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Saturday, February 4, 2023

करजा (लावणी छन्द)

 करजा (लावणी छन्द)


बड़े बड़े उद्योगी मन के, रथें करोड़ों मा करजा।

लूट लूट बाजार बैंक ला, पाय रथें बड़का दरजा।


राज देश दुनिया मा करथें, करत रथें नित मनमानी।

उँखर ठिहा मा नेता गुंडा, अउ अफसर भरथें पानी।

सुरा सुंदरी शौक पुरावय, जय जयकार करयँ परजा।

बड़े बड़े उद्योगी मन के, रथें करोड़ों मा करजा।।


लेवैं दुनिया भर मा घुमके, करजा कर महल अटारी।

कहयँ कंगला अपन आप ला, आय चुकाये के बारी।

देश छोड़ के होवैं चंपत, कहि जो करना हे कर जा।

बड़े बड़े उद्योगी मन के, रथें करोड़ों मा करजा।।


भेद करे बाजार बैंक हा, सूट बूट अउ पटको के।

एक ठिहा मा पहुँचे पइसा, घींसय पनही कतको के।

लगे एक घर कोट कछेरी, धरे एक ला घर घर जा।

बड़े बड़े उद्योगी मन के, रथें करोड़ों मा करजा।।


मान शान ला भारत भू के, कोनो ठगवा झन चाँटे।

एक होय सब नियम धियम हा, बैंक रेवड़ी झन बाँटे।

फोकट मा बाँटे बर हे ता, सबके खीसा ला भर जा।

बड़े बड़े उद्योगी मन के, रथें करोड़ों मा करजा।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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