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Sunday, August 8, 2021

हरेली परब विशेषांक-छंदबद्ध कवितायेँ








 

हरेली परब विशेषांक-छंदबद्ध कवितायेँ

जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


खुशी छाय हे सबो मुड़ा मा,बढ़े मया बरपेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।


रिचरिच रिचरिच बाजे गेंड़ी,फुगड़ी खो खो माते।

खुडुवा  खेले  फेंके  नरियर,होय  मया  के  बाते।

भिरभिर भिरभिर भागत हावय,बैंहा जोर सहेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली----।


सावन मास अमावस के दिन,बइगा मंतर मारे।

नीम डार मुँहटा मा खोंचे,दया  मया मिल गारे।

घंटी  बाजै  शंख सुनावय,कुटिया  लगे हवेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे  हवै हरेली-।


चन्दन बन्दन पान सुपारी,धरके माई पीला।

रापा  गैंती नाँगर पूजय,भोग लगाके चीला।

हवै  थाल  मा खीर कलेवा,दूध म भरे कसेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली-।


गहूँ पिसान ल सान मिलाये,नून अरंडी पाना।

लोंदी  खाये  बइला  बछरू,राउत पाये दाना।

लाल चिरैंया सेत मोंगरा,महकै फूल  चमेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।


बेर बियासी के फदके हे,रँग मा हवै किसानी।

भोले बाबा आस पुरावय,बरसै बढ़िया पानी।

धान पान सब नाँचे मनभर,पवन करे अटखेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली---।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

9981441795


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मनोज वर्मा: 


सुघर हरेली हरियर होगे, देख खुशी हर छागे।

पहली सोना झोली मा अब, भारत के हे आगे।।


खेल बीस टोक्यो ओलंपिक, काम फेकना भाला।

जान ददा श्री सतीश हे अउ, मॉं सरोज के लाला।।

खान्द्रा गॉंव जिला पानीपत, राज आय हरियाना।

जन्मे ये किसान के घर मा, बासी चटनी खाना।।


बहिनी भाई पॉंच मिलाके, नाम चोपड़ा नीरज।

कांस्य रजत ले धरय नही अब, भारत माता धीरज।।

फेंक सुघर सत्यासी मीटर, भाला ये अगुवागे। 

सुघर हरेली हरियर होगे, देख खुशी हर छागे........

पहली सोना झोली मा अब, भारत के हे आगे......


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार


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जगदीश साहू: मनहरण घनाक्षरी छंद :- हरेली


होगे हावय बियासी, धोवव नाँगर जूड़ा,

गइती रापा रपली, कुदरी ला लाव जी।

बिंधना पटासी आरी, बसुला खुरपी छीनी,

हँसिया हथौड़ी हेर, हबले धोवाव जी।।

लाके गा खम्हार पत्ता, सान के पिसान नून,

जाके बरदी मा गाय, बछरू खवाव जी।

घर आके सब मिल, आनी बानी रोटी पीठा, 

संग मा बनाके चीला, रोटी ला चढ़ाव जी।।


खोज-खोज सोझ-सोझ, काट-काट छाँट बाँस,

चीर-चीर बाँध जल्दी, गेंड़ी ला बनाव जी।

छोटे बड़े गेंड़ी साज, घूमौ सबो मिल आज,

चिखला माटी ले सब, गोड़ ला बचाव जी।।

पूजा पाठ कर लव, पहिली तिहार येहा,

मिलके हरेली आज, सुग्घर मनाव जी।

बिसरत हावय अब, हमर तिहार सब,

जुरमिल सबो संसकृति ला बचाव जी।।


घर-घर लीम डारा,  खोंचत हावै बइगा,

ठोंकय लोहार खीला, सब घर जात हे।

मान पावै ख़ुशी-ख़ुशी, गाँव भर झूमे नाचे,

सब मिल गेंड़ी चढ़े, बड़ सुख पात हे।।

आना जाना लगे गली, लइका सियान सब,

रंगे धरती के रंग, बड़ इतरात हे।

घर के दुवारी बैठे, देख-देख जगदीश,

ननपन के अपन, सुरता लमात हे।।


जगदीश "हीरा" साहू

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: सार छंद - बोधन राम निषादराज

*(हरेली आगे)*


रिमझिम रिमझिम बरसत पानी,

                     देख    हरेली   आ गे।

ये  भुइँया  के  भाग  सँवर गे,

                    खुशहाली बड़ छा गे।।


सावन महिना सुघर अमावस,

                 सवनाही  शुभ साजे।

पहिली परब मनावत संगी,

                  रुच-रुच गेड़ी  बाजे।।

आज किसानी नाँगर जूड़ा,

                   जम्मों    हा   धोवा  गे।

ये भुइँया के भाग सँवर गे...............


गौ  माता  बर  बनगे  लोंदी,

                   अँगना   बने   लिपागे।

निमुआ  डारा  द्वार  मुँहाटी,

                   राउत   हाथ   टँगागे।।

घर-घर राँधै चीला पपची,

                   गली  खोर   ममहागे।

ये भुइँया के भाग सँवर गे............


हरियर खेती चारों कोती,

                    लहर लहर लहरावय।

पड़की,मैना,सुआ,कोयली,

                   सुम्मत गीत सुनावय।।

सुग्घर पुरवा चलत बिहनिया,

                   सब के मन हरषागे।

ये भुइँया के भाग सँवर गे.............


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम

(छत्तीसगढ़)

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: कुण्डलिया- अजय "अमृतांशु"


सावन के महिना हवय, आय हरेली आज।

पबरित हमर तिहार ये, बंद हवय सब काज।।

बंद हवय सब काज, बनत हावय चौसेला।

नागर बक्खर धोय, चढ़त हे नरियर भेला।

हावय मगन किसान, खेत लागय मनभावन। 

आय हरेली आज , लगत हे सुग्घर सावन।


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा (छ. ग. )

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मनीराम साहू: कुंडलिया


हाँसत कुलकत आ गइस, देखव आज तिहार।

हँसी खुशी के संग मा, रिमझिम धरे फुहार।

रिमझिम धरे फुहार, देत हे सुख बरपेली।

ताल उमंग उछाह, चिभोरत हवय हरेली।

दया मया के जाल, सबो ला हे ये फाँसत।

गाँव गाँव सब ठाँव,आय हे कुलकत हाँसत।

मितान

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गुमान साहू: सार छन्द             

 ।।परब हरेली।।

आये हावय परब हरेली, जुरमिल चलव मनाबो।

परब हमर ये पहिली संगी, सुग्घर सब परघाबो।।


सावन मास अमावस्या मा, ये तिहार हा आथे।

गाँव गाँव अउ गली गली मा, हरियाली बगराथे।।


बरदी मा जाके गइया ला, लोंदी सबो खवाबो।

बन कांदा दसमूल गोंदली, के प्रसाद ला खाबो।।


धो धोवाके जिनिस किसानी, सुग्घर सबो सजाथे।।

नरियर चीला फूल चढ़ाके, गुड़ के सँग जेंवाथे।।


नीम डार खोंचे बर राउत, घर घर सबके जाथे।

बइगा घलो अशीस देके, दार चाऊँर पाथे।।


लइका मन हा मचथे गेड़ी, भारी मजा उठाथे।

दीदी बहिनी खो-खो फुगड़ी, खेले भाठा जाथे।।


-गुमान प्रसाद साहू, समोदा 

 साधक सत्र- 6

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संसो किसान के-छंद त्रिभंगी


तन मन नइ हरियर, बन नइ हरियर, काय हरेली मैं मानौं।

उना कुँवा तरिया, सुख्खा परिया, का खुमरी छत्ता तानौं।।

गाँवौं का कर्मा, बन अउ घर मा, भाग अपन सुख्खा जानौं।

मारौं का मंतर, अन्तस् गे जर, नीर कहाँ ले अब लानौं।।


खापौ का गेंड़ी, पग हे बेंड़ी, बोली मुँह नइ फूटत हे।

बिन होय बियासी, होगे फाँसी, प्राण धान के छूटत हे।।

का धीर धरौं अब, खुदे जरौं अब, आस जिया के टूटत हे।

बिन बरसे जाथे, टुहूँ दिखाते, घन बैरी सुख लूटत हे।।


आगी संसो के, भभके भारी, उलट पुलट मन चूरत हे।

आँखी पथरागे, चेत हरागे, बने सकल ना सूरत हे।।

आने कर सुख हे, मोरे दुख हे, पानी तक नइ पूरत हे।

काखर कर जावौं, कर फैलावौं, पथरा के सब मूरत हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा

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मनहरण धनाक्षरी 


हरेली तिहार आगे,मनमा उमंग छागे।

सावन महीना भैया, पहिली तिहार हे।।


रुच रुच गेंड़ी बाजे,लइकन सकलागे।

ऐती ओती कूदे फांदे,पारत गोहार हे।।


रापा गैंती बसुला के,नांगर माढ़े चौरा के।

पूजा करे माई पिला,चीला के बहार हे।।


लीमवा के ड़ारा खोंचे,रोग बिमारी ला रोके।

जावथे राऊत मन, सबो के दुवार हे।।


केवरा यदु "मीरा "

राजिम

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 रामकली कारे: ताटंक छंद - हरेली


घपटे बादर करिया- करिया, नील गगन मा छाये हे।

झड़ी लगाये बरखा रानी, झिंमिर झिंमिर बरसाये हे।।


मन भींजत हे तन भींजत हे, रितु पावन चल आये हे।

ओढ़ चुनरियाॅ धरती दाई, मंद- मंद मुस्काये हे।।


चारों मुड़ा म हरियर हरियर, रुख राई उल्हाये हे।

धान- सोनहा खेत- खार मा, लहर- लहर लहराये हे।।


नदिया- तरिया नरवा झरना, कल- कल मया लुटाये हे।

महतारी के कोरा मा सब, जीव आसरा पाये हे।।


नाॅगर- बइला गेड़ी- भेला, गाॅव गली भदराये हे।

लइका मन सब हाॅसत- कुलकत, खेलय खेल सुहाये हे।।


हमरे छत्तीसगढ़ी संस्कृति , उत्सव खुशी समाये हे।

आय हरेली नागपंचमी, जन- जन ला हरषाये हे।।



रामकली कारे

बालको नगर कोरबा

सत्र साधक- 8

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ज्ञानू कवि: विष्नुपद छंद


खड़े दुवारी परब हरेली, कुलकत हाँसत हे।

दया मया के रँगे रंग मा, सब ला फाँसत हे।।


हूम धूप ला देव ठउँर मा, बइगा देवत हे।

आज गाय गरुवा मन सुग्घर, लोंदी जेवत हे।।


राँपा गैती धोके हँसिया, राखत नाँगर हे।

हमर मितानी संग किसानी, अपने जाँगर हे।।


हरियर हरियर धनहा डोली, बड़ इतरावत हे।

नेवरिया जस लागत हावय, बहू लजावत हे।।


गेड़ी सजके गली खोर मा, बाजत रिचरिच हे।

रीति-रिवाज कहाँ गय संगी, अब सब रिचपिच हे।।


छाती ठोक सियान कहै सब, सबले हन बढ़िया।

भूलत जावत हन अब संस्कृति, हम छत्तीसगढ़िया।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

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सरसी छंद* 


 *हरेली* 


सावन मा हरियाली हे जी, माते खेती खार|

धरती दाई रूप निखारे, कर सोला श्रृंगार| ||



आज घरोघर मानत हें जी, गेंड़ी हे उपहार |

निक लागे हे सँगवारी जी, धनहा डोली खार||


बने हवय जी गुरहा चीला, बाटँय झारा झार|

नरियर भेला परसादी के, खावँय मुँह मा डार||



ददा ऊँच के धनहा जाथे, बाँवत नेंग सम्हार|

गैंती रापा बिंधना कुदरी, नाँगर के उपकार|



अमुआ के थांघा मा झुलना, बँधगे ओरी ओर|

झुलना झूलत हें संगवारी, फुगड़ी के हे सोर|



बैला बछरू गइया धोके, लोंदी हवँय खवाय|

रिचरिच गेंड़ी बाजत हावय, देखत मा मन भाय||


परवा छानी मा खोंचे हे, अहिर लीम के डार |

खेती बर आसीस मँगत हे, धरनी पाँय पखार|||

🙏


छंद -साधक 

अश्वनी कोसरे

कवर्धा कबीरधाम

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: सार छंद --  श्री मोहन लाल वर्मा

                     विषय- बइला


करँव किसानी खेती बाड़ी,जाँगर टोर कमाके।

बनँव नगरिहा के साथी मँय,बइला नाँव धराके। 1।


कतको बादर गरजय चाहे,गिरय कराअउ पानी।

घाम ताव मा बूता करथँव,करँव नहीं मनमानी। 2।


धरती दाई के सेवा मा,बीत जथे जिनगानी।

खून-पछीना रोज बहाथँव,अइसन मोर कहानी। 3।


हिया तता के बोली-भाखा,मँय हा समझँव जानँव।

जे घर मा रहि खावँव पीयँव,मालिक ओला मानँव। 4।


जिहाँ मनावँय तीजा-पोरा,सुग्घर मान हरेली।

पूजँय मोला देव बरोबर,मनखें मन बरपेली। 5।


बड़ सुग्घर तँय करे विधाता,बइला रूप बनाके।

शिवशंकर के कहँय सवारी,मनखें सबो मनाके।6।


मोर सफल होगे जिनगानी,ये दुनिया मा आके।

परमारथ मा उमर पहागे,संगत बढ़िया पाके।7।


जब-जब जनम धरँव भुइँया मा,इही रूप ला पावँव।

"मोहन"सुख संजोये अंतस,भाग अपन सँहरावँव।8।

       

          रचनाकार  :-  मोहन लाल वर्मा

         पता :- ग्राम-अल्दा,पो.आ.-तुलसी

  (मानपुर),व्हाया-हिरमी,विकास खंड-तिल्दा, जिला-रायपुर(छत्तीसगढ़)पिन कोड-493195

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6 comments:

  1. बहुत सुन्दर हरेली विशेषांक

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  2. वाह वाह सुग्घर अंक ...

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  3. बढ़िया प्रस्तुति सबक छंदकार बहिनी मन ला बहुत बहुत बधाई ।

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  4. बहुत सुघ्घर छंद परिवार के हरेली तिहार के छंदमय रचना जम्मो साधक भाई बहिनी मन ला बहुत बहुत बधाई

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  5. सुघ्घर संकलन👏👏👏💐💐💐

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  6. सुग्घर विशेषांक ।हार्दिक बधाई।

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