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Sunday, August 29, 2021

कमरछठ परब विशेषांक-छंदबद्ध कवितायें



कमरछठ परब विशेषांक-छंदबद्ध कवितायें


अमृतध्वनि छंद- विजेन्द्र वर्मा


महतारी मन आज तो, रहिथे सुघर उपास।

बेटा बेटी खुश रहय, माँगय वर जी खास।

माँगय वर जी,खास सबो के,उम्मर बाढ़य।

पोती मारय,मुड़ मा विपदा, झन तो माढ़य।

एक ठउर मा,अउ जुरियाके,जम्मो नारी।

महादेव के,पूजा करथे,सब महतारी।।


घर के बाहिर कोड़ के, सगरी ला दय साज।

गिन गिन पानी डार के, करथे पूजा आज।

करथे पूजा,आज नेंग जी,करथे भारी।

लइका मन के,रक्षा बर तो,हे तैयारी।

हूम धूप अउ,फूल पान ला,सुग्घर धरके।

सुमिरन करथे, महतारी मन,जम्मो घरके।।


पतरी महुआ पान के, भाजी के छै जात।

चुरथे घर-घर मा इहाँ, पसहर के अउ भात।

पसहर के अउ,भात संग मा,दूध दही ला।

महतारी मन,खाय थोरकिन,डार मही ला।

गहूँ चना अउ,महुआ के सन,लाई-लुतरी।

सुघर चघावै,नरियर काँशी,दोना पतरी।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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हरिगीतिका छंद - बोधन राम निषादराज

(कमरछठ मइया)


भादो अँधेरी छठ परब,मइया कमरछठ आत हे।

दाई बहिन सब गाँव मा,मिल जुल सबो जुरियात हे।।

पानी भरै सगरी सबो,मंदिर मुहाटी कोड़ के।

चारो कती काँशी सजा,नरियर चघावै फोड़ के।।


गेहूँ, चना, महुआ, उरिद, लाई चघावै धान के।

पूजा करै सगरी सबो,देवी सहीं जी मान के।।

पसहर बनावै खीर कस,सब दूध भैंसी डार के।

भाजी खवावै संग मा,भुइयाँ कुँवारी खार के।।


उपवास लइका बर सबो,राहय मया बरसाय बर।

माँगय सबो आशीष ला,लम्बा उमर ला पाय बर।।

गेड़ी  घलो  राखय इहाँ, सगरी तरी मा बोर के।

जोरन भरे सूपा सबो,लावय उपसहिन जोर के।।


छंदकार :-

बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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: सरसी छन्द- सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

                       

                       कमरछठ


भगवन्ता भादो के महिना, छठ ॲंधियारी पाख।

परथे पबरित परब कमरछठ, तैं सुध सुरता राख।


बहिनी अउ दाई-माई मन, ए दिन रथें उपास।

सुफलित होथे मॉंग-मनौती, पक्का हे विश्वास।


भुॅंइया कोड़ बनाथें सगरी, बड़ सुग्घर संस्कार।

कॉंशी फूल बबा बिरवा कस, शोभय सगरी पार।


जुरियाथें दस-बीस उपसहिन, ए सगरी के तीर।

सुनथें कथा कहानी गुनथें, धर के मन मा धीर।


सगरी मा जल अरपित करथें, हाथ दुनोठन जोर।

माई ले कुछ अरजी करथें, फर नरियर के फोर।


रहय सुमत सुख सम्मत सरलग, चिरंजीव संतान।

अइसन पावन निरमल हिरदय, नारी नर के खान।


मउहा चना मसूर गहूॅं अउ, लाई के परसाद।

समय हमर संतानन ला तैं, खरचा मा झन लाद।


मउहा पाना के पतरी मा, पसहर के पकवान।

मनखे के यात्रा के हमला, देवावत हे ध्यान।।


रचना - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़


💐💐💐💐💐💐💐💐💐9

कमरछट(बरवै छंद)


हवै कमरछट पावन,परब हमार।

नारी पूजा करथें, बिधि अनुसार।।


कृष्ण पक्ष भादो के ,छट तिथि खास।

छै ठन कथा-कहानी,भरे हुलास।।


छै विकार दुरिहाथे, रहे उपास।

गौरी के किरपा ले, हे बिंसवास।।


मउहा काड़ी दतवन,कर असनान।

बलदाऊ भगवन के,धरे धियान।।


छोटे -छोटे सगरी,दू ठन कोड़।

छै लोटा जल अरपन, हाथ ल जोड़।।


फूल -पान अउ लाई , भेंट चढ़ाय।

काँसी के मड़वा ला, सुंदर छाय।।


छै ठन भाजी पसहर, चाँउर भोग।

हूम-धुँआ ले जेकर, भागय रोग।।


मउहा पाना पतरी, मा फरहार।

दूध-दही भँइसी के, सान मिंझार।।


हवै उपसहिन मन के,रीत रिवाज।

पावन ये तिहार के, हावय नाज।।


शक्ति स्वरूपा नारी, हवयँ महान।

श्राप ताप सब हरथें, दे वरदान।।


घर परिवार सुखी अउ, हो खुशहाल।

चिरंजीव हो सब के, सुग्घर लाल।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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 आशा देशमुख: *खम्हर छठ पूजा*


छन्नपकैया छंद


छन्नपकैया छन्नपकैया ,होय खम्हर छठ पूजा।

ये उपास जइसन दुनियाँ मा ,नइहे अउ गा दूजा।l1


छन्नपकैया छन्नपकैया ,लावँय महुआ डारा।

सब बहिनी मन पूजा करथें ,गली मुहल्ला पारा।l2


छन्नपकैया छन्नपकैया,अब्बड़ नियम बताये।

नाँगर मा झन जोते राहय, अइसे जिनिस चढ़ाये।l3


छन्नपकैया छन्नपकैया,दोना पतरी लावँय।

दूध दही घी भैंसी के हे ,सब झन इँहा मगावँय।l4



छन्नपकैया छन्नपकैया,लेवँय पसहर चाँउर।

छै जतिया हे मिंझरा भाजी ,बठवा मिरचा चुरपुर।l5


छन्नपकैया छन्नपकैया,दू ठन सगरी कोड़े।

सगरी मा पानी ला डारय ,अउ नरियर ला फोड़े।l6


छन्नपकैया छन्नपकैया,काँसी डारा खोंचँय।

बाँटी भौंरा तको चढावै, सुघ्घर मन मा सोंचँय।l7


छन्नपकैया छन्नपकैया ,भरथें दोना लाई।

विधि विधान से पूजा करथें, सब घर दाई माई।l8


छन्नपकैया छन्नपकैया,सुनथें कथा कहानी।

इंद्र देव  सगरी ला भरथे,बरसावय जी पानी।|9


छन्नपकैया छन्नपकैया,ये उपास हे भारी।

लइका मन बर पूजा करथें,सबके घर महतारी।10।


छन्नपकैया छन्नपकैया ,अब्बड़ सुघ्घर लागै।

दाई मन हा पोता मारैं, सबो दुःख हर भागै।11।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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मनोज वर्मा: कुकुभ छंद


दाई मन उपवास सबो कर, मनो कामना ला पाथे।

दूध दही घी मउॅंहा लाई, सब देके मातु मनाथे।।


पसहर चाउॅंर सॅंग छः भाजी, किसम किसम के सब खाथे।।

कोदो कुटकी नरियर सबला, सगरी मा कोढ़ चढ़ाथे।।


रहे लोग लइका हर सुख मा, पूजा करथे जी दाई।

नॉंगर जोते मा नइ जावय, हलषष्टी के पहुनाई।।


आवत होही छिपिया कहिके, गली खोर देखत झॉंके।

बिंदी चूरी टिकली माहुर, छॉंट छॉंट के जी ताके।।


पहिर ओढ़ दाई सब लागे, सुग्घर नवा नवेली जी।

रानी बन संस्कार धरे तब, जावय सबो सहेली जी।।


बजा गोड़ के घुॅंघरू छम-छम, पइरी ला हे खनकाथे।

दूध दही घी मउॅंहा लाई, ला देके मातु मनाथे।।

दाई मन उपवास सबो कर, मनो कामना ला पाथे.....


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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पोखनलाल जायसवाल:


 दाई-माई सबझन मानँय।परब कमरछठ भादो जानँय।।

रहिके उपास लइका मन बर। सुख माँगय गौरी ले मन भर।।


पार बनाके सगरी ऊप्पर।काँसी-मड़वा छाथें सुग्घर।। 

जल अर्पण कर दू मन आगर।भेंट चढ़ाथे दोना भर-भर।।


फूल पान अउ लाई धरके।माँगँय आशीष पाँव परके।।

चना गहूँ अउ मसूर दाना।भोग चढ़ावँय मउहा-पाना।।


सुनथें सगरी तीर कहानी।रखके सुग्घर मन अउ बानी।।

भेंट चढ़ावँय बांटी-भँवरा।भूख मिटावँय पसहर-कँवरा।।


बेटी बेटा एक जान के। पालँय सबझन एक मान के।।

लइका ल खूब पोता मारँय।दुख-पीरा सब ऊँकर झारँय।।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

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,*कुकुभ छंद*

पसहर चाउँर मुनगा भाजी, मउहा के पतरी पाना।

सगरी अँगना खोदे हावय,पूजा मा जल्दी आ ना।

दाई बहिनी दीदी जम्मो, मिलके पूजँय छठ दाई।

जुग जुग जीयय मोरे ललना, बिनती सुनले तयँ माई।

लइका के जिनगी बर देखव,दाई मारे हे पोता।

अबड़े हावय नेम धरम जी,चलय नहीं नाँगर जोता।



चित्रा श्रीवास

बिलासपुर

छत्तीसगढ़

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खमर्छठ(सार छंद)


खनर खनर बड़ चूड़ी बाजे,फोरे दाई लाई।

चना गहूँ राहेर भुँजाये ,झड़के बहिनी भाई।


भादो मास खमर्छठ होवय,छठमी तिथि अँधियारी।

लीपे  पोते  घर  अँगना  हे,चुक  ले दिखे दुवारी।


बड़े बिहनिया नाहय खोरय,दातुन मउहा डारा।

हलषष्ठी के करे सुमरनी,मिल  पारा  के पारा।


घर के बाहिर सगरी कोड़े,गिनगिन डारे पानी।

पड़ड़ी काँसी खोंच पार मा,बइठारे छठ रानी।


चुकिया डोंगा बाँटी भँवरा,हे छै जात खिलोना।

हूम धूप अउ फूल पान मा,महके सगरी कोना।


पसहर  चाँउर  भात  बने हे, बने हवे छै भाजी।

लाई नरियर के परसादी,लइका मनबर खाजी।


लइका  मन  के रक्षा खातिर,हे उपास महतारी।

छै ठन कहिनी बैठ सुने सब,करे नेंग बड़ भारी।


खेत  खार  मा नइ तो रेंगे, गाय  दूध  नइ पीये।

महतारी के मया गजब हे,लइका मन बर जीये।


भैंस दूध के भोग लगाये,भरभर मउहा दोना।

करे दया हलषष्ठी  देवी,टारे दुख जर टोना।


पीठ म  पोती   दे बर दाई,पिंवरी  माटी  घोरे |

लइका मनके पाँव ल दाई, सगरी मा धर बोरे।


चिरई बिलई कुकुर अघाये,सबला भोग चढ़ावै।| 

महतारी के  दान  धरम ले,सुख  समृद्धि आवै।


द्वापर युग मा पहिली पूजा,करिन देवकी दाई।

रानी उतरा घलो सुमरके,लइका के सुख पाई।


घँसे पीठ मा महतारी मन,पोती कइथे जेला।

रक्षा कवच बने लइका के,भागे दुःख झमेला।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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चौपाई छंद 


जय हो जय  हलषष्ठी 

माई।

भोग चढ़ाऔ मउहा लाई।।

होबे माता हमर सहाई।।

हाथ जोर के माँगत दाई।।


दूध दही के भोग लगावँव।

फूल पान धर मातु मनावँव।।

सुख में  राहय बेटी बेटा ।

दुख पीरा ला मार सपेटा।।


पसहर चाँउर के परसादी।

खावे मिलके  दादा  दादी।।

रक्षा खातिर पोता मारे।

माता सब्बो दुख ला टारे।।


छय किसम मिले भाजी पाला।

भैसी दूध दही रस वाला।।

पहसर के हम भात ल खाबो।

कमरछठ मैंया ला मनाबो।।


केवरा यदु "मीरा "

राजिम

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3 comments:

  1. बहुत सुग्घर छंदबद्ध संकलन

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  2. बहुतेच सुग्घर संकलन। हार्दिक बधाई।

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