश्वरी इहाँ के शानI भक्तन मन करथें गुणगानII
हवय महामाया के पाँवI येकर दर्शन सुख के छाँवII
देख रतनपुर मा हे ठाँवI शक्ति पीठ मा हावय नाँवII
मानवता के दिस पैगामI बाबा गुरु घासी के कामII
हवय गिरौदपुरी मा धामI जैतखाम के जग मा नामII
लक्ष्मण मंदिर सिरपुर जाव। महानदी मा गोता खाव।।
मंदिर वास्तुकला ला देख। गढ़ले भइया अपने लेख।।
देवी दुर्गा के अवतार। चंद्रहासिनी दय दुख टार।।
दर्शन कर जे मनखे आय।मनोकामना मोती पाय।।
बागबाहरा के बड़ नाम। चंडी माता के हे धाम।।
भैरव बाबा अउ हनुमान। मंदिर के हावय गा शान।।
संगम खारुन अउ शिवनाथI जिहाँ स्वयंभू गौरी साथ II
सोमनाथ के महिमा जानI दर्शन कर पावव वरदानII
विजेंद्र कुमार वर्मा
नगरगाँव धरसीवां
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ओम प्रकाश अंकुर छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल
सार छंद (-)
परबत ऊपर डोंगरगढ़ मा, बइठे हे बमलाई।
दरसन करथें लाखों भक्तन, कत्तिक करॅंव बड़ाई।।
चैत कुॅवांर भरावय मेला, हवय गाॅव सिंघोला।
पचरा गावय सेउॅक मन हा, तरथें सबके चोला।।
दाई दंतेश्वरी बिराजे, महिमा अब्बड़ भारी।
घूमयॅं दंतेवाड़ा बस्तर, खुश होवय नर नारी।।
सोर उड़यॅं माता रानी के, हवय गाॅव खल्लारी।
श्रद्धा ले सब माथ नवावॅंय, नीक सजावॅंय थारी।।
खॅंभा गड़े हे कबीर पॅंथ के, जावय दामाखेड़ा।
अमरित कस हे गुरु के वाणी, पार लगावॅंय बेड़ा।।
मुक्ति सबो ला मिलही इॅहचे, हावय कांशी काबा।
पावन धाम गिरौदपुरी हे, तारैं घासी बाबा।।
महानदी के तीर बिराजे, दाई अँगारमोती
महिमा हावय पावन सुघ्घर , जलत हवय जग जोती।।
हावय मंदिर श्रीहरि जी अउ, भक्तिन राजिम दाई।
दरसन कर लव महादेव के, होथैं अबड़ भलाई।।
हावय अबड़ रतनपुर नामी, बिराजे महामाया।
जस गा लव माता रानी के,दू दिन के हे काया।।
बहत तीर हे मैनपाट मा, सुघ्घर उलटा पानी।
ताता पानी जइसे येकर, अचरज हवय कहानी।।
मैत्री गार्डन घूम भिलाई,फेर रायपुर बारी।
हावय पुरखौती मुक्तांगन, सुघर जंगल सफारी।।
ओमप्रकाश साहू "अंकुर"
सुरगी, राजनांदगांव
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संगीता वर्मा, भिलाई सोमनाथ -कुण्डलिया
पावन संगम दू नदी, खारुन अउ शिवनाथ।
सोमनाथ भगवान हे, माता गौरी साथ।
माता गौरी साथ, द्वार मा नंदी हावय।
भक्तन कंठ लगाय, रोज महिमा ला गावय।
मंदिर तीरे तीर, पेड़ पउँधा मनभावन।
सोमनाथ के धाम, दरस कर महिमा पावन।।
संगीता वर्मा
भिलाई
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विजेन्द्र मैंनपाट - कुण्डलिया
पानी उल्टा धार हे, मैंनपाट विख्यात।
जोगीमारा के गुफा, के कहना का बात।
के कहना का बात,चित्र जुन्ना बड़ मिलथे।
झरना देव प्रवाह, देख के मन हा खिलथे।
तिब्बत के समुदाय, बतावँय एक कहानी।
रोग दूर हो जाय, नहा ले तातापानी।।
विजेन्द्र कुमार वर्मा
नगरगाँव धरसीवांँ
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दर्शनीय स्थल ""भोरमदेव"" आल्हा छंद
जिला कवर्धा पबरित भुइयाॅं, देखव जग मा अड़बड़ नाम।
जिहाॅं बिराजें भोला शंकर, भोरमदेव हवॅंय इक धाम।।
रुख राई के बीच बसे हे, बड़ सुग्घर हे चौरा गाॅंव।
मैकल पर्वत श्रेणी कहिथे, शिव शंकर के सुग्घर ठाॅंव।।
छत्तीसगढ़ म हे खजुराहो, कामुक मुर्ति राज हे आज।
देख देख के मन मोहाथे, आथे सब ला अड़बड़ लाज।।
कतका सुग्घर रूप दिखत हे, सुरता आवय सब ला काम।
जिहाॅं बिराजें भोला शंकर, देखव जग मा अड़बड़ नाम ।।
वास्तु कला हे नाॅंगर शैली , बलुआ पथरा दियो लगाय।
सोलह खंभा तने खड़े हे, देख देख मनवा ललचाय।।
जंगल बीच बने हे तरिया, सरग सही जिॅंवरा ला भाय।
उत्तर दक्षिण पूर्व दिशा ले, भक्तन मन सब दरसन पाय।।
देश देश ले आथे मनखे, बहुत इहाॅं मिलथे आराम।
जिहॉं बिराजें भोला शंकर, देखव जग मा अड़बड़ नाम ।।
शिव शंकर के परम उपासक, फणी नाग वंशी गोपाल।
बड़ सुग्घर मंदिर बनवाये, उन्नत चमकय ओकर भाल।।
शिल्प कला के खूब नजारा, बड़ सुग्घर हे तुहरें सोच।
चिरई चिरगुन महिमा गावय, खोल खोल के अड़बड़ चोंच।।
सुख सुहावन बढ़िया मौसम, सुग्घर निक निक लागॅंय घाम।
जिहॉं बिराजें भोला शंकर, देखव जग मा अड़बड़ नाम ।।
गोंड जात के हरे देवता, नाम धरें हे भोरमदेव।
सिर में गंगा हाथ कमण्डल, नाग साॅंप हा बनें जनेंव।।
आदि देव हे अवघट दानी, कृपा सिंधु के देव गणेश।
हे सुख सागर हे त्रिपुरारी, जय हो जय हो तोर महेश।।
सबके दुख ला पीयत बइठे, सुघर बना के बढ़िया जाम।
जिहॉं बिराजें भोला शंकर, देखव जग मा अड़बड़ नाम।।
संजय देवांगन सिमगा
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पात्रे जी *छंद खजाना बर*
ताटंक छंद- *पावन धाम गिरौदपुरी हे*
पावन धाम गिरौदपुरी हे, जनम भूमि गुरु घासी के।
लिखके ताटंक छंद गावँव, महिमा सत अविनाशी के।।
घोर घना कटकट जंगल मा, औंरा धौंरा झाड़ी हे।
धुनी रमाये सतगुरु घासी, बइठे छात पहाड़ी हे।।
जोग नदी हा चरन पखारय, सत्यपुरुष सन्यासी के।।
पावन धाम गिरौदपुरी हे, जनम भूमि गुरु घासी के।।
चरण कुंड अउ अमृत कुंड के, निरमल पावन पानी हे।
पाँच धार मा पँचकुंडी के, सुग्घर अमर कहानी हे।।
संत समाज समागम मेला, रहिथे बारहमासी के।
पावन धाम गिरौदपुरी हे, जनम भूमि गुरु घासी के।।
हाथी लहुटे हे पथरा हा, जोग नदी के धारा मा।
मुक्ति दिये भटकत हंसा ला, गुरु सतनाम सहारा मा।।
कट जाथे गुरु नाम लिये ले, फाँसा जुग चौरासी के।
पावन धाम गिरौदपुरी हे, जनम भूमि गुरु घासी के।।
सेत सिंहासन गुरु के साजे, गुरु गद्दी गुरुद्वारा मा।
गूँजत रहिथे मन मंदिर हा, गुरु के जय जयकारा मा।।
चिनहा ऊँचा जैतखाम हा, गुरु दर्शन अभिलाषी के।
पावन धाम गिरौदपुरी हे, जनम भूमि गुरु घासी के।।
रहिस दिखाये गुरु महिमा जी, बंजर बहरा डोली मा।
रेंगाये गरियार बैल ला, सतगुरु सत के बोली मा।।
हवय गवाह गिरौदपुरी अउ, लोग उहाँ रहवासी के।।
पावन धाम गिरौदपुरी हे, जनम भूमि गुरु घासी के।।
जीवन दान बुधारू पाये, तारे सफुरा माता ला।
संत शिरोमणि सतगुरु मानौं, अइसन जीवन दाता ला।।
श्रद्धा सुमन चढ़ावँव पग मा, अरजी सुन लौ दासी के।।
पावन धाम गिरौदपुरी हे, जनम भूमि गुरु घासी के।।
✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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तुषार वत्स 🥰🌹 *चंपारण धाम*
*रोला छंद*
चंपारण हे धाम, बिराजे शंकर भोला।
मिलथे शांति अपार, दरस पा तरथे चोला।।
अद्भुत हे शिवलिंग, जगत मा नइहे दूजा।
महादेव गणराज, उमा के होथे पूजा।।
संत वल्लभाचार्य, जनम के गाथा हावै।
पुष्टिमार्ग मा लीन, भजन कान्हा के गावै।।
दू भाखा के मेल, इहाॅं हावै बड़ बढ़िया।
गुजराती के संग, भक्त हें छत्तिसगढ़िया।।
*तुषार शर्मा "नादान"*
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Anuj छत्तीसगढिया *पर्यटन स्थल चैतुरगढ़ सार छंद*
महिषासुर मर्दिनी विराजे, चैतुरगढ़ मा दाई।
चारों मुड़ा पहाड़ घिरे हे, अउ हरियर रुख-राई।।
तीस किलोमीटर पाली ले, चैतुरगढ़ हर हावय।
गाँव जेमरा-बगदरा धरी, माता के घर हावय।।
इहाँ तीन ठन बड़का तरिया, सुग्घर रहिथे पानी।।
एमा हे जल-जीव बेंगवा, मछरी आनी-बानी।।
एला तो कश्मीर कथें सब, मौसम रथे सुहाना।
सब झन बढ़िया सड़क मार्ग ले, करथें आना-जाना।।
मंदिर ला निर्माण करें हे, वंश कलचुरी शासक।
राजा पृथ्वीदेव प्रथम हा, माँ के रहिन उपासक।।
"लाफागढ़ के किला" घलो सब, चैतुरगढ़ ला कहिथें।
इहाँ शेर भलुवा बघवा अउ, वन्य-जीव मन रहिथें।।
हवे किला के तीन द्वार जी, आरो लेवत हावय।
सिंह द्वार हूँकरा मेनका, शोभा देवत हावय।।
पाँच किलोमीटर आघू मा, हावय शंकर खोला।
अबड़ घाट अउ सीढ़ी ठाड़ हे, थरथर काँपे चोला।।
*अनुज छत्तीसगढ़िया*
*पाली जिला-कोरबा*
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नारायण वर्मा बेमेतरा *सार छंद-दर्शन बमलाई के*
चइत क्वाँर दू पइत भराथे, डोंगरगढ़ मा मेला।
करे मनोरथ पूरण दाई, जइसन चाही जेला।।
ऊँच पहाड़ म करे बसेरा, महिमा एकर भारी।
आय भगत मन दरश करे बर,दुरिहा ले नर नारी।।
श्रद्धा भाव नवा माथा ला, बस का चाही एला।
चइत क्वाँर दू पइत भराथे, डोंगरगढ़ मा मेला।।
बगुलामुखी कहे देवी ला, कामाख्या बमलाई।
जोत जलाके मन्नत माँगे, चढ़ा चना अउ लाई।।
पान फूल सिंगार चढ़ाथे, धर नरियर के भेला।
चइत क्वाँर दू पइत भराथे, डोंगरगढ़ मा मेला।।
कार रेल बस सेवा साधन, हाबय ओरी पारी।
भीड़ गजब होथे भंडारा, खीर पुड़ी सोहारी।
खई खजानी मनिहारी के, लगथे अड़बड़ ठेला।
नारायण प्रसाद वर्मा *चंदन*
ढाबा-भिंभौरी, बेमेतरा छग
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प्रिया *बेलाही घाट* *रोला छंद*
राजिम पावन धाम, इहाँ चंदन कस माटी।
नदी नहाथें लोग, हवय सुग्घर परिपाटी।।
ऋषि लोमश के वास, घाट बेलाही हावै।
त्रेतायुग के गोठ, आज भी मन ला भावै।।
काक भुसुंडी पाय, ज्ञान ला ऋषि लोमश ले।
होवै बंधन मुक्त, जगत के माया वश ले।।
अमर हवय ये संत, लोग सब परछो पाथें।
जम्मो ग्रंथ पुराण, कथा आश्रम के गाथें।।
सिया राम के संग, अनुज लक्ष्मण जी आइस।
काटिस हे वनवास, घाट के मान बढ़ाइस।।
बड़े–बड़े मुनि साधु, कुटी मा धुनी रमाथें।
करथें जप-तप योग, शंभु के मंदिर जाथें ।।
महानदी के पार, जिला धमतरी कहाथे।
लक्ष्मण झूला भव्य, देख के मन हरसाथे।।
कतका करॅंव बखान, धाम के महिमा भारी।
तर जाथें सब जीव, इहाॅं आ के सँगवारी।।
प्रिया देवांगन *प्रियू*
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Om Prakash Patre ताटंक छन्द गीत- पावन धाम गिरौदपुरी मा
मानवता के पाठ पढ़इया, बाबा घट-घट वासी जी ।
पावन धाम गिरौदपुरी मा, जन्म धरे गुरु घासी जी ।।
बोहावत हे कल-कल कल-कल, जोंक नदी मा पानी हा ।
जीव-जन्तु अउ मनखे मन के, चलत हवय जिनगानी हा ।।
लगे हवय सब मनखे मन के, मेला बारहमासी जी ।
पावन धाम गिरौदपुरी मा, जन्म धरे गुरु घासी जी ।।
छाता जइसे जिहाॅं पहाड़ी, कट-कट जंगल झाड़ी हे ।
बघवा भलुवा मनके माड़ा, जघा-जघा मा खाड़ी हे ।।
घोर तपस्या करके बाबा, होय हवय अविनाशी जी ।
पावन धाम गिरौदपुरी मा, जन्म धरे गुरु घासी जी ।।
सब ले ऊॅंचा जैतखाम हा, जग ला राह दिखाये हे ।
मनखे-मनखे एक बरोबर, बाबा बात बताये हे ।।
जग मा परचम लहरावत हे, जइसे काबा काशी जी ।
पावन धाम गिरौदपुरी मा, जन्म धरे गुरु घासी जी ।।
✍️छन्दकार, गीतकार
ओम प्रकाश पात्रे 'ओम '
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नंदकिशोर साव साव सार छन्द - छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल
चैत क्वाँर में मनखे मन के, लगथे जम के रेला।
माँ बमलाई डोंगरगढ़ मा, भरथे नौ दिन मेला।
मनभावन भोरमदेव हवै, जस खजुराहो छोटे।
बारनवापारा अभ्यारण, वनचर खेले लोटे।।
वन्य सफारी नंदनवन अउ, माँ बंजारी माढ़े।
नगर रायपुर मा पुरखौती, मुक्तांगन हे ठाढ़े।।
हमर राज के रजधानी में , मानुस रेलम पेला।
माँ बमलाई डोंगरगढ़ मा, भरथे नौ दिन मेला।।
राजिम नगरी होथे संगम , तीन नदी के पानी ।
मैनपाट के उल्टा पानी, मोहय सब सैलानी।।
हिल स्टेशन जंगल अउ झरना, रम्य जघा हे आला।
सिरपुर हे प्राचीन धरोहर, स्मारक अचरित वाला।।
गंगरेल सागर कस दहरा, गोवा मानय जेला।
माँ बमलाई डोंगरगढ़ मा, भरथे नौ दिन मेला।।
जशपुर खुरियारानी मोहे, छाहित हे जतमाई।
भक्तन मन के आना जाना, देथे मन के दाई।।
हावय सिमगा तीर बसे जी, दामाखेड़ा जाथें।
आस्था धर के कबीरपंथी, गुरू ज्ञान ला पाथें।
धाम गिरौदपुरी बाबा के, अड़बड़ हावय चेला।
माँ बमलाई डोंगरगढ़ मा, भरथे नौ दिन मेला।।
स्वाभाविक सुंदर बस्तर हे, परबत जंगल घाटी।
चारो डाहर हरियाली हे, चंदन हावय माटी।।
चित्रकोट झर झरना मानो, कहय नियाग्रा धारा।
तीरथगढ़ मनमोहक लागे, निर्झर बहथे न्यारा।।
बड़ अँधियार गुफा कोटमसर, नइ जा सकन अकेला।
माँ बमलाई डोंगरगढ़ मा, भरथे नौ दिन मेला।।
घाटी कांगेर विश्व थाथी, हरय नेशनल बागा ।
दिखय पहाड़ी मैना सुग्घर, गावय गुरतुर रागा ।।
खोह उँहा पंद्रह ठन कुल हे, नवा आदमी खोथे।
बैलाडीला कच्चा लोहा, उच्च किसम के होथे।।
दंतेवाड़ा दंतेसीरी, फूल चढ़े अउ केला।।
माँ बमलाई डोंगरगढ़ मा, भरथे नौ दिन मेला।।
नंदकिशोर साव
राजनांदगाव
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नीलम जायसवाल छंद खजाना बर
*छन्न पकैया छंद*
*छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल*
छन्न पकैया-छन्न पकैया, कबीर धाम म जावौ।
छत्तीसगढ़ के खजुराहो ला, भोरमदेव म पावौ।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, लिंग रूप शिव हावै।
प्राचीन कल्चुरी कलाकृती, नक्काशी मन भावै।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, मैनपाट मन भाथे।
जिला सरगुजा मा ये हावय, शिमला मिनी कहाथे।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, सिरपुर मिले खुदाई।
महासमुंद जिला मा हावय, दर्शनीय हे भाई।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, इतिहासिक पौराणिक।
लक्ष्मण मंदिर बौद्ध विहार, देखत मा लागे निक।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, बस्तर घूमै जाहू।
घित्रकोट तीरथगढ़ मड़वा, जलप्रपात ला पाहू।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, गुफा हवय मनमानी।
देवगिरी कांगेर अरण्यक,शीत कुटुमसर रानी।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, बीजापुर अउ सुकमा।
जलप्रपात हा देखत बनथे, मल्गिर इंदुल दुरमा।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, लिस्ट हवय जी लम्बी।
बैलाडीला मामा भांचा, नीलम सरई नम्बी।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया,पोसंगपल्ली दोबे।
इंचम पल्ली,लंका पल्ली, गुफा देख खुश होबे।।
- नीलम जायसवाल, भिलाई छत्तीसगढ़ -
गुमान साहू *छन्द खजाना* बर
ताटंक छंद ।। छत्तीसगढ़ दर्शनीय स्थल।।
हमरो छत्तीसगढ़ बसे जी, दर्शनीय स्थल खाटी हे।
पर्वत अउ मन्दिर देवाला, झरना जंगल घाटी हे।।
हावै गरियाबंद जिला मा, माँ जतमई घटारानी।
पाँव पखारत झर-झर बहिथे, सुग्घर झरना ले पानी।।
दंतेवाड़ा चन्द्रहासिनी,डोंगरगढ़ घूँचापाली।
अलग अलग धर नाम बिराजे, जग जननी शेरावाली।।
चित्रकूट अउ तीरथगढ़ के, अद्भुत लगे नजारा हे।
झरना बन पर्वत ले गिरथे, जिहाँ नदी जल धारा हे।।
मैनपाट चिरमिरी घूम ले, मिले मजा ये माटी मा।
वन्य जीव अउ गुफा हवै जी, कांगेर नाम घाटी मा ।।
हवै त्रिवेणी संगम राजिम,बसे कुलेश्वर भोला हे।
बने विष्णु जी राजिव लोचन,भरे भगत के झोला हे।।
चन्दखुरी ननिहाल राम के, घट कौशिल्या के हावै।
हवै बीच तरिया मा मन्दिर ,शोभा बरनी ना जावै।।
- गुमान प्रसाद साहू
- समोदा (महानदी)
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रूप घनाक्षरी
।।चित्रकूट जलप्रपात।।
बस्तर जिला मा हावै, चित्रकूट जे कहावै, विंध्य परवत अउ, हावै पेड़ ले घेराय।
झरना के रूप धर, इन्द्रावती नदी हर, नब्बे फीट ऊपर ले, झर-झर हे बोहाय।
चौड़ा सबले फैलाव, जादा सबले बहाव, एक कोश ले आवाज, देवत रथे सुनाय।
बहथे ये पूरा साल, मुख हावै घोड़ा नाल, इही सेती भारत के, नियाग्रा ये कहलाय।।
बरसा मा रक्त लाल, दिखथे पानी के हाल, गरमी समय पानी, सफेद नजर आय।
महादेव के मन्दिर, बने हे तेकर तीर, शिवलिंग किनारा मा, हावय विशालकाय।
झरना तीरथगढ़, हे गुफा कुटुमसर, तीर मा कांगेर घाटी, शोभा येकर बढाय।
सावन कार्तिक बीच, समे घूमे बर ठीक, आके दूर दूर ले जी, मजा लोग खूब पाय।।
- गुमान प्रसाद
- समोदा (महानदी)
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तातुराम धीवर छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल
।। आल्हा छ्न्द ।।
पावन छत्तीसगढ़ धरा के, दुनिया मा अलगे पहिचान।
जंगल झाड़ी ऊँच पहाड़ी, नदिया बाँध इहाँ के शान।।
मातु बिराजे ऊँच पहाड़ी, नदिया तीर शंभु भगवान।
छत्तीसगढ़ ह धान कटोरा, हीरा लोहा सोना खान।।
दंतेवाड़ा दंतेवरहिन, बस्तर के हे बढ़ाय मान।
बैलाडीला ऊँच पहाड़ी, लोहा के हे मुख्य खदान।।
केसकाल के बारह भाँवर, गीदम घाटी जंगल राज।
होनहेड हे झरना सुग्घर, सुघराई के पहिरे ताज।।
छत्तीसगढ़ म सबले बड़का, हावय ये गंगरेल बाँध।
इहाँ बिराजे अँगार मोती, हनुमत खड़े गदा रख खाँध।।
दरश करें सब मनखे जाथें, पाथें मन मा शान्ति अपार।
झर झर झर झर बहे नीर हे, मातु घटारानी दरबार।
महादेव भूतेश्वर बाबा, देव भकुर्रा नाथ कहाय।
सबले बड़का देव इही हर, गरियाबंद स्वयंभू आय।।
महानदी के उद्गम हावय, श्रृंगी ऋषि के पावन धाम।
जिला धमतरी मा ये हावय, गाँव सिहावा सुग्घर नाम।।
छत्तीसगढ़ प्रयाग कहाथे, चर्चा हावय कोसों दूर।
तीन नदी के मेल इहाँ हे, महानदी पैरी सोंढूर।।
राजिम मा हे बिष्णु बिराजे, नाथ कुलेश्वर संगम धार ।
भगतन मन के आय जाय बर, लक्ष्मण झूला हे तइयार।।
पबरित पावन राजिम नगरी, पुन्नी मेला जोर भराय।
दूर दूर ले दर्शन खातिर, साधु-संत बन देवन आय।।
तातु राम धीवर
भैंसबोड़ जिला धमतरी
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कौशल साहू *छंद खजाना* बर छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल
कुंडलिया छंद
तुरतुरिया
तुर तुर तुर तुर जल झरय, तुरतुरिया हे नाम।
लव कुश के जँनमन जिहाँ, मातागढ़ हे धाम।।
मातागढ़ हे धाम, दरश बर ऊँच पहाड़ी।
बघवा माड़ा खोह, हबय बड़ जंगल झाड़ी।
रकम रकम के कंद, स्वाद मा अड़बड़ गुरतुर।
बालम देही संग, बहत हे धारा तुर तुर ।।
छोटे खल्लारी
बासिन झीपन बीच मा, बंजारी के नीर।
दाई सँउहे उदगरे, गाँव सुहेला तीर।।
गाँव सुहेला तीर, हबय छोटे खल्लारी।
आथैं बारों मास, दरश बर सब नर नारी।।
राम जानकी धाम, खड़े काली कंकालिन।
नइये जादा दूर, सुहेला झीपन बासिन।।
कौशल कुमार साहू
फरहदा ( सुहेला )
जिला - बलौदाबाजार
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Jugesh *छत्तीसगढ के दर्शनीय स्थल* चेटुवा धाम आल्हा छंद
पावन हे शिवनाथ नदी तट,बसे चेटुवा तीरथ धाम ।
गुरु घासी के बड़का बेटा, अमर दास जी जेकर नाम॥
गाँव चेटुवा के बस्ती मा,गुरु बाबा के रहिस निवास ।
गुरु घासी के सत शिक्षा ला,सिरजाइन रख के विश्वास॥
सत के गुरुजी अलख जगाइस,समता के देइस संदेस।
त्याग भरे खुद जीवन जी के,राखिन खुद के सादा भेस।।
पीड़ित जन के आस रहिन हे,मानवता ला मानिन सार ।'
जन जन के मन मा रच बसगे,गुरु के पावन सदव्यहार॥
अमर लोक जब अमर दास जी,चलदिन जग ला पाछू छोड़।
गुरु जी के सब जन हित शिक्षा,हिरदे राखे हे सब जोड़॥
नदी किनारे गुरु बाबा ला माटी देइन सब परिवार।
पाछू मंदिर बनवाइन हे,बड़े गौटिया जी आधार॥
पूस माह मा लगथे मेला , अमली के हे सुग्घर छाँव।
मन भावन लगथे ये जगहा,लोगन के रुक जाथे पाँव॥
कल कल कर शिवनाथ बोहथे,लोग नहाथें उठ भिनसार।
चढ़ा नारियल मना मनौती,टेकैं माथा झारा झार।।
कतको जाथें बैलागाड़ी, कतको जाथें मोटर कार ।
गुरु गद्दी दर्शन कर आथें,जुरमिल के पूरा परिवार।।
जुगेश कुमार बंजारे
नवागाँवकला छिरहा बेमेतरा छग
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देवकरण धुरी कबीरधाम *डोंगरिया महादेव*
सरसरी छंद
धन्य धन्य ये पबरित भुँइया, धन्य कवर्धा राज।
डोंगरिया शिव कथा कहत हँव, सुन मोर कवि समाज।
जूरे नवागाँव डोंगरिया, अउ खरहट्टा खार।
तीनों मेड़ों बीच नँदी मा, उबके शंभु हमार।।
नँदिया चालीस फीट गहिरा, माड़ी भर हे नीर।
एक तीर मा शंभु बिराजे, हाथी दूसर तीर।
नाम परे जालेश्वर शिव के, महिमा अपरंपार।
पाँव पखारत फोंक नँदी के, बोहावत हे धार।।
अद्भुत रूप धरे शिव देवय, मनचाहे बरदान।
ज्योतिर्लिंग कहाय तेरवां, अही असल पहचान।।
होय माघ मा पुन्नी मेला, डोंगरिया के नाँव।
भक्ति जगावय जीव जुड़ावय, हे अमरइया छाँव।।
देवचरण 'धुरी'
कबीरधाम
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अश्वनी कोसरे वीर छंद -छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल
हाथी चढ़के राजा निकलय, जन नायक वो सुनय पुकार||
राजा के सब महंत आवँय, अनुयायी राहँय भरमार||
दशो दिशा फइले जश कीर्ती, परमधाम हे गुरु के द्वार|
नाम हवय भंडारपुरी जी, गुरुबाबा हें पालनहार||
गुरु दरशन बर भरथे मेला, एकादशी मास हे क्वांर|
राजा बालक दास बबा के, सँउहत लगय जिहाँ दरबार||
राज - राज ले आथें चेला, सादा पगड़ी बाँधे झार||
जैत खाम मा चढ़थे पालो, श्वेत धजा लहराथे द्वार|
गुरु ले शिक्षा - दीक्षा पाथें, सत्तनाम के करथें जाप|
पंथी साहित संगत होथे, माँदर झाँझ मँजीरा थाप||
भ्रमण करे बर नगर निकलथें, होथे गुरु के जय जयकार|
करतब संग अखाड़ा होथे, शौर्य चक्र लाठी भरमार||
सार संदेशा गुरु सुनाथे, जिनगी ला करथे उजियार|
पाके पबरित गुरु के वाणी, जाथे हंसा सत दरबार||
अश्वनी कोसरे
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अश्वनी कोसरे छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल
वीर छंद
सत्य धरम के सुग्घर नगरी, हावय कबीरधाम हमार|
चरण चिन्ह हे गुरु देवन के, सदगुरु जीके भाव विचार||
संगत मा गुरु धनी धर्म के, जुरे रहँय हिरदे ले तार|
ज्ञानी ध्यानी अनुयायी मन, सिरजाए हें गुरुदरबार||
तीन- तीन गुरु लगे समाधी, माँ साहब मन हे रखवार|
राज -राज ले आवँय संतन, काया ला कर लैं उजियार||
उही नगर मा बनगे हावय, ज्ञान डहर अउ पंथ अनेक|
साहब नाम गृंधमुनि जी के, जाँय दुवारी माथा टेंक||
नाम भोजली तरिया हावय, राजा पुरखा मन के मान|
रानी माता करैं विसर्जन, दीन- हीन सब बदैं मितान||
देवी माता हवँय बिराजे, दर्शन बर धरि आहव आस|
क्वांर चैत मा सजथें मंदिर, अठवाही के खप्पर खास||
कृष्ण सरोवर तट मंदिर हे, राधा किसना करैं विहार|
भादो के आठे मा होथे, रास सहीं सोलस सिंगार||
उदगर के मैकलघाटी ले, सँकरी नँदिया बोहय धार|
मोती महल बने हे तट मा, सजथे जी शाही दरबार||
परब मनाथें छत्तीसगढ़ के, मुखिया बनैं राज -परिवार|
नगर भ्रमण मा राजा जाथें, परजा लेवँय भेंट जोहार||
गौतम बुद्ध विहार बने हे, मंदिर महावीर भगवान|
राम लला के पावन घर हे, राजै खेड़ापति हनुमान||
सब गुरुवंशी सतवंशी हें, गुरुनानक घासी रविदास|
गुरुद्वारा मा गुरुवाणी के, होथे सुग्घर के अरदास||
अश्वनी कोसरे
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Dropdi साहू Sahu सरसी छंद -"मैनपाट"
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सुग्घर हे हमर छत्तीसगढ़, सुग्घर हे पहिचान।
शिमला ऊटी पंचमढ़ी कस, मैनपाट ला जान।।
मैनपाट मा हे सुघराई, दरसन तीरथ धाम।
येकर ले बाढ़े दुनिया मा, हमर राज्य के नाम।।
झरना गावय गीत मनोहर, दे के सुग्घर तान।
रुख राई हे हरियर हरियर, लागय सरग समान।।
नदिया बहे महादेवमुड़ा, कतको इहाँ प्रपात।
भुइयाँ के अइसन कोरा हा, नोहर लागे घात।।
मछली मेहता पाइंट अउ, किसम किसम हे नाँव।
हवय दरोगा दरहा खड़बड़, जावत डोले पाँव।।
भारत तिब्बत दू संस्कृति के, हावय इहिँचे मेल।
सुघराई देखे बर दुनिया, आथे रेलमपेल।।
मैनपाट में रम जाथे मन, देखँव मन भर मोर।
सबो जगह निक नोहर लागे, सुग्घर चारो छोर।।
मोर मनाली दार्जिलिंग ये, मथुरा काशी घाट।
ये दुलरवा छत्तीसगढ़ के, हमर बर मैनपाट।।
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द्रोपती साहू "सरसिज"
महासमुंद छत्तीसगढ़
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अमृतदास साहू सार छंद *दर्शनीय स्थल*
चलो सबो झन जुरमिल संगी,तिरथ बरत कर आबो।
सबे धाम के दर्शन पाकें, पावन पुण्य कमाबो।
सुघर बिराजे रतनपुर मा,सिद्ध पीठ महमाई।
डोंगरगढ़ पहरी मा बइठे, जग जननी बमलाई ।
चैत क्वांर जस सेवा गाके,जगमग जोत जलाबो।
सबे धाम के दर्शन पाकें,पावन पुण्य कमाबो।
राजिम नगरी मा बइठे हे, कुलेश्वर महादेवा।
दूर-दूर ले आथें लोगन,गजब बजाथें सेवा।
पैरी सोंढुर महानदी मा,पबरित कुंभ नहाबो।
सबे धाम के दर्शन पाकें, पावन पुण्य कमाबो।
सुघर गिरौदपुरी जाके सब,मन मांगे वर पाथें।
गुरु घासी के दर्शन पाकें,भाग अपन सहँराथें।
पावन पबरित धाम सुघर अब, चलो हमू मन जाबो ।
सबे धाम के दर्शन पाकें,पावन पुण्य कमाबो।
कबीरहा मन सत्य नाम लें, श्रद्धा भाव जगाथें।
दामाखेड़ा जाके पावन,सत्य धजा लहराथें।
साधु संत के चलो सबो झन, पबरित दर्शन पाबो।
सबे धाम के दर्शन पाकें, पावन पुण्य कमाबो।
अमृत दास साहू
ग्राम-कलकसा, डोंगरगढ़
जिला-राजनांदगांव (छ.ग.)
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अश्वनी कोसरे छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल
वीर छंद
हाप नदी के तट मा हावय, पचराही हे जेखर नाम|
कंकालिन टीला सब कहिथें, आदि देव शिव के हे धाम||
श्री गनेश सँग शंभु भवानी, पुर मा करथे जी उन वास|
फणी नाग वंशी राजा हें, हैहय वंशी के विश्वास||
नगर महल मन बेवस्थित हें, पक्की ईंटा के घर झार|
नहर निकासी जल भराव बर, बने हवय दू स्नानागार||
उन्नत हे उद्योग संरचना, मनका चूड़ी लोहा खान|
हँसिया गुजरी सँकरी कर्छुल, सिक्का सोना अउ सामान||
गिनले तँय तरिया इक्कीसे, निकले हे पूरा अवशेष|
हर गाला मा हवँय बिराजे, शंभु भवानी पूत गनेश||
चार करोड़ बछर के घोंघा, जर खोदन ले हावँय पाय|
सुघ्घर सघन बीच बन मा हे, पाँच ओर ले रसदा जाय||
तट पश्चिम पचराही माढ़े, उत्तर जैन बकेला धाम|
बीच बहत हे हाप नदी हा, सुरमय झरना झरनी नाम||
सिक्का मन इतिहास बताथें, समरिध हे पचराही राज|
सैनिक मन के बड़का बंकर, रखे रहै सब घोड़ा साज||
बड़े बने ढाबा अनाज बर, मैदानी मा खेती होत|
हवय भवानी के पुर मंदिर, क्वाँर चैत मा जलथे जोत|
आदीवासी बहुल क्षेत्र हे, बैगा मनके हावय वास|
ब्लाक बोड़ला के उत्तर हे, पचराही मा धन के रास||
पंडरिया ले घलो पास हे, जाबे डोंगर खारे खार|
घात सघन बन पाबे अँवरा, साजा तेंदू चार रवार||
अश्वनी कोसरे
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कमलेश प्रसाद शरमाबाबू छत्तीसगढ़ के धार्मिक पर्यटन स्थल
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रचना -कमलेश प्रसाद शर्माबाबू
हरिगीतिका - छंद (-)
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तर्ज- श्रीराम चंद्र कृपालु, भज मन हरण भव भय दारुणं।
- चँदखुरी
पावन हवय ये राज हा, श्री राम के जनमन इहाँ।
लेवत सुबेरे नाम ला, मनखे सबो तरथन इहाँ।।
वोखर ममा के गाँव ये, अउ चँदखुरी जी नाम हे।
भाँचा हवै हमरो नता, छत्तीसगढ़ हा धाम हे।।
- राजिम
राजिम जिहाँ के धाम हे, बसथे उहाँ भगवान हा।
दरशन हवय वो रूप के, तरथे दुखी धनवान हा।।
खिचरी लगे हे भोग मा, करमा खवाये हाथ मा।
पावन त्रिवेणी हे घलो, देखव कुलेश्वर साथ मा।।
- डोंगरगढ़ बमलाई
ऊँचा पहाड़ी मा बसे, देखव ग बमलाई सती।
डोंगर हवै चारों मुड़ा, मैदान हे खाल्हे कती।।
मनखे इहाँ सब दूर ले, आवत रिथें सब वार मा।
ज्योती जला वर माँगथें, उन चैत मास कुवाँर मा।
- सिरपुर
सिरपुर चलौ देखव उहाँ, तीरथ बरोबर लागथे।
लछमन लला मंदिर हवै, देखत सबो दुख भागथे।।।
आवत रिथें भिक्षुक इहाँ, धरमी सबोझन बौध के।
चारों मुड़ा बिखरे हवै, अवशेष जुन्ना शोध के।।
- चम्पारण
वल्लभ इहाँ के हे गुरू, अउ नाम चम्पारण हवै।
बड़ दिब्य आलौकिक भरे, ब्रजधाम कस येहा भवै।।
गोठान हे गोलोक कस, गिरिराज के ये धाम हे।
शिवलिंग बिराजे हे घलो, कतकोन शिव के नाम हे।।
- खल्लारी
हें सीढ़ियाँ सुघ्घर चलौ, सौ आठ आगर साठ हे।
साक्षात खल्लारी हवै, दुरलभ मनोहर पाठ हे।
बइठे रिथें दू शेर हा, देखव उहाँ बनवाय हें।
हे कामना कतको धरें, लोगन उहाँ सब आय हें।।
- घटारानी
देखौ घटारानी सुघर, जल के बने परपात हे।
चारों मुड़ा फइले बिकट, जंगल घलो मन भात हे।
रद्दा हवै ऊपर घलो, नीचे बने हे पास मा।
जनता नँगत आवत रिथें, दरशन करे के आस मा।।
- भोरमदेव
भोरम हवै बड़ देवता, फइले सघन वन घाँस हे।
लोगन धरे काँवर इहाँ, सावन उहाँ बर खास हे।।
मंदिर जघा तरिया बने, बोटिंँग करै सब लोग जी।
भोला दरस बर झूम के, आवत रिथें सब रोज जी।।
- शिवरीनरायण
शिवरी नरायण धाम हे, शबरी खवाइस बेर ला।
आवत हवै देखत रिहिस, वो नइ डराइस शेर ला।
पा गे नरायण के दरस, वो तप जघा अब धाम हे।
पावन हवै तीरथ बरथ, शिवरी नरायण नाम हे।।
- झलमला
बालोद मा चल देख ले, मंदिर हवै बड़ भब्य जी।
गंगा झलमला हा फबै, सोहत हवै बड़ दिब्य जी।।
कैलाश कस भीतर गुफा, मैया रहै जस लोक मा।
लहरात हे कतको जगह, तैं देख झंडा फोक मा।।
- चंडी माता
चंडी बिराजे हे चलौ, ऊँचा पहाड़ी पाट मा।
आवत रिथें दरशक उहाँ, घूँमत रिथें सब घाट मा।।
वो बागबाहारा हवै, जंगल जिहाँ सब आत हें।
देखव घुँचापाली चलौ, भलुवा प्रसादी खात हें।।
कमलेश प्रसाद शर्माबाबू
कटंगी-गंडई जिला केसीजी
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भागवत प्रसाद, डमरू बलौदा बाजार *मनहरण घनाक्षरी*
*तुरतुरिया*
ध्यान मैं लगात हँव, महिमा बतात हँव, सुनव सुनात हँव, लइका सियान जी।
नाम हे तुरतुरिया, जादा नइ हे धुरिया, कसडोल के तिर हे, रखे रहौ ध्यान जी।।
जंगल के बीच हवै, रद्दा ऊँच -नीच हवै, बालम नदी खँड़ म, भारी होथे मान जी।
पूजा करथे पूजारी, भीड़ लगथे जी भारी, सकलाथें नर-नारी, होथे गुनगान जी।।
वर्णन हे पौराणिक, संग म ऐतिहासिक, महता हवै धार्मिक, सुघ्घर ये धाम के।
बिराजे हे मातागढ़, सिढ़िया-सिढ़िया चढ़, जाथें पग-पग बढ़, भक्ति करे राम के।।
सीता माता तप करे,लव कुश जन्म धरे, नंदी मुँह पानी झरे, रात- दिन- साम के।
कखरो हे गोद सुन्ना, बेटी-बेटा देथे दुन्ना, नइ रहै काहीं उन्ना,
संसो नइ दाम के।।
संत सबो जुरियाथें, बइठे धुनी रमाथें, राम के भजन गाथें, बाजा- गाजा साज के।
चइत- कुँवार आथे, जग -जँवारा बोंवाथे, अखण्ड जोत जलाथें, आके राज-राज के।।
रहिथे साफ-सफाई, महौल हे सुखदाई, होथे मन से भलाई, मानव समाज के।
तिर -तिखार गाँव हे, सुख -शान्ति के ठाँव हे, शीतल घनछाँव हे, तिर्थ शुभ आज के।।
पुस पुन्नी होथे मेला, भीड.-भाड़ रेलं -पेला, नइ होवय झमेला, माता दरबार मा।
रुख-राइ भरमार, बघवा माड़ा हे सार, बाल्मिकी के ज्ञान धार, जानिहौ विचार मा।।
रोवत जउन आथें, माता के आशीष पाथें, हाँसत वापस जाथें,गाँव घर द्वार मा।
माता दरश पावव, बिगड़ी ल बनावव, नेवता हावै आवव, चढ़ बस कार मा।।
भागवत प्रसाद चन्द्राकर
डमरू बलौदाबाजार
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श्लेष चन्द्राकर कुकुभ छंद
विषय - खल्लारी
खल्लारी घूमे बर लोगन, दुरिया-दुरिया ले आथें।
माँ खल्लारी के दर्शन कर, अपन भाग ला सहराथें।।
महासमुंद जिला के पावन, तीरथ होथे खल्लारी।
बागबाहरा के रद्दा मा, पड़थे जगा मनोहारी।।
हें पहाड़ मा माता बइठें, जे जग के पालनहारी।
सबो मनौती पूरा करथें, ममतामय हें महतारी।।
भक्तन मन हा सीढ़ी चढ़के, माता के मंदिर जाथें।
भुला जथें जम्मों पीरा ला, जब माँ के दर्शन पाथें।।
उड़न खटोला के सुविधा ले, खुश रहिथें सब सैलानी।
मंदिर के आधा दुरिया मा, पहुँचे बर हे आसानी।।
भीम पाँव अउ चूल्हा हावँय, बगरे हें जिखँर कहानी।
अद्भुत डोंगा पथरा उप्पर, अचरज करथें विज्ञानी।।
भक्तन मन के नवरात्री मा, भीड़ रथे अब्बड़ भारी।
श्रद्धा ले माथा टेके बर, आथें माता के द्वारी।।
चैत महीना मा जब लगथे, खल्लारी वाला मेला।
किसम-किसम के जिनिस सजाये, दिखथें तब कतको ठेला।।
खल्लारी के सुंदरता ला, देखे बर जे मन आथें।
जेन भुलाये कभू सकय नइ, अइसे सुरता ले जाथें।।
श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद
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आल्हा छंद-- माँ वनदेवी चेपारानी
चेपा के चेपारानी ला, हाथ जोर के करँव प्रणाम।
बीच डोंगरी बसे हवस तैं, जिहाँ तोर हे सुग्घर धाम।।
हरियाली बन रुख राई ला, देख सबो के मन हा भाय।
महिमा तोरे अब्बड़ हावय, बिगड़े सबके काम बनाय।।
तीन कोस पाली ले दुरिहा, पबरित हावय चेपा गाँव।
मेन रोड तिर हवै पहाड़ी, दाई वनदेवी के ठाँव।।
एक बार के बात बतावँव, हैजा बीमारी जब आय।
चेपारानी दाई आके, सउँहे सबके जान बचाय।।
छाहित जान सबो नर नारी, दाई ला उन करैं प्रणाम।
बने सहारा लोगन मन के, होय लगिस दाई के नाम।।
बइगा हीरा सिंह मरावी, प्रण लेके जब किरिया खाय।
फौलादी चट्टान टोर के, बीच पहाड़ी कुँआ बनाय।।
हवय चार सौ फीट पहाड़ी, सीढ़ी चढ़के ऊपर जाँय।
बघवा चितवा हाथी भलुवा, दाई के अँगना मा आँय।।
जलै रात दिन जोत जँवारा, आये जभ्भे चइत कुँवार।
दर्शन करके भक्तन मन हा, करैं सबो झन जय जयकार।।
साजा सरई अँवरा धौंरा, मउहा तेंदू पेड़ रवार।
दाई के कोरा मा उपजे, औषधि गुण के भण्डार।।
तोर दुवारी भक्तन आवँय, मन मा थोरिक आस लगाँय।
फूल पान अउ नरियर धरके, मनचाहा उन फल ला पाँय।।
मुकेश उइके "मयारू"
ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)
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दोहा छंद
भालूकोना गाॅंव मा,हवै चितावर धाम।
पानी पझरे कुंड मा,परे चितावर नाम।।
मात बिराजे हे उहाॅं, धरके अद्भुत रूप।
आथे दरसन ला करे, बिखरे छटा अनूप।।
मन भाथे नव रात हा,भारी भरकम भीड़ ।
सबो मनौती माॅंगथे,हरथे अंतस पीड़।।
बारो महिना भीड़ के,नइ छूटे जी छोर।
माॅं महिमा के गूॅंज हा,बगरे चारो ओर।।
राजेन्द्र कुमार निर्मलकर सरकीपार
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आल्हा छंद- *गुरु दर्शनीय धाम*
आल्हा छंद गजानंद लिखय, गुरु वंदन कर बारम्बार।
सतनामी सत धाम धरा के, करत हवय बरनन विस्तार।।
पावन धाम गिरौदपुरी हे, जनम भूमि गुरु घासीदास।
अमरौतिन दाई के ललना, महँगू दास बबा के आस।।
सत्यनाम के अलख जगाइस, मानवता के देइस पाठ।
मनखे-मनखे एक बताइस, ऊँच-नीच के तोड़िस गाँठ।।
छात पहाड़ी जोग नदी अउ, पावन बहरा खेत सुहाय।
औंरा-धौंरा पेड़ तरी गुरु, नाम-पान ला सत के पाय।।
धुनी रमाइस ज्ञान लखाइस, ढोंग रूढ़ि पर करिस प्रहार।
आल्हा छंद गजानंद लिखय, गुरु वंदन कर बारम्बार।।1
धाम हवय भंडारपुरी गुरु, मोती महल गजब मन भाय।
बालकदास समाधि जिहाँ हे, गुरु मेला दशहरा भराय।।
राज्याभिषेक गुरु के होइस, पाइस राजा के तो मान।
हाथी घोड़ा मा चढ़ निकले, राजा गुरु सीना ला तान।।
मोतीमहल शिखर मा बइठे, देत तीन बंदर संदेश।
सत्य आचरण ले ही बदले, मानव मन जग के परिवेश।।
सतगुरु बालकदास इँहे ले, करिस पंथ सतनाम प्रचार।
आल्हा छंद गजानंद लिखय, गुरु वंदन कर बारम्बार।।2
अब तेलासीपुरी धाम के, सुन लौ संतो तुम इतिहास।
तपोभूमि गुरु अमरदास के, कर्मभूमि गुरु घासीदास।।
गुरु महिमा ले होय प्रभावित, राजा भूमि करिस जी दान।
जेमा बाड़ा ला बनवाइस, सतगुरु बालकदास महान।।
फेर बाद मा कुछ शातिर मन, चालाकी कर लिन हथियाय।
जेकर बर तब लड़िस लड़ाई, गुरु आसकरण दास कहाय।।
जेल गइस पर हार न मानिस, झुकगे आखिर मा सरकार।
आल्हा छन्द गजानंद लिखय, गुरु वंदन कर बारम्बार।।3
✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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अशोक कुमार जायसवाल: *बरवै छंद*
डोंगरगढ़ चल जाबो, जोडी़दार |
साध लगे देखे के,मोला यार ||
ऊँच पहाड़ बिराजे, दाई मोर |
बिमले मइँया की जय,होवत शोर ||
छोट बड़े सब आथे ,माँ दरबार |
नेता अभिनेता अउ, का सरकार ||
भक्त मनौती पूरा, करथे मान |
भगवान घलो गाथे, माँ गुणगान ||
अशोक कुमार जायसवाल
भाटापारा
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अद्भुत संग्रह
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