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Sunday, February 5, 2023

आल्हा छंद* *सीता स्वयम्वर*

 *आल्हा छंद*


*सीता स्वयम्वर*


जनक राज बेटी सीता के, सुघर स्वयम्वर रहे रचाय।

देश-देश के सब राजा मन, जिहाँ रहें सबझन सकलाय।।


जनक राज हा करे प्रतिज्ञा, शिव के धनुष टोरही आज।

सीता पहिनाही जयमाला, उँकरे सिर मा सजही ताज।।


सुन के सब राजा मन दउड़े, अउहा-तउहा धनुष उठाय।

तिल भर टारे टरे नहीं तब, बइठे जाके मुड़ी गड़ाय।।


दस हजार राजा मन सँघरा, काँख-काँख के धनुष उठाय।

धनुष टरे नइ टारे भइया, हार मान सब रहे लुकाय।।


जनक कहे भारी गुसिया के , नाक कान सब गये कटाय।

क्षत्री मन ले धरती खाली, जावव घर सब लाज गँवाय।।


लखन कहे सुन ले राजा जी, हम रघुवंशी क्षत्री आन।

भइया बइठे जेन सभा मा,झन कर तँय अइसन अपमान।।


भइया के मँय आज्ञा पाववँ, जम्मो धरती सहित उठावँ।

धनुष टोर के कुटका-कुटका, अपन वीरता आज बतावँ।।


रामचंद्र लछमन ला बरजिस, गुरु के आज्ञा सिर मा धार।

गइस धनुष तिर धीरज धारे, मन मा सुमिरे बारम्बार।।


फूल बरोबर धनुष उठा के, दू कुटका कर फेंकिस राम।

जय-जय-कार करे सब लागिन, बहुत बड़े कर डारे काम।।


सीता पहिनाइस जयमाला, देवन मन दुंदुभी बजाय।

बरसे फूल गगन ले "प्यारे", घर घर लोगन खुशी मनाय।।


*प्यारेलाल साहू"प्यारे"मरौद छत्तीसगढ़*

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