परम् पूज्य गुरुदेव जी के जन्म दिन के पावन अवसर म्, छंद परिवार डहर ले भाव पुष्प ---
मनोज वर्मा
जिनगी गुरुवर के बिना, नइ होवय भव पार।
ज्ञान दीप ले गुरु सदा, मेटय जी अॅंधियार।।
मनोज वर्मा
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पइँया लागँव हे गुरुवर।
रद्दा रेंगँव अँगरी धर।।
चरण - शरण मा आए हँव।
तुँहरे गुन ला गाए हँव।।
मँय अड़हा अज्ञानी जी।
दौ अशीष वरदानी जी।।
जग के तारनहारी जी।
जावँव मँय बलिहारी जी।।
पार लगादौ नइया जी।
गुरुवर लाज बचइया जी।।
बोधन राम निषादराज✍️
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बिना स्वार्थ के ज्ञान ला, बाटे जग ला दान।।
गुरु ले बड़का कोन हे, ये जग मा भगवान।
दुर्ग नगर के एकझन, करथे इसने काम।
छन्द ज्ञान ला बांटथे, अरुण निगम हे नाम।।
मोर परम शौभाग्य हे, महूॅं शिष्य हंव आज।
एक छन्द गुरुदेव बर, भेजत हंव मैं साज।।
✒️_मिलन मलरिहा_
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*तन-मन हे अर्पण ,सर्व समर्पण , गुरु अँधियारी, दूर करे।*
*मँय जड़मति प्राणी, मधुर न वाणी, नेक रहौं मजबूर करे।।*
*माँ के ममता हे, दृष्टि पिता हे, कृपा सदा भर-पूर करे।*
*मन चक्षु उघारे , तामस मारे , अहंकार ला, चूर करे।।*
गुरू शरण मा ज्ञान हे, धरौं हमेशा ध्यान।
पग-पग मिलै असीस हा, गुरुवर कृपा निधान।।
*गुरुवर कृपा निधान, दे असीस हम ला सदा।*
*जग मा हे सम्मान, गुरु प्रकाश के पुंज ले।।*
खोजत-खोजत घटिस जवानी, गुरु बिन रहिस अधूरा।
जगमग-जगमग जग हर लागै, अँधियारी हे पूरा।।
*कदम-कदम मा ठग-जग बइठे, कालनेमि के वेश धरे।*
*नहीं चिन्हार रहै गुरु एको, कोन इहाँ बहुरूप हरे।।*
ज्ञान पिटारा निर्मल धारा, गुरूदेव के वाणी मा।
गुरु दुख-भंजक शीतल ठंडक, अलख जगाथे प्राणी मा।।
*अमरित बरसा ज्ञान के, करथे गुरु हर नीक।*
*मरहा खुरहा हर घलो, हो जाथे तब ठीक।।*
*हो जाथे तब ठीक, मनुस जब विद्या पाथे।*
*जग मा नाम कमाय, जगत वोला बड़ भाथे।*
*गुरु ब्रम्हा गुरु बिष्णु, महेश्वर चाहे सब के हित।*
*गुरु जल निर्मल धार, ज्ञानदाता गुरु अमरित।।*
मोर हिरदे मा समाये हस गुरू तँय ज्ञान बन के।
तब अँजोरिस मन मिलत यश आप के वरदान बन के।।
छंद गोता मैं लाथँव आज गुरु सज्ञान बन के।
लहलहावत डहर चारों छंद हरियर पान बन के।।
*गुरू मा हवै देवता के प्रकाशा।*
*गुरू माँ पिता के हरे नेक आशा।।*
*गुरू शिष्य साधे गुरू सार देथे।*
*गुरू नाव संसार ले तार देथे।।*
छंद साधक :
*बलराम चंद्राकर भिलाई*
कक्षा - 4
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गुरु वंदना - त्रिभंगी छंद*
सुमिरन स्वीकारौ,दास ल तारौ,चरन शरन मा,आय हवौं।
गुरुवर पूजन ले,तन अउ मन ले,अद्भुत ज्ञान ल,पाय हवौं।।
किरपा बरसावौ,हाथ लमावौ,मूड़ी ऊपर,रहै सदा।
निर्मल जस गंगा,मन हो चंगा,ज्ञान अँजोरी,बहै सदा।।
बोधन राम निषादराज
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साहित के संसार मा, लाए नवा बिहान। ।
जुन्ना छंद परंपरा, ला फिर से सिरजाँय।
तरी जिंकर आसीस के, सब साधक जुरियाँय। ।
भरँय खजाना छंद के, धर के छंद विधान।
करत हवँय सरलग सबो, साहित ला धनवान। ।
गुरुवर के नित पैलगी, लागँव मँय करजोर।
जिंकर दया अउ स्नेह के, हावय ओर न छोर। ।
दीपक निषाद
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ज्ञानू
पा प्रसाद जेखर किरपा के, लेखन मोर चले।
चरण तरी गुरु माथ नवावँत, साँझ बिहान ढले।।
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देवत हँव शुभकामना, जनम दिवस मा तोर।
सुखी रहौ आगू बढ़ौ, इही दुआ हे मोर।।
अशोक धीवर "जलक्षत्री"
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जिनगी गुरुवर के बिना, नइ होवय भव पार।
ज्ञान दीप ले गुरु सदा, मेटय जी अॅंधियार।।
मेटय जी अॅंधियार, देखावय रसता उज्जर।
गढ़े सवैया छंद, रोज साधक मन सुग्घर।।
गरुवर निगम अरूण, बने चमकै सबो डहर।
छंद के छ परिवार, अभारी जिनगी गुरुवर।।
मनोज वर्मा
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रूपमाला छंद
गुरु बिना भव कोन तरथे,कोन करथे राज।
हाथ गुरु के सिर मा होवय,छोट तब सब ताज।
घोर अँधियारी मिटाथे,दुख ल देथे टार।
वो चरण मा मँय नँवावँव,माथ बारम्बार।
खैरझिटिया
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गुरु वाणी अमरित हवै, मिलथे सुग्घर ज्ञान।
भक्ति भाव मन मा जगे, जिनगी हो आसान।।
गुरु ले चारों वेद हे, गीता ग्रन्थ पुराण।
सच्चा मन ले हम करिन, निशदिन गुरु के ध्यान।।
गुरु देथे आशीष तब, बनथे बिगड़े काम।
दरस चरण मा हो जथे, चारों तीरथ धाम।।
गुरु के महिमा हे अगम, तरथे जम्मो शिष्य।
दूर कमी करथे हमर, गढ़थे सुघर भविष्य।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
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हावय बरगद पेड़ जस, ज्ञान मिले जस छाॅऺंव ।
देवत एक समान हे, परत सबो हें पाॅऺंव ।।
परत सबो हें पाॅऺंव, चरण जस कमल समाना ।
साधक मान सपूत,देय जस छंद खजाना ।।
सरल सुघर मन भाव,सबो मन जन जन भावय ।
साहित करत ग पोठ,पेड़ जस बरगद हावय ।।
जन्म दिवस शुभकामना,आप ल गुरुवर मोर ।
जीयव बछर हजार हो,यश फइलय चहुॅऺंओर ।।
रसजकुमार बघेल
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स्वीकार करव बधाई हमर गुरूदेव छत्तीसगढ़िया
सरल स्वभाव संत अउ ज्ञानी,आप हावव सबले बढ़िया
लइका मन ला छन्द सिखाये ,भेद भाव सब दूर भगाये
सुनके मीठ बोली अउ भाखा मन ला अब्बड़ भावत है
देश दुनिया मा छत्तीगढ़ी के अलख तको जगावत है
हँसी खुशी मा जीवन बीतय घर मा सदा उजियार रहय
अपन चरण मा राखव गुरूदेव सदा हमर बर प्यार रहय
जुग जुग जीयव गुरूदेव, सदा ज्ञान के ज्योत जलावव
हमर असन भटके मन ला, रास्ता तको दिखावव
जन्मदिन मा भगवान ले अतके हावय बिनती
उमर अतका होवय कोनो झन कर सकय गिनती
हँवव मै अज्ञानी ज्ञान पाये बर गे हव अड़िया
स्वीकार करव बधाई हमर गुरूदेव छत्तीसगढ़िया
सरल स्वभाव संत अउ ज्ञानी,आप हावव सबले बढ़िया
राकेश कुमार साहू
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अरुण निगम हे नाँव, मोर प्रणम्य गुरुवर के।
नस नस मा साहित्य, मिले पुरखा ले घर के।
पेंड़ बरोबर भाव, कृपाफल सब ला मिलथे।
पाथें जे सानिध्य, उँखर जिनगी मन खिलथे।
छत्तीसगढ़ी छंद बर, बनगे बरगद कस तना।
गुरु के कृपा प्रसाद ले, होत छंद के साधना।
-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
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*गुरुदेव के जनमदिन मा मोर श्रद्धा के भाव पुष्प गुरु चरण मा*।🙏🙏🙏
त्रिभंगी
गुरु अरुण निगम हे, ज्ञान अगम हे, परमारथ मा ,मगन रहै।
जग बर उपकारी ,सम व्यवहारी, गिरे परे बर ,रतन रहै।।
गुरु ज्योत प्रकाशा,भाव अकाशा,शब्द शब्द मा ,ज्ञान भरै।
रहिके संसारी ,मोह सँहारी,अहम द्वेष के ,गरब क्षरै।।
आशा देशमुख
जन्मदिन के हार्दिक शुभकामना गुरुदेवजी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सादर नमन गुरुदेव जी
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