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Friday, July 4, 2025

चौमास विशेष छंदबद्ध सृजन




 

चउमासा के मनमानी

विधा- सार छंद

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उमड़-घुमर के बादर भइया, करत हवय मनमानी।

चउमासा मा चारो कोती, बरसत हावय पानी।।

ढोल बजावत ता-ता थइया, बादर नाच दिखावै।

चमक-चमक के बिजली रानी, मनखे ला डरवावै।

अँगरा जइसे गाज गिरत हे, होगे हे हलकानी।

चउमासा मा चारो कोती, बरसत हावय पानी।।

दिन-बादर खेती के आगे, नाँगर घलो फँदागे।

खेत-खार हा करमा कजरी, गीत सुनावन लागे।

माटी पूजा कर भदरागे, अब तो बुता किसानी।

चउमासा मा चारो कोती, बरसत हावय पानी।।

मिहनत करके गार पसीना, जब किसान हरसाही।

तब तो सोनहा धान बाली, लहर-लहर लहराही।

मया किसनहा के पा भुइयाँ, हो जाही जी धानी।

चउमासा मा चारो कोती, बरसत हावय पानी।।

      डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"

        भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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   - चउमासा के बिपदा

विधा- प्रदीप छंद

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झिमिर-झिमिर बरसा के पानी, देख महल मुसकाय हे।

मूड़ धरे बइठे झोपड़िया, भारी बिपदा आय हे।।

बइठ झरोखा महल निहारय, सुघराई संसार के।

चूहत परवा-छानी देखय, करलाई परिवार के।

कतको माटी के कुरिया ला, ये चउमासा खाय हे।

मूड़ धरे बइठे झोपड़िया, भारी बिपदा आय हे।।

पूरा आये नदिया नरवा, रूप धरे बिकराल हे।

देखत अइसे पोटा काँपय, जइसे सउहें काल हे।

नदिया खड़ के बाग बगइचा, मनखे मन बोहाय हे।

मूड़ धरे बइठे झोपड़िया, भारी बिपदा आय हे।।

चउमासी बीमारी आके, करत हवय हलकान जी।

गुनत हवय मनखे मन जम्मों, कइसे बाँचय प्रान जी।

चिखला माते खोर-गली मा, दुर्गंधी बगराय हे।

मूड़ धरे बइठे झोपड़िया, भारी बिपदा आय हे।।

       डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"

        भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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कुंडलियाँ छन्द- चौमास

दिन बादर चौमास के, धर आये बरसात।

अब तो संगी मान लौ, गजानंद के बात।।

गजानंद के बात, चेत धर सुन लौ गुन लौ।

झन रोहू पछतात, अपन घर कुरिया तुन लौ।।

लौ छानी ला ढाँक, सुतव झन ओढ़े चादर।

गिरही पानी खूब, बखत आगे दिन बादर।।

नाँगर बइला ला सजा, राखव सबो किसान।

गिरही पानी रदरदा, बोये चलबो धान।।

बोये चलबो धान, किसानी के दिन आगे।

खातू माटी खेत, सुघर बिजहा जतनागे।

गजानंद के संग, मितानी कर ले जाँगर।

बोये चलबो धान, सजा ले बइला नाँगर।।

आसा सम्मत के धरे, जावय खेत किसान।

उपजावय पर पेट बर, अन्न सदा धर ध्यान।।

अन्न सदा धर ध्यान, करे वो काम किसानी।

ओखर जइसे ढूँढ, मिले नइ जग मा दानी।।

सम्मत रहय किसान, बँधावव मन म दिलासा।

अरजी सुन भगवान, टोरहू झन तुम आसा।।

इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 

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                    दोहा छंद

 बितगे गरमी दिन गड़ी, अब लगही चौमास।

बादर आही रोज के, पानी गिरही खास।।

मुही पार अउ खेत के, सकला बर दौ ध्यान।

खातू कचरा पाल के, जतनौ खेत किसान।।

नाँगर बक्खर हे कहाँ, नहना जूड़ा देख।

कोदो जँव राहेर तिल, बिजहा धान सरेख।।

जतनौ खपरा छानही, झीपारी बर पान।

झिल्ली छाता खूमरी, हमर बजाही जान।।

 गिरही पानी रझरझा, गली रेंगही धार।

कागज के डोंगा बना, ढिलहीं सब भरमार।।

परही सावन बूंद जब,पुलकित होही अंग।

घानी मूनी खेलहीं, नोनी- बाबू संग।।

बाम्बी रुदवा टेंगना, मस्त खेलहीं फाग।

झिंगुर कोवा बेंगवा, गाहीं सुंदर राग।।

खँचवा डबरा भर जही, चिखला होही पोठ।

जाबो तब मछरी धरे,बसझन करहीं गोठ।।

मतलाहा पानी कभू, झन करहव उपयोग।

हो जाथे संगी कई, खाँसी खजरी रोग।।

बाग बगीचा पेड़ के, होही हरियर डार।

तितली भौरा फूल के, रस चुसहीं भरमार।।

चौमासा के शुभ लगन, होही अबड़ तिहार।

तीजा पोरा भोजली , बहिनी आहीं द्वार।।

भागवत प्रसाद चन्द्राकर

डमरू बलौदाबाजार

🙏🙏🙏🙏🙏

०१०७२०२५

मंगलवार

💐💐💐💐💐💐💐💐

 बीतय कलकुत  मा भले,  तइहा  के  चौमास।

पर वो नइ टोरत रहिस, गउ किसान के आस।।

गउ  किसान के आस, बरस  के कर  दय पूरा।

भुॅंइया के तक  प्यास, कभू  नइ  रहय  अधूरा।।

कोठी  कहॉं  मितान, धान  के  कब्भू  रीतय।

तइहा के चौमास,  भले  कलकुत  मा  बीतय।।

सूर्यकांत गुप्ता, जुनवानी, भिलाई (छत्तीसगढ़

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 बरसात के मौसम 

जयकारी छंद 

दिन बादर आये आषाड़।

नदियाँ झोरी आगे बाड़।

बरसत पानी मूसलाधार।

ताल -तलैया भरगे खार।

जय गंगान 

बिजली कड़कय देर सबेर।

गरजय बादर नभ ला घेर।

जघा-जघा मा गिरथे गाज।

आसमान मा उड़थे बाज।

जय गंगान 

तलमल-तलमल आवय साँप।

देखत पोटा जावय काँप ।

झिंगुर नरियावत हे पेड़ ।

बिच्छू सपटे निकलय मेड़।

जय गंगान 

डबरा मा उफलावय जोंक।

किरवा चढ़के नाँचय फोंक।

कुदै मेचका बड़ इँतराय।

बत्तर कीरा घलो झपाय।

जय गंगान 

'शर्मा बाबू' कहिथे आज।

सावधान हो करलव काज।

हड़बिड़-हड़बिड़ करना छोड़।

रहौ सुरक्षित छोंड़व होड़।

जय गंगान।

कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

 कटंगी-गंडई जिला केसीजी 

🙏🙏🙏

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 चौमासा-

चौमासा लगगे हवै, मानसून हे छाय।

सुरुज नरायण ढाँपगे, करिया बादर भाय।

करिया बादर भाय, बरसही रिमझिम  पानी।

सुनबो झींगुर तान, कोइली गुरतुर बानी।

खेत खार खलिहान, ताल डबरी हे प्यासा।

नदिया नरवा धार, रेंगही अब चौमासा।।

छंद कुण्डलिया 

बलराम चंद्राकर भिलाई

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 मुक्तामणि छन्द गीत 

बरसात

करिया बादर छाय हे,आगे बरखा रानी।

तन मन ला हर्षाय हे,झम-झम गिरके पानी।।

जुड़हा पुरवाई चले,झूमे डारा पाना।

झिंगुरा राग सुनात हे,मैना गावय गाना।

चारो कोती छाय हे,धरती मा हरियाली।

मनखे सबो मनात हें,हँस-हँस के खुशहाली।

भुँइयाँ के भगवान मन,जुरमिल करैं किसानी।

करिया बादर छाय हे,आगे बरखा रानी।।

भरगे तरिया,खेत हा,नदिया मटकत भागे।

छल-छल छलके बाँध हा,जीव डर्रावन लागे।।

गली-खोर मा मातगे,अब तो चिखला भारी।।

लइका सबो सियान मन,गिरथें पारी-पारी।।

चुचवावत हे धार हा,बाजय पट-पट छानी।

करिया बादर छाय हे,आगे बरखा रानी।।

डी.पी.लहरे'मौज'

कवर्धा छत्तीसगढ़

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चौमासा 

रुख राई सब हरियर हरियर, हरियर खेती खार ।

तोर बिना अब मोर सजनवा, सुन्ना लागे द्वार ।।

रझ- रझ रझ-रझ मया झरत हे, तन होगे हे तात ।

कइसे तोला मॅंय समझावॅंव, जिनगी के दिन चार ।।

खेत खार मा पानी भरगे, मारे पवन हिलोर ।

तोर नाॅंव ले जीव जरत हे, कब लेबे तॅंय शोर ।‌।

छानी परवा पानी टपकय,  होय मया कमजोर ।

तोर बिना अब तो निर्मोही, कहाॅं गली अउ खोर ।।

ॲंगरी धरके गिनते रहिथॅंव, मॅंय दिन ला भरमार। 

तोर बिना अब मोर सजनवा, सुन्ना लागे द्वार ।।

संजय देवांगन सिमगा

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 कुण्डलिया

रुक-रुक के बरसत हवय, नीर मूसलाधार।

चिंता खाये जात हे, उर्रा भागत खार।

उर्रा भागत खार, बाढ़ नदिया मा आगे।

छलकत तरिया पाट, लबालब बाँध भरागे।

पोटा देखँय काँप, चलय मनखे झुक-झुक के।

नीर मूसलाधार, गिरत हे गा रुक- रुक के।।

विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव

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कुंडलिया छंद

चौमासा मा आपमन, बदलव क्रियाकलाप।

पूजव भोलेनाथ ला, करव मंत्र के जाप।।

करव मंत्र के जाप, पढ़व रामायण गीता।

मन हा रहिथे शांत, होय सब काम सुभीता।।

सुनव सियानी गोठ, करव दुरिहा जिज्ञासा।

काबर होथे खास, बछर मा ये चौमासा।।

श्लेष चन्द्राकर

महासमुंद

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 चौमास(असाड़)-

पानी मेघ असाड़ के, उमड़त-घुमरत घात।

जेठ तपाइस घाम मा, अब पुरवइया वात। 

अब पुरवइया वात, सुहावत तन-मन ला बड़।

फेर डरोवय जीव, लफालफ बिजली कड़-कड़।

हवा हिलोरय पेड़, झिपारय बरसा रानी।

धरती प्यास बुझाय, दमोरय कस के पानी।। 

छंद कुण्डलिया

बलराम चंद्राकर भिलाई

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 दोहा छंद 

बादर गरजत देख के,झूमत आज किसान।

पानी के सब आस मा, खेती करथे ध्यान।।

नाॅंगर बइला धर चले,जावत हावय खेत।

संसो हर अब बाड़ गे,लामे हावय चेत।।

रिमझिम पानी हा गिरे, ओढ़े खुमरी तान।

गावय गाना झूम के, होके मगन किसान।।

चटनी बासी गोंदली,अउ अमटाहा साग।

अबड़ मिठाथे खेत मा,जइसे जागे भाग।।

हरियर लागे खेत हा,दिखे सोनहा धान।

हिरदे हा जाथे जुड़ा, किरपा हे भगवान।।

चौमासा के दिन हरे, खेती बर वरदान।

तभे पेज पसिया मिले,जानौ आज सुजान।।

राजेन्द्र कुमार निर्मलकर

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 नारायण वर्मा बेमेतरा सरसी छंद-सावन आगे

झुमर झुमर नाचय रुखराई,बरखा रिमझिम गाय।

ढोल नँगाड़ा धरे बदरिया, पुरवा राग सुनाय।।

सुंदरता ला देख धरा के,बादर हा बउराय।

हाय दिवाना बने बिजुरिया, आँखी ला मिचकाय।।

धरती के सिंगार करे बर, सावन झुमरत आय..............

नदिया नरवा भरे लबालब,छलकत तरिया पार।

भरे खोंचका डबरा टिपटिप,खुशी मनावत धार।।

अपन मया ला ढारत बादर,देवत छप्पर फार।

नहा खोर भुँइया हर जइसे,करत नवाँ सिंगार।।

मया लुटावत हे अगास जस,धरती ला सम्हराय।।

धरती के सिंगार करे बर......

परब हरेली नाग पंचमी, राखी तीज तिहार।

काँवरिया धर जल ला जाथे,भोले के दरबार।।

जीव जगत पानी बिन सुन्ना,सबके हे आधार।

सावन नइ होतिस सोंचव तब,जर जातिस संसार।।

बारह मास करे पावन ये,अमृत जल बरसाय।

धरती के सिंगार करे बर.......

देख घटा हरसे किसान मन,पाना कस उलहोय।

डेना अपन पसार मयूरा,नाचैं बन खुश होय।।

रात गहिर बादर करियावय,तस बिरही मन रोय।

जरय देह हा अगिन बरोबर, प्रिय के सुध मा खोय।।

भींजत सुरता मा अँखिया हर,हिरदे ला सुलगाय।

धरती के सिंगार करे बर......

भाठा डोली धरसा परिया,हरा भरा बन बाग।

चले बियासी थरहा रोपँय,सुग्घर आये पाग।।

चढ़े ढ़ेखरा तूमा रखिया, आनीबानी साग।

जरी जोंधरी चेंच अमारी, बखरी के बड़ भाग।।

फरे करेला कुँदरू गलका,खीरा मन ललचाय।

धरती के सिंगार करे बर.......।।

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_चौपाई छंद(असाढ़ के महिना)_

बादर ऊपर बादर भागे। अब असाढ़ के महिना आगे।।

धरके रापा झँउहा भइया। खेत चलव नाँगर जोतइया।।

घड़ घिड़ घुड़ घुड़ गरजे बादर। भुइयाँ ओढ़े हरियर चादर।

अरा तता के तान सुनाथे। खेत खार अब्बड़ मन भाथे।।

मेड़ पार कर के छोलाई। खेत खार के करव सफाई।।

खातू कचरा ला बगरा लव। बीज-भात सब ला जुरिया लव।।

खेत खार रदबद जोताही। सहीं समय बीज बुँआही।।

लइहा रोपा धान लगाबो। तभे फसल भी बढ़िया पाबो।। 

✍️अनिल सलाम

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दोहा छन्द गीत - चउमास ()

आगे हे चउमास हा , सुन लव संगी बात ।

करिया बादर छाय हे , होही अब बरसात ।।

परवा - छानी ला बने , ढाॅंकव मीत - मितान ।

पानी घर मा झन चुहय , झन होवय नुकसान ।।

घर - ऑंगन महकत रहय , बनके गा परिजात ।

आगे हे चउमास हा , सुन लव संगी बात ।।

काॅंटा खूॅंटी ला बिनव , जतनव खेती - खार ।

घुरुवा खातू ला बिछव , होथे पैदावार ।।

भुइयाॅं के सेवा करव , मिलही गा सौगात ।

आगे हे चउमास हा , सुन लव संगी बात ।।

करगा बदरा झन रहय , लेवव छाॅंट - निमार ।

उपचारित गा बीज हा , नइ जावय बेकार ।।

नाॅंगर बइला फाॅंद के , कर लेवव शुरुआत ।

आगे हे चउमास हा , सुन लव संगी बात ।।

दाई मन के नाॅंव मा , एक लगावव पेड़ ।

सुख के मिलही छाॅंव हा , सुग्घर दिखही मेड़ ।।

ये जिनगी के चार दिन , होथे दिन अउ रात ।।

आगे हे चउमास हा , सुन लव संगी बात ।।

आगी पानी अउ हवा , इही हमर भगवान ।

देथे शुभ आशीष ला , झन राहव अनजान ।।

मिहनत के रोटी मिलय , खावव ताते - तात ।

आगे हे चउमास हा , सुन लव संगी बात ।।

✍️छन्दकार 🙏

ओम प्रकाश पात्रे 'ओम '

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 बरसात--- दोहा छंद

सुग्घर पुरवाई चलय,  मारय पवन झकोर।

आवय जब बरसात हा, होवय अब्बड़ शोर।।

करिया बादर हा बने,  पानी ला बरसाय।

बरसत पानी देख के, सबके मन हरियाय।।

जावँय खेत किसान मन, नाँगर बइला साज।

भूख प्यास सहिके करँय, अपन किसानी काज।।

धनहा- डोली खार मा, बोवँय सुग्घर धान।

करँय आस बरसात के, दुलरू हमर किसान।।

हरियर कांदी बँद उगय, धरसा टिकरा पार।

नदिया-नरवा मा चलय, खल-खल पानी धार।।

सोंध- सोंध माटी बने,  गजबे के ममहाय। 

साँप-बिछी फिफरा घलो, अब्बड़ के इतराय।।

नवा बहुरिया कस दिखय, सुग्घर खेती खार।

बरखा  रानी  हा  फिरय,  बनके खेवनहार।।

मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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चौपाई

चौमासा के चार महीना। तँय बोहाले घात पछीना।।

भुँइया ला जब तँय हरियाबे। तब किसान असली कहिलाबे।।

चला छोड़ के सुस्ती जाँगर। अपन खेत मा ले जा नाँगर।।

फरफर जब नाँगर हर चलही। ये भुँइया तब सोन उगलही।।

छींत खेत मा बीजा भइया। खुश हो जाही धरती मइया।।

मेंड़ बाँध ले पानी भरही। तोर फसल ले दुनिया तरही।।

मिहनत हा नइ जावय जुच्छा। वो फर देथें गुच्छा-गुच्छा।।

मन ला भाही अइसे पीका। ओकर आगू हें सब फीका।।

नवा फसल हा जब लहराही। डोली के शोभा बढ़ जाही।।

मिलही तोला नीक खजाना। दिखहीं मोती कस हर दाना।।

ऊपरवाला देही पानी। तँय हा कर ले बने किसानी।

कमती के करथे भरपाई। चौमासा होथे सुखदाई।।

श्लेष चन्द्राकर

महासमुंद

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 बादर-

बादर ऊपर बादर रेंगत, ये घन बादर जावत हे कति।

सेत सजे लुगरा पहिरे कस, कोन समावत मोर हृदे मति।

कोन गिरावत हे बिजुरी मन, ये पुरवा बँहकावत हे अति।

इंदर चाल चले अस लागत, अंतस ला जस मोहत हे रति।।

सवैया किरीट 

बलराम चंद्राकर भिलाई

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 चौमास

छन्न पकैया छंद

छन्न पकैया-छन्न पकैया,देखव बरखा आगे।

खुशी मातगे चारो खूंटा,भुँइया घलो जुड़ागे।।

छन्न पकैया-छन्न पकैया, बरखा ऋतु के आए।

धरती के छाती ह जुड़ाथे, सबके मन हर्षाए।।

छन्न पकैया-छन्न पकैया, झूम के आवय बादर।

ताते चीला गजब मिठाथे, अउ भाथे अंगाकर।।

छन्न पकैया-छन्न पकैया,बारिश मा चल खेली।

सब तिहार अब आही भइया,पोरा तीज हरेली।।

- नीलम जायसवाल, भिलाई  -

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 चौमास 

(हरिगीतिका छंद )

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चौमास ए सउँहे कसौटी काम के अउ प्रीत के।

कमियाँ करँय खेती लिखँय किस्सा बिपत ले जीत के।।

बिरहिन मया के दँय परीक्षा राह देखत मीत के।

चौमास के बेरा हरय सुख-दुख भरे हर गीत के।।

दीपक निषाद--लाटा (बेमेतरा)

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 पुरुषोत्तम ठेठवार चौमास

   (रोला छंद)

आगे गा चौमास, साज लव खपरा छानी ।

बादर गरजे जोर,झमाझम बरसे पानी ।।

निकले बिच्छू साॅंप,मेचका टर-टर बोले ।

रथिया लागे काल,लगे डर जियरा डो़ले।।

आये मास अषाढ़,गाॅंव मा रथ सब साजें।

जगन्नाथ बलराम, सुभद्रा रथ म विराजें।।

छोटे छोटे पेड़,उगे धरती मा सुग्घर।

नाॅंगर जोतय खेत,किसनहा बनके बज्जर ।।

होके मगन किसान,चेतहा करे किसानी ।

बोंय खेत मा धान,करम ले करे मितानी ।।

गाॅंय ददरिया गीत, सुनाये बाॅंधे पागा ।

घरती के भगवान, बिपत मा लेवय लागा ।।

मारे नदी उफान, अबड़ तरिया इतराये ।

वन मा नाचे मोर, पाॅंख‌ सुग्घर बगराये।

मुर्रा चना मिठाय, बने बरसाती बेरा ।

धमना मुसवा लोभ ,घरोघर डारे डेरा।।

सेमी मखना बीज,लगावय दाई बारी।

बबा बनावय पार,धरे हे हाथ कुदारी।।

बरसा मुसलाधार,बहावय पानी ओरी।

कीरा बड़खा छोट,निकलथे कोरी कोरी।।

सावन बाढे़ धान,किसनहा करे बियासी ।

   बइठे खेती पार, खाय वो चटनी बासी।।

सावन के सम्मार,कॅंवरिहा बोले बम बम।

परब हरेली मान, किसानी बूता हे कम।।

पावन सावन मास,हरेली राखी आये।

बहिनी राखी बाॅंध, मया अब्बड़ बगराये।।

सावन खेती खार,लगे जस हरियर जंगल ।

देखय खेत किसान,कहे अब होही मंगल ।।

बरसे पानी पोठ,मास भादों जब आये।

बाढे़ लंबा धान,हवा मा झूमे गाये ।।

किशन जनम शुभ आय,विराजे गणपति देवा।

होवय पूजा पाठ,करें गणपति के सेवा।।

महिना आय कुवाॅंर धान म सोनहा बाली ।

बादर सुरुज लुकाय, कभू बगराये लाली ।।

शारदीय नवरात, क्वाॅंर मा सबो मनायें।

परब दशहरा लोग, मनाके नाचें गायें ।।

फूले काॅंशी फूल,बुढा़ये बरसा जानौं ।

बितगे हे चौमास,शरद अब आही मानौं ।।

लूवव छोटे धान,धार हसिया मा भाई ।

मिहनत के फल मीठ, बिना मिहनत करलाई ।।

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कुंडलिया 

कुंडलिया... 

आगे बरसा झूम के, जामे लागिन धान |

सुन के हमर पुकार ला, लाज़ रखे भगवान ||

लाज़ रखे भगवान, भेज के अमरित पानी |

मोती कस मन भाय, ढूल के खपरा छानी ||

हरियर हरियर खेत, देख के मन हरसागे |

बाढ़े हावय काम, झूम के बरसा आगे ||

खेती के बड़ शोर हे, बुता काम मन भाय। 

बासी पानी जोर के, बिहना ले सब आय।। 

बिहना ले सब आय, चेत लगाके कमाथे। 

होय जब मंझनिया, मेड़ मा जाके  खाथे।। 

आनी बानी गीत, सुने बर आजा ऐती। 

सुख दुःख के आधार,सार हे  सबके खेती।।

मोहन कबीरपंथी

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संगीता वर्मा, भिलाई मंदिरा सवैया 

छावत हे घनघोर घटा बदरा बरसा धर आवत हे।

प्यास बुझे जन जीवन के भुइयाँ कतका अकुलावत हे।

जंगल मा अउ मोर तको अब पाँख बने फइलावत हे।

होय जभे बरसा जमके तब झींगुर राग लमावत हे।

संगीता वर्मा 

भिलाई

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 चौमासा (सार छंद)

कब आही चौमासा कहिके उपर डहर नीहारे

गरमी जेठ बइसाख के जब मनखे ला तप डारे।

चौमासा आये के पहिली छानी अपन सवारे

खेत खार के कांटा खूँटी किसान हा चतवारे।

छेना लकड़ी धरे सइँत के कोठा भूषा पैरा

नागर धरके पहट निकलथे गांव के कका भैरा।

चौमासा मा हरियर हरियर भुइँया चारो कोती

धरती दाई लुगरा पहिरे  अकास पहिरे धोती।

धान लगे हे खेत खार मा तुमा करेला बारी

जतन करे खीरा कुम्हड़ा के घर के सब नरनारी।

तरिया नरवा डबरी खचका  पानी मा भर जाथे

भूख प्यास तरसे मनखे के जइसे जीव जुड़ाथे।

चौमासा मा भक्ति भाव मा मनखे सब लगजाथे

शिव गणेश दुर्गा माता के सेवा अबड़ बजाथे।

हीरालाल साहू "समय"

छुरा जिला गरियाबंद

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छंद पकैया

बरसा

छन्न पकैया छन्न पकैया, आगे बरखा रानी।

झरझर सरसर नाचत झूमत, लेके आगे पानी।। 

छन्न पकैया छन्न पकैया, करिया बादर आगे।

बिजली चमके पानी गिरगे, धरती अब हरियागे।। 

छन्न पकैया छन्न पकैया, कलकल नरवा करथे।

खचवा डबरा भरगे पानी, झरझर झरना झरथे।। 

छन्न पकैया छन्न पकैया, सबो जीव तर जाथें।

पानी गिरथे धरती मा जब, अब्बड़ सुख सब पाथें।। 

छन्न पकैया छन्न पकैया, बाँधौ संगी नरवा।

आगे हवय किसानी के दिन, रोकव छेकव गरवा।।

अनुज छत्तीसगढ़िया

पाली जिला-कोरबा

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कुंडलिया... 

आगे बरसा झूम के, जामे लागिस धान |

सुन के हमर पुकार ला, लाज़ रखे भगवान ||

लाज़ रखे भगवान, भेज के अमरित पानी |

मोती कस मन भाय, ढूल के खपरा छानी ||

हरियर हरियर खेत, देख के मन हरसागे |

बाढ़े हावय काम, झूम के बरसा आगे ||

खेती के बड़ शोर हे, बुता काम मन भाय। 

बासी पानी जोर के, बिहना ले वो आय।। 

बिहना ले वो आय, कमाथे चेत लगाके । 

खरे मंझनिया रोज, मेड़ मा खाथे जाके।। 

आनी बानी गीत, सुने बर आजा ऐती। 

सुख दुःख के आधार,सार हे  सबके खेती।।

सूर्यकांत गुप्ता

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

आल्हा छंद

हमर ममादाई हर जइसे, देखय आवत हे

चउमास।

करे लगय तैयारी भिड़के, साग दार जोरे के खास।।

गरमी भर वो लगय सुखोए, काट काट के कइ ठन साग।

बरी बिजौरी घलो बनावय, जाॅंगर पेरय रतिहा जाग।।

माटी के घर छान्ही खपरा, रहय छवाए तेला जान।

कूद कूद के ओकर ऊपर, करॅंय बेंदरन बड़ नुकसान।।

गरजत घुमड़त आवय बादर, रद रद रद रद  बरसय जान।

फूटे खपरा चूहय छान्ही, होवन हम कतका हलकान।।

हॅंउला गंजी घलो बालटी, जघा जघा हम रखन

मितान।

छान्ही ले चुचुवावत पानी, इन बरतन मा जोरत जान।।

बंद होय बरसात तॅंहा ले, छेदा छान्ही के मुॅंदवान।

बीतय जी चउमास अइसने, एकर कतका करौं बखान।।

सूर्यकांत गुप्ता, जुनवानी, भिलाई (छत्तीसगढ़)

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 दोहा-चौमास

कीरा मन चौमास मा,निकले होवत रात।

खाथे उनला टेटका,जइसे सरना भात।।

आथे घर मा बेंगवा,का उनला अधिकार।

लगथे ओमन पोसवा,करे दुवारी पार।।

बादर पानी देख के,कुलकय हमर किसान।

गिरही पानी खेत मा,उपजाहीं जी धान।।

नाँगर बइला फाँद के,जोतय खेत किसान।

पालय सबके पेट ला,उपज बढ़ावत धान।।

हरियर साड़ी ओढ़ के,धरती हे मुस्कात।

पानी हा अड़बड़ गिरे,प्रेम गीत ला गात।।

राजकिशोर धिरही

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

चौमास 

कुंडलिया... 

आगे बरसा झूम के, जामे लागिस धान |

सुन के हमर पुकार ला, लाज़ रखे भगवान ||

लाज़ रखे भगवान, भेज के अमरित पानी |

मोती कस मन भाय, ढूल के खपरा छानी ||

हरियर हरियर खेत, देख के मन हरसागे |

बाढ़े हावय काम, झूम के बरसा आगे ||

खेती के बड़ शोर हे, बुता काम मन भाय। 

बासी पानी जोर के, बिहना ले वो आय।। 

बिहना ले वो आय, कमाथे चेत लगाके । 

खरे मंझनिया रोज, मेड़ मा खाथे जाके।। 

आनी बानी गीत, सुने बर आजा ऐती। 

जिनगी के आधार,सार हे  सबके खेती।।

मोहन कबीरपंथी

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 कौशल साहू कुंडलिया छंद

बेरा हे चौमास के, जागव मोर किसान।

तुँहर जगे ले जागही, खेत खार खलिहान।।

खेत खार खलिहान, उगलही सोना दाना।

परमारथ बर काज, उठा लव श्रम के बाना।।

घर -घर सुख बरसात , बरसही सबके डेरा।

कौशल कहना मान, सुते के नोहय बेरा।।

कौशल कुमार साहू

सुहेला (फरहदा)

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विधा- ताटंक छंद

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करिया-करिया बादर छाये, पोठ दमोरत हे पानी।

खोर-गली मा चिखला माते, चुहत हवय परवा छानी।।

सरर-सरर पुरवा झकझोरे, झूमत हे डारा-पाना।

टरर-टरर भिंदोल करत हे, झींगुर गावत हे गाना।

नागर बइला धरे किसनहा, गुरतुर बोलत हे बानी।

खोर-गली मा चिखला माते, चुहत हवय परवा छानी।।

कांदी-कचरा झाड़-झड़उखा, रुखराई हरियागे हे।

नदिया-नरवा उछला भागत, सब म जवानी आगे हे।

प्यास बुझा गे ये भुइयाँ के, बरसत हे बदरा दानी।

खोर-गली मा चिखला माते, चुहत हवय परवा छानी।।

चलव हमूँ मन जुरमिल कर लन, स्वागत ये चउमासा के।

भुइयाँ मा बो लेथँन बिजहा, खुशियाली के आसा के।

पेड़ लगाबो पेड़ बचाबो, सज जाही धरती रानी।

खोर-गली मा चिखला माते, चुहत हवय परवा छानी।।

      डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"

        भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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 सार छंद - चौमास 

रझरझ रझरझ बरसे पानी,सबके सुसी बुतावै।

ये असाढ़ के महिना संगी,सबके मन ला भावै।

चमचम चमचम बिजली चमके, गड़गड़ बादर बाजे।

हड़बड़ हड़बड़ लोगन जम्मो,छानी परवा साजे।

करे तियारी बोनी के सब,बिजहा भतहा लावै।

ये असाढ़ के महिना संगी, सबके मन ला भावै।

ओढ़े लोगन छत्ता खुमरी,रंग बिरंगी मोरा।

महर महर ममहावय संगी,धरती मांँ के कोरा।

बना बना कागज के डोंगी,लइकन गजब चलावै।

ये असाढ़ के महिना संगी,सबके मन ला भावै।

खेत खार अउ नदिया नरवा,मारे पल्ला भागे।

जंगल झाड़ी चारो कोती,अड़बड़ सुग्घर लागे।

बनिहारिन मन तान मार के,सुवा ददरिया गावै।

ये असाढ़ के महिना संगी, सबके मन ला भावै।

अमृत दास साहू 

ग्राम - कलकसा, डोंगरगढ़ 

जिला - राजनांदगांव (छ.ग.)

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गीतिका छन्द गीत

चौमास

   

एक पौधा तँय लगाले आय दिन चौमास के।

पुन्य भैया तँय कमाले आज खुल-खुल हाँस के।।

छाँव देही पेड़ हा फर फूल देही साथ मा।

जस लिखा जाही बने गा तोर पावन हाथ मा।।

रोज देही शुद्ध पुरवाई दवाई साँस के।

एक पौधा तँय लगाले आय दिन चौमास के।।

देख सौ बेटा बरोबर पेड़ होथे जान ले।

हाँ तहूँ बेटा अपन गा आज एला मान ले।।

तोर जिनगानी रही गा रात-दिन उल्लास के।

एक पौधा तँय लगाले आय दिन चौमास के।।

डी.पी.लहरे'मौज'

कवर्धा छत्तीसगढ़

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 गीतिका छन्द- चौमास

हे बखत चौमास के अब, जाग हलधर जाग तँय।

खाँध नाँगर थाम लेना, अउ जगा ले भाग तँय।।

पेट जग के तँय भरे बर, कर किसानी काम ला।

कर अमर छत्तीसगढ़ के, विश्व मा अब नाम ला।।

ये धरा हा देश मा तो, हे कटोरा धान के।

होय पूजा कर्म के अउ, पर भलाई दान के।।

श्रम कभू झन जाय बिरथा, बात रख ले ध्यान तँय।

नाम हलधर ला सँजो ले, पात रह नित मान तँय।।

माथ ले टपके पसीना, श्रम शिखर बन बूँद जी।

आय बिपदा कष्ट कतको, पाँव मा तँय खूँद जी।।

जय विजय हो तोर जग मा, दूर भागय हार हा।

तोर जयकारा करत हे, देख ले संसार हा।।

✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 

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 ज्ञानू कवि छंद - विष्णुप्रद 

कहाँ भुलाये हावव संगी, अब तो चेत करौ|

खड़े अषाढ़ दुवारी मा हे, चातर खेत करौ ||

फूटे होही बने देख लौ, मूही पार घलो|

जलदा, भाठा, संग बाहरा, खेत कछार घलो||

काँटा- खूँटी बगरे होही, बने सकेल उहू |

बरस जही का हवय दिखावत, बादर आज टुहू ||

छानी- परवा टमर- टपर ले, बाँध झिपार घलो |

खातू- माटी, बीज- भात बर, जा बाजार घलो ||

एक कमाथे घर के बेटा, अउ बइला घर के |

बइठे हावस काबर चुप तंय, मूड़ी ला धर के ||

नइये बेरा देखें के अब, आलस छोड़व जी |

तुमन कभू कोनों मेहनत ले, मुँह झन मोड़व जी ||

ज्ञानु

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चउमास-दोहा छंद

झर झर पानी हा गिरै, लगगे अब चउमास।

धरती हा हरियर दिखै, करिया दिखै अगास।।

छाता खुमरी ओढ़ के, जावै खेत किसान।

जोड़ा बइला संग मा, जइसे रहे मितान।।

बादर गरजे जोर से, जी हा डर डर जाय।

टर टर टर टर बेंगवा, अलगे राग लमाय।।

गरी धरे गरिहार मन, घूमै तरिया पार।

जीमी कांदा बाढ़गे, छछलै मखना नार।।

चिखला हे चारों मुड़ा, रनभन माते खोर।

कुरिया मा पानी भरे, अइसन गत हे मोर।।

रीझे यादव टेंगनाबासा 

सत्र-

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     चौपाई छन्द🙏🙏

उमड़ घुमड़ के बादर छागे। देखव जी चौमासा आगे।।

 खेत खार के संग मितानी। आवव करबो रोज किसानी।। 

खेती करत ददरिया गाबो। जग मा दया मया बगराबो।। 

मिहनत के सोना उपजाबो। धरम करम के जोत जलाबो।।

करबो जाँगर तोड़ किसानी। धरती दाई होही धानी।।

मेड़ पार मा पेड़ लगाबो। धरती के कोरा हरियाबो।।

हवा साँस बर सफ्फा पाबो। सबके जिनगी ला महकाबो।।

सब ला मिलही दाना पानी। तभे सुखी रइही जिनगानी।।

         

        छन्द साधक सत्र-

          जगन्नाथ ध्रुव

 चण्डी मंदिर घुँचापाली बागबाहरा

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 सुखदेव चौमास- सरसी छन्द

जामे उलहे अउ बाढ़े के, सब ला आस पियास।

इही पियास आस बर आथे, पानी धर चौमास।

सहज कहाँ चौमास भेंटबो, घाँस रहन के बाँस।

घाम चैत बैसाख जेठ के, सहना परही हाँस।

हदराहा मनखे होगे के, चुचकाहा चौमास।

महानदी अस नदी मरत हे, भर असाढ़ मा प्यास।

चार महीना चौमासा भर, खेते खटत किसान।

अनदाता ए उपजाना हे, कोदो कुटकी धान।

चौमासा के नाँव फभा गय, सगरो हाट-बजार।

आखिर मा हम भर बाँचे हन, अन किसान बनिहार।

- सुखदेव सिंह "अहिलेश्वर" 

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 दोहा 

करिया बादर छाय हे,होवत हे बरसात।

चमचम चम बिजली करे,गजब कहर बरपात।।

नदिया नरवा ढोंड़गी,भागे पल्ला मार।

भरगे हावय देख लो,जम्मो खेती खार।।

नांगर बइला फांद के,जावय खेत किसान।

खातू कचरा डार के,बोंवत हावय धान।।

हरियर हरियर खेत हे, सबके मन ला भाय।

आगे अषाढ़ माह हा,मन मा खुसी समाय।।

                ओमप्रकाश साहू अंकुर 

                सुरगी, राजनांदगांव

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जयकारी छंद

चौमासा

सुख - दुख धरे आय चौमास, कहूँ खुशी हे कहूँ उदास।।

बिरहिन मन के बाढ़े प्यास, नदिया मन तोड़ँय उपवास।। 

धरती के होवय सिंगार,  नाचन लागे खेती खार।।

बादर बिजली मन हे संग, इंद्रधनुष के छाए रंग।।

बजे नगाड़ा मगन अगास, इंद्रपुरी में हे उल्लास।

नाचत - नाचत बिजली जाय ,शोर करत बदरा परघाय।।

ऋषि मुनि मन संयम सिखलाँय, चतुर्मास के नियम बताँय।

जिव्हा ला बरजय रस स्वाद, रोग करय झन तन बरबाद।।

सुख के बोनी करय किसान , झिंगुरा मन सब छेड़ँय तान।।

बत्तर कीरा मन बउराँय , गाड़ा - गाड़ा कुटुंब बुलाँय ।।

वरुण देव करजा लहुटाय, भरे समुंदर हा मुसकाय।

बिछे बिछौना हरियर रंग, जग के मन मा भरे उमंग।।

बीमारी मन जबरन आँय, खुसर - खुसर के जगह बनाँय।

पानी तक अति गारी खाय, भले बाद मा अबड़ पुजाय।।

करँय बैठकी परब तिहार , खुशी मगन के जोड़े तार।

 बनके सुख पहुना मन आँय, चौमासा के घर सकलाँय।।

कैलाशी शिव के परिवार, मतवाली गंगा के धार।

आए जगत करे उद्धार, चौमासा बर ये उपकार।।

आशा देशमुख

सत्र साधिका

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 कुण्डलिया छंद

(बरसात)

बड़ सुन्दर बरसात हा,सबके मन ला भाय।

हरियर धरती देख के,मन ला बड़ हर्षाय।।

मन ला बड़ हर्षाय,भरे सब  डबरी तरिया।

भाजी सब्जी धान ,खेत छूटय ना परिया।।

नदिया नरवा बाढ़,हूबहू लगय समुन्दर।

गरमी लगे न ठंड,लगे तन मन बड़ सुन्दर।।

संतोष कुमार साहू

जामगांव(फिंगेश्वर)

सत्र 

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 छंद कुण्डलिया

अड़बड़ पानी हे गिरत, का होही भगवान। 

खेत खार पानी भरे, निकलत हाबय प्रान ।।

निकलत हाबय प्रान, देख के पानी भारी ।

होवत हे नुकसान, करॅंव मॅंय का सॅंगवारी ।।

चूरत हाबय जीव, होत हे भारी गड़बड़ ।

भरें टमाटम खार, गिरत हे पानी अड़बड़।।

 संजय देवांगन सिमगा 

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 सार छंद-बरखा रानी

मोर अंगना मा नाचत हे, छमछम बरखा रानी।

सूपा धार रिकोवत हावय, बनके बादर दानी।।

मगन मेचका टर्रावत हे, मंत्र पढ़त जस ज्ञानी।

बिरही नयना टपके जइसे, चूहत परवा छानी।।

धरती के कोरा पिकियावत, बीजा आनीबानी।

मोर अंगना मा नाचत हे.......

लुहुर लुहुर पिटपिटी असढ़िहा, गिंजरत बन दीवानी।

दाढ़ा टांग केकरा नाचय, मारत गजब फुटानी।।

घोंघा मेछा टेंड़े बइठे, मुँही पार मनमानी।

गेंगरुवा हर खसलत रेंगय, लगथे आय सियानी।।

गरजे बादर लागय कोनो, हाँसत हे अभिमानी।

मोर अंगना मा नाचत हे.......

खोर गली मा चिखला माते, माते सबो परानी।

छल छल छलकय डोली धरसा, धरती लगे सुहानी।।

गाय ददरिया बनिहारिन मन, कहिथे बबा कहानी।

चौमासा के रंग देखके, होगे मन हर धानी।।

असो बरसबे जमके बादर, तोरे आस किसानी।

मोर अंगना मा नाचत हे.......

नारायण प्रसाद वर्मा 

ढ़ाबा-भिंभौरी, बेमेतरा सत्र

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गजराज महंत चौपाई छंद 

" चौमासा "

आथे मौसम जब चौमासा,

सुग्घर दिखथे रोज अगासा।

काजर आॅंजे घिरके बादर,

घुमड़ बजाथे जमके माॅंदर।

बरसत पानी गीत सुनाथे,

झूम झूम रुख राई गाथे।

धरती दाई प्यास बुझाथे,

नदिया नरवा के मन भाथे।

लइका कागज नाव चलाथें,

तरिया मा मछरी चढ़वाथें।

गेड़ी मच-मच नाच नचाथें,

खा के जामुन डार नवाथें।

करथे जी भर खेत सॅंवागा,

जइसे दूल्हा बाॅंधै पागा।

जोड़ मया के तागा-तागा,

प्रकृति बनाथे सुग्घर झाॅंगा।

गाय बछरु के गर मा माला,

बाॅंधै साजै कुलकत ग्वाला।

जाथे जइसे खेत किसनहा,

मानत मंदिर घर देवाला।

तीजा मा बहिनी सकलाथें,

कका बबा घर बासी खाथें।

शंकर महिमा गा इतराथें,

अपन पिया बर नेक मनाथें।

पीतर सुरता चढ़ा कलेवा,

बरा फरा सोंहारी मेवा।

जइसे सावन शंकर सेवा,

मानै भादो गणपति देवा।

                गजराज दास महंत 

                      भिलाई

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 लावणी छन्द गीत - करिया बादर ()

घुमड़ - घुमड़ के करिया बादर, पानी ला बरसावत हे ।

तरिया नदिया नरवा मन हा, जग के प्यास बुझावत हे ।।

हरियर - हरियर खेत - खार हा, लागत हे मनभावन जी ।

दया - मया ला मन मा राखव,  समझावत हे सावन जी ।।

रुख मा बइठे चिरई - चिरगुन, सुग्घर गीत सुनावत हे ।

घुमड़ - घुमड़ के करिया बादर, पानी ला बरसावत हे ।।

कोरी - कोरी मेंढक मन हा, टरर - टरर टर्रावय जी ।

बतर किरी मन घर - घर जाके, पक्की बात बतावय जी ।।

नाॅंगर बइला धरे किसनहा, बहरा डोली जावत हे ।

घुमड़ - घुमड़ के करिया बादर, पानी ला बरसावत हे ।।

बन मा नाचय मोर - पपीहा, कारी कोयल कुहकय जी ।

सरर - सरर पुरवाही चलथे, भॅंवरा रस ला चुहकय जी ।।

चंदन के जइसे माटी हा, महर - महर ममहावत हे ।

घुमड़ - घुमड़ के करिया बादर,  पानी ला बरसावत हे ।।

✍️छन्दकार , गीतकार🙏

 ओम प्रकाश पात्रे 'ओम '

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 सार छन्द ।। चौमासा।।

उमड़ घुमड़ के गरजे बादर, गिरे झमाझम पानी।

दिन आगे अब चौमासा के, हवा चले मस्तानी।।

महिना आषाढ़ बतर माते,सावन होय बियासी।

खेत किसनहा जोतय नागर ,लाय किसनहिन बासी।।

भादो भरगे तरिया डबरा, छलके नदिया नरवा।

झर-झर झर-झर झड़ी करे जब,चूहय छानी परवा।।

टरर-टरर मेंढक नरियावय, झिँगुरा गावय गाना।

नाचे बरखा देख मयूरी, मौसम लगे सुहाना।।

महिना लगे कुँवार चलै तब,सुरुर-सुरुर पुरवईया।

शीत काल के होय आगमन,इही मेर ले भइया।।

     - गुमान प्रसाद साहू

समोदा  (महानदी), रायपुर

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 दोहा

विषय..........बादर

अँगरा बरसत हे कतुक, बादर बड़ डरवाय।

बिरहन बैठे आस मा, तड़पत मन भकुवाय।।

फाटे धरती देखके, काँपय नभ अकुलाय।

गरजय बरसय पोठ के, मया अबड़ बरसाय।।

बरसा के पानी सुघर, रिमझिम -रिमझिम आय।

बूंदा मन टपकत हवै, मनखे प्यास बुझाय।।

भरे तलातल ताल हा, नरवा पूरा आय।

खुशी पेड़ के देखलौ, हाल-डोल मुस्काय।।

सुख के गगरी अस भरै, भरै खेत खलिहान।

पेट भरै मनखे तरै, होय जगत कल्यान।।

पानीं बूंदा देखके, लहकत जाय किसान।

नाँगर बैला फाँदके, धरे तुतारी शान।।

धनेश्वरी सोनी 'गुल' ✍️

बिलासपुर

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 खेती किसानी--- गंगोदक सवैया 

देख आगे किसानी चलै जी बने काम बूता इहाँ बोय हे धान गा। 

खेत बारी लगावै सबो जोतके ये किसानी हवै ओखरे जान गा।।

रोज के खेत जाके करै गा किसानी इही हा हवै देख ईमान गा।

आस ला जोर के धान कोदो उगावै गहूँ सोनहा देश के शान गा।।

मुकेश उइके "मयारू

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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_चौपई छंद(जयकारी छंद)_

किसान

जय होवय गा मोर किसान।

जिनगी हे गा तोर महान।।

नाँगर बइला ला तैं जोर।

खेत डहर चल होगे भोर।।

खेत खार के करे धियान।

कोदो कुटकी बोंवय धान।

कीमत धोधा मोधा पाय।

तभो कभू तैं नइ खिसयाय।।

सच्चा हस माटी के पूत।

माटी सेवा तोर सबूत।।

सबके हित बर करथस काम।

इही तोर बर चारो धाम।।

✍️अनिल सलाम

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 दोहा 

काला लिखहूँ साध के, काकर सूरत भाय। 

मिलै सबो झन हाँस के, अंतस हे गुमखाय। ।

थपकी दे के पीठ ला, ढाँढस बाँधय कोन।

धृष्ठराष्ट के राज मा, भीष्म साध लिस मौन।।

मन घट हे अमरित भरे, कभू रिक्त न होय।

प्रेम बूँद टिप-टिप गिरे, मन मानस हे सोय। ।

सुमित्रा शिशिर

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 महाभुजंग प्रयात सवैया 

×

पानी 

गिरै बूंद भारी इहाँ आज पानी नदी खोचका ताल बाँधा भराये।

कुदैं मेचका पीच ले देख पानी लगै आज वोहा तिहारे मनाये।

दिखै खेत-खारे तलैया ग जैसे बियासी घलो कोन इहाँ कराये।

लगे ठाड़ बेरा कुबेरा रितोये कहाँ थोरको बेर पानी थिराये।

कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

 कटंगी-गंडई 

सत्र-

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 लावणी छन्द गीत - करिया बादर ()

घुमड़ - घुमड़ के करिया बादर, पानी ला बरसावत हे ।

तरिया नदिया नरवा मन हा, जग के प्यास बुझावत हे ।।

हरियर - हरियर खेत - खार हा, लागत हे मनभावन जी ।

दया - मया ला मन मा राखव,  समझावत हे सावन जी ।।

रुख मा बइठे चिरई - चिरगुन, सुग्घर गीत सुनावत हे ।

घुमड़ - घुमड़ के करिया बादर, पानी ला बरसावत हे ।।

कोरी - कोरी मेंढक मन हा, टरर - टरर टर्रावॅंय जी ।

बतर किरी मन घर - घर जाके, पक्की बात बतावॅंय जी ।।

नाॅंगर बइला धरे किसनहा, बहरा डोली जावत हे ।

घुमड़ - घुमड़ के करिया बादर, पानी ला बरसावत हे ।।

बन मा नाचय मोर - पपीहा, कारी कोयल कुहकय जी ।

सरर - सरर पुरवाही चलथे, भॅंवरा रस ला चुहकय जी ।।

चंदन के जइसे माटी हा, महर - महर ममहावत हे ।

घुमड़ - घुमड़ के करिया बादर,  पानी ला बरसावत हे ।।

✍️छन्दकार , गीतकार🙏

 ओम प्रकाश पात्रे 'ओम '

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 कुकुभ छंद  पदांत 

               चउमासा 

चउमासा मा पहिली जइसे, अब कहाँ बरसथे पानी।

झड़ी लगै असाढ़ सावन के, अब जुन्ना एक कहानी।।

बाढ़त हावय गर्मी अब्बड़, बिकट कटावत रुख राई।

देह करय बड़ चिपचिप-चिपचिप, नइ चलय पवन पुरवाई।।

धीरे  आथे  बरखा  रानी, तपन  भरे  हे  जिनगानी।

चउमासा मा पहिली जइसे, अब कहाँ बरसथे पानी।

बोनी करके  बादर कोती, सब किसान आस लगावै।

धरती  दाई  के  कोरा  मा, बाँवत  के  धान  भतावै।।

कइसे होय बियासी भइया, रोपा  के  संग  किसानी।

चउमासा मा पहिली जइसे, अब कहाँ बरसथे पानी।

रचनाकार

डॉ पद्‌मा साहू पर्वणी खैरागढ़

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दोहा 

       चौमास 

करिया बादर छाय हे,होवत हे बरसात।

चमचम चम बिजली करे,गजब कहर बरपात।।

नदिया नरवा ढोंड़गी,भागे पल्ला मार।

भरगे हावय देख लो,जम्मो खेती खार।।

नांगर बइला फांद के,जावय खेत किसान।

खातू कचरा डार के,बोंवत हावय धान।।

हरियर हरियर खेत हे, सबके मन ला भाय।

आगे अब चौमास हा,मन मा खुसी समाय।।

                ओमप्रकाश साहू अंकुर 

                सुरगी, राजनांदगांव

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 कुंडलिया छंद

बेरा हे चौमास के,करिया बदरा छाय।

झिमिर झिमिर अब रोज के,रहि रहि पानी आय।।

रहि रहि पानी आय,बाढ़ नदिया मा आगे।।

मेड़ मुँही ला फोड़,सबो तन पानी भागे।।

घटा टोप घनघोर,छाय हावै अंधेरा।।

लगत हवै बड़ नीक,हमन ला ये दिन बेरा।।

रमेश कुमार मंडावी

राजनांदगांव

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कुंडलिया छंद

चौमास 

आगे हे चौमास हर, नाँगर-बइला साज। 

बेटा हवस किसान के, खेती के कर काज।।

खेती के कर काज, इही हावय जिनगानी।

मेड़-पार ला बाँध, गिरत हे अब्बड़ पानी।।

हरियर खेती-खार, सबो के मन ला भागे।

अब तो संगी जाग, समय खेती के आगे।।

अनुज छत्तीसगढ़िया

पाली जिला-कोरबा

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 कुण्डलियाँ छन्द  ।।चौमास।।

दिन आगे चौमास के, करिया बदरी छाय।

उमड़-घुमड़ चारो मुड़ा, सुग्घर जल बरसाय।

सुग्घर जल बरसाय, आय जब महिना सावन।

हरियर खेती खार, देख मन लगे सुहावन।

दिन लागय ना रात, करै बरसा हा छिन-छिन।

हरियाली बड़ छाय,आय चौमासा के दिन।।

- गुमान प्रसाद साहू 

- समोदा (महानदी)

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 - विष्णुप्रद 

काकी संग कका भैरा हा, छानी छावत हे |

जोखा तहूँ  मढ़ा ले भाई, बरसा आवत हे ||

साफ- सफाई, बखरी- बारी, अउ रुंधना, बँधना |

बरसा के पानी भरथे का, देख घलो अँगना ||

बाँध झिपार पलानी दे अउ, खातू ला बगरा |

बने सकेल जला ले सुग्घर, काँटा अउ कचरा ||

भाटा, मिर्चा अउ पताल के, सुग्घर दे थरहा |

फेर लगाए बर जाना हे, तोला गा परहा ||

सेमी, कुँदरू, तुमा, कोहड़ा, तीरे- तीर लगा |

चेच, अमारी, जरी- खेड़हा, ओरी - ओर जगा ||

जीमी कांदा, लगा कोचई, खाबे मन भर जी |

स्वस्थ, मस्त परिवार संग मा, रहिबे सुग्घर जी ||

ज्ञानु

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जलहरण घनाक्षरी 

टिप-टिप पानी गिरै, 

दिनभर छानी चुहै,

घुप अँधियारी देख,

छाय हे चारों डहर।

महिना तो आषाढ़ हे,

नदिया नाला बाढ़ हे,

बँधिया ढिलाय हवै,

उमिहाय हे नहर।

झिल्ली हा बोजाय हे,

भारी आफत आय हे,

गंदा कूड़ा बगरे हे,

आज शहर-शहर।

बादर बउराय हे,

नँगत घटा आय हे,

कसके कहूँ गिरही,

हो जाही भारी कहर।

कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

 कटंगी-गंडई 

 जिला केसीजी 

रचना ---

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 कुण्डलिया

आगे हे चौमास हा,धरती गय हरियाय ।

चमके बिजली जोर ले, बादर हा करियाय॥

बादर हा करियाय, झमाझम गिरगे पानी ।  

भरगे तरिया ताल,मेचका बोले बानी॥

कुलकत करत किलोल, कोकड़ा मन सब जागे।

नाँगर के सुध आय,पाग भुइयाँ के आगे॥

जुगेश कुमार बंजारे 

सत्र 

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 ।। रूप घनाक्षरी ।।

सुन मोर बात जोही , भारी बरसात होही ,

हवा धुँका पानी आही , मात जही गली गाँव ।

ईछल-बिछल जाही , जीव बड़ा दुख पाही ,

चिखला मा हे सनाही, माड़ी के जावत पाँव ।।

छानी परवा चुचवाही , चूल्हा आगी गूँगवाही ,

छेना लकड़ी खरही , जतन के राख छाँव ।

घर परछी दुवारी , झीप पानी आही भारी ,

बने बाँध दे झिपारी ,कोरे कोर आँव-जाँव ।।

     तातु राम धीवर 

भैंसबोड़ जिला धमतरी

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 चौमास रोला छंद

दिन आए चौमास, झमाझम बरसै पानी।

उफनय नदिया पार, करै अब्बड़ मनमानी।।

सूरज देव लुकाय, छाय हे बादर करिया।

गिरै मूसलाधार, लबालब भरगे तरिया।।

बाॅंबी रुदुवा संग, पढ़ेना गोठ सुनावै।

भुंडा रोहू केंउ, हाँस के मजा उड़ावै।।

टपकै पानी बूँद, उछल ये बाहिर आथें।

लुका छिपी के खेल, करैं अउ बड़ इतराथें।।

जोंक मेचका साॅंप, केकरा करै बसेरा।

किसम–किसम के जीव, नीर मा डारॅंय डेरा।।

रहिथें जम्मो संग, देख के जाव नहाए।

हटिस थोरको ध्यान, जीव संकट मा आए।।

प्रिया देवांगन  प्रियू

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राजेश निषाद ।।रोला छंद - चौमास।।

बदरा लाये देख,संग मा बरखा रानी।

बरसाही जी रोज,मेघ हा अड़बड़ पानी 

चमकय बिजली जोर, कान आँखी ह मुँदागे।

गड़गड़ गड़गड़ शोर,जिया हा धक-धक लागे।।

नाँगर बइला फाँद, खेत मा संगी जाबो।

बोंके सुग्घर धान, फसल ला हम उपजाबो।।

मिहनत लाही रंग, जभे गिरही जी पानी।

बरसा बिन हे जान,अधूरा आज किसानी।

राजेश कुमार निषाद 

रायपुर छत्तीसगढ़

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 मनहरण घनाक्षरी छंद "बरसात"

                       

आए हवै बरसात, गिरे पानी दिन रात,

किचिर काचर माते, चिखला हा गाँव मा।

चिरई हा खोजे चारा, झाँके हे बइठे डारा,

गूँजे पारा गाँव गली, कउवाँ के काँव मा।

बिला ले झाँके मुसुवा, मेंछा हे कर्रा कुसुवा,

बइठे बिलई ताके, ओइरछा के छाँव मा।

टररावत मेचका, कूदे टेड़गा पेचका,

पनही चिखला लोटे, चोरोबोरो पाँव मा।।

चले हे किसानी काम, फुरसत ना आराम,

बाढ़े बुता सब के हे, लगे रोजगार मा।

कहूँ बेरा उवे घाम, गाँव दिखे झिमझाम,

खलखल हाँसी बोली, चले हावै खार मा।

बइला के अरा तता, बियासी के चले पता,

कहूँ कोड़े थरहा ला, जुरी राखे पार मा।

हरियर हरियर, दिखे खेत खार हर,

भुइयाँ के भाग जागे, बरखा बहार मा।।

लगथे भले चिखला, भुला जाथन दुख ला,

भाथे सुग्घर मौसम, सबो दिन साल के।

सबो के महत्ता हावै, सबो दिन मान पावै,

बरसात   बरसथे,  बरसा  सुकाल   के।

परघउनी  करबो, उच्छाह  मन  भरबो,

महीना चौमासा बने,  दुश्मन दुकाल के।

रझरझ  बूँद  झरे, भुइयाँ  के  तरी  भरे,

जम्मों  जीव  धीर  धरे, गुजरे  बेहाल  के।।

                     

द्रोपती साहू "सरसिज"

साधक सत्र-

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कुण्डलिया छंद

चौमासा के गोठ जी, सुन लव ध्यान लगाय।

कोनो रहिथें खुश बिकट, कहूँ दुखी हो जाय।।

 कहूँ दुखी हो जाय, बेंदरा मन चुप बइठें।

कोयल राग सुनाय, टेंगना मेछा अइठें।।

मँजुर नाच देखाय, बेंगवा करै तमासा।

घुघवा हवै उदास, लगे जबले चौमासा।।

चुप्पे बइठे टेटका, सोंचत मन मा बात।

सावन के रिमझिम झड़ी, करलाई हे घात।।

करलाई हे घात, धरे हे सर्दी भारी।

बरसत पानी धार, भरे हे अँगना बारी।।

चिरइ मरत हें भूख, खोंदरा मा हें घुप्पे।

कोनो गावत गीत, कहूँ बइठे हें चुप्पे।।

 गदगद हवैं किसान सब, बुता चलत बड़ जोर।

अर्र तता नाँगर चलै, उड़े ददरिया शोर।।

उड़े ददरिया शोर, धान के रोपँय थरहा।

घूमत हवैं अलाल, खार मा जइसे हरहा।।

लेंझा ला  बनिहार, सबो चालत हें खदबद।

लहरावत हे धान,  देख मन होवत गदगद।।

भागवत प्रसाद चन्द्राकर

डमरू बलौदाबाजार (छ.ग.)

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 चौमास -चौपई छंद

आगे संगी हे चौमास।

होवत हावै गा बरसात।।

छाये हे बादर घनघोर।

माते चिखला अँगना खोर।।

रिमझिम पानी बरसै तान।

मगन हावै जी सब किसान।।

बइला नाँगर धरके आज।

खेती बारी सुग्घर काज।।

पानी के बोहावय धार।

हरियर भुइँया छाय बहार।।

धनहा डोली उर्रा खार।

छलकत हावै तरिया पार।।

राजकुमार निषाद'राज'

बिरोदा धमधा जिला-दुर्ग

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कुण्डलिया छन्द

तुषार शर्मा "नादान" सत्र 

बरसा के ही आस मा, बोथे धान किसान।

पानी के हर बूंद हा, खेती बर  वरदान।।

खेती बर वरदान, धान हा पोखा जाही।

खाही खुदो किसान, पेट भर सब झन पाही।।

जोहत हावन बाट, देख एसो झन तरसा।

करथन बिनती रोज, झूम के होबे बरसा।।

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विधा- सार छंद

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उमड़-घुमर के बादर भइया, करत हवय मनमानी।

चउमासा मा चारो कोती, बरसत हावय पानी।।

ढोल बजावत ता-ता थइया, बादर नाच दिखावै।

चमक-चमक के बिजली रानी, मनखे ला डरवावै।

अँगरा जइसे गाज गिरत हे, होगे हे हलकानी।

चउमासा मा चारो कोती, बरसत हावय पानी।।

दिन-बादर खेती के आगे, नाँगर घलो फँदागे।

खेत-खार हा करमा कजरी, गीत सुनावन लागे।

माटी पूजा कर भदरागे, अब तो बुता किसानी।

चउमासा मा चारो कोती, बरसत हावय पानी।।

मिहनत करके गार पसीना, जब किसान हरसाही।

तब तो सोनहा धान बाली, लहर-लहर लहराही।

मया किसनहा के पा भुइयाँ, हो जाही जी धानी।

चउमासा मा चारो कोती, बरसत हावय पानी।।

      डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"

        भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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दोहा छंद सादर समीक्षार्थ

सुपाधार पानी गिरे, नदिया नरवा ताल ।

खेत खार डबरा असन, सबके होगे हाल ।। 

छानी हा चूहय तको, बोहय रेला धार ।

चोरोबोरो अंगना, ओर खोर के पार ।।

खोक्सी बांबी टेंगना, बिजलू खेलय फाग ।

पुचुक पुचुक के मेचका, झींगुर छेड़े राग ।। 

बाँवत के बेरा चलो, नाँगर बइला साज ।

खेत खार मा गूंजही, अरा तता आवाज ।।

नाँगर धर के नगरिहा, जावय जोते खेत ।

राग पाग माढ़य बने, मिहनत फर ला लेत ।।

सरर सरर पुरवा चले, तन ला आवय रास ।

हरियर हे चारो मुड़ा, लागे हे चौमास ।।

पवन झखोरा जब चलय, मोर मचाए धूम ।

चातक पंछी तान दे, बरखा बरसे झूम ।।

नंदकिशोर साव ' नीरव ' 

राजनांदगांव

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 कौशल साहू कुंडलिया छंद

झर-झर झर झरना झरे, बादर बरसे रोज।

मोर धनी परदेस मा, कोनो लावव खोज।।

कोनो लावव खोज, जँहुरिया आये नइये।

सरकत हे चउमास, खेत जोंताये नइये।।

रहि रहि झाँकव खोर, समागे चिंता घर भर।

झटकुन आके पोंछ, झरत हे आँसू झर-झर।।

कौशल कुमार साहू

सुहेला (फरहदा)

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 चौपाई छंद 

करिया करिया बादर छाए,

टप-टप-टप बुंदिया बरसाए।

सनन-सनन-सन चले पुरवाई।

उजियारी अंँधियारी छाई।

हरियर-हरियर डारा झूमें,

भुइंया महतारी जल चूमे।

परती भुइंया बर वरदान,

छीछय बीजा धान किसान।

बीजा उगही रोपा पाही,

पहिली तैयारी हो जाही।

बूंद-बूंद जल बरसे भाई,

चउमासा किसान हरसाई।

मीता अग्रवाल  रायपुर छत्तीसगढ़

,  ओम प्रकाश अंकुर सार छंद 

करिया -करिया बादर छाये , मन मा खुसी समाये।

चमचम -चमचम बिजुरी चमके,जीव जंतु घबराये।।

रिमझिम- रिमझिम बरसे बरखा, 

भुइयां हरियर लागे।

कच्चा घर मा पानी भरगे,पीरा अबड़ हमागे।।

तरिया - नदिया जलमय होगे,झिंगुर गाना गाये।

बन मा सुघ्घर मयूर नाचे,कोयल राग सुनाये।।

                      ओमप्रकाश साहू अंकुर 

सुरगी, राजनांदगांव

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 हेम बादर भैया

बादर भैया धर के आवय।

बरखा रानी संग म लावय।।

बदरी छायव करिया-करिया।

हाँसत हावय तरिया नदिया।।

बरसय पानी सीटर-सीटर।

मातय चिखला कीचिर-कीचिर।।

रहि-रहि गिरथे रदबिद-रदबिद।

पानी भागय खदबिद-खदबिद।।

बिजली चमके चमचम-चमचम।

नाचय मछरी छमछम-छमछम।।

पुरवाही चलथे सरसर सरसर।

डारा पाना डोलय फरफर।।

बादर गरजय घड़घड़ घड़घड़।

आज झड़ी हावय जी अड़बड़।।

-हेमलाल साहू

ग्राम-गिधवा, जिला-बेमेतरा

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 त्रिभंगी छंद

वो बादर अड़बड़, गड़गड़ गड़गड़,गरज गरज के,नीर भरे।

वो चमचम करके,बिजली चमके,

कड़कड़ कड़कड़,शोर करे।।

घनघोर घटा धर,घुमड़ घुमड़ कर,

बादर करिया, रहे डटे।

बरसात झमाझम, गिरे चमाचम

तड़़के बादर, खूब फटे।।

 

जल रद रद रद रद,बुंद बदाबद

गिर गिर के भरमार बहे।

सब परिया हरिया,तरिया नदिया, लबा लबालब, धार बहे

नित पानी पानी,छपरा छानी,चुहे टपाटप,सड़े कड़ी।

नइ छोड़े पानी, बने कहानी,रोज लगे हे,इहाॅ झड़ी। 

लिलेश्वर देवांगन

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 चौमास मा बिजुरी के डर-हरिगीतिका छंद

पानी गिरे चौमास मा, बादर करे गड़गड़ गजब।

जिवरा डरे सुनके अजब, बिजुरी करे कड़कड़ गजब।

छाये घटा घनघोर अउ, टकराय घन आगास मा।

बिजुरी गिरे के डर रथे, चारो डहर चौमास मा।।

का जानवर अउ का मनुष, सब बर बिजुरिया काल हे।

घर बन घलो जाथे उजड़, बिजुरी बिकट जंजाल हे।।

गिरही कते कोती बिजुरिया, ये समझ मा आय ना।

फोकट मरे झन पेड़ पउधा ना मनुष गरु गाय ना।।

खींचे बिजुरिया ला अपन कोती सुचालक चीज हर।

रहिथे तड़ित चालक जिहाँ तौने सुरक्षित गाँव घर।।

यमराज बनके गिर जथे, अउ प्राण ला लेथे झटक।

पानी गिरत रहिथे गजब ता, बाग बन मा झन भटक।।

बादर गजब गर्जन करे तब, टेप टीवी बंद रख।

नित होश मा रहि काम कर, मुख मा कहानी छंद रख।।

बाहिर हवस ता बैठ उखड़ू, मूंद के मुँह कान ला।

रख जानकारी सावधानी अउ बचाले जान ला।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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  दोहा-

पावस आगे गाँव मा , ले के  शुभ संदेश। 

बादर पहुना आ बरस , पहिरे श्यामल वेश।।

पानी बादर देख के , बन मा नाचय मोर। 

धरती के सिंगार बर। , बरस घटा घनघोर। ।

उमड़ घुमड़ बादर गरज , छाय घटा घनघोर। 

रिमझिम बरसे आँगना,  छलके मनके कोर। ।

सुमित्रा शिशिर

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 दोहा छंद

(कम बरसात)

फुसुर फुसुर पानी गिरे,तरिया भरे न खार।

बादर करे मजाक तब,चिंता हवय अपार।।

भिया तको दरपे नही,बरषा के ये हाल।

मुँह मे जीरा ऊँट के,अइसन हावय चाल।।

बादर आथे रोज के,एला अइसे मान।

पहन ओढ़ के डिंगरा,डिंग हँकय कस जान।।

संतोष कुमार साहू

जामगांव(फिंगेश्वर)

सत्र 

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 दोहा छंद 

गड़गड़ बादर बाजथे, डरवावय दिन रात।

खेत खार सुन्ना पड़े,

कमती हे बरसात।। 

झिमिर झिमिर पानी गिरय,रद्दा खचवा खोर।

कीचड़ माचे रोड़ मा,गिरथे  मनखे शोर।।

दिखय नहीं चउमास के, पहिली कस अब जोर।

बदले हे पर्यावरण, भौतिकता के भोर।।

मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़

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 विधाता छंद

घटा घनघोर छाए हे,सखा चौमास आए हे।

लफालफ मारथे बिजली,बदरिया गड़गड़ाए हे।

पसारे हे अपन पांखी,छमाछम मोरनी नाचे।

पपीहा बेंगवा दादुर,सबोझन गीत गाए हे।

रमेश कुमार मंडावी 

राजनांदगांव।

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मीता अग्रवाल घनाक्षरी

छाए घनघोर घटा,अँधियारी कभू छटा,

अलकर अलकर, रितु मन भाए  हे।

मोर ह पसारे पांखी,नाचे मोरनी के आँखी,

मेचका टरटराए,मन हरषाए हे।

जीव-जंतु सबों जागे,कुलकत बढ़े आगे,

किसान के भाग जगे,खेत जोते जाए हे।

उमंगते चारों खूंँटा,लता पाना बेल बूटा,

हरियाली चारों खूंँट,चउमास छाए हे।।

 मीता अग्रवाल मधुर रायपुर

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 वीर छंद- चौमास

हरियाली ला छेड़त रहिथें, बरसँय बादर काबर आज|

खुशहाली बर मनखे सोंचँय, हावय काके उनला लाज||

रोज सजाना धरती ला हे, कोन काटथे जंगल झाड़|

हर पौधा हा पानी लाथे, दुखहा होगे हवँय पहाड़||

बिगड़ जथे संतुलन धरा के, नँदिया मन मा बने हे बाढ़|

कट कट के माटी घुरजाथे, रोत घलो हे आज असाढ़||

कहूँ घोर अँधियारी छागे, डँट के बादर गरजँय मार|

शीष बूँद एको न गिरे हें, पानी बर हे हाहाकार||

थरहा कस सब हरिया जातिन, मन मा सब के हावय आस|

आय किसानी के बेरा हे, स्वागत करत हवन चौमास ||

चार महीना के पहुँनाई, बादर बरस झोर भरमार |

नँदिया नरवा तरिया डबरी, भरके बोहँय छलकय धार||

तोर आय ले हरिया जाहीं, भुइँया हर करही सिंगार|

गेंड़ी चढ़हीं सजही चौंरा, घर घर मनही रोज तिहार|

चुरही चीला भजिया गुझिया, तुहँर रहे के हे विश्वास|

किसिम किसिम पकवान बनाके, मनखे करही जग उपवास||

सब के घर मा बजही बाजा,  फुलहीं फरहीं पाना डार|

फसल सियारी उलहा जाहीं, आनंद के होही संचार||

 अश्वनी कोसरे

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 चउमासा के बिपदा

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झिमिर-झिमिर बरसा के पानी, देख महल मुसकाय हे।

मूड़ धरे बइठे झोपड़िया, भारी बिपदा आय हे।।

बइठ झरोखा महल निहारय, सुघराई संसार के।

चूहत परवा-छानी देखय, करलाई परिवार के।

कतको माटी के कुरिया ला, ये चउमासा खाय हे।

मूड़ धरे बइठे झोपड़िया, भारी बिपदा आय हे।।

पूरा आये नदिया नरवा, रूप धरे बिकराल हे।

देखत अइसे पोटा काँपय, जइसे सउहें काल हे।

नदिया खड़ के बाग बगइचा, मनखे मन बोहाय हे।

मूड़ धरे बइठे झोपड़िया, भारी बिपदा आय हे।।

चउमासी बीमारी आके, करत हवय हलकान जी।

गुनत हवय मनखे मन जम्मों, कइसे बाँचय प्रान जी।

चिखला माते खोर-गली मा, दुर्गंधी बगराय हे।

मूड़ धरे बइठे झोपड़िया, भारी बिपदा आय हे।।

       डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"

        भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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बरवै छंद

उमड़ घुमड़ के पानी, बरसे घात |

झींगुर गावय आगे,हे बरसात ||

गली खोर मा चिखला,माते आज |

बतर किरी मच्छर के,होगे राज ||

नरवा उल्ला भागे,छलके ताल |

पूरा मा नदिया के, मठलत चाल ||

अशोक कुमार जायसवाल भाटापारा

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 रविबाला ठाकुर 

करिया बादर देख के, मगन हवय मन मोर।

पानी गिरही जोर से, घटा छाय घनघोर।।

चिरई घुसरगे नीड़ म, पवन मचावत सोर।

बरखा के जोहार बर, पेड़ गइन सब लोर।।

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 मोहन मयारू बरसा के दिन  (घनाक्षरी छंद)

बदली जी रोज छाय , संग बड़ पानी लाय  । 

मौसम  हे  बरसात , दिन अब  आत  हे ।।

भीगत हे तन मन , धरती के कण कण  ।

हरियर परिधान  , देख  मन  भात  हे ।।

बोवत हे धान पान , धरती के भगवान ।

नाँगर जोतत आज , देख मुसकात हे ।।

चले भारी काम धाम , रोज इँहा सुबे शाम  ।

पानी हवै जिनगानी , बदरा  हा  लात हे ।।

             मयारू मोहन कुमार निषाद

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 दोहा छन्द - चौमास

एसो के चौमास मा, साधक मन के छन्द।

देवत हें हर एक ला, अमरित के आनन्द।।

चौमासा के दृश्य ला, भाव-शब्द मा बाँध।

चलत हवँय साधक मनन, मिला काँध ले काँध।।

दुरुग-रायपुर क्षेत्र के, कोन बुतावय प्यास?

बादर टुहूँ दिखात हे, रूठे हे चौमास।।

अरुणकुमार निगम

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औघड़ दानी (मोद सवैया)

देवन मा महदेव बड़े सिव संभु हवै जी औघड़ दानी ।

अंग भभूत रमाय रथे सिर मा बहिथे गंगा जुड़ पानी ।

दानव मानव भूत पिसाच सबो झन पूजे संग भवानी।

होय प्रसन्न चढ़े धतुरा पतिया फुलवा भोला गुन खानी।

चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबन्द,छत्तीसगढ़

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4 comments:

  1. बड़ सुग्घर संकलन,, सबो छंदकार मन ला हार्दिक बधाई..💐👌

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  2. अद्भुत संकलन हार्दिक बधाई

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  3. सुग्घर संकलन सबो छंद साधक मन ला बहुत बहुत बधाई

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  4. अद्भुत संकलन

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