विष्णु पद छन्द- परसा (१६/०२/२०२३)
परसा ला सब जानत हव जी, गाॅंव- गाॅंव रइथे ।
कोनों ओला केसू टेसू, छूल ढाक कइथे ।।
उत्तर भारत झारखण्ड हा, सीना तानत हे ।
फूल हरय ये राजकीय गा, जनता जानत हे ।।
लाली- लाली सादा- सादा, सुग्घर के दिखथे ।
कतको झन मन एकर ऊपर, गाना ला लिखथे ।।
दोना पत्तल घर बर लकड़ी, जड़ी घलो मिलथे ।
माघ महीना लगते फागुन, घम- घम ले खिलथे ।।
भॅंवरा मन मॅंडरा- मॅंडरा के, रस ला चुहकत हे ।
अउ डारा मा कोयलिया हा, बइठे कुहकत हे ।।
गोरी नारी हे अलबेली, ओकर का कहना ।
बना- बना के सजा- सजा के, पहिरत हे गहना ।।
ममहाथे बड़ सुग्घर ओहा, रुखवा हे अइसे ।
रंगोली बनथे जेकर ले, इन्द्र धनुष जइसे ।।
दया- मया ला राखे रहिबे, सॅंगवारी तॅंय हा ।
ये परसा के फुलवा तोला, देवत हॅंव मॅंय हा ।।
✍️ ओम प्रकाश पात्रे "ओम"🙏
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हरिगीतिका छंद-परसा
*परसा कहै अब मोर कर भौरा झुले तितली झुले।*
*तड़पे हवौं मैं साल भर तब लाल फुलवा हे फुले।*
*जब माँघ फागुन आय तब सबके अधर छाये रथौं।*
*बाकी समय बन बाग मा चुपचाप मिटकाये रथौं।*
*सजबे सँवरबे जब इहाँ तब लोग मन बढ़िया कथे।*
*मनखे कहँव या जीव कोनो सब मगन खुद मा रथे।*
*कवि के कलम मा छाय रहिथौं एक बेरा साल मा।*
*देथौं झरा सब फूल ला नाचत नँगाड़ा ताल मा।*
खैरझिटिया
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