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Monday, February 27, 2023

विष्णु पद छन्द- परसा (१६/०२/२०२३)

 विष्णु पद छन्द- परसा (१६/०२/२०२३)


परसा ला सब जानत हव जी, गाॅंव- गाॅंव रइथे ।

कोनों ओला केसू टेसू, छूल ढाक कइथे ।।


उत्तर भारत झारखण्ड हा, सीना तानत हे ।

फूल हरय ये राजकीय गा, जनता जानत हे ।।


लाली- लाली सादा- सादा, सुग्घर के दिखथे ।

कतको झन मन एकर ऊपर, गाना  ला लिखथे ।।


दोना पत्तल घर बर लकड़ी, जड़ी घलो मिलथे ।

माघ महीना लगते फागुन, घम- घम ले खिलथे ।।


भॅंवरा मन मॅंडरा- मॅंडरा के, रस ला चुहकत हे ।

अउ डारा मा कोयलिया हा, बइठे कुहकत हे ।।


गोरी नारी हे अलबेली, ओकर का कहना ।

बना- बना के सजा- सजा के, पहिरत हे गहना ।।


ममहाथे बड़ सुग्घर ओहा, रुखवा हे अइसे ।

रंगोली बनथे जेकर ले, इन्द्र धनुष जइसे ।।


दया- मया ला राखे रहिबे, सॅंगवारी तॅंय हा ।

ये परसा के फुलवा तोला, देवत हॅंव मॅंय हा ।। 


✍️ ओम प्रकाश पात्रे "ओम"🙏

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हरिगीतिका छंद-परसा


*परसा कहै अब मोर कर भौरा झुले तितली झुले।*

*तड़पे हवौं मैं साल भर तब लाल फुलवा हे फुले।*

*जब माँघ फागुन आय तब सबके अधर छाये रथौं।*

*बाकी समय बन बाग मा चुपचाप मिटकाये रथौं।*


*सजबे सँवरबे जब इहाँ तब लोग मन बढ़िया कथे।*

*मनखे कहँव या जीव कोनो सब मगन खुद मा रथे।*

*कवि के कलम मा छाय रहिथौं एक बेरा साल मा।*

*देथौं झरा सब फूल ला नाचत नँगाड़ा ताल मा।*


खैरझिटिया

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