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Saturday, February 11, 2023

उतेरा/उन्हारी/ओल्हा फसल विशेष छंदबद्ध सृजन




उतेरा/उन्हारी/ओल्हा फसल विशेष छंदबद्ध सृजन
 

: उनहारी फसल 

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कुंडलियाँ 

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बोंये उनहारी फसल, हाँसत हवय किसान |

आमदनी के स्रोत हे, रबी फसल वरदान ||

रबी फसल वरदान, हवय जी बढ़िया खेती |

कामधेनु तँय जान, कमा ले अपने सेती ||

रुपिया खनके जेब, नींद भर कमिया सोये |

खुश हे सब परिवार, फसल उनहारी बोंये ||


तिंवरा बटरा अउ चना, सब के मन ला भाय |

डोली भर्री बड़ फबय, गहूँ नँगत इँतराय |

गहूँ नँगत इँतराय, सोन कस सुघ्घर बाली |

सबो जघा बोंवाय, भूमि अब नइहे खाली ||

सुरुजमुखी मुस्काय, हँसत हे सरसो पिंवरा |

होही छप्पर फाड़, चना अउ बटरा तिंवरा ||


कमलेश प्रसाद शरमाबाबू कटंगी-गंडई जिला-केसीजी छग

छंद साधक -सत्र -20

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उनहारी फसल 

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अमृतध्वनि -छंद 

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सरसो गेंहू बड़ फबय, सुरुजमुखी मुस्काय |

रहि-रहि मोहय ज्वार हा, सब के मन ला भाय ||

सब के मन ला, भाय सोनहा, बाली सुघ्घर |

दिखथे ताजा, रोज नहाये, जइसे उज्जर ||

अचल हवय जी, रूप देख लव, तइहा बरसो |

मानव जीवन, संग जनम ले, गेंहू सरसो ||


कमलेश प्रसाद शरमाबाबू कटंगी-गंडई जिला केसीजी छग 

छंद साधक- सत्र -20

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प्रदीप छन्द गीत..

विषय उनहारी(ओन्हारी)


करलौ उनहारी सँगवारी,रबी फसल ला डार के।।

परती झन रखहू खेती ला,जम्मो भाँठा खार के।


बइठे ठलहा झन राहव जी,करलौ खेती काम ला।

जीरा,धनिया,सरसों,अरसी,बोंवव पाहू दाम ला।।

आलू,गोभी,मसूर,बटरा,रद्दा हे व्यापार के।

करलौ उनहारी सँगवारी,रबी फसल ला डार के।।


चना गहूँ चौलाई तिंवरा,रबी फसल के शान हे।

लाल चुकंदर लाल टमाटर,सुरुजमुखी पहिचान हे।।

नगदी फसल कहाथें भइया,नोहे फसल उधार के।

करलौ उनहारी सँगवारी,रबी फसल ला डार के।।


उन्नत खेती उनहारी ले,करलौ सबो किसान जी।

तुँहर भरोसा जग हा चलथे,भुँइया के भगवान जी।।

सौंफ गोंदली सहसुन मेथी,ऊँचा भाव बजार के।

करलौ उनहारी सँगवारी,रबी फसल ला डार के।।


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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 *कुंडलिया छंद----तिवरा-बटरा(उनहारी)*


तिवरा-बटरा मा दिखय, सुग्घर सबके खेत ।

रखवारी  सब्बो  करँय,  बने  लगाके  चेत ।।

बने  लगाके  चेत,  करँय गा देख किसानी ।

दार खवाथे रोज, चलय सुग्घर जिनगानी ।।

देख- देख ललचाय, खाय बर सबके जिवरा ।

हरियर-हरियर खेत, दिखय जी बटरा तिवरा ।।


खावँय अब्बड़ राँध के, आलू  सेमी  संग ।

तिवरा बटकर साग हा, आवय मजा मतंग ।। 

आवय  मजा  मतंग, खाय मा येकर होरा ।

पाथें  सबो  किसान, फसल ला बोरा-बोरा ।।

ओली भर-भर रोज,  टोर के तिवरा लावँय ।

येकर  भाजी  साग,  राँध के सुग्घर खावँय ।।


 *मुकेश उइके "मयारू"*

 ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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उल्लाला छन्द - सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"


                 उतेरा ओन्हारी

                 

कहाँ उतेरे जात हे, तिवरा चना मसूर अब।

बोंता विधि ले होत हे, ओन्हारी भरपूर अब।


पानी हावय हाथ मा, चिंता नइहे माथ मा।

मोल उतरगे ओल के, कहत किसानन ठोल के।


दिखय न नाँगर ओलहा, कूँड़ी पैला ठोड़हा।

बइला बपुरा बइठ गे, जुनियावत हे गोड़ हा।


नवा जमाना आय हे, सबला बने सुहाय हे।

चारो-डहर मशीन हे, बढ़िया सुग्घर सीन हे।


जोंतत बोंवत आजकल, टेक्टर सबके खेत ला।

समय घलव सँहरात हे, माढ़े देखत नेत ला।


नइहे एको पारथी, हमर कवर्धा पार मा।

खेत-खार मन साल भर, फदकें हें कुशियार मा।


नहर-अपासी एरिया, फसल उतेरा लेत हें।

जेती बर थारी असन, धनहे-धनहा खेत हें।


ठउँका लगत कुँवार मा, माथ अरोथे धान हा।

करके चेत उतेर थे, ओन्हारी ल किसान हा।


ओन्हारी ला देख के, किम्मत कूत सरेख के।

करथे काज किसान हा, खुश रहिथे भगवान हा।


ओन्हारी के आय ले, आथे परब तिहार हा।

नवा सँवागा साज के, सजथे हाट-बजार हा।


ओन्हारी के संग मा, आथे खुशी अपार गा।

खुशी नपा के ले जथे, पहुँच तगादादार गा।


ओन्हारी के खाँध मा, बर-बिहाव के भार हे।

मानन माथे एखरे, बचत सबो व्यवहार हे।


रचना- सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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लावणी छंद - दिलीप कुमार वर्मा  


            ओन्हारी 

आनी बानी के ओन्हारी, जेला चाहव अपनावव। 

आमदनी येखर ले बाढय, रखव उतेरा बोवावव। 


कुछ दलहन कुछ तिलहन होथे, माँग सबों के हे भारी। 

चावल गेहूँ ले तक जादा, आमदनी दय ओन्हारी। 

मनभर फसल उगावव संगी, अउ मनभर के तुम खावव। 

आमदनी येखर ले बाढय, रखव उतेरा बोवावव। 


सरसों अरसी या हों तीली, अरहर बटरी या तिवरा। 

मूंग चना या हो मसूर सब, गदगद कर देथे जिवरा। 

जादा पानी ये नइ मांगय, भर्री भाठा हरियावव । 

आमदनी येखर ले बाढय, रखव उतेरा बोवावव।


रचनाकार - दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छ ग

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: *रोला छंद* - अश्वनी कोसरे

 *ओन्हारी* 


तिवँरा चना मसूर, फरे हें अरसी चक मा|

रोवत हवँय किसान, कहाँ हे वो कर हक मा||

धनहा टिकरा खार, लटे हे अड़बड़ बटरा|

 माथा जोरे डार, फरे हे गहदे मटरा||


सुरुज मुखी सिरजाय, तेल अउ कपसा बाती|

देवत हें कुसियार, मीठ हे दाना पाती||

उलहे हवय लदार, धरे फर मुनगा भारी|

लदगे हावय डार, झोरफा बोइर बारी||


तबले कहाँ हियाव, कोन करथे रखवारी|

बाढ़े हवय करैत, घमाघम हे ओन्हारी||

कतको मरँय किसान, कउन ले दुख बतियावँय|

आजो खस्ता हाल, बिपत ले जूझत हावँय||


कहाँ मिले हे दाम, फसल के लागत बोनी|

छुटही भला किसान, टरय कइसे अनहोनी|| 

मंडी मा भरमार, लगे हे ढ़ेरी दाना |

अबले देख किसान, सबो ले पावय ताना||


छंदकार- अश्वनी कोसरे 

कवर्धा कबीरधाम

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 उनहारी(दोहा छंद)


रोका छेका के बिना,उनहारी बिन खेत।

उजरे खेती खार हा,होय किसान बिचेत।।


उजरे हावय खेत हा,भाँय भाँय हे खार।

तिवरा सरसो गे नँदा,सुरता बोहै लार।।


चना गँहू होरा कँहा,नइहे घुघरी साग।

बिसा बिसा के खात हन,रिसा घले हे भाग।।


झूमत राहै खेत हा,झूमै सबो किसान।

कुँदरा बाँधे मेड़ मा,राखै जमो मितान।।


कहिथे बहुरे दिन फिरै,झूमै खेती खार।

उनहारी लादे रहै,छछले राहय नार।।


राजेन्द्र कुमार निर्मलकर

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छप्पय छंद-"ओन्हारी"

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बरसाती  के  जाय, खेत   बोंवय   ओन्हारी।

छिड़क  कहूँ  बोंवाय, बंद  होवय जब धारी।।

जोतय  देखय  ओल, गहूँ  के आवय पारी।

सरसों  बोंवय  खार, खेत  अउ  कोला बारी।।

राहर  घपटे  मेड़ मा,  मूँग  बेल  लपटाय जी।

फर गुच्छा गुच्छा लगे, धर मुटठा भर आय जी। 


अरसी हा अलसाय, खेत भर रुगरुग फूले।

नीला रंग सुहाय, फूल  आँखी  मा  झूले।।

कुल्थी बटरी दार, साग  घुघरी  बड़  भाथे।

तिँवरा जिल्लो नार, खेत मा छछले  जाथे।।

बटरा चना मसूर ले, पोठ रोकड़ा पाय जी।

नगद फसल ये जान लव, गल्ला पइसा आय जी।।


बोंए   सोयाबीन, तेल   ला   फरियर    पाथे।

सुरजमुखी मन भाय, सोझ सुरुज सोरियाथे।।

बीजा ला अलगाय, पीट   पीट  के   कुटेला।

कचरा अलग निकाल, चला  के फेर कटेला।।

दँउरी  बेलन  फाँद के, करे  मिसाई  डार  के।

ओसा  के  बीजा  धरे,  भूँस  पेरउसी टार के।



एक्के  बार  उतेर, देख  लव  किस्मत  जागे।

घपटे  रहिथे  खार, देख  मन  आगर  लागे।।

भूँसा   चारा   पाय,  खाय   गरुवा   फुन्नाथे।

होय   घरोघर   दूध, दही    बने     लेवनाथे।

ओन्हारी के दार ला, सब घर भर के खाय जी।

देखभाल कर थोरके, गजब मुनाफा पाय जी।।

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द्रोपती साहू "सरसिज"

पिन-493445

Email-dropdisahu75@gmail.com

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*छन्न पकैया छन्द*


*उन्हारी*


छन्न पकैया छन्न पकैया , अब तो धान लुवाही।

खेत अँटाही जब जल्दी कन, ओल बने जी आही।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, खुश किसान हो जाही।

चना गहूँ अउ बटुरा बोंवत, नाँगर खेत चलाही।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, जौन ओलहा बोहीं।

बने जागही बीज सबो अउ, पौधा तगड़ा होहीं।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, गरुवा गाय बिटोहीं।

खेत राखही पूरा पाहीं , नइ ते मुड़धर रोहीं।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, उन्हारी हरियागे।

फूल धरत हावय बिक्कट के, देखत मन ला भागे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , सब्बो फर पोठागे।

टोर लान नीछ साग राँधे, बटकर मन ला भागे।।


छन्न पकैया छन्न पकैया,मन ला सुग्घर भाही।

खेत डहर अब सबझन जाबो, तिवरा चना लुवाही

छन्न पकैया छन्न पकैया, दौरी घलो फँदाही।

बटरी तिवरा चना मिसाही,मन मा खुशी समाही।।


भागवत प्रसाद चन्द्राकर

डमरू(बलौदाबाजार)

सत्र -15

🙏🙏🙏🙏🙏

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*रोला छंद* - अश्वनी कोसरे

 *ओन्हारी* 


तिवँरा चना मसूर, फरे हें अरसी चक मा|

रोवत हवँय किसान, कहाँ हे वो कर हक मा||

धनहा टिकरा खार, लटे हे अड़बड़ बटरा|

 माथा जोरे डार, फरे हे गहदे मटरा||


सुरुज मुखी सिरजाय, तेल अउ कपसा बाती|

देवत हें कुसियार, मीठ हे दाना पाती||

उलहे हवय लदार, धरे फर मुनगा भारी|

लदगे हावय डार, झोरफा बोइर बारी||


तबले कहाँ हियाव, कोन करथे रखवारी|

बाढ़े हवय करैत, घमाघम हे ओन्हारी||

कतको मरँय किसान, कउन ले दुख बतियावँय|

आजो खस्ता हाल, बिपत ले जूझत हावँय||


कहाँ मिले हे दाम, फसल के लागत बोनी|

छुटही भला किसान, टरय कइसे अनहोनी|| 

मंडी मा भरमार, लगे हे ढ़ेरी दाना |

अबले देख किसान, सबो ले पावय ताना||


छंदकार- अश्वनी कोसरे 

कवर्धा कबीरधाम

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*चौपाई छंद*


*नकदी उनहारी हरे, तँय बिरथा झन मान।*

*परिया झरिया खेत बर, होथे जी बरदान।।*


 जब कुँवार मा खेत अँटाथे, तब किसान हा ध्यान लगाथे।

खोज बीजहा भतहा लाथें, बीज उतेरा बर ले जाथें।।


कार्तिक लगथे धान लुवाथे, खेत ओलहा मा जोंताथे।

चना गहूँ राहेर सिंचाथे, बटुरा अउ तिवरा बोंवाथे।।


सरसों अलसी कुल्थी मँसरी ,सोयाबीन संग मा अँकरी।

भाँठा भर्री लम्हरी चकरी,फसल लगै सब बारी बखरी।।


सब देवव ध्यान संगवारी, खेत खार बोंवव उनहारी।

दलहन तिलहन अउ तरकारी, लगै खेत अउ कोला बारी।।


*सूरजमुखी बर्रे लगे, फूल गजब मन भाय।*

*उनहारी बिन खेत हा, खाली झन रहि जाय।।*


भागवत प्रसाद चन्द्राकर

डमरू(बलौदाबाजार)

सत्र-15

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नोहर होगे उन्हारी- सार छंद


भर्री भाँठा खार भँठागे, घटके कती उन्हारी।

चना गहूँ सरसो अरसी के, चक हे ना रखवारी।।


पहली जम्मों गांव गांव मा, माते राहय खेती।

सरसो नाँचे तिवरा हाँसे, जेती देखन तेती।।

करे मसूर ह मुचमुच फुलके, चले मया के आरी।

भर्री भाँठा खार भँठागे, घटके कती उन्हारी।

चना गहूँ सरसो अरसी के, चक हे ना रखवारी।।


पुरवा गाये राग फगुनवा, चना गहूँ लहराये।

मेड़ कुंदरा कागभगोड़ा, अड़बड़ मन ला भाये।

चना चोरइया गाय बेंदरा, खाय मार अउ गारी।

भर्री भाँठा खार भँठागे, घटके कती उन्हारी।

चना गहूँ सरसो अरसी के, चक हे ना रखवारी।।


कोन सिधोवव खेत किसानी, मनखे मन पगलागे।

खेत बेच के मजा उड़ावव, शहर गाँव मा आगे।।

सड़क झडक दिस खेत खार ला, बनगे महल अटारी।

भर्री भाँठा खार भँठागे, घटके कती उन्हारी।

चना गहूँ सरसो अरसी के, चक हे ना रखवारी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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