: जन्माष्टमी विशेष
जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: मोला किसन बनादे (सार छंद)
पाँख मयूँरा मूड़ सजादे,काजर गाल लगादे|
हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |
बाँध कमर मा करिया करधन,बाँध मूड़ मा पागा|
हाथ अरो दे करिया चूड़ा,बाँध गला मा धागा|
चंदन टीका माथ लगादे ,पहिरा माला मुंदी|
फूल मोंगरा के गजरा ला ,मोर बाँध दे चुंदी|
हार गला बर लान बनादे,दसमत लाली लाली |
घींव लेवना चाँट चाँट के,खाहूँ थाली थाली |
मुचुर मुचुर मुसकावत सोहूँ,दाई लोरी गादे।
हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |
दूध दहीं ला पीयत जाहूँ,बंसी मीठ बजाहूँ|
तेंदू लउड़ी हाथ थमादे,गाय चराके आहूँ|
महानदी पैरी जस यमुना, रुख कदम्ब बर पीपर।
गोकुल कस सब गाँव गली हे ,ग्वाल बाल घर भीतर।
मधुबन जइसे बाग बगीचा, रुख राई बन झाड़ी|
बँसुरी धरे रेंगहूँ मैंहा ,भइया नाँगर डाँड़ी|
कनिहा मा कँस लाली गमछा,पीताम्बर ओढ़ादे।
हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |
गोप गुवालीन संग खेलहूँ ,मीत मितान बनाहूँ|
संसो झन करबे वो दाई,खेल कूद घर आहूँ|
पहिरा ओढ़ा करदे दाई ,किसन बरन तैं चोला|
रही रही के कही सबो झन,कान्हा करिया मोला|
पाँव ददा दाई के परहूँ ,मिलही मोला मेवा |
बइरी मन ला मार भगाहूँ,करहूँ सबके सेवा|
दया मया ला बाँटत फिरहूँ ,दाई आस पुरादे।
हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |
जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया "
बालको (कोरबा )
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हरिगीतिका छंद - बोधन राम निषादराज
(आठे कन्हैया)
भादो मनाथे अष्टमी,रखथे सबो उपवास जी।
लइका सबो खुश लागथे,रहिथे इँखर बर खास जी।।
आठे कन्हैया साजथे,सुग्घर लिपे भिथिया बने।
गेरू रँगाथे भेंगरा, माहुर धरे बिटिया बने।।
गगरी धरे ग्वालिन घलो,फोटू बनाथे ग्वाल के।
मछरी मगर बिच्छी सरप,हलधर कन्हैया लाल के।।
डोंगा बनाथे संग मा, केवट धरे पतवार जी।
अउ नाँग-नाँगिन बर सखा,रखथे कटोरी द्वार जी।।
पिढ़ली सजाके थाल मा,माखन दही ला जोर के।
आठे कन्हैया के सबो,मुख मा चटाथे घोर के।।
फल फूल नरियर धूप अउ,खीरा मिठाई धर सबो।
पूजा बियारी बेर जी,करथे इहाँ घर-घर सबो।।
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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श्रीकृष्ण
-----(मत्तगयंद सवैया)----
धेनु चरा अउ रास रचा बँसुरी ल बजा चितचोर कहाये।
दूध दही जब बेंचयँ ग्वालिन मार गुलेल म रार मचाये।
चोर बने तैं माखन खातिर दू मन आगर खाय खवाये।
मातु जसोमति ला रिसवा सिधवा बन के तँय पेंड़ बँधाये।
मार अकासुर मार बकासुर ग्वाल सखा मन ला ग बँचाये।
खेलत गेंद गिरे जमुना तब नाँग के नाक म नाँथ लगाये।
धर्म धजा धरके मन मोहन पाप मिटा पुन ला बगराये।
कंस ला मार डरे पटके मथुरा नगरी म धजा फहराये।
दीन दुखी परजा मन ला हिरदे म बसा तँय लाज बँचाये।
मूँड़ ल काट डरे शिशुपाल के चक्र सुदर्शन हाथ घुमाये।
कौरव के कुल नाश करे बर तैं महभारत जुद्ध कराये।
देख दशा बिगड़े यदुवंश के आपस मा लड़वा मरवाये।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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हरिगीतिका छंद - बोधन राम निषादराज
( नन्द लाला )
हे नन्द लाला तोर ये,मुरली घलो बइरी बने।
दिन रात मँय हाँ सोंचके,गुन गाँव मँय मन ही मने।।
घर द्वार मोला भाय नइ,सुन तोर मुरली तान ला।
मँय घूमथँव घर छोड़ के,कान्हा इहाँ अन पान ला।।
जमुना नदी के पार मा,काबर तहूँ इतराय रे।
चोरी करे कपड़ा तहूँ,अउ डार मा लटकाय रे।।
हम लाज मा शरमात हन,तँय हाँस के बिजराय रे।
अइसन ठिठोली छोड़ दे,अब जीव हा करलाय रे।।
ए राधिका सुन बात ला,तँय मोर हिरदे छाय हस।
मोरे मया ला पाय के,गजबे तहूँ इतराय हस।।
राधा बने तँय श्याम के,ये देख दुनिया जानथे।
राधा बिना नइ श्याम हे,अब संग मा पहिचान थे।।
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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: अमृत ध्वनी छंद - राजेश कुमार निषाद
मटका फोड़न गाँव मा,करके अड़बड़ शोर।
चढ़के संगी सब सखा,बाँधन मटका डोर।।
बाँधन मटका,डोर धरे हे, रंग बिरंगी।
आमा पाना,केरा नरियर, सबझन संगी।
खाके माखन, मारत हावय,देखव चटका।
हँसी खुशी ले ,फोड़व सबझन,एसो मटका।।
छंदकार:- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद रायपुर
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: मनहरण घनाक्षरी-विजेन्द्र वर्मा
भादों मास सुखकारी, जन्म धरिन मुरारी।
देवकी के गोद मा तो,देख मुसकात हे।
वसुदेव हा धरके,टुकनी मा तो भरके।
ललना ला तोप बने,नंद करा जात हे।
मनमोहना रूप हे,पानी बादर धूप हे।
मुचुर मुचुर हाँस,जग ला रिझात हे।
बिधन ला टारे बर,दुष्ट ला तो मारे बर।
जन्म लिन धरती मा,इही सार बात हे।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
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: बँसरी तैं मँगवादे (सार छंद)
सुन वो दाई छोटे खुमरी,
मुड़ बर तैं बनवादे।
किसना कस मैं गाय चराहूँ,
बँसरी तैं मँगवादे।
लेदे मँइया करिया कमरा,
पूरय हाही माही।
ओढ़े रइहूँ पार गँउठला,
नइ तन जाड़ जनाही।
लगही प्यास कहूँ वो दाई,
रखहूँ तुमड़ी पानी।
अँगरा रोटी पो के देबे,
सँग अथान के चानी।
चरही बगरे गरुवा बछरू,
बँसरी हा जब बजही।
ठिन ठिन गइयन के घाँटी मन,
नँगते के निक लगही।
लगही कहूँ थकासी दाई,
नरवा खाल्हे जाहूँ।
गरुवा बछरू संग मँझनिया,
पेड़ तरी सुरताहूँ।
-मनीराम साहू 'मितान'
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: जन्माष्टमी विशेष
किशना से गोहार
गीतिका छंद
हे कन्हैया आ जगत मा ,देख बाढ़े पाप हे।
बाढ़गे अतका सुवारथ ,छल अहम के ताप हे।।
लोभ के रद्दा धरे जग, मन मया ला छोड़ के।
बीच घर द्वारी रुंधागे , नेंव इरखा कोड़ के।।
देश दुनिया राज सत्ता , सब महाभारत करें।
धर्मराजा हे कलेचुप , जेब अँधवा मन भरें।।
आ किशन विनती विनत हव, प्रेम के अवतार धर।
फेर जग मा सुख बसा दे , शांति सुम्मत ला सुघर।।
हे किशन तोरे जरूरत , आज जग ला अउ हवै।
नइ दिखे गोपाल कोनो,बिन गुवाला गउ हवै।
नाम के बस गोधूलि हे , आय पथरा राज हे।
लागमानी गोत नाता , मूल के बिन ब्याज हे।।
आशा देशमुख
एनटीपीसी कोरबा
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: घनाक्षरी छंद - श्लेष चन्द्राकर
आठे हरय आज गा, करव पूजा-पाठ गा,
मनावव जन्म दिन, कृष्ण भगवान के।
भक्ति मा बूड़ जावव, बने भजन गावव,
आज तिहार हरय, किरपा निधान के।
मोहन किरपालु हें, अउ बड़ दयालु हें,
भरपाई कर देथें, सबो नुकसान के।
घाव मन भर जही, जिनगी सँवर जही,
आरती उतारव गा, देवता महान के।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं.-27,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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दिलीप वर्मा सर: श्रृंगार सवैया छंद (सँवाद)
यशोदा घर गोपी मन आय।
कन्हैया के करनी ल बताय।
सुनावैं लल्ला के उत्पात।
यशोदा थोरिक नइ पतियात।
यशोदा सुन ले लल्ला तोर।
करे नुकसान घघरिया फोर।
चुरा के माखन ला ओ खाय।
फोर के घघरी ओ हर आय।
अब गोपिन बात हमार सुनौ तुम झूठ शिकायत नाहि करौ।
हमरो ललना बड़ छोटन हे तुम फोकट चोर न नाम धरौ।
ललना घर माखन खावत हे बिन फोकट ना तुम कान भरौ।
लबरी लबरी तुम गोपिन हौ तुरते मुख टारत भाग टरौ।
कन्हैया हावय कहाँ बताव।
अभी ओला आघू मा लाव।
पूछ ले ओखर ले सब बात।
चोर हे तब्भे देख लुकात।
लबारी नोहय सच तँय मान।
कन्हैया ला थोरिक पहिचान।
बड़ा नटखट होगे हे जान।
पूछ ले धर के ओखर कान।
सुन रे ललना इन गोपिन हा कुछ तोर शिकायत आय कहे।
तुम फोरत हौ घघरी मटका अउ माखन खावत धाय कहे।
सच बात कहौ नहिते सुन लौ करनी कर दण्ड ल पाय कहे।
मुख माखन तोर लगे कइसे किसना अब साँच बताय कहे।
बतावँव सुन ले मइया मोर।
कहे सब मोला माखन चोर।
भला मँय काबर बता चुरावँ।
खाय जब माखन घर मा पावँ
शिकायत जम्मो हे बेकार।
सबो झन मोला करथे प्यार।
मया के खातिर सबझन आय।
बात मा तोला सब बिलमाय।
अब तो सब जान डरे हव की किशना हर माखन ला नइ खाये।
घघरी तक फोर सके नइ ये फिर काबर झूठ कहे बर आये।
समझावत हौं फिर से तुम ला तुँहरो करनी हमला नइ भाये।
फिर झूठ कहे बर आहव ता भगवान तको तुम ला न बचाये।
चलव री ये तो नइ पतियाय।
मया के पट्टी आँख बँधाय।
करे जे किशना हर ये बार।
बाँध के रस्सी रखबो डार।
दिखाबो किशना के करतूत।
मानही तब्भे देख सबूत।
किशनवा देखे अउ मुसकाय।
गोप गोपी खिसियावत जाय।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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मीता अग्रवाल: घनाक्षरी छंद
शीत ललियाए धूप, राधा धरे गोप रूप,
ग्वाल-लइका कान्हा मिल,गऊ ला चराए जी।
हाथी घोड़ा पालकी जी,जै कन्हैया लाल कह,
तारी बजा कान्हा संग, किंदरत जाए जी।
कदंब डारि मा चघे,लुका के उही मा बैठें,
मरकी ग्वालिन फोरे,माखन चुराएँ जी।
बाल रूप मन मोहे,हे मितानी बड़ सोहे,
बड़ उतपात छबि, गाँव सरी भाएँ जी।
डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़
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दिलीप वर्मा
जब आइन ले अवतार, करे उद्धार, जगत के पालन हारे।
खुश हो धरती इठलाय, पेंड़ लहराय, दिखे जग वारे न्यारे।
तब खुलगे जम्मो द्वार, कड़ी तक झार, प्रभु सब बंधन टारे।
ले टुकना मा वसुदेव, लाल ला लेव, निकल गे घुप अँधियारे।
तब छाय घटा घनघोर, करे बड़ शोर, चमक बिजुरी चमकावै।
अउ होवँय बारिस जोर, गिरे घनघोर, राह तक नजर न आवै।
बढ़गे यमुना के धार, करे बर पार, बहुत वसुदेव विचारे।
जब मुड़ मा पालन हार, जगत के सार, कहाँ ले फिर ओ हारे।
फिर यमुना हर लहराय, चरण नइ पाय, कन्हैया पाँव उतारे।
धो चरण कमल ला आज, करत हे नाज, राह बर पानी टारे।
बड़ नटखट लीला तोर, करे नइ शोर, नंद घर चुपके आये।
तँय प्रगटे कारागार, नदी के पार, यशोदा लाल कहाये।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार 30-08-2021
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अशोक कुमार जायसवाल: *उल्लाला*
राधा बोलय श्याम ले, सुनँव मोहना बात जी |
बैरी हावय बाँसुरी, सुतन देत नइ रात जी ||
रचना-अशोक जायसवाल
साधक -सत्र 13
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] मीता अग्रवाल: दोहावली
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*कान्हा*
जनमिस कारागार मा,किशन जगत के भूप।
संसो मा दाई ददा,निरख अलौकिक रूप ।
ले वसुदेव चलय उहाँ,जिहाँ नंद के गाँव।
उफनत जमुना पाँव छू,शेष करें हे छाँव ।।
बटय बधाई नंद घर,बरसत हे आनंद।
नंद लाल जसुमति मया,बरनत हे मति मंद।
हाथी घोड़ा पालकी, कान्हा के जयकार।
गाँव भरें बाँटत हवय,हार रत्न उपहार ।।
दूध-दही अउ लेवना,सब लइका हर खाय।
मथुरा काबर भेजबो,कान्हा करय उपाय ।।
मनखे जिनगी मा रहय, रंग सबो उल्लास ।
संदेशा दिन कृष्ण हा,वृन्दा वन मा रास।।
रकसा मन के आघु मा,मनखे झन हो दीन।
कान्हा करथे सामना,असुर सबो बलहीन।।
दुष्ट दलन कर दंड दे, आर्य सभा के धर्म ।
कंस ममा ला मारना,धर्म कहें सत्कर्म ।।
लइका अबला नार तन, करथे अत्याचार ।
सब जुग मा कान्हा करय,अइसन नर संहार ।।
कष्ट ददा दाई हरय, अइसन श्री गोपाल ।
राजमुकुट पहिना करें, तिलक नना के भाल।।
पुरी द्वारिका मा बसय,दाऊ भैया साथ।
राज धर्म हित मा करिन,हमरे दीनानाथ।।
वसन हीन शोभय नही,नारी दाई मान।
चीर-हरण बाढत गयें, देत जगत ला ज्ञान ।।
पापी दुर्योधन बढ़य, दिन-दिन अत्याचार ।
पार्थ-सारथी हा करिन,वोखर भी उपचार ।।
कृष्ण महाभारत कथा, चरित देत आभास।
हवे महा नायक सदा, भगवद् -गीता खास।।
*रचनाकार*
*डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*
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लीलेश्वर देवांगन,बेमेतरा: छप्पय छन्द
जनम धरे हे आज, कृष्ण मोहन गिरधारी ।
करले पूजा पाठ,नाथ के पारी पारी।।
वासुदेव ला देख, नंद घर झूलय पलना।
हावय सुग्धर रूप,यशोदा माॅ के ललना।।
आठे के दिन हे जनम,हरे बिष्णु अवतार जी।
सब दुख पीरा ला हरय,सबके तारन हार जी।।
लिलेश्वर देवांगन गुधेली(बेमेतरा)
साधक-छत्र १०
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[केंवरा यदु राजिम: सरसी छंद - केवरा यदु"मीरा"
(जन्माष्टमी)
भादो तिथि आठे को जन्में ,नटवर नंद किशोर।
कारी अँधियारी हे रतिहा, छाय घटा घनघोर ।
मात देवकी देखे लाला,मुचुर मुचुर मुस्काय।
मन में सोचे माता बेटा,बहुते दिन मा आय।।
तोरे रस्ता जोहत हावँव,दुख ला हरबे मोर।
कारी अँधियारी हे रतिहा, छाय घटा घनघोर।।
तारा बेड़ी जम्मो खुलगे,सुतगे पहरे दार।
भर किलकारी रोये मोहन,महतारी ल निहार।।
पितु वसुदेव देख के हाँसे,लाला सुन्दर मोर।।
कारी अँधियारी हे रतिहा, छाय घटा घनघोर ।।
कड़कड़ - कड़कड़ बिजुरी चमके,बरखा मुसला धार।
सबो देवता फूल गिरावत,महिमा अमित अपार।।
मगन होत हे मातु पिता हा,काटव बंधन कोर।।
कारी अँधियारी हे रतिहा, छाय घटा घनघोर ।।
घेरी बेरी मुँह ला चूमे,कइसे भेजँव लाल।
राखे रहिहूँ आही पापी,तोर ममा बन काल।।
जाये बर तँय जाबे लाला ,लेवत रहिबे सोर।।
कारीअँधियारी हे रतिहा, छाय घटा घनघोर ।।
सूपा मा धर चले वसुदेव,नंद यशोदा द्वार।
यमुना जी ला देख डराये,मारे लहरा पार।।
चरण छुये के आशा मोला,पाँव बढ़ादे तोर।।
कारी अँधियारी हे रतिहा, छाय घटा घनघोर ।।
शेषनाग छैंहा बर आगे,सिर मा छत्र लगाय।
जमुना मैंया हाथ बढ़ा के,चरणन छू मुसकाय।।
आवत रहिबे मोहन अबतो, मुरली धर तट मोर ।।
कारी अँधियारी हे रतिहा, छाय घटा घनघोर ।।
पहुँचे नंद भवन मे मोहन,मातु पिता ले दूर।
मात यशोदा संग सुतावे,छोड़ होय मजबूर।।
आँखी ले आँसू चूहत हे,चले न कोई जोर।।
कारी अँधियारी हे रतिहा,छाय घटा घनघोर ।।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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मनोज वर्मा:
जनम धरे धरती मा आये, महिमा हे जेकर भारी।
लीला रचके नाच नचाये, लीलाधर श्री बनवारी।।
नंद देवकी के कोरा मा, आये जग पालन हारी।
नंद किशन ला झउॅंहा मा धर, गोकुल कोती जी भागे।
गोड़ धोय यमुना प्रभु जी के, सउॅंहत आज भाग जागे।।
चरनन छूके यमुना प्रभु के, भाग अपन सहराये।
रद्दा देके करे सुवागत, मान बहुत तब तो पाये।।
राधा के सॅंग रास रचाके, मन मोहे बंशी धारी।
मुॅंह भीतर मा जग देखाके, अचरज डारे महतारी।।
लीला रचके नाच नचाये, लीलाधर श्री बनवारी......
लइकापन के खेल खेल मा, पापी कतको ये मारे।
काग नाग पुतना वत्सासुर, कंश बकासुर ला तारे।।
गोपी मन ला छेड़-छेड़ तॅंय, मया बढ़ाये हस बानी।
राधा ला तॅंय किशन बनाके, बनगे खुद राधा रानी।।
गोकुल छोड़े मथुरा आये, होवत हे का तइयारी।
धरती भार उतारे प्रभु जी, मान बढ़ाये तॅंय नारी।।
भेद धरम अधरम मा करके, सत के रद्दा सिरजाये।
सुग्घर गीता ज्ञान बताके, धार अमृत के बोहाये।
रचे महाभारत केशव जी, रहे सारथी त्रिपुरारी।
लीला रचके नाच नचाये, लीलाधर श्री बनवारी........
जनम धरे धरती मा आये, महिमा हे जेकर भारी......
मनोज कुमार वर्मा
बरदा लवन बलौदा बाजार
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दिलीप वर्मा
आज कन्हैया काबर रूठे, अब तो जानव।
सुनलव संगी बात कहत हँव, सच्ची मानव।
जेन कदम के पेंड़ चढय ओ, सबो कटागे।
नदिया के नीला पानी मा, काई छागे।
असुर सिरागे मनखे बनगे, हावय दानव।
आज कन्हैया काबर रूठे, अब तो जानव।
जेन गाय ला रोज चराये, जाय कन्हैया।
उही गाय मन लावारिस कस, घूमय भैया।
कोन बटोरे हे मधुबन ला, अब पहिचानव।
आज कन्हैया काबर रूठे, अब तो जानव।
घर के लक्ष्मी दूर भगा दिन, काला कहिबे।
माखन मिश्री खोज मिलय नइ, अब का रहिबे।
गोवर्धन ला स्वारथ खातिर, तुम झन खानव।
आज कन्हैया काबर रूठे, अब तो जानव।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार 30-08-2021
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ज्ञानू कवि: मदिरा सवैया
मोहन नाचत गावत हे मुरली धुन मा मनमोहत हे।
देखत रीझत हे मन सुग्घर तान मया रस घोरत हे।
भावत हे नखरा मन ओखर मीठ भरे बड़ बोलत हे।
गोकुल धाम उमंग हवै रसता सब ग्वालिन जोहत हे।।
हाथ धरे मलिया मलिया भरके मुँह माखन खावत हे।
देख अपार हवै महिमा प्रभु माखनचोर कहावत हे।
संग धरे सब ग्वालन हे अउ नाचत कूदत गावत हे।
देखव भक्तन खातिर मोहन बंधु सखा बन जावत हे।।
ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी- कवर्धा
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गुमान साहू: सुंदरी सवैया-
।।माखनचोर।।
चुपके छुप खावय माखन श्याम सखा सब संग हवैं सकलाये।
बन माखनचोर लुटे मटका सब दूध दही अँगना बगराये।
मनमोहन आवत देख जसोमति ला सिधवा बन के छुप जाये।
पकड़े मइया मुख खोल कहे मुख लोक सरी तब श्याम दिखाये।।
।।बँसुरी धुन।।
बइठे चढ़ डार कदम्ब म मोहन राग धरे मुरली ल बजाये।
सब ग्वाल सखा मन ले मिलके जमुना तट श्याम ह गाय ल चराये।
सुनके बँसुरी गइया हुलसे बन मोर रिझे बड़ नाच दिखाये।
सब काम बुता तज भागय ग्वालिन मोहन के बँसुरी म खिंचाये।।
-गुमान प्रसाद साहू
समोदा(महानदी ), रायपुर
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*छन्न पकैया छंद*
छन्न पकैया छन्न पकैया, आठे महिना भादों।
तरिया नदिया भरगे राहय,माचे चिखला कादों।
छन्न पकैया छन्न पकैया, घुप छाये अँधियारी।
रही रही के कड़के बिजली, कहूँ नहीं उजियारी।
छन्न पकैया छन्न पकैया, होइस रतिहा आधा।
गरजे घूमरे बरसे बादर,टूटिस बेड़ी बाधा।
छन्न पकैया छन्न पकैया,प्रगटिन कृष्ण मुरारी।
कोरा पाके सुग्घर लइका,होइस खुश महतारी।
छन्न पकैया छन्न पकैया, उजरे झन अब कोरा।
जीयत राहय ललना अब तो,बिनती सुन ले मोरा।
छन्न पकैया छन्न पकैया, भरे टूटहा सूपा।
ललना लेके बाबा निकलै,सुंदर साँवर रूपा।
छन्न पकैया छन्न पकैया, शेष बने हे छाता।
जमुना जल पग छूके उतरे,बेसुध राहय माता।
धन्न पकैया छन्न पकैया, छोड़ जशोदा तीरे।
देवी धरके निकले बाबा, रेंगत धीरे धीरे।
छन्न पकैया छन्न पकैया, खुशी मा नंद झूमे।
नाचे गाये सब नर नारी,माता माथा चूमे।
चित्रा श्रीवास
बिलासपुर
छत्तीसगढ़
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बहुत सुग्घर छंदमय रचना के संकलन
ReplyDeleteबहुत ही सुग्घर संकलन
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