होरी अउ पीरा पलायन के- सरसी छन्द
होरी जइसे अगिन पेट के, जरत रथे दिन रात।
रंग छीच के फेर बुझाहूँ, फागुन हवय बुलात।।
देवारी के दीया बुझथे, बरथे मन मा आग।
शहर दिही दू पइसा कहिके, देथौं गाँव तियाग।
अपन ठिहा मा दरद भुलाहूँ, फागुन ला परघात।
होरी जइसे अगिन पेट के, जरत रथे दिन रात।।
रंग छीच के फेर बुझाहूँ, फागुन हवय बुलात।।
प्लास आम डूमर कस ठाढ़े, नित गातेंव मल्हार।
फोकट देहस मोला भगवन, पेट पार परिवार।
जनम भूमि जुड़ अमरइया हे, करम भूमि हे तात।
होरी जइसे अगिन पेट के, जरत रथे दिन रात।।
रंग छीच के फेर बुझाहूँ, फागुन हवय बुलात।।
अइसन रँगबे सब ला आँसो, हे फागुन महराज।
सबे बाँह बर होवै बूता, छलकत रहै अनाज।।
दरद पलायन के झन भुगते, गाँव गुड़ी देहात।
होरी जइसे अगिन पेट के, जरत रथे दिन रात।
रंग छीच के फेर बुझाहूँ, फागुन हवय बुलात।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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