Followers

Sunday, August 22, 2021

राखी परब विशेष छंदबध्द कवितायें-प्रस्तुति छंद के छ परिवार













राखी परब विशेष छंदबध्द कवितायें-प्रस्तुति छंद के छ परिवार

 सार छन्द गीत-द्वारिका प्रसाद लहरे

(राखी)


रंग बिरंगी राखी धर के,बहिनी मइके आथे।

चंदन टीका माथ लगाके,राखी ला पहिराथे।।


भाई-बहिनी के नाता हा,जग मा होथे पावन।

सदा बरसथे दया मया हा,होथे सुख के सावन।।

रक्षा करके बहिनी मन के,भाई फरज निभाथे।

रंग-बिरंगी राखी धरके,बहिनी मइके आथे।


बँधे रहय ए मया डोर हा,बहिनी के ए आसा।

भाई के मन मा नइ देखय,बहिनी कभू निरासा।।

सुख होवय चाहे दुख होवय,भाई संग निभाथे।।

रंग-बिरंगी राखी धरके,बहिनी मइके आथे।।


अबड़ मयारू बहिनी होथे,जइसे सुख के सागर।

खुशी लुटाथे भाई मन बर,दया मया ला आगर।।

भाई के खुशहाली खातिर,निशदिन दुआ मनाथे।

रंग-बिरंगी राखी धरके,बहिनी मइके आथे।।


द्वारिका प्रसाद लहरे

कवर्धा छत्तीसगढ़


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

कुण्डियाँ छन्द  ...लिलेश्वर देवांगन


राखी....


आथे जी हर साल ए,राखी तीज तिहार|

राखी बांधे हाथ मा ,देवय बहन दुलार ||

देवय बहन दुलार, मया बड़ करथे भाई |

राखी मा जी आज,सजे हे बने कलाई ||

मिलथे खुशी अपार,बहन भाई घर जाथे |

राखी एके बार,साल भर मा जी आथे ||



आने आने रंग के,राखी बिकय हजार |

राखी मा हावय छिपे,दया मया के धार ||

दया मया के धार ,सबो  भाई बर आगे |

भइया करय दुलार,बहन के मन हा भागे ||

राखी मा गा हाथ ,सजे  हावय मनमाने |

राखी हे भरमार ,रंग मा  आने आने ||



पावन राखी बॉधके,बहिनी बड़ मुसकाय|

रक्षक बनके हे सदा,भाई  साथ निभाय |

भाई साथ निभाय,सहारा होथे भइया |

लेके आशीर्वाद ,परय जी बहिनी पइया ||

रक्षाबंधन तीज,आय हे  पुन्नी सावन|

मिलथे खुशी अपार,बने हे  राखी पावन ||


लिलेश्वर देवाॉगन

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


हेम के कुण्डलिया (राखी)


बहनी राखी ला धरै, मइके आय दुवार।

भैया के मन भात हे, देवत मया दुलार।।

देवत मया दुलार, हाथ मा पहिने राखी।

नाता हे अनमोल, मया के बाँधे साखी।।

दे दव रक्षा वचन, मान लव मोरो कहनी।

लक्ष्मी बनके भाग्य, आय भाई घर बहनी।।

-हेमलाल साहू

छंद साधक, सत्र-1

ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

राखी 

सब के माथा टीका लग गे,

मोर माथ हे सुन्ना। 

राखी सबके बँधे कलाई,

मोर हाथ हे उन्ना। 


दाई दीदी ले मिलवादे,

कहाँ बसे मँय जाहूँ। 

रसता जोहत होही दीदी, 

जा राखी बँधवाहूँ। 


दाई के कुछ समझ न आवय,

कइसे करय बहाना। 

दीदी नइ हे ये मुन्ना के, 

गड़बड़ होय बताना। 


तुरते जा के राखी लानिस, 

सँग मा लाय मिठाई।

दीदी तोरो भेजे कहिके, 

बाँधिस हवय कलाई।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


*राखी तिहार के हार्दिक बधाई।*

-----------------------------------

राखी धर बहिनी अउ दीदी,आथें जी घर आज।

भइया-भाई ला तिलक सारथें, थाल आरती साज।।


बाँध कलाई रक्षा धागा,मीठा मुँह मा डार।

चुलबुलहिन मन चहक-चहक के, तहाँ जनाथें प्यार।

अबड़ पिरोहिल मातु-पिता के, दू कुल के हें लाज।

राखी धर बहिनी अउ दीदी,आथें जी घर आज।।


लक्ष्मी जइसे बहिनी-दीदी,देथें असिस अँजोर।

सुखी रहैं कभ्भू झन आवै, आँसू आँखी कोर।

ऊँखर सुख बर जिंयत-मरत ले, करना हे सब काज।

राखी धर बहिनी अउ दीदी,आथें जी घर आज।।


रक्षाबंधन के तिहार हा, हे पावन अनमोल।

भाई बहिनी के रिश्ता मा, परै कभू झन झोल।

रीत रिवाज हमर हे सुग्घर, होथे जेमा नाज।

राखी धर बहिनी अउ दीदी,आथें जी घर आज।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐


कुण्डलिया- विजेन्द्र वर्मा


राखी


बचपन के तो आज जी,सुरता बहुते आय।

राखी रेशम के बने, सबले जादा भाय।

सबले जादा भाय, हाथ भर पहिरन अतका।

रिकिम रिकिम के लाय, बाँध दय बहिनी जतका।

आनी-बानी खान, भोग राखी मा छप्पन।

होगे हवन जवान, याद आथे अब बचपन।।


बंधन बाँधय हाँस के, बहन निभावय रीत।

हिरदे मा भर प्रीत ला, मन भाई के जीत।

मन भाई के जीत,  प्रीत के बाँधय धागा।

कुमकुम तिलक लगात, सुघर पहिराये पागा।

भाई हे अनमोल, करत हे प्रभु  ला वंदन।

हाँसत अउ हँसवात, आज बाँधत हे बंधन।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


दिनांक____ 20/08/2021

अमृत ध्वनि छंद

                  *राखी*

राखी के पबरित परब,  पुन्नी सावन मास।

भाई बहिनी के परब, दया मया के आस ।।

दया मया के, आस जगाथे, राखी धागा ।

बाँध कलाई, प्रीत बढ़ाथे, तब ये तागा।

माथे चंदन, तिलक लगाथे, दुनिया साखी।

बहिनी बाँधय, भाई ला जी, सुग्घर राखी।।


राखी के बदला सदा , मान मिलय उपहार।

नइ माँगव बाँटा कभू, चाहँव मँय हा प्यार।।

चाहँव मँय हा, प्यार संग दू , लोटा पानी।

रहँव ददा अउ , दाई के बन, बिटिया रानी।

हरंँव उखँर  मँय, अँगना के गा, फुदकत पाखी।

आहूँ मइके, भाई बर धर, मँय हा राखी।।


पद्मा साहू *पर्वणी*

खैरागढ़ जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐

: कुण्डलिया छंद-संतोष कुमार साहू

(राखी)


(1)

भाई बहन तिहार गा,रक्षाबंधन मान।

अड़बड़ मया दुलार के,सुग्घर एला जान।।

सुग्घर एला जान,खुशी हा झलके भारी।

भाई बहिनी बीच,पटे नित बढ़िया तारी।

भाई के ये बोल,तोर मँय करँव भलाई।

हर दुख आँवव काम,तोर अइसे हँव भाई।।


(2)

मोरे राहत ले बहन,चिंता ला सब छोड़।

राखी के बदला सदा,देहूँ खुशी करोड़।।

देहूँ खुशी करोड़,तोर नित रक्षक बन के।

करहूँ मँय हा तोर,मदद तन मन अउ धन के।

कभ्भू कोनो कष्ट,तीर झन जावय तोरे।

अतका पक्का मान, ध्यान हा रइही मोरे।।


छंदकार-संतोष कुमार साहू

रसेला,जिला-गरियाबंद

छ.ग.

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 रोला छन्द- सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'


         "सूत पोनी के राखी"


बहिनी गइस बजार, बिसाये बर हे राखी।

लेइस छॉंट-निमार, दिखिस सुग्घर जे राखी।

मन मा करिस बिचार, बने फभही दे राखी।

गजबे करिस हिसाब, गिनिस लगही के राखी।


लेइस राखी एक, अपन दुलरू भाई बर।

दिन भर देथे छॉंव, एकठन रुखराई बर।

एक ददा के बोल, शबाशी सहुॅंराई बर।

राखी लेइस एक, जनम जननी दाई बर।


पढ़ लिख पाइस ज्ञान, एकठन विद्यालय बर।

पाइस पद सम्मान, एकठन कार्यालय बर।

पबरित राखी एक , बिसाइस देवालय बर।

महिला के मरजाद, एकठन शौचालय बर।


राखी एक किताब, तरी दाबे बर लेइस।

एक अपन संदूक, उपर बॉंधे बर लेइस।

पबरित राखी एक, जनम भुइयॉं बर लेइस।

एक अपन घर गॉंव, ठिहा छइहॉं बर लेइस।


लोकतंत्र के नॉंव, वोट बर लेइस राखी।

संविधान कानून, कोर्ट बर लेइस राखी।

रंग बिरंगा खूब, फभय नोनी के राखी।

सस्ता सुन्दर पोठ, सूत पोनी के राखी।


-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

*राखी के परब - बोधन राम निषादराज*

(हरिगीतिका छंद)


सावन परब पुन्नी बखत,भादो लगाती मास मा।

बहिनी मया करथे गजब,भइया मिले के आस मा।।

घर के  दुवारी मा  खड़े, रद्दा घलो  जोहत रथे।

भइया बिहनिया गाँव ले,आही सखी मन ला कथे।।


राखी धरे बहिनी सबो,थारी सजाथे साथ मा।

दीया जला अउ आरती,चन्दन लगाथे माथ मा।।

राखी कलाई बाँध के,मुँह मा मिठाई डार के।

बहिनी बने आशा करै,खुशियाँ मिलै संसार के।।


राखी अमर डोरी हवै,पबरित मया के संग मा।

आवय बछर भर मा इही,घोरय मया रस अंग मा।।

भाई बहिन के ये परब, राखी सुघर त्यौहार जी।

भाई मया करथे बहिन, पाथे बने सत्कार जी।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

राखी 


बिहनाले टिपटॉप गोलू तइयार हे। 

जानत हे आज तो जी राखी के तिहार हे। 


काली ओ बाजार जाके उपहार लाये हे। 

कोनो झन देख पावय झोला म लुकाये हे। 

दीदी ल चकित करे, बड़ा हुशियार हे।


आरती सजाये दीदी पीढ़वा मढ़ाय हे। 

आजा भाई राखी बाँधु गोलू ल बलाय हे। 

मेवा मिष्ठान राखे  थारी म बहार हे। 


कुमकुम गुलाल के टीका ल लगाय हे। 

आरती उतार दीदी राखी पहिराय हे। 

मुँह मीठा कर दीदी, देवत दुलार हे। 


गोलू जे लुकाये राहय झटकुन लान दय। 

दीदी हो चकित देखे,  खुशी हर जान दय। 

भाई बहिनी के मया अपरम पार हे।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

अमृतध्वनि छंद- संगीता वर्मा

राखी


चंदन कुमकुम आरती, धरे हाथ मा थार।

बहिनी राखी बाँध के, पहिरावत हे हार।।

पहिरावत हे,हार गला मा,मया लुटावत।

भाई के कर,सुघर आरती,रीत निभावत।

भाई बहिनी,सुघर मनावय, रक्षाबंधन।

पूजन वंदन,करत लगावय, कुमकुम चंदन।।


संगीता वर्मा

अवधपुरी भिलाई

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)


माई खोली म माढ़े हे,भोजली दाई बाढ़े हे

ठिहा ठउर मगन हे,बने पाग नेत हे।

जस सेवा चलत हे, पवन म  हलत हे,

खुशी छाये सबो तीर,नाँचे घर खेत हे।

सावन अँजोरी पाख,आये दिन हवै खास,

चढ़े भोजली म धजा,लाली कारी सेत हे।

खेती अउ किसानी बर,बने घाम पानी बर

भोजली मनाये मिल,आशीष माँ देत हे।


भोजली दाई ह बढ़ै,लहर लहर करै,

जुरै सब बहिनी हे,सावन के मास मा।

रेशम के डोरी धर,अक्षत ग रोली धर,

बहिनी ह आये हवै,भइया के पास मा।

फुगड़ी खेलत हवै,झूलना झूलत हवै,

बाँहि डार नाचत हे,जुरे दिन खास मा।

दया मया बोवत हे, मंगल ग होवत हे,

सावन अँजोरी उड़ै,मया ह अगास मा।


अन्न धन भरे दाई,दुख पीरा हरे दाई,

भोजली के मान गौन,होवै गाँव गाँव मा।

दिखे दाई हरियर,चढ़े मेवा नरियर,

धुँवा उड़े धूप के जी ,भोजली के ठाँव मा।

मुचमुच मुसकाये,टुकनी म शोभा पाये,

गाँव भर जस गावै,जुरे बर छाँव मा।

राखी के बिहान दिन,भोजली सरोये मिल,

बदे मीत मितानी ग,भोजली के नाँव मा।


राखी के पिंयार म जी,भोजली तिहार म जी,

नाचत हे खेती बाड़ी,नाचत हे धान जी।

भुइँया के जागे भाग,भोजली के भाये राग,

सबो खूँट खुशी छाये,टरै दुख बान जी।

राखी छठ तीजा पोरा,सुख के हरे जी जोरा,

हमर गुमान हरे,बेटी माई मान जी।

मया भाई बहिनी के,नोहे कोनो कहिनी के,

कान खोंच भोजली ला,बनाले ले मितान जी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


राखी


बड़े बिहनिया झटकुन दीदी,राखी धरके आबे ना।

हाल-चाल अउ दया-मया ला, ॲंचरा मा गॅंठियाबे ना।


धरे रबे बहिनी ॲंचरा मा,ननपन के जम्मो सुरता।

माते जब वो पटकिक पटका ,फट जावय तुनहा कुरता।।

भौंरा बिल्लस खेल खेल मा,बड़ होवन धक्का मुक्की।

ददा शिकायत सुनके आवय, तॅंय भागस मारत बुक्की।।

मया अतिक भाई बहिनी के, कते डहर अब पाबे वो।

बड़े बिहिनियाॅं झटकुन दीदी, राखी धरके आबे वो।।


खई-खजानी जब-जब बाॅंटे,मन मा राहय बड़ खटका।

तोर बहुत अउ मोर ह कमती,बड़ होवन झटकिक- झटका।।

एक दूसरा के बस्ता ले,शीश कलम ला बड़ टापन।

पता लगे अउ झगरा माते,ददा करे तब उद्यापन।।

झगड़ा पाछू मेल जोल ला,दुनिया म कहां पाबे वो।।

बड़े बिहिनियाॅं झटकुन दीदी,राखी धरके आबे वो।।


उमर अठारा मा करत रहिन,जबरन तोर सगाई ला।

ओ दिन तॅंय अंतस मा लाने,खप्पर वाले माई ला।।

सबक सिखाये अपने घर मा,मान रखे बर नारी के।

ददा बबा तब ऑंख उघारिन,समझिन दरद सुवारी के।।

रौद्र रूप वाले बहिनी तॅंय,सबके दुख बिसराबे ना।

बड़े बिहिनियाॅं झटकुन दीदी,राखी धरके आबे ना।।


महेंद्र कुमार बघेल

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


छन्नपकैया छंद ----आशा देशमुख


राखी

छन्नपकैया छन्नपकैया ,किसम किसम के राखी।
भाई बहिनी मन चहकत हे ,जइसे चहके पाखी।1।

छन्नपकैया छन्नपकैया,भैया देखे रस्ता।
अबड़ मोल राखी के डोरी,झन  जानँव गा सस्ता।2।

छन्नपकैया छन्नपकैया,मन पहुना लुलवाथे।
ननपन के सब मान मनौवा, अब्बड़ सुरता आथे।3।

छन्नपकैया छन्नपकैया,भठरी मन सब आवैं।
पहली के सब रीत चलागन,अब तो सबो नँदावैं।4।

छन्नपकैया छन्नपकैया ,मँय बहिनी मति भोरी।
भाई बहिनी के तिहार मा, बगरे मया अँजोरी।5।

छन्नपकैया छन्नपकैया,घर घर बने मिठाई।
माथ सजे हे मंगल टीका, राखी सजे कलाई।6।

छन्नपकैया छन्नपकैया,कहुँ हो जाये देरी।
निकल निकल के बहिनी देखे,रस्ता घेरी बेरी।7।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
राखी-बरवै छंद

राखी धरके आहूँ, तोरे द्वार।
भैया मोला देबे, मया दुलार।।

जब रेशम के डोरी, बँधही हाथ।
सुख समृद्धि आही अउ, उँचही माथ।

राखी रक्षा करही, बन आधार।
करौं सदा भगवन ले, इही पुकार।

झन छूटे एको दिन, बँधे गठान।
दया मया बरसाबे, देबे मान।।

हाँस हाँस के करबे, गुरतुर गोठ।
नता बहिन भाई के, होही पोठ।।

धन दौलत नइ माँगौं, ना कुछु दान।
बोलत रहिबे भैया, मीठ जुबान।।

राखी तीजा पोरा, के सुन शोर।
आँखी आघू झुलथे, मइके मोर।।

सरग बरोबर लगथे, सुख के छाँव।
जनम भूमि ला झन मैं, कभू भुलाँव।।

लइकापन के सुरता, आथे रोज।
रखे हवँव घर गाँव ल, मन मा बोज।।

कोठा कोला कुरिया, अँगना द्वार।
जुड़े हवै घर बन सँग, मोर पियार।।

पले बढ़े हँव ते सब, नइ बिसराय।
देखे बर रहिरहि के, जिया ललाय।

मोरो अँगना आबे, भैया मोर।
जनम जनम झन टूटे, लामे डोर।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐




6 comments:

  1. बहुते सुघ्घर संकलन सादर बधाई जम्मो छन्द साधक मन ला

    ReplyDelete
  2. बड़ सुग्घर संंकलन

    ReplyDelete
  3. सुघ्घर संकलन जम्मो साधक दीदी भैया ला बधाई।

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर गाड़ा गाड़ा बधाई हो

    ReplyDelete
  5. जम्मो सम्मानीय साहित्यकार मन ला गाड़ा गाड़ा बधाई💐💐💐

    ReplyDelete
  6. सुग्घर संकलन।हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete