छन्द के छ की प्रस्तुति- फागुन विशेष छंदबद्ध काव्य सृजन
रोला छन्द -होली(चोवाराम वर्मा बादल)
इरखा कचरा बार, मना ले सुग्घर होली।
रंग मया के घोर,भिंजो दे हिरदे चोली।
माया लगे बजार, हवै दुनिया के मेला।
तोर मोर के रोग, घेंच मा लटके ठेला।
जाबे खुदे भुँजाय, जरब झन करबे जादा
कौड़ी लगे न दाम, बोलना गुत्तुर बोली।
इरखा कचरा बार, मनाले सुग्घर होली।
नइ ककरो बर भेद, करै सूरुज वरदानी।
देथे गा भगवान, बरोबर हावा पानी।
मूरख मनवा चेत, जतन अब तो कुछ कर ले
हरहा गरब गुमान, धाँध अँधियारी खोली।
इरखा कचरा बार, मना ले सुग्घर होली।
कतको बड़े कुबेर, चले गिस हाथ हलाके।
बड़े बड़े बलवान, झरिन जस बोइर पाके।
डोरी कस अइँठाय, टूटबे खाके झटका
गाल फुलाना छोंड़, सीख ले हँसी ठिठोली।
इरखा कचरा बार, मना ले सुग्घर होली।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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: ताटंक छन्द गीत...
विषय-होली
मिले नहीं जी लकड़ी छेना,खेत-खार अउ डोली मा।
कहाँ होलिका हा जर पाही,ए आँसों के होली मा।।
कतका बछर जलावत होगे,फेर कहाँ ले आथे जी।
कोनजनी कइसे गा भाई,ए जिंदा हो जाथे जी।।
आज होलिका हा मर जाही,मारव मिलके गोली मा।
मिले नहीं जी लकड़ी छेना,खेत-खार अउ डोली मा।।
कइसे रंग गुलाल उड़ाबो,पानी बिन करलाई हे।
कहाँ गली मा फाग मताबो,घर घर आज लड़ाई हे।।
सुमता के सब परब नँदागे,कुमता आगे झोली मा।।
मिले नहीं जी लकड़ी छेना,खेत-खार अउ डोली मा।।
पर्यावरण बचाव करे बर,कुछ तो सोचौ भाई हो।
बढ़े प्रदूषण हा झन संगी,करौ सबो अगुवाई हो।।
हँसी-खुशी ले परब मनालौ,मन ला मोहव बोली मा।
मिले नहीं जी लकड़ी छेना,खेत-खार अउ डोली मा।।
द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
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*महाभुजंग प्रयात सवैया - होली*
बजै ढोल बाजा नँगारा सुहावै,दिखै आज लाली गुलाली कन्हैया।
धरे रंग हाथे लगावै मुँहूँ मा,इहाँ राधिका हा लुकावै ग भैया।।
भरे हे मया राग कान्हा बलावै,लजावै ग गोपी कहै हाय दैया।
मया मा फँसा रंग डारै मया के,नचावै सँगे मा मया के रचैया।।
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा(कबीरधाम)
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होरी हे -रोला
बरसावत हे रंग, प्रकृति हर आनी बानी।
हरियर पीयर लाल, करालव चूनर धानी।
आये फागुन मास, रहव झन मुँह लटकाये।
मस्ती भरे तिहार, दिखावव आज जवानी।
बुढ़वा दिखे मतंग, छेड़खानी मन भाये।
लइका होय जवान, उपद्रव अबड़ मचाये।
भइया भौजी संग, आज फगुवा हे गावत।
नोनी हे सरबोर, दिखय नइ तनिक लजाये।
जम के बरसा रंग, सोंच झन तैं छोरी हे।
खेले खातिर रंग, चाह राखे गोरी हे।
सब मा भरे उमंग, बुरा थोरिक नइ मानय।
मल दे गाल गुलाल, मया मा कह होरी हे।
दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाज़ार
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फागुन होली
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कुंडलियाँ
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फागुन होली मा चलैं, धरके सबो गुलाल |
नाँच-नाँच अउ हाँसके, बने लगावँय गाल ||
बने लगावँय गाल, लाल अउ हरियर पिँवरा |
धर-धर दउड़े रंग, धकर धक धड़कय जिंवरा ||
"बाबू" मांदर ढोल, नँगारा धरके टोली |
झूँमत नँगत बजाय, आय जी फागुन होली ||
पारत हावय कूँहकी, नाँचत डंडा नाँच |
धरे खड़े सब रंग हे, नइ सकहू जी बाँच ||
नइ सकहू जी बाँच, आज के दिन पावन हे |
मिले गले सब लोग, खुशी बड़ मनभावन हे ||
" बाबू" भर के रंग, दउँड़ के पिचका मारत |
होरी है चिल्लाय, नाँच के सिसरी पारत ||
पिचकारी टूरा धरे, भरके लाली रंग |
पिचकत हे टूरी उपर, धरके टोली संग ||
धरके टोली संग, घुँमत हे हाँसत गावत |
गावय सुघ्घर फाग, चलत हे मन मुस्कावत ||
" बाबू" ठोंकय ढोल, गाँव मा होली भारी |
बिक्कट खुशी मनाय, रंग दय जब पिचकारी ||
कमलेश प्रसाद शरमाबाबू कटंगी-गंडई जिला केसीजी
छंद साधक सत्र -20
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*विषय: होली (रोला छंद)*
जलके होगे राख , होलिका देखव भाई।।
जय होवै प्रहलाद , विष्णु जी के अनुयाई ।।
बिक्कट करत उछाह , लगे जिनगी सतरंगी।
झूमे नाचे आज , देख कतको हुड़दंगी ।।
डगमग डोले पाँव , बिगाडे़ भाखा बोली।
तबले कहिथे यार , बुरा झन मानो होली।।
आनी बानी भेष , बनाके पिटै नँगारा ।
खेलै रंग गुलाल , सनाए जम्मो पारा।।
नाचे डंडा नाच , बबा हा कुहकी पारे।
गाए फगुवा गीत , सबो के जाय दुवारे ।।
परंपरा ला आज , बचाके रखे हवै गा ।
फूहड़ता ले दूर , संस्कृति रचे हवै गा ।।
भेदभाव ला छोड़ , बुराई ला अब त्यागव।
सुमता अउ सद्भाव, जगावव खुद भी जागव।।
लगे कँहू ला ठेस , न बोलव अइसन बोली ।
रंग गुलाल लगाव , प्रेम से माँनव होली ।।
साधक
बृजलाल दावना
भैंसबोड़
जिला धमतरी
सत्र 10
6260473556
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*होली हे होली रे होली*
*सार छन्द सँग होली खेलंव, राग मया के गावंव।*
*मन मितवा के पाती पढ़के, मन ही मन हरसावंव।।*
बजय नगाड़ा बजय नगाड़ा, गली मुहल्ला पारा।
फाग रंग मा रँगे हँवें सब, बैठें हें फगुहारा।।
सात रंग के मोल जोल हें, छटा दिखे सतरंगी।
मया परब मा सबो धनी हें, नइहे कोनो तंगी।।
हँसी खुशी भाईचारा मन, आये झारा झारा।
फाग रंग मा रँगे हवें सब, बैठें हें फगु हारा।।
तन ला भाये लाल गुलाबी, मन ला भाये हरियर।
नीला पीला रंग बैगनी, होगे अंतस फरियर।।
सखी सहेली मन हाँसत हें, करके अजब इशारा।
फाग रंग मा रँगे हवें सब, बैठे हें फगुहारा।।
रंग मिटावय जात _पात ला, गला मिलत हे बैरी।
सबके मन आनन्द भरत हे, सुख के माते गैरी।।
मन लइका पिचकारी धरके, छींचत हे फौवारा।
फाग रंग मा रँगे हवें सब, बैठे हें फगुहारा।।
फागुन के कोठी मा संगी, अब्बड़ भरे खजाना।
सोन लदाये गहूँ चना मन, सरसों अरसी दाना।।
ऋतुराजा के घर मा होवत, रोज रोज भंडारा।
फाग रंग मा रँगे हवें सब, बैठे हें फगुहारा।।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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: विष्णु पद छन्द गीत- फागुन आगे (२४/०२/२०२३)
फागुन आगे मस्ती छागे, खुशी मनावव जी ।
आवव जुरमिल के सॅंगवारी, नाचव गावव जी ।।
होली के पावन तिहार हा, मन ला भावत हे ।
लाल गुलाबी हरियर पिॅंवरा, रंग लगावत हे ।।
भर- भरके मारव पिचकारी, घोरव लावव जी ।
आवव जुरमिल के सॅंगवारी, नाचव गावव जी ।।
फाग गीत हा बने सुहावय, तीर बलावय गा ।
हमर गाॅंव के गोरी नारी, बड़ मुस्कावय गा ।।
ढोल नॅंगाड़ा गड़वा बाजा, बने बजावव जी ।
आवव जुरमिल के सॅंगवारी, नाचव गावव जी ।।
छोड़व इरखा द्वेष कपट ला, ये समझावत हे ।
जिनगी ला हॅंस के जीये बर, घलो सिखावत हे ।।
कुमता जाही सुमता आही, राह बनावव जी ।
आवव जुरमिल के सॅंगवारी, नाचव गावव जी ।।
✍️ओम प्रकाश पात्रे "ओम "🙏
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गुमान साहू: चौपाई छन्द-
।।।खेलत हावै होरी ।।।
खेलत हावै ब्रज मा होरी।श्याम संग मा राधा गोरी।।
संग बिसाखा ललिता हावै।रंग बिरंगी रंग लगावै।।1
कान्हा पिचका धरके आवय। गोप ग्वाल सब ला रंगावय।।
मारे भर भर के पिचकारी। रंगे ब्रज के सब नर नारी।।2
हरियर पिंवरा लाल लगावय। रंग गुलाबी सब ला भावय।।
मया डोर मा सबो बँधाये। प्रेम रंग मा हवै सनाये।। 3
- गुमान प्रसाद साहू समोदा (महानदी),रायपुर
छन्द साधक सत्र-6
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: सार छंद - होली
महिना फागुन गजब सुहाथे, आथे जब गा होली।
मया पिरित ला बाँधे रखथे,गुरतुर हमरो बोली।।
हाँसत गावत रंग लगावौ,पालौ नही झमेला।
बैर भुलाके आहू संगी,पारा हमर घुमेला।।
नीला पीला लाल गुलाबी, धरे रंग ला आहू।
बैर भाव ला छोड़े संगी,सबला गले लगाहू।।
कतको पिये भांग ला भारी,कतको हा जी दारू।
गली गली मा रहिथे माते ,देखव हाल समारू।।
ढोल नगाड़ा बजही अबड़े, गीत फाग के गाबो।
रंग भरे मारत पिचकारी,मिलके मजा उड़ाबो।।
घर घर मा चुरथे रोटी,बाँट सबो हा खाबो।
हावय आज खुशी के होली,मिलके साथ मनबो।।
भाई चारा के संदेशा,देवत सबझन जाबो ।
गली गली मा मिलके घुमबो,बढ़िया अलख जगाबो।।
राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद (समोदा)
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*शक्ति छंद --- फाग(होली)*
मजा देख लेवत, हवैं फाग के ।
जुड़े पोठ हमरो, मया ताग के ।।
लगे फूल मउहा, सबो डार मा ।
बने देख झूमत, हवय खार मा ।।
गली खोर माते, सबो के मजा ।
बने आज कसके, नँगारा बजा ।।
लगादे बने रंग, ला गाल मा ।
चले फाग के गीत, अब ताल मा ।।
*मुकेश उइके "मयारू"*
ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)
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सार छंद-होली
लाली-लाली परसा फुलवा,जब लागै मनभावन।
तोर बिना तब सुन्ना सजनी,मोर हिया के आँगन।1
कोन संग मा रहिके हितवा,हावय कोन मयारू?
बोलय होली मा जिवरा हा,सुन गा कका समारू।2
मनखे मतलबिहा कलजुग मा,होगे हावय अतका।
छुरा पीठ मा गोभे संगी,जम के मारय मुटका।3
दान धरम पुन असल रंग ए,महिमा ऋषि मुनि गावैं।
पर औगुन के रंग चढ़े ले,असली रंग नँदावैं। ।4
कइसे खेलँव मैंहा होली,खुशी-खुशी हमजोली।
मनखे के हिरदै मा नइ हे,दया-मया के खोली।5
दया-मया अउ सेवा सटका,इही मोर बर सजनी।
मोर हिया के आँगन मा नइ,अब ये जीवनसँगिनी।6
दया मया सेवा सजनी बन,जभ्भे दिल म समाही।
दान धरम के असल रंग ले,मजा फाग के आही।7
जीतेन्द्र निषाद 'चितेश'
सांगली,जिला-बालोद
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: विषय- होली
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पदित सिंहावलोकन दोहें
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1-
कोनो पिचकारी धरे, कोनो धरे गुलाल |
आनी-बानी रंग मा, बोथागे हे गाल ||
2-
बोथागे हे गाल जी, करत हवयँ अतलंग |
बने-बने मनखे घलो, दिखथें जी बदरंग ||
3-
दिखथें जी बदरंग वो, होली के दिन आज |
आथे येमा बड़ मजा, नइ लागय जी लाज ||
4-
नइ लागय जी लाज हा, छोट बड़े सब एक |
आपस मा मिलथे गला, ईरादा हे नेक ||
5-
ईरादा हे नेक जी, जुरमिल गायँ बजायँ ||
छेना लकड़ी लान के, होली घलो जलायँ ||
6-
होली घलो जलायँ सब, ले के प्रभु के नाम |
बैर भाव ला छोड़ के, सुघ्घर करथें काम ||
7-
सुघ्घर करथें काम ला, "बाबू" घर-घर खायँ |
हँसी खुशी के साथ मा, होली सबो मनायँ ||
कमलेश प्रसाद शरमाबाबू कटंगी-गंडई जिला-केसीजी
छंद साधक -सत्र -20
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--रूपमाला/मदन छंद
रितुराज के शोभा
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जाड़ के खेदा करत हे, कुनकुनावत घाम।
रात हा लागे खिरन अउ,दिन दिनोंदिन लाम।
कोइली हा राग धरके ,हे सुनावत फाग।
मोहरी भँवरा बजावै,झूमरत हे बाग।
हे सजे रितुराज के निक,इंद्र कस दरबार।
मोंगरा झालर टँगाये,लाल टेसू द्वार।
चार तेंदू के सजावट,गूँथ आमा पान।
ठिन ठिनिन घंटी चना के, हे हवा फुरमान।
अप्सरा सरसों दिखत हे, सोन जइसे देह।
नैन मतवाली गहूँ के, हे लुटावत नेह।
इत्र मउहा बड़ छिंचत हे,गँधिरवा के संग।
मातगे हें डोंगरी वन, पी बसंती भंग।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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छन्न पकैया छन्न पकैया, रँग डारिस हे मोला।
कान्हा देखव ले के घूमत, रंग भरे हे झोला।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, मिल के खेलव होली।
कभू फेर झन खावव संगी, आँग-भाँग के गोली।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, दउड़त दउड़त आथे।
नोनी-बाबू धर पिचकारी, मोला बड़ डरवाथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, खेलव होली जमके।
गोरा-काला दिखय नहीं जी , मुँह सब्बो के चमके।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बाजय ढोल नगाड़ा।
गली मुहल्ला के सँग भैया, हालय अँगना बाड़ा।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, होली मा सब छैला।
खोजत हावय मिलय नहीं जी, रँगे पुते हे लैला।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, खावव गुजिया मिक्चर।
जब जब भांटो खेलय होली,देखा दव जी पिक्चर ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,अड़बड़ खाहू गाली।
पनिहारिन के झन छेड़व तुम, सुग्घर खिनवा बाली।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, सुनले बाबू भोला।
बच के रहिबे तहूँ ल परही, गुब्बारा के गोला।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, खेलव होली जमके।
रँगेपुते हे तभो ले देखव,मुँह हर कइसन दमके।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, कइसे मिलही माफ़ी।
होली मा जब भांग छोड़के, पीहू सब झन काफ़ी।।
शुचि 'भवि'
भिलाई, छत्तीसगढ़
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*होली*
सार छंद
मन मुटाव भूला जा भइया, एसो के होली मा |
सब हितवा ला भूलवार दे, मीठ मया बोली मा ||
बछर अगोरत आथे संगी, बड़ मयारु ये होली |
छोट बड़े सब माते रइथे,जस खाय भाँग गोली ||
रंग बिरंगी ये तिहार हे, अबड़ खुशी ले आथे |
करिया पिंवरा रंगे मनखे, सबके मन ला भाथे ||
ढोल नगाड़ा धून सुने ले, गद गद अंतस होथे |
परे बछर भर परिया मन मा, बीज खुशी के बोथे ||
अशोक कुमार जायसवाल
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: दोहा छंद - होली
लाल गुलाबी रंग हे,उड़े बिरज के घाम ।
मया रंग मा बूड़ गे,राधा अउ घनश्याम ।।
गाँव गली मादर बजे,गावत फागुन गीत।
श्याम बजाये बाँसुरी,भीजे मन के भीत।।
धरे मया के रंग ला,किंजरत हावे श्याम।
मइलाहा मन देख के,लहुटय अपनो धाम।।
मँदहा मउहाँ मात गे,परसा हाँसे डार।
मउर बाँध आमा खडे़,भौंरा मन्त्रोचार।।
बंदन बूंके कस दिखे,जंगल खेती खार।
गीत कोइली गात हे,आगे फागुन द्वार ।।
हवा बसंती झूम के,चढे़ पेड़ अउ डार।
कभू गहूँ के खेत मा,कूदे भाड़ी पार।।
मौसम सतरंगी लगे,गर बाँधे रूमाल।
बइहाये फागुन खडे़,चुपरे रंग गुलाल।।
शशि साहू
बाल्को नगर कोरबा ।
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*होरी आगे - अमृतध्वनि छंद*
फागुन महिना आय हे,होरी डाँड़ गड़ाय।
लइका मन मुसकात हे,सबके मन ला भाय।।
सबके मन ला,भाय सुनौ जी,खुशी मनावय।
लइका नाचय,माँदर बाजय,मन बउरावय।।
रंग कटोरा,धरके दउड़य,अब का कहिना।
देखव संगी,आए हावय,फागुन महिना।।
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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विधा - *जलहरण घनाक्षरी*
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फागुन के पुरवाई, परसा के सुघराई,
महकत अमराई, देख झूमे मन अब।
झूले सरसों के बाली, सेमर फुले हे लाली,
कोयली देवय ताली, आमा हर मौरे तब।
नगाड़ा मा झूम-झूम, नाचे मन घूम-घूम,
चारो कोती मचे धूम, बुराई हा जरे जब।
बगरे हे कई रंग, मचावत हुड़दंग,
उठे मन मा तरंग, प्रेम रंग रंगे सब।।1।।
नीला पीला हरा लाल, रंग करथे कमाल,
देख होथे खुशहाल, सबो परानी के मन।
भाईचारा बढ़ जाथे, गुरतुर बोली भाथे,
होली के तिहार लाथे, सुख के सुग्घर धन।
खेलव गुलाल रंग, पी के प्रेम वाला भंग
करौ कुछ हुड़दंग, मुसकाही मन-तन।
पिरित के रंग घोर, बन जाओ चितचोर,
बाँधो हिरदे के डोर, साजो जिनगी अपन।।2।।
इन्द्राणी साहू"साँची"
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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: दोहा छंद
उड़गे रंग गुलाल हा,आगे फगुआ झूम।
किसन संग राधा रिझै,होली के हे धूम।।
ऊँच नीच ला छोड़ के,खेलव रंग गुलाल।
मनखे मनखे एक हन,चलौ मिलाबो ताल।।
डंडा नाचे ताल मा ,कुहकी मारे पोठ।
भिँजे मया के रंग मा,ठहकत हावय गोठ।।
किसम किसम पकवान हा,हर घर बनथे आज।
खुरमी भजिया अउ बरा,कड़ही करथे राज।।
मिलथे तीज तिहार मा,जुरमिल के परिवार।
हँसी ठिठोली संग मा,पाथे मया दुलार।।
राजेन्द्र कुमार निर्मलकर
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: *कुंडलिया छंद*
*होली*
होली आज तिहार हे, मया रंग ला बाँट।
मन के खटखट छोड़ के, मनखे ला तँय साँट।।
मनखे ला तँय साँट, मया के बाँटा करले।
दया-मया के रंग, हाथ मा संगी धरले।।
जिनगी हे दिन चार, गोठिया हँसी ठिठोली।
भर पिचकारी मार, खेल तँय मन भर होली।।
*अनुज छत्तीसगढ़िया*
*पाली जिला कोरबा*
*सत्र 14*
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लावणी छंद "फगुनाही"
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महर महर ममहाए मउहा, आमा घउदे हे लसलस।
फगुनाही आरो आथे जब, फूल लीम कसथे कसकस।
लाली परसा फुलवा रानी, ठाढ़े हे चुकचुक समरे।
आमा साजे मउर घमाघम, छुए बर भुइयाँ अमरे।।
सेमर सरसों सुघ्घर खोंचे, लाल फूल लहकत पिँवरा।
अरसी हा रंग धरे बैगनी, मिलत जुलत हावय तिँवरा।।
सब रंग भरे भुइयाँ थारी, सब रंग समाए हावय।
पिँवरा रंग पीरीत संगी, अड़बड़ सब के मन भावय।।
गदनिक गदनिक बजे नँगाड़ा, फागुन हा जब ले लगथे।
मन मलंग मनचलहा होके, मीत मीत मन ला ठगथे।।
जस नसा घोर देहे कोनों, हवा मतउना कस लागय।
कहाँ बिलमगे तँय हा संगी, मन तोरे पाछू भागय।।
रंग लगाबे ये फागुन मा, जींयत भर जे झन छूटय।
मया डोर ला बाँधे रखबे, टोरे ककरो झन टूटय।।
तँय भँवरा अस फूल फूल के, संग दूसरा झन धरबे।
तोर मया के रंग चढ़े मन, फगुनाही रंग चुपरबे।।
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द्रोपती साहू "सरसिज"
महासमुन्द छत्तीसगढ़
पिन-493445
Email; dropdisahu75@gmail.com
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: होरी
नदियाँ लहरा के बहे,सुनव बसंती राग।
ढोल नगाड़ा बाजथें, नीक लागथे फाग।।
टेसू परसा फूलगे, झूलत माते ड़ाल ।
होरी मा रसिया जुड़े,धरय अबीर गुलाल।।
फागुन मा मन डोलथे, जागय सुग्घर आस।
हेत-मेत बाढय सदा,दोष मिटावव फाँस।।
धर्म कर्म व्यवहार ले, जिनगी मा उल्लास।
भेदभाव ला मेटथे,अंतस जुड़थे खास।।
होथे फागुन मास मा, होरी के हुड़दंग।
भाई-चारा बाँट लव,मलव खुसी के रंग।।
दारू दंगा ले बचव, बोली लाली रंग।
मनमुटाव ला छोड़ के, बजय नगाड़ा चंग ।।
देख सुनीअधुना बुड़े,सब तिहार के रंग।
अपन संस्कृति ला बचा, दुनिया देखय दंग।।
छंदकार
डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छग
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होरी अउ पीरा पलायन के- सरसी छन्द
होरी जइसे अगिन पेट के, जरत रथे दिन रात।
रंग छीच के फेर बुझाहूँ, फागुन हवय बुलात।।
देवारी के दीया बुझथे, बरथे मन मा आग।
शहर दिही दू पइसा कहिके, देथौं गाँव तियाग।
अपन ठिहा मा दरद भुलाहूँ, फागुन ला परघात।
होरी जइसे अगिन पेट के, जरत रथे दिन रात।।
रंग छीच के फेर बुझाहूँ, फागुन हवय बुलात।।
प्लास आम डूमर कस ठाढ़े, नित गातेंव मल्हार।
फोकट देहस मोला भगवन, पेट पार परिवार।
जनम भूमि जुड़ अमरइया हे, करम भूमि हे तात।
होरी जइसे अगिन पेट के, जरत रथे दिन रात।।
रंग छीच के फेर बुझाहूँ, फागुन हवय बुलात।।
अइसन रँगबे सब ला आँसो, हे फागुन महराज।
सबे बाँह बर होवै बूता, छलकत रहै अनाज।।
दरद पलायन के झन भुगते, गाँव गुड़ी देहात।
होरी जइसे अगिन पेट के, जरत रथे दिन रात।
रंग छीच के फेर बुझाहूँ, फागुन हवय बुलात।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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झन बिगाड़ होली मा बोली- गीत(चौपाई छंद)
चिल्लाथस बड़ होली होली, लोक लाज के फाटक खोली।
झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।
मया पिरित के ये तिहार मा, द्वेष रहे झन तीर तार मा।
बार बुराई होली रचके, चल गिनहा रद्दा ले बचके।।
उठे कभू झन सत के डोली, पथ चतवार असत ला छोली।
झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।
बजा नँगाड़ा झाँझ मँजीरा, नाच नाच दुरिहा दुख पीरा।
समा जिया मा सब मनखे के, दया मया नित ले अउ दे के।
छीच मया के रँग ला घोली, बना बने मनखे के टोली।
झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।
एखर ओखर खाथस गारी, अबड़ मताथस मारा मारी।
भाय नही कोनो हर तोला, लानत हे अइसन रे चोला।।
दारू पानी गाँजा गोली, गटक कभू झन मिल हमजोली।।
झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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दुर्मिल सवैया(पुरवा)
सररावत हे मन भावत हे रँग फागुन राग धरे पुरवा।
घर खोर गली बन बाग कली म उछाह उमंग भरे पुरवा।
बिहना मन भावय साँझ सुहावय दोपहरी म जरे पुरवा।
हँसवाय कभू त रुलाय कभू सब जीव के जान हरे पुरवा।
खैरझिटिया
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रंग परब(सरसी छंद)
फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास।
सत के जोती जग मा बगरे,मन भाये मधुमास।
चढ़े दूसर दिन रंग मया के,सबझन खेलैं फाग।
होरी होरी चारो कोती, गूँजय एक्के राग।
ढोल नँगाड़ा बजे ढमाढम,बजे मँजीरा झाँझ।
रंग गुलाल उड़ावय भारी,का बिहना का साँझ।
करिया पिवँरा लाली हरियर,चढ़े रंग बड़ खास।
फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास...।
डूमर गूलय परसा फूलय,सेम्हर लागय लाल।
सरसो चना गहूँ बड़ नाचय,नाचे मउहा डाल।
गस्ती तेंदू चार चिरौंजी,गावय पीपर पान।
बइठे आमा डार कोयली ,सुघ्घर छेड़े तान।
घाम हवे ना जाड़ हवे जी,हवे मया के वास।
फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास--
होली मा हुड़दंग मचावय,पीयय गाँजा भांग।
इती उती चिल्लावत घूमय,खूब रचावै स्वांग।
तास जुआ अउ दारू पानी,झगरा झंझट ताय।
अइसन मनखे गारी खावय,कोनो हा नइ भाय।
रंग मया के अंग लगाके,जगा जिया मा आस।
फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास..।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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शानदार कलेक्शन
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया बढ़िया रचना पढ़े बर मिलिस गुरुदेव छंद के छ खजाना म मोरो रचना ल शामिल करे हव ओखर खातिर हिरदे ले धन्यवाद
ReplyDeleteजय हो गुरुदेव अरुण कुमार निगम जी के अउ जम्मो गुरुदेव मन के
जय हो छंद के छ परिवार के
बहुत सुंदर संग्रह रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुग्घर सुग्घर रचना हे आप सबो के
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