"अनचिन्हार छन्द"
ये शीर्षक मा "अनचिन्हार" शब्द कोनो छन्द के नाम नोहय, ये शब्द "विशेषण" के रूप मा प्रयुक्त होइस हे।
नान्हे पन ले छन्द हमर जिनगी के संगेसंग चलत हवय। हमन गीत या कविता ला सुने अउ गुने हन फेर "इही हर छन्द आय" - नइ जान पाएन तेपायके छन्द मन अनचिन्हार बन गिन। आवव मँय भेंट करवावत हँव कि कब-कब कोन-कोन छन्द हमर जिनगी मा कइसे-कइसे आइन, जिन मन ला हमन चीन्ह नइ पाएन।
(1)
ॐ जय जगदीश हरे, जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे।
ये आरती हमन नान्हें पन ले सुनत अउ गावत हन। एहर "सुखदा छन्द" आय। दू डाँड़ (पद) के सुखदा छन्द के विषम चरण मा 12 अउ सम चरण मा 10 मात्रा होथें। अंत मा गुरु होथे अउ दू-दू पद आपस मा तुकान्त होथें।
(2)
गणपति की सेवा, मंगल मेवा, सेवा से सब, विघ्न टरें
तीन लोक तैंतीस देवता, द्वार खड़े तेरे अर्ज करें।।
अपन घर मा अउ पारा मोहल्ला मा गणेश चतुर्थी के समय ये वंदना ला घलो नान्हेंपन ले गावत हन। एहर "त्रिभंगी छन्द" आय। एखर हर पद मा 10, 8, 8, 6 मात्रा माने कुल 32 मात्रा होथें। त्रिभंगी छन्द चार पद के होथे अउ दू-दू पद आपस मा तुकान्त होथें।
जब प्राइमरी स्कूल मा पहुँचेन तब स्कूल चालू होय के पहिली प्रार्थना गावत रहेन -
(3)
हे प्रभो आनन्द दाता ज्ञान हमको दीजिए।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को, दूर हमसे कीजिए।।
ये प्रार्थना "गीतिका छन्द" मा हवय। यहू चार पद के छन्द आय जेखर दू-दू पद आपस मा तुकान्त होथें। हर पद के 14, 12 मात्रा यति होथे माने हर डाँड़ मा कुल 26 मात्रा होथे। तीसरा, दसवाँ, सत्रहवाँ अउ चौबीसवाँ मात्रा "लघु" रहिथे।
(4)
बड़ी भली है अम्मा मेरी, ताजा दूध पिलाती है।
मीठे मीठे फल ला ला कर, मुझको रोज खिलाती है।।
प्राइमरी स्कूल के बालभारती के कविता मन आजो पूरा-पूरा याद हे। इहाँ दुये पंक्ति लिखत हँव। ये कविता "ताटंक छन्द" मा रचे गेहे। ताटंक छन्द के हर पद मा 16, 14 मात्रा मा यति समेत कुल 30 मात्रा होथे। अंत मा सरलग 3 गुरु के अनिवार्यता होथे। दुनों पद आपस मा तुकान्त होना घलो अनिवार्य होथे।
(5)
यह कदम्ब का पेड़ अगर मा, होता जमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया, बनता धीरे-धीरे।।
माँ खादी की चादर ले दे, मैं गाँधी बन जाऊँ।
सब मित्रों के बीच बैठकर, रघुपति राघव गाऊँ।।
फूलों से नित हँसना सीखो, भौंरों से नित गाना।
फल से लदी डालियों से तुम, सीखो शीश नवाना।।
ये तीनों कविता ला प्राइमरी स्कूल के "बालभारती" मा पढ़े रहेन। आज घलो नइ बिसरा पाए हन। ये तीनों कविता मन "सार-छन्द" मा लिखे गेहें। सार छन्द के हर पद मा 16, 12 के यति संग कुल 28 मात्रा होथें। हर दू पद आपस मा तुकान्त होथें। अंत मा एक गुरु, दू लघु या दू लघु, एक गुरु होथे फेर अंत मा दू गुरु रहे ले लय ज्यादा गुरुतुर बन जाथे। सार छन्द के बात चलिस त श्री 420 फ़िल्म के एक जुन्ना गाना के मुखड़ा के सुरता आगे -
ईचक दाना बीचक दाना, दाने ऊपर दाना।
छत के ऊपर लड़की नाचे, लड़का है दीवाना।।
यहू मुखड़ा हर सार छन्द के उदाहरण आय।
(6)
छन्नपकैया, छन्न पकैया, छन्न पे उड़ती साड़ी
फुलाये छाती छुकछुक करती चलती रेलगाड़ी
रेलगाड़ी, रेलगाड़ी…छुकछुक छुकछुक छुकछुक छुकछुक रेलगाड़ी
फिल्मी गाना के चर्चा चलिस त एक सुग्घर गाना के सुरता आगे। ये बालगीत आय जेला लिखिस हरिन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय अउ अपन आवाज मा गाइस अभिनेता अशोक कुमार हर। ये गीत के शुरुआत "छन्नपकैया छन्द" ले होइस हे। ये आशीर्वाद फ़िल्म के गाना हरे। एला "छन्नपकैया छन्द" कहे जाथे। यहू सार छन्द के एक प्रकार आय। सार छन्द असने एखरो विधान हवय। बस पहिली चरण मा "छन्नपकैया छन्नपकैया" के आवृत्ति के दोहराव हर छन्द के शुरुवात मा होवत रहिथे।
(7)
धूरि भरे अति सोभित स्यामजु तैसि बनी सिर सुन्दर चोटी।
खेलत खात फिरे अँगना, पग पैजन बाजति पीरि कछोटी।
वा छबि को रसखान विलोकत वारत काज कला निधि कोटी।
काग के भाग कहा कहिए हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।।
मिडिल स्कूल मा रसखान के कविता ला पढ़े हन, कविता के रूप मा। एहर "मत्तगयन्द सवैया" आय। ये सवैया के 4 पद के होथे। चारों पद आपस मा तुकान्त होना चाहिए। एमा 7 पइत भगण अउ अंत मा 2 गुरु रहिथे।
(8)
ऊँचे घोर मंदर के, अंदर रहन वारी
ऊँचे घोर मंदर के, अंदर रहाती है
कंद मूल भोग करें, कंद मूल भोग करें
तीन बेर खाती थीं वो तीन बेर खाती हैं
भूषण शिथिल अंग भूखन शिथिल अंग
बिजन डुलाती थीं वो बिजन डुलाती हैं
भूसण भनत सिवराज वीर तेरे त्रास
नगन जड़ाती थीं वो नगन जड़ाती हैं
जब हमन हाईस्कूल पहुँचेन तब यमक अलंकार बर कवि भूषण के ये रचना हमन ला पढ़ाये गिस। हमन यमक मा अरझे राहीगेन अउ चीन्ह नइ पाएन कि एहर "मनहरण घनाक्षरी" आय। मनहरण घनाक्षरी वार्णिक छन्द आय। ये छन्द मा 8, 8, 8, 7 वर्ण मा यति होथे अउ अंत मा गुरु होथे।
(9)
मृदु भावों के अंगूरों की, आज बना लाया हाला
प्रियतम अपने ही हाथों से, आज पिलाउंगा प्याला
पहले भोग लगा लूँ तेरा, फिर प्रसाद जग पाएगा
सबसे पहले तेरा स्वागत, करती मेरी मधुशाला।।
स्कूली शिक्षा पूरा करे के बाद कविता पढ़े अउ सुने के शउँक जागिस। कवि हरिवंश राय बच्चन के मधुशाला बिसा के पढ़ेन। बाद मा जानेन कि ये ताटंक अउ कुकुभ छन्द आधारित आय। मुक्तक या रुबाई शैली मा हे। 16, 14 के यति संग अगर अंत मा 3 गुरु सरलग आइस त ताटंक छन्द अउ अगर अंत मा 2 गुरु आइस त "कुकुभ छन्द"। ये छन्द शैली मा नइये, मुक्तक या रुबाई के शैली मा रचे गेहे फेर विधान ताटंक अउ कुकुभ छन्द के हवय।
(10)
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥
रावण रचित शिव ताण्डव स्त्रोत ला भक्ति-भाव मा सुनन फेर ये नइ मालूम रहिस कि एहर "पंचचामर छन्द" मा रचे गेहे। पञ्चचामर, वार्णिक छन्द आय जेमा हर पद मा
जगण, रगण, जगण, रगण, जगण अउ अंत मे एक गुरु होथे।
(11)
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।
हनुमान चालीसा के पाठ हमन करथन। एहर "चौपाई छन्द" मा रचे गेहे। एमा चार पद होथें, हर पद मा 16-16 मात्रा होथें। दू-दू पद आपस मा तुकान्त होथें। दू पद के एक अर्द्धाली होथे अउ दू अर्द्धाली के एक चौपाई होथे।
(12)
श्रीराम चन्द्र कृपाल भज मन हरण भाव भय दारुणम्
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणाम्
अनेक धार्मिक प्रवचन मन मा यहू ला हमन भजन समझ के सुने हन। इही हर "हरिगीतिका छन्द" आय। ये छन्द 4 पद के होथे। हर पद मा 16, 12 या 14, 14 मात्रा मा यति होथे। माने हर पद मा 28 मात्रा होथे। दू-दू पद आपस मा तुकान्त होथे अउ अंत मा रगण आथे।
(13)
ठुमकि चलत रामचन्द्र बाजत पैजनियाँ
धाय मातु गोद लेत दशरथ की रनियाँ
यहू रचना ला हमन भजन मान के सुने अउ गाये हन। एहर "छन्द प्रभाती" आय। हर पद मा 22 मात्रा होथे अउ अंत मा गुरु आथे।
(14)
सुन सॅंगवारी मोर मितान। देश के धारन तहीं परान।
हावय करनी तोर महान। पेट पोसइया तहीं किसान।।
कालू बेन्दरवा खाय बीरो पान। पुछी उखनगे जरगे कान।।
बुढ़वा बइला ला दे दे दान, जै गंगान
छत्तीसगढ़ी लोकगीत "बसदेवा गीत" घलो आपमन सुने होहू। उदाहरण मा मँय दाऊ रामचंद्र देशमुख कृत चंदैनी गोंदा के गीत ला लिखे हँव जेला धमतरी के कवि भगवती सेन जी लिखिन हे। ये बसदेवा गीते हर "चौपई छन्द" आय। एला "जयकारी छन्द" घलो कहे जाथे। चौपाई असन यहू छन्द मा चार पद होथें। हर पद मा 15-15 मात्रा होथें। चारों पद आपस मा तुकान्त होथें फेर आज काल अनेक कवि मन दू-दू पद मा तको तुकांतता रखत हें।
बापू जी के प्रिय भजन - "रघुपति राघव राजा राम।
पतीत पावन सीता राम"।। घलो चौपई छन्द के विधान मा हवय।
ये लेख पढ़े के बाद आप मन जरूर सोचहू कि "छन्द" सही मा नान्हें पन ले हमर संग चलत हे फेर हम चीन्ह नइ पाएन तभे ये लेख के शीर्षक दे हँव - "अनचिन्हार छन्द"। मऊर बताए सबो उदाहरण मन बहुप्रचलित हें अउ हर छत्तीसगढ़िया इन ला पढ़े-सुने हें। ये तो कुछ उदाहरण आँय, अइसने अनेक कविता अउ गीत मन हें जउन मन कोनो न कोनो छन्द में रचे गेहें। जानकारी के अभाव मा हम छन्द मन ला चीन्ह नइ पाए हैं। मोला विश्वास हे कि अब आपमन के छन्द मा रुचि बाढ़ही।
लेखक - अरुण कुमार निगम
संस्थापक - "छन्द के छ ऑनलाइन गुरुकुल", छत्तीसगढ़, भारत
संपर्क 9907174334
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