Followers

Sunday, February 12, 2023

शंकर छंद (ऊदा-बादी)

 शंकर छंद (ऊदा-बादी)


काट-काट के जंगल झाड़ी, पारे गा उजार।

ठँव-ठँव मा तैं चिमनी ताने, परिया खेत खार।

धुँगिया-धुँगिया चारों कोती, बगरे शहर गाँव।

खाँसी-खोखी खस्सू-खजरी, सँचरगे तन घाव


पाटे नरवा तरिया डबरा, देये नदी बाँध।

खोज-खोज के चिरई-चिरगुन, खाये सबो राँध।

बघवा‌ भलुवा मन छेंवागे, देये तहीं मार।

जल‌ के जम्मो जीव‌ नँदागे, नइहे तीर तार।


कोड़-कोड़ के डोंगर-पहरी, बनाये मैदान।

होवत-हावय रोज धमाका, खूब खने खदान।

भरभर-भरभर मोटर गाड़ी, घिघर-घारर शोर।

तोरे झिल्ली पन्नी जग मा, देइस जहर घोर।


छेदे छिन छिन छाती धरती, छेद डरे अगास।

खेती खाती डार रसायन, माटी करे नास।

मनमाने मोबाइल टावर, ठँव-ठँव करे ठाढ़।

आनी बानी तोर यंत्र हे, गेइन‌ सबो बाढ़।


सिरतो मैं हा काहत हाबव, बने सुन दे कान।

जिनगी जीबे हली-भली गा, कहे मोरे मान।

रोक रोक अब ऊदा-बादी, होगे सरी नास

रूरत हे तन देखत देखत, थमहत हवय साँस।


  - मनीराम साहू 'मितान'

No comments:

Post a Comment